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गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

कहाँ है हमारी सांस्कृतिक विरासत ?

आज एक अक्तूबर है, अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जा रहा है सरकारी तौर पर, अख़बार विज्ञापनों से अटे पडे है, 

क्या अब ऐसा समय आ गया है कि हमें अपने बुजुर्गों को याद करने के लिए साल में एक दिन निश्चित करना पडे? 

एक आदमी जो अपनी पूरी जवानी हवन कर अपने परिवार कि बगिया को विभिन्न झंझावातों एवं सामाजिक कठिनाईयों का सामना करते हुए सींचता है और बुढापा आने के बाद उसे किनारे कर दिया जाता है, जैसे इस घर को बसाने में उसका कोई योगदान ही नही है, ये कैसी विडम्बना है? 

जो घर का मालिक था वो ही चौकीदार हो जाता है. बड़ी शरम कि बात है. आज का युवा अपने इस कर्त्तव्य से क्यों विमुख होते जा रहा है? 

जिसे अपने कर्त्तव्य कि याद दिलाने के लिए सरकारी तौर पर कानून बनाना पडे या वृद्धजन दिवस मनाना पडे.

ये वही देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर १४ बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है, कहाँ गई ये हमारी संस्कृति? 

कहाँ गयी वो हमारी सांस्कृतिक विरासत जो हमें निरंतर अपने कर्तव्यो कि याद पित्र ऋण -ऋषि ऋण एवं राष्ट्र ऋण के रूप में निरंतर दिलाती थी.?

शायद हम पश्चिम की आधुनिकीकरण की आंधी में कुछ ज्यादा ही बह गए अपने संस्कारों  को भी भूल बैठे.इसका इलाज क्या है? 

यह विषय मै आप लोगों पर छोड़ता हूँ. हाँ मुझे "लगे रहो मुन्ना भाई"फिल्म का सेकंड इनिग होम जरुर याद आ रहा है. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल सही सवाल है । स्माज से संवेदनायें अपनी संस्कृ्ति सब गायब हो रहे हैं आभार्

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  2. ये बहुत ही गम्भीर विषय है,इसका सामाजिक निराकरण भी अत्यावश्यक है,ये हमा्री वर्तमान शिक्षा प्रणाली का बहुत बडा दोष है,आपने सही सवाल उठाये,

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  3. हम सब व्‍यक्तिवादी या केरियर ओरियेण्‍टेट हो गए हैं। इसी कारण परिवार, समाज और देश की सीमाएं टूट गयी हैं। हमारा सिद्धान्‍त था कि सृष्टि को संरक्षण करने का कार्य मनुष्‍य का है अत: जितना उसका प्राप्‍य हैं, बस उतना ही लेना है शेष्‍ा दूसरों के लिए छोड देना है। अब आधुनिक या पश्चिम का विचार यह है कि यह दुनिया मेरे लिए ही बनी है, अत: इसे पाने का मेरा सर्वाधिकार है। जब पाना ही जीवन का लक्ष्‍य बन जाए तब परिवार का मुखिया कौन, इस बात पर भी प्रश्‍न चिन्‍ह लग जाता है। जैसे ही बेटा कमाऊ हुआ वह मुखिया बन बैठता है। इसलिए अब ॠण चुकाने की बात नहीं है अपितु माता-पिता को चाहिए कि वे अपना हाथ कभी भी न पसारे, बस देत ही रहें। तभी वे कुछ हद तक अपना सम्‍मान बचाकर रख सकेंगे। नहीं तो पैसे की दौड में हम अपना सम्‍मान खो देंगे और फिर ऐसे ही वृद्व दिवस श्राद्ध के रूप में मनाते रहेंगे। हमारे यहाँ एक दिन श्राद्ध मनाते हैं।

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  4. SAMVEDNAYEN MAR CHUKI HAIN ..... PASHCHIP KE ANDHADHUN DOUD MEIN HAM APKI SAANSKRITI BHOOLTE JAA RAHE HAIN ....

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  5. सेकंड इनिग होम !

    पश्चिमी अंधुनिकरण है

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  6. उचित समय पर एक ज्वलंत विषय का चयन एवं उस पर गम्भीर लेखन हमें कुछ सोचनें पर मजबूर करता है।

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  7. उचित समय पर एक ज्वलंत विषय का चयन एवं उस पर गम्भीर लेखन हमें कुछ सोचनें पर मजबूर करता है।

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  8. भाई फोटो में आपके मुछ बड़ा शानदार दीख रहे है

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