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मंगलवार, 9 मार्च 2010

बिन पेंदे का लोटा--ना किसी के काम का

लोटा एक साधारण सा शब्द है लेकिन इसकी महिमा निराली है.........मनुष्य के जीवन से जुड़ा हुआ है...... इसके बिना काम चलना बहुत ही कठिन है........लोटे के लुढ़कने से लोटना शब्द का भी निर्माण हुआ होगा...........मनुष्य जब पी कर मदमस्त हो जाता है तो कहीं पर भी लोट जाता है........चाहे वह सड़क, घुरा, या नाली ही क्यों ना हो. बच्चा जब जिद करता है किसी चीज के लिए तो वह भी धरती पर लोटने लगता है.........

अगर किसी को किसी से इर्ष्या है तो साँप भी लोटने लग जाता है छाती पर..... अगर आदमी ना होकर गधा है तो वह भी नहलाने धुलाने के बाद धुल में लोटता है. भैंस को कितना भी साफ पानी से धो लीजिये लेकिन मौका मिलते ही कीचड़ में जरुर लोटेगी......   ... उसे कीचड़ में लोटने से अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है........

एक मुहावरा है कि लोटा लेकर आये थे और बहुत कमा लिए . एक सेठ भी लोटा लेकर आये थे उन्होंने इतनी तरक्की की थी पूरा एक शहर ही बसा दिया. लोटा की महिमा ही निराली है.. बिना लोटा के किसी का काम ही नहीं चलता  .... .... सुबह उठ कर सीधा लोटा ही याद आता है.........अगर कोई एक मिनट रुकने के लिए कह दे तो रुका नहीं जा सकता क्योंकि हाथ में लोटा है.............उसे फिर लौटाया नहीं जा सकता इस लिए लोटा लेकर भागना ही पड़ता है......

लोटा जीवन का एक आवश्यक अंग है........पहले के ज़माने में आदमी अगर कहीं किसी गांव में जाता था तो लोटा साथ ही रख कर ले जाता था............अगर पानी पीना है, नहाना है, कुछ गरम कर के पीना है तो काम आता था. अगर यात्रा में कहीं पर रूपये पैसे ख़त्म हो गये या चोरी हो गए तो लोटे को बेच कर अपने वापसी के लिए या भोजन के लिए रूपये पैसे जुटाए जा सकते थे....इस तरह यात्रा में लोटा बहुत ही काम आता था.

हमारे ३६ गढ़ में परम्परा है कि यदि कोई मेहमान आपके घर आता है तो उस घर की बहु पहले लोटा में पानी लेकर आती हैं और उसे अतिथियों के सामने रख कर सबको प्रणाम करती हैं..........यह संकेत है कि अब आप लोटे के पानी से हाथ मुंह धोकर अपनी थकान मिटा सकते हैं और आराम से बैठ सकते हैं....मेहमानी कर सकते हैं......लोटे में अतिथियों को पानी देना एक शुभ कार्य माना जाता है......आव भगत का यह आवश्यक अंग है.

घर में जब कथा पूजा होती है तो लोटा कलश के काम आता है......उसमे जल भरकर आम की पॉँच पत्तियां लगा कर मंगल कलश का रूप दिया जाता है तथा उसका पूजन होता है...... इस तरह मंगल कार्य की शुरुवात लोटे से ही होती है...... जब हम गंगा तीर्थ करने जाते हैं तो गंगा जल लोटे में ही लेकर आते हैं जिसे गंगा जली कहते हैं....

लोटा से क्रोध भी प्रदर्शित किया जाता है..........अगर गुस्सा आ गया तो लोटा फेंक कर मारा भी जा सकता है........यह किसी का सर भी फोड़ सकता है........अब यहाँ पर यह किसी बम से कम काम नहीं करता है........अगर इसको फेंकने वाला कोई बलशाली है तो बस समझ लो यह मिसाईल है..... सीधा ही निशाने पर लगती है. 

लोटा जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के काम आता है और मनुष्य के साथ अंतिम तक जुड़ा रहता है. लोटे कई धातु के आते हैं व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार खरीद सकता है.......कांसे का लोटा ज्यादा पवित्र माना गया है. पूजा पाठ एवं विवाह से लेकर अंतिम संस्कार तक काम आता है. तांम्बे का लोटा पानी को कीटाणु विहीन करता है.

पीतल का लोटा भी विकल्प के रूप में उपयोग में लाया जाता है. हमारे यहाँ विवाहादि में कांसे का लोटा गिलास और कांसे की थाली लड़की को देने का रिवाज है. चाहे कितना भी गरीब से गरीब क्यों ना हो.

अब बात आती है लोटे के पेंदे की. तो लोग पेंदा वाला लोटा ही लेना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि लुढकेगा नहीं और उसमे रखी वस्तु गिरेगी नहीं, बरबाद नहीं होगी............इसी से कहावत भी बनी है बिन पेंदे का लोटा........

अब यहाँ पर लोटा मनुष्यों पर सवार हो गया..........बिन पेंदे का लोटा कहने से समझ में आ जाता है कि अमुक व्यक्ति विश्वसनीय नहीं हैं...... यह कहीं पर भी आपको धोखा दे सकता है....... आपकी बनी बनाई खीर बिखेर सकता है...... रायता भी फैला सकता है..........इसलिए इससे दूर रहा जाये........

अस्थिर चित्त व्यक्ति किसी की भी चुगली कर सकता है और समबन्धित व्यक्तियों के बीच वैमनस्य फैला सकता है...... इसलिए उसे इस ख़िताब से नवाजा गया है. इसलिए लोटा बनने वाले इसमें पेंदा लगना नहीं भूलते........

पहले के ग्रामीणों के घरों में कपडे रखने की आलमारी या पेटी नहीं होती थी इसलिए वो लोटे के बड़े भाई मटके का उपयोग अपने रोजमर्रा के पहनने या विशेष अवसर पर पहने जाने वाले कपड़ों को रखने में करते थे.......लेकिन सूती के कपडे मटके में रखने के कारण सलवटों से भरे रहते थे.......अब उन्हें पहनने लायक बनाने में भी लोटा ही काम आता था..........

मोटे पेंदे के लोटे में गरम कोयले भरकर उन कपड़ों की सलवटे दूर की जाती थी और व्यक्ति मजे से बाबु साहब बनकर विशेष अवसरों पर सज जाता था......पहले इसे कपड़ों पर लोटा करना कहते होंगे... जिसे आज प्रेस करना या इस्त्री करना कहते हैं........यह लोटा बड़े काम की चीज है.........अगर इसमें पेंदा लगा हो तब.

प्राचीन काल से लेकर आज तक लोटा अपनी सेवाएं दे रहा है.......... आज भी हम इसका उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते ही हैं........भले कितने ही तरह तरह के जग घरों में प्रवेश कर गये, लेकिन लोटे के बिना काम चलता ही नहीं है.......

हम इसका आधुनिक उपयोग भी कर सकते है.......इसमें छेद करके छोटे स्पीकर लगा कर इको साउंड पैदा किया जा सकता है.....घुंघरू की खनक के साथ गाने सुने जा सकते हैं......... लोटे में नलकी लगाने के बाद इसका नाम बदल कर सागर हो जाता है....... जो नलकी से तरल पेय पदार्थ पीने के काम आता है. इसमें नलकी लगने के बाद यह प्राकृतिक चिकित्सा में जल नेति करने के काम आता है.... 

जीवनपर्यंत लोटा कभी साथ नहीं छोड़ सकता अगर वो पेंदे वाला हो...........बच्चा पैदा होता है तो उसको प्रथम स्नान लोटे से ही कराया जाता है और मनुष्य के अंतिम संस्कार के समय लोटे में ही घी डाल कर कपाल क्रिया संपन्न करायी जाती है........ इस तरह लोटा जन्म से मृत्यु तक साथ निभाता है........ लोटे का कर्ज कभी लौटाया नहीं जा सकता... इसकी महिमा अपार है........

35 टिप्‍पणियां:

  1. वाह मैं तो खुद भी लुटायमान हो गया लोटा महात्म्य और लोटों के सुन्दर चित्रों को देखकर -इसमें तो एक बनारसी लोटा लग रहा है -बिना पेदी वाले लोटे कहाँ पाए जाते हैं इस पर भी थोडा प्रकाश डालना था

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  2. बहुत ही सुंदर लौटा पोस्ट. शायद ब्लाग जगत में पहली ही बार लौटा माहात्म्य गाथा लिखी गई है. मैं अपने सब लौटा लौटी भाई बहनों की तरफ़ से आपको धन्यवाद देता हूं.

    आपका मुरादाबादी लौटा.

    रामराम.

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  3. ...लोटा का गुणगान तो कर दिया पर असली मुद्दे "बिन पेंदी का लोटा" का वर्णन बहुत ही संक्षेप मे किया है जबकि होना ये चाहिये था कि पूरी पोस्ट बिन पेंदी पर ही होती तो ज्यादा प्रभावशाली होती ...खैर छोडो .... असली मुद्दे पर एक पोस्ट और बनती है, ललित भाई !!!

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  4. लोटा महात्म पढ़कर मुदित हुये जा रहे हैं, वाह!

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. हा हा हा ललित जी , आपने लोटा पुराण को इतनी अच्छी तरह बांचा है कि मन लोटमलोट हुआ जा रहा है , लोटे की प्रासंगिकता अभी भी बहुत बनी हुई है और कहा जाए तो बिना पेंदे के लोटों की संख्या तो बढी ही है ...आपका ये लेख किसी प्रिंट मीडिया में छपेगा ...ये तय है ...बाद में न कहना बताया नहीं ..अभी से बधाई
    अजय कुमार झा

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  7. बहुत सुन्दर व जानकारीपूर्ण लेख!

    तांबे के लोटे में रात में जल रखकर सुबह पीना अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक होता है।

    "बच्चा जब जिद करता है किसी चीज के लिए तो वह भी धरती पर लोटने लगता है........."

    सूरदास जी ने भी शिशु कृष्ण के लोटने का वर्णन किया हैः

    सूर श्याम बलि जाऊँ यशोदा काहे को भुँइ में लोटी।
    गोपाल प्यारे माँगत माखन रोटी॥

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  8. इति श्री लोटा पुराणस्य ...... अध्याय समाप्तम भवतु!
    इतना ही नहीं यह "अनूप जलोटा" जी के नाम में भी जुड़ा हुआ है
    और इनकी भजन गायकी से कौन नहीं है वाकिफ
    वाकई लोटा की महिमा है निराली

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  9. मन तो लोटा है जी
    नेता तो मोटा है जी
    इब्‍नेबतूता हाथ में लोटा
    भंग का घोटा
    काहे है छूटा
    आपने खूब लोटाया है।
    विश्‍वास है कि टिप्‍पणियां पढ़ कर अब आप लोट रहे होंगे। पर एक बात बतलाइये कि आपका पी सी यानी प्‍यारा कंप्‍यूटर कब लोट रहा है वापिस आपके पास।

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  10. आपके इस लोटा-पुराण को पढते-पढते बार-बार चेहरे पे मुस्कुराहट आ-जा रही थी...

    बहुत ही रोचक शैली में लिखा गया बढ़िया...असरकारक...मारक व्यंग्य

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  11. आपने तो लोटा पुराण सुना कर लोटपोट कर दिया
    अब क्या बताये बिन लोटा के हम तो खुद को लुटे पिटे से महसूस करते है.

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  12. Waahji khub rahi ye lota puraan bhi...aapka pratutikaran lajawab hai.
    Dhanywaad

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  13. ललित बेटा, ये तूने अच्छा किया जो लोटा के बहाने अनूप ज लोटा के हाल बता दिये। ये लोटा बेटा तो आजकल बिगड गवा है। पता नही कहां से एक कर्मजली कुलच्छनी के चक्कर में चढ गया है?

    पर तुम लोग चिंता मत करो...अब अम्माजी आगई है। इस कुलच्छनी और लोटा दोनो की अक्ल ठिकाने लगा कर ही मानेगी।

    और बेटा मेरे ब्लाग पर भी आना। और सब आकर मेरे फ़ालोवर बन जाना।
    जरा तबियत खराब है बुढापा है ना। तो तबियत ठीक होते ही और भी अच्छी २ पोस्ट लिखुंगी।

    तुम सबकी अम्माजी, अच्छों के लिये अच्छी और बुरों के लिये बुरी से भी बुरी।

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  14. लोटा इतना काम करता है तभी उसका पैंदा घिस जाता होगा...

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  15. गज़ब का लिख मारा ललित बाबू,हंसते-हंसते पेट दुःख गया और अब लोटा लेकर भागने की नौबत आ गई है।

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  16. आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्ते नहीं बनाने चाहिए... कई रिश्ते दर्द देते हैं.... बहुत दर्द देते हैं... ऐसा दर्द जो नासूर बन जाते हैं....

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  17. ललित भईया आपके भी क्या कहने , लोटा पूराण पढ़कर बड़ा आनन्द आया ।

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  18. लोटा महात्म्य पढ़कर बड़ा आनन्द आया .

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  19. ललित भाई,
    मेरी राय से लोटों का बड़ा कोटा स्टॉक में रख लो...हो सके तो चीन से एकमुश्त कंसाइनमेंट मंगा लो...ब्लॉग नगर से जो जो वैराग्य ले, उसे एक लोटा आपकी तरफ से भेंट रहेगा...

    जय हिंद...

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  20. अथ: श्री लोटा कथा...वाह क्या लोटा है और क्या लोटना ..आपकी रचनाओं में अलंकारों का प्रयोग बहुत खूबसूरती से देखने को मिलता है..बढ़िया लेख और जानकारी.

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  21. सारे लोटे दिखा दिए आज तो , यह शायद पहली लोटा पोस्ट है ब्लाग जगत को ! ललित भाई अनूठी पोस्ट के लिए शुभकामनायें ! हा...हा...हा...

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  22. कुछ चीज़े होती हैं,जिनका हम हमेशा इस्तेमाल करते हैं लेकिन उस वस्तु का इतना महत्व नहीं पता था,हर जगहों पर अलग अलग प्रयोग होता है ये भी नहीं पता था,अदभुत लेख और बहुत ही कीमती जानकारी,आभारी

    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  23. वाह लोटा महाराज हम धन्‍य हो गए आपका पुराण पढ़कर। आप तो समस्‍त सृष्टि पर सबसे अधिक पूजनीय वस्‍तु हैं। बस आप ढुलमुल कर जाते हैं तब बुरा लगता है। बधाई बढिया व्‍यंग्‍य देने के लिए।

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  24. पंडित जी वैसे है लोटा है बड़े काम की चीज यह दिशा दर्शन कराने में भी मददगार होता है ... आनंद आ गया ..बधाई

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  25. जय हो महाराज लोटा भगवान की,
    पूरा तत्व दर्शन करवा दिया आपने।
    आभार,
    लोटन लाल
    गां.व डा.भैंसियालोटन

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  26. बढ़िया रही यह लोटामय पोस्ट

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  27. जय हो लोटा पुरान.


    बहुत सुन्‍दर विवरणात्‍मक पोस्‍ट है भईया यह, लोटा के संबंध में संपूर्ण शोध लेख है यह. बहुत बहुत धन्‍यवाद.

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  28. Jab lote ka vardan ho to "CHIRKIN" ka jikr jaroor hona chahiye.

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