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सोमवार, 3 मई 2010

गाँव,गरमी का मौसम,आम-इमली और लाठी-डंडे

जैसे ही गर्मी के दिन आते हैं,आम और इमली के पेड़ों पर फ़ल लगते हैं। इमली की खटाई की मिठास ऐसी होती है जिसका नाम सुन कर ही मुंह में पानी आ जाता है।

यही हाल आम की कैरी के साथ भी है। उसकी भीनी खुश्बु मन को मोह लेती है। हमारे यहाँ पकी हुई इमली के बीज निकाल कर उसे कूटकर नमक मिर्च मिलाके "लाटा" बना के खाया जाता है।

बच्चों को बहुत प्रिय होता है। वही कैरी खाने के लिए घर से ही नमक मिर्च पुड़िया में बांध कर जेब में रख लेते थे कि पता नहीं कब किसके आम के पेड़ पर अपना दांव लग जाए।

बचपन की बातें तो कुछ और ही होती है। वह भी गांव का बचपन जीवन भर याद रहता है। हमारे दिल्ली के रिश्तेदारों के बच्चों को यह पता ही नहीं की मुंगफ़ली में फ़ल कहां लगता है?

उपर लगता है कि जड़ में लगता है। लेकिन गांव के बच्चों को दिल्ली-बांम्बे तक की जानकारी होती है। टीवी और फ़िल्मों में सब दिखा दिया जाता है।

जिससे वे समझ जाते हैं कि शहर कैसा होता है। लेकिन फ़िल्मों में यह नहीं दिखाया जाता कि मुंगफ़ली का पौधा कैसा होता है। आम और इमली पेड़ पर कैसे लगते है।

एक बार की बात है जब हम 7वीं में पढते थे। मेरे दो स्थायी मित्र थे एक कपिल और एक शंकर।हम सारी खुराफ़ातें साथ मिल कर ही करते थे।

क्लास में खिड़की के पास बैठते थे और उसके साथ ही अपनी सायकिल रखते थे। अगर किसी टीचर का पीरियड पसंद नही है तो टीचर के ब्लेक बोर्ड की तरफ़ मुंह करते ही सीधा खिड़की से कूद कर सायकिल उठाई और रफ़ूचक्कर हो लेते थे। 

हमारे स्कूल के पीछे आम के बड़े-बड़े कई पेड़ थे। एक दिन कपिल ने बताया कि इन आम के पेड़ों में बहुत सारे आम लगे हैं, कहां हम दो चार कैरियों के लिए चक्कर काटते हैं मरघट तक में, यहीं हाथ आजमाया जाए।

मैने भी देखा एक पेड़ तो आम से लदा हुआ था जहां भी हाथ डालते आम ही आम। बस योजना को मूर्त रुप देने की ठान ली। दोपहर के बाद खिड़की से जम्प मारा और चल दिए आम के पेड़ तक।

शंकर को सायकिल की चौकिदारी करने के लिए खड़ा किया। उसे चेताया कि अगर कोई चौकिदार या आम का मालिक आ गया तो सायकिल लेकर भाग जाना और चौरस्ते पर मिलना। वहां से हमारे आए बिना कहीं मत जाना तुझे तेरा हिस्सा बराबर मिल जाएगा।

उसे चेता कर हम दोनो चढ गए आम के पेड़ पे। आम भरपूर थे, पहले तो पेड़ के उपर बैठ कर खाए जी भर के, शंकर सायकिल की चौकिदारी करते रहा।

एक दो आम उसके पास भी फ़ेंक दिए जिससे वह खाली मत बैठा रहे, आम खाने का आनंद लेता रहे। हमने अपनी जेबें भर ली, लालच और बढ़ा हम आम तोड़ते ही जा रहे थे।

आम के पेड़ की लकड़ी बहुत कमजोर होती है अगर टूट जाए तो दुर्घटना होना लाजमी है। इसलिए संभल कर काम में लगे थे।

तभी अचानक जोर का शोर सुनाई दिया। उपर से देखा तो 10-15 लोग हाथों में लाठी लिए जोर जोर से गाली बकते हुए आ रहे थे-"पकड़ो पकड़ो साले मन आमा चोरावत हे,मारो-मारो झन भागे पाए (पकड़ो सालों को आम चोरी कर रहे हैं, मारो मारो भागने ना पाए)

मैने शंकर की तरफ़ देखा तो वह सायकिल को वहीं छोड़ कर भागा जा रहा था 100 की रफ़तार में, जैसे किसी ने पैट्रोल लगा दिया हो।

सायकिल वहीं खड़ी थी, अगर वो सायकिल ले गए तो चार आठ आने के आम के चक्कर में घर में धुनाई पक्की थी।

वे सब लाठियाँ लेकर पेड़ के तने को पीट रहे थे-"उतरो साले हो नीचे, आज तुम्हारा हाथ पैर तोड़े बिना नहीं छोड़ेगें"। अब क्या किया जाए ? पेड़ पर पत्तियों के बीच छिपे छिपे सोचने लगे।

कपिल बोला-" देख मै पेड़ की एक डाल को हिलाता हूँ और तू आम तोड़ कर आधा खा के नीचे फ़ेंकना शुरु कर दे। फ़िर जैसे ही ये हमें आम तोड़ने से मना करेंगे तो पहले सायकिल पेड़ के नीचे मंगाएगें और इन्हे पेड़ से दूर हटने बोलेंगे।

तू पहले उतर कर सायकिल ले कर भाग जाना, मेरी फ़िक्र मत करना मै तुम्हे चौरास्ते पर ही मिलुंगा।" मैने उसकी बात मान ली। 

कपिल ने पेड़ की डाली हिलाई, पड़ पड़ आम नीचे गिरने लगे। मै भी आधे आम तोड़ कर नीचे फ़ेंकने लगा।

कपिल जोर से चिल्लाया-" तुम लोग पेड़ के पास से हट जाओ और सायकिल को पेड़ के नीचे रखो नहीं तो पेड़ के पूरे आम गिरा दुंगा।"

उसका कहना था कि उन लोगों को सांप सुंघ गया। क्योंकि आम अभी छोटे ही थे अगर गिरा देता है तो मारने के बाद भी नुकसान पूरा नहीं होगा और वे हमें अभी तक नहीं देख पाए थे कि हम कौन हैं?

उन्होने आपस में बात की और एक बोला-"देखो भैया हो आम मत तोड़ो नुकसान हो जाएगा, तुम लोग नी्चे उतर आओ हम लोग कुछ नहीं कहेंगे"। कपिल ने अपनी मांग फ़िर दोहराई। तो उन्होने सायकिल पेड़ के नीचे लाकर रखी। 

मै पेड़ से उतर कर सायकिल के पास कूदा और सायकिल को दौड़ा कर एक ही छलांग में घोड़े की पीठ पर बैठने वाले अंदाज में सीट पर बैठा तो आवाज सुनाई दी- "ये दे तो फ़लांना महाराज के लईका हवे गा"॥(ये तो फ़लां महाराज का लड़का है)

बस फ़िर तो मैने चौरास्ते पर पहुंचकर दम लिया। थोड़ी देर सड़क पर बैठा और कपिल का इंतजार करने लगा। शंकर को मन ही मन बहुत गालिंयां दे रहा था कि-"साला हमें फ़ंसा कर भाग लि्या।"

आधे घंटे बाद शंकर और कपिल कैरियों की जेबें भरे हुए आ रहे थे। शंकर ने कहा कि-"इतने सारे लोगों को लाठी लेकर आते देखकर मै बहुत डर गया। सायकिल की तो मुझे याद ही नहीं आई-मै तो सीधा ही छुट लिया। मु्झे माफ़ करना।"

इस तरह आम खाए हम लोगों ने, आज भी बहुत याद आती है बचपन की खुराफ़ातों की और बाल सखाओं की।  

12 टिप्‍पणियां:

  1. मजेदार संस्मरण
    तो आप ऐसे थे

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  2. याने के बचपन से...सिद्धहस्त रहे महाराज!! :)

    हा हा!! मजेदार किस्सा!

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  3. चोरी के आम ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं।

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  4. ललित जी
    चोरी को गुड मिठो |
    हम भी अपने खेत में मतीरे व ककड़ी होने के बावजूद रात में दूसरों के खेतों में मतीरे खाने चले जाते थे और चोरी के मतिरों में जो मजा आता था वो अपने खेत के पके मतिरों में भी नहीं आता था |

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  5. समझ गये महाराज,
    पात चीकने थे आपके शुरू से ही।(होनहार बिरवान) :)

    दिल्ली के लोगों की जानकारी की बात अक्षरश: ठीक है, और मुझे जहां इस बात पर शर्म आती थी, मैंने देखा है कि और लोग इस बात को अपनी बड़ाई मानते थे।
    खुशकिस्मती से हमने दिल्ली में रहते हुये ही पेड़ से तोड़कर जामुन बहुत खाये हैं, लेकिन बहुत छोटे रहते हुये। फ़िर न तो पेड़ रहे और न जामुन।
    बचपन के दिन भी क्या दिन थे।
    आनंद आ गया।
    आभार।

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  6. रोचक संस्मरण ललित भाई। मजा आ गया। कुछ यादे ताजी कर दी आपने।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  7. वाह ललित भाई! स्कूल के जमाने की याद दिला दी!!

    "इमली की खटाई की मिठास ऐसी होती है जिसका नाम सुन कर ही मुंह में पानी आ जाता है।"

    आपने इमली के 'लाटा' वाली बात तो बताई ही नहीं, गर्मी आई नहीं कि बचपने में हम तो हमारी मित्र-मण्डली के साथ लाटा कूटने में व्यस्त हो जाया करते थे। (पकी इमली को बीज निकाल कर नमक मिर्च के साथ कूट कर लाटा बनाया जाता है।)

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  8. हम तो पहले से ही जानते हैं कि ऐसे ऐसे कई गुलगपाडे किये हुये होवोगे वर्ना ताऊ की भतिजागिरी करना सहज बात नही है.:)

    रामराम

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  9. अरे ये सारे दिन तो अब जैसे अब भिखारी बना कर गुजर गए ..
    बड़े किस्से हैं .. अच्छा लिखा है आपने ..

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  10. बड़ी अच्छा वृतांत है। जीवन की इन्ही मधुर स्मृतियों में जी लेना ही शायद जिन्दगी है।बाकी आपकी सलाह नियमित रूप से मिल रही है.. सलाह के लिए धन्यवाद।
    शेष

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  11. ललित भाई
    इधर कुछ मित्रों से चर्चा हो रही थी वे छत्तीसगढ़ में एक ब्लागर मीट का आयोजन करने के पक्ष में हैं। क्या हो सकता है कैसे हो सकता है मैं इस विषय पर कल आपसे चर्चा करता हूं।

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