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मंगलवार, 3 नवंबर 2009

वह जोर से चीखा और वहीँ पर लुढ़क गया

अज्ञात से भयभीत होकर व्यक्ति अनेक मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो जाता है और उसे जादू या टोना करना कह देते हैं, चर्चा को आगे बढाते है. हमारे पास जो प्रतिक्रियाएं आई है उनको लेते हैं जिससे हम अपने मुद्दे पर आगे बढ़ सकें. 

पी.सी.गोदियाल ने कहा… सही कहा आपने . दर और बहम की कोई दवा नहीं, अगर इंसान डरपोक किस्म का है और रात को अँधेरे में कहीं जा रहा है तो उसे रस्ते में बीसियों भूत नजर आ जायेंगे मगर यदि वह इस तरह डरने वाला इंसान नहीं है तो जो जंगल के असली भूत शेर, भालू, तेंदुए है वे भी रास्ता छोड़ देते है उसके लिए !

संगीता पुरी ने कहा… रात्रि के समय अंधकार भय उत्‍पन्‍न करने के लिए काफी है .. और यही उन अंधविश्‍वासों का कारण बना होगा .. पर स्‍टेशन पर या उन सडकों में जहां रात भर गाडियों की आवाजाही चलती है .. या उस फैक्‍टरी या आफिस के आसपास जहां रातभर नाइट ड्यूटी के कारण चहल पहल रहती है .. यदि भूत प्रेत या नजर लगने के किस्‍से देखे जाते .. तब ही उनपर विश्‍वास किया जा सकता था !!

संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari ने कहा… जानकारी से लबरेज सुन्‍दर कडी के लिए आभार. छत्‍तीसगढ में टोनही नाम से भय बढाने के पीछे कुछ यौन कुत्सित मानसिकता भी देखने को मिलती है. कुछ गावों में ऐसी महिला जो प्रभावी अईयासी प्रवृत्ति के पुरूषों के दबावपूर्ण यौन इच्‍छाओं का प्रतिकार करतीं उसे बदनाम करने के हथकंडे अपनाए जाते हैं और उसे 'टोनही' करार दिया जाता है। कहीं कहीं बांझ (छत्‍तीसगढी में बंग्‍गडी, ठगडी) महिलाओं को टोनही करार दिया जाता है।

आज एक बात निकल कर सामने आती है कि है कि वहम ही हमें डराता है. संजीव तिवारी जी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से कहा कि इसमें यौन पूर्ति की कुत्सित मानसिकता और बाँझ पन भी एक कारण के रूप में है. अभी हम अज्ञात के प्रति भय की बात कर रहे हैं-आगे बढ़ते है.

एक व्यक्ति बरसात का मौसम आने से पहले अपने घर की पुवाल, हमारे यहाँ (खदर)  छाजन पुरानी होने के कारण बदल रहा था ,अचानक वह जोर से चीखा और वहीँ पर लुढ़क गया. 

उसके चीख सुनकर कुछ लोग छत पर चढे तो देखा कि उसकी सांसे थम चुकी थी, आंखे फटी हुयी थी मुह खुला हुआ था. उसे उतारा गया, उसके बाद कारण तलाशे गये कि ऐसा क्या था जिससे इसकी मृत्यु हो गई? 

तभी उन लोगों ने पाया कि छाजन कि रस्सियों (ये भी घास से बनती हैं) के साथ एक जहरीला सांप भी बांधा हुआ था, रस्सी के साथ सांप को भी गांठ लगी हुई थी. सांप मारकर सूख चूका था. 

पता चला कि उस व्यक्ति ने कई साल पहले इस छप्पर को स्वयं बांधा था अँधेरे में पुवाल में सांप उसे दिखा नहीं और उसने रस्सी के साथ उसे भी गांठ लगा दी थी. जब वह छप्पर खोलने लगा तो उसने गांठ लगा हुआ सूखा सांप देखा तो सोचा होगा कि इतने जहरीले सांप को मैंने रस्सी के साथ पकड़कर गांठ लगा दी. कहीं ये डस लेता तो मृत्यु हो जाती. इससे भयभीत होकर उसकी सांसे रुक गयी और उसकी मृत्यु हो गयी. 

कुछ लड़कों का एक दल था वे सारे आपस में मित्र थे. उनके बीच भूत आदि के अस्तित्व को लेकर बहस हो गई. एक लड़का उनमे थोडा बलशाली था. उन्होंने रात को तालाब की पार पर मंजन घिसते हुए, शर्त लगा ली और उस लड़के से कहा अगर तू भूत आदि से नहीं डरता तो  रात को १२ बजे के बाद श्मशान में एक खूंटा गाड़ कर आ जा हम तुझे मान लेंगे. 

वह लड़का तैयार हो गया. वह तय समय पर श्मशान में खूंटा गाड़ने गया, उसने वहां जाकर जल्दी-जल्दी खूंटा गाड़ दिया और जैसे ही वापस होने लगा वैसे उसे लगा कि किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया है. वह जोर से चिल्लाया"बचाओ" ये सुनकर उसके बाकी साथी जो दूर पर थे भाग गए 

गांव से लोगो को बुला कर लाये. जब लोगों ने पहुच कर देखा कि लड़का बेहोश होकर पड़ा हुआ है. उसे उठाने लागे तो उन्हें दिखा कि उसने जल्दबाजी में अपने "तहमद"-(लुंगी) में ही खूंटा गाड़ लिया है. 

जैसे ही वह खूंटा गाड़कर वापस पलटा लेकिन खूंटे में लुंगी के फंसने के कारण भाग नहीं सका और उसने समझ लिया कि उसे भूत ने पकड़ लिया. उस लडके को सब अस्पताल ले गये वह बच तो गया लेकिन उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया. 

बहुत इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुआ. लोग कहने लागे कि इसे श्मशान में अदृश्य शक्तियों ने कुछ कर दिया. इस तरह के हादसे भय होने के कारण हो जाते हैं.


4 टिप्‍पणियां:

  1. हा-हा-हा... दोनों रोचक किस्से ! सच में इस डर का कोई इलाज नहीं !!

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  2. हमारी मन:स्थिति हमारे शरीर के एक एक सेल को प्रभावित करती है .. आपका सारा काम मनोनुकूल होता रहे .. तो आपका स्‍वास्‍थ्‍य बिल्‍कुल सामान्‍य रहेगा .. जबकि आपके काम में अडचनें आनी शुरू हो जाएं .. तो आपका स्‍वास्‍थ्‍य बिगडने लगेगा .. भय या तनाव हमारे शरीर में किसी भी स्थिति को जन्‍म दे सकते हैं .. और अचानक शरीर में उत्‍पन्‍न परिस्थिति के लिए हम किसी भूत या आत्‍मा को जिम्‍मेदार समझ लेते हैं !!

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  3. हा..हा..हा.. मरा सांप भी डस गया !!! और खुद ही भुत बन कर खुद को ही दारा लिया दरअसल ऐसे भुत ही होते है !!! ललितजी शानदार !!!

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  4. SACH MEIN YADI BHOOT PRET HOTE BHI HON TO UNHE DOST BNAYA JA SAKTA HAI PAR IIRSHYALOO DIMAGWALON KI PATHARFAD NAZRON SE BAHUT DAR LAGTA HAI YE VE LOG HAIN JO NA KHUD HANS SAKTE HAIN NA DOOSRON KA HANSNA INHEIN SUHATA HAI.. INSE KAISE BACHA JAYE ?

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