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शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

वो सबको मुर्ख बनाता है!

एक महात्मा दुकान पर खड़ा वहां की चीजों को देख रहा था कि उसे एक ख्याल आया. अपने मन से बोला तेरी बहुत तारीफ़ सुनी है,

कुछ अपनी करतूत तो दिखा. मन ने कहा ठहरो, अभी दिखाता हूँ. वहां पे एक आदमी शहद बेच रहा था. उसने शहद से भरी ऊँगली को दीवार से पोंछ दिया.

दीवार पर शहद लगाने की देर बस थी कि उसकी खुशबु पाकर कुछ मक्खियाँ आ बैठी. शहद खाने लगी. फिर मक्खियों की संख्या बढ़ गयी.

अभी वे शहद खा रही थी कि छिपकली ने देख लिया कि यह तो मेरा शिकार है. उसने छलांग लगायी और शहद समेत कुछ मक्खियों को खा लिया.

उस दुकानदार ने बड़े प्यार से एक बिल्ली पाल रखी थी. बिल्ली छिपकली पर झपटी और उसको एक ही बार में खा लिया.

पास ही एक कुत्ता खड़ा था, बिल्ली पर हमला करके उसको मार डाला. दुकानदार को बहुत गुस्सा आया. उसने नौकरों को कहा मारो कुत्ते को. उन्होंने कुत्ते को डंडे से पीट कर मार डाला.

वह कुत्ता पास ही खड़े ग्राहक का था. उस ग्राहक को बहुत ही गुस्सा आया. उसने दुकानदार को गाली दी.गाली  देने  की देर बस थी कि दोनों आपस में लड़ने लगे.

दुकानदार के साथ उसके नौकर और ग्राहक के साथ बहुत से लोग. खूब लडाई हुई तो मन ने उस महात्मा से कहा, ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं. मैं लोगों के मन में इच्छाएं पैदा करके उनको मुर्ख बनाता हूँ.

उन बेचारों को पता नहीं लगता कि उनकी इन इच्छाओं का उन्हें क्या फल भुगतना पड़ता है.ऐसे हैं मन के खेल. 

19 टिप्‍पणियां:

  1. ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं. मैं लोगों के मन में इच्छाएं पैदा करके उनको मुर्ख बनाता हूँ. उन बेचारों को पता नहीं लगता कि उनकी इन इच्छाओं का उन्हें क्या फल भुगतना पड़ता है.ऐसे हैं मन के खेल. .....
    यही यथार्थ है...

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  2. यही खेल दिखा रहे हैं यह बाबा लोग और भोली जनता मूर्ख बनती रहती है.

    बहुत सही कथा लाये!!

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  3. बहुत प्रेरक, सार्गर्भित प्रसंग है । धन्यवाद और शुभकामनायें

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  4. ललित जी उस महात्मा को तो नोबेल शान्ति पुरूस्कार देना चाहिए था! हा-हा-हा वैसे कहानी से सबक मिलता है

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  5. सुन्दर एवं शिक्षाप्रद पोस्ट!

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  6. सही कहा जी
    मन ही है जो सारी आपा-धापी की जड है

    प्रणाम स्वीकार करें

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  7. और बाबाओं का काम क्या है? सारगर्भित लेख.

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  8. अरे अरे यही तो ब्लागिंग है .... भाई.

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  9. एक विशुद्ध पोस्ट है ललित जी। बजा फ़रमाया आपने।

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