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रविवार, 17 अक्तूबर 2010

गाँव की रामलीला--प्यासा पनघट और बरसाती सत्यानाश ---- ललित शर्मा

एक समय था जब गाँव-गाँव में रामलीला की जाती थी। जिसमें गाँव के लोग बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। छोटे-बड़े सभी लोग राम लीला के पात्र बनते थे और लगातार 11 दिनों तक राम लीला का आयोजन होता था। शाम 6 बजे से ही सभी अपनी-अपनी चटाई आयोजन स्थल पर बिछा आते थे। जब राम लीला शुरु होती थी तो सबसे पहले गणेश जी की आरती की जाती थी “ज्ञान के उजागर सद्गुण आगर आज मनावहुं तुम ही गणेश” की वंदना की जाती थी। एक कलाकार गणेश जी का मुखौटा पहन कर गणेश बनकर मंच उपस्थित होता था। उसके बाद हास्य कलाकार आते थे जो जी भर दर्शकों को हंसाते थे।
एक पुराना हास्य गीत याद आता है-
सरदार मेरे प्यारे मैं हूं जंगल का सरदार
जो मांगे लड़का लड़की उसको मैं दिलवाता हूँ
जो कोई मांगे डऊका डऊकी उसको मैं दिलवाता हूँ
सरदार मेरे प्यारे मैं हूँ जंगल का सरदार
अंदर मंदर मस्त कलंदर भूतनाथ कहलाता हूँ
महाराज के महलों में मैं हलवा पूड़ी खाता हूँ
सरदार मेरे प्यारे मैं हूँ जंगल का सरदार

यह गीत जोकर लोग गाते थे। सुनकर बड़ा मजा आता था। दर्शक हंस-हंस कर लोट पोट हो जाते थे। राम लीला एक विशुद्ध स्वस्थ मनोरंजन का साधन होता था। जिसमें लोग श्रद्धा के साथ उपस्थित होते थे। वर्तमान में टीवी और वीडियो ने राम लीलाओं का खात्मा ही कर दिया बस एक औपचारिकता रह गयी है। विजया दशमी के दिन लीला के पात्र सज संवर कर एक घंटे का प्रहसन कर रावण के पुतले को आग लगा देते हैं और विजया दशमी मना ली जाती है। यह आयोजन सिर्फ़ औपचारिक हो गए है। एक दिन के आयोजन में अब वह आनंद कहाँ है जो 11 दिनों के आयोजनों में होता था। जिसकी तैयारी महीनों की जाती थी। पात्र-पोशाक चयन से लेकर संवाद तक मेहनत की जाती थी। संगीत पक्ष भी अपनी तैयारी करता था। राम लीला में इसका बहुत ही महत्व है।

अभनपुर क्षेत्र के ग्राम हसदा के सरपंच मेरे पुराने मित्र हैं। जब उनसे इस विषय पर चर्चा हुई तो उन्होने बताया कि उनके गांव में दो दिन की राम लीला का आयोजन हो रहा है। तो मैने हसदा 12 किलोमीटर हसदा जाकर राम लीला देखने का विचार बनाया। शाम को हृदय गुरुजी मुझे ढूंढते हुए आ गए। उन्हे साथ लेकर मैं हसदा पहुंच गया। शाम हो चुकी थी। साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था। लोग अपनी आवश्यक्ता की वस्तु खरीद रहे थे। सरपंच ब्यास नारायण साहू उद्घोषणा कर रहे थे कि कुछ देर बाद राम लीला शुरु होने वाली है। सभी दर्शक खा-पीकर आयोजन स्थल पर शीघ्र पहुंचे। आज अहिरावण वध का प्रसंग दिखाया जाएगा। हम तो पहले ही पहुंच चुके थे।
ग्राम पंचायत भवन में राम लीला के सभी पात्र सज संवर रहे थे। सभी कार्य यंत्र वत चल रहा था। विभिषण का पात्र पत्थर पर हड़ताल घिस रहा था। जिसे मुंह पर लगाया जाता है। लग भग 65 साल के गाँव के गौंटिया (मालगुजार) बिसौहा साहू जी मेकअप कर रहे थे। शायद रावण के पात्र अभिनय इन्हे ही करना था। ब्यास नारायण साहू अहिरावरण के पात्र की तैयारी कर रहे थे। सभी अपने-अपने कार्य में व्यस्त थे। मैं वहां बैठे-बैठे अपने बचपन के दिनों को याद कर रहा था। जब हम भी राम लीला में किसी न किसी पात्र का अभिनय करते थे। बहुत उत्साह होता था राम लीला के मंच पर अभिनय करने का। अब यह परम्परा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। इसे जीवित रखना निहायत ही जरुरी है।

दर्शक पहुंच रहे थे अपनी-अपनी बोरियाँ और चटाई लेकर। हसदा गाँव से मेरा बचपन का नाता रहा है। एक बार तो मानिक चौरी तक रेल गाड़ी से जाकर हसदा तक खेतों की मेड़ पर चल कर पैदल ही हसदा गाँव पहुंचा था। उस समय मैं चौथी कक्षा में पढता था। हसदा गाँव का तालाब इतना सुंदर था कि मत पूछिए। उसमें कमल कुमुदिनी खिले हुए थे। पानी इतना साफ़ था कि क्या बताऊं आपको। अगर एक सिक्का भी डाल दिया जाता था तो 5 फ़ुट की गहराई में स्पष्ट नजर आता था। लेकिन अब पानी हरा हो चुका है गाँव भर की गंदगी तालाब में आ रही है। तालाब के किनारे पर मुत्रालय बन गया है। सारा मल मुत्र तालाब के पानी में बहाया जा रहा है। अब इसके चारों तरफ़ घर बन गए हैं जो अपनी निस्तारी इस तालाब से करते हैं। लेकिन पानी को निर्मल रखने का उपाय नहीं कर पा रहे। उनके घरों का मल मूत्र भी तालाब के पानी को प्रदूषित कर रहा है। अब मुझे वे कमल-और कुमुदनी देखेने नहीं मिले।

रावण के दरबार के आयोजन की विशिष्टता यह होती है कि जब रावण का दरबार सजता है तो अप्सराएं अवश्य ही नृत्य करती हैं। मदिरा बहाई जाती है। दरबारी नाच का आनंद लेते हैं। इसलिए अप्सरा का पात्र भी महत्वपूर्ण होता है। इसकी भूमिका भी नृत्य में प्रवीण कोई लड़का ही निभाता है। यहाँ भी देवनाथ विश्वकर्मा अप्सरा का श्रृंगार कर रहे थे। मैने चुपके से श्रृंगार करते हुए मोबाईल से इसका चित्र ले लिया। क्योंकि यह बहुत शरमा रहा था। स्त्रियोचित सभी गुण और भाव उसके चेहरे पर मौजुद थे। ब्यास नारायण ने बताया कि यह लड़का बहुत अच्छा डांसर है और राम लीला दल का सक्रिय सदस्य है। इस दल में 70 साल से लेकर 10 साल तक के कलाकार हैं जो स्व प्रेरणा से राम लीला को अंजाम देते हैं।

बरसों के बाद जब गाँव में पहुंचा तो देखा कि सड़क पक्की हो चुकी है। सड़क के किनारे जो मिट्टी के कच्चे घर थे वे अप दो मंजिल और तीन मंजिल की हवेलियों में बदल चुके हैं। बदलाव की बयार यह गांव भी अछूता नहीं है। गाँव का पुराना कुंआ वैसा है जैसा मैने तीस साल पहले देखा था। उसकी मुंडेर पर उसी तरह कुछ लोग बैठे दिखे। जब इसके पनघट का उपयोग किया जाता था तब से पता नहीं इस कूंए ने कितनो की प्यास बुझाई होगी। कितने मजनुओं ने अपनी आँखे तृप्त नहीं की होगी। पनघट सदा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। लेकिन इस कूंए के पनघट पर शायद ही अब कोई चम्पा-चमेली आती हो। घर-घर नलों के कनेक्शन हो गए हैं। इसलिए कुंए का पनघट अब वर्जित क्षेत्र हो गया है। पता नहीं कब से पनघट प्यासा खड़ा है।

राम लीला शुरु हो चुकी है। हम अपनी कुर्सियाँ लगा कर सामने बैठ चुके हैं। गणेश जी की आरती शुरु हो गयी है। बिसौहा गौंटिया गणेश का रुप धारण कर मंच पर विराजमान हो चुके हैं। अहिरावण का रुप धरे सरपंच ब्यास नारायण गणेश जी आरती कर रहे हैं। हारमोनियम, तबला, ढोलक, खंजरी, झांझ, बेंजो, केसियो पर वाद्य कलाकार संगत कर रहे हैं। “जय गणेश जय गणेश देवा, माता तेरी पार्बती पिता महादेवा”। अरे ये क्या होने लगा?........... दर्शक उठ कर भागने लगे। आसमान से बरसात शुरु हो गयी। कलाकार भीगते हुए गणेश वंदना पूरी कर रहे हैं। हम भी ग्राम पंचायत के भीतर भागे। राम लीला में व्यावधान उत्पन्न हो गया। वहां बैठे बैठे प्रतीक्षा करते रहे कि बरसात रुके तो फ़िर से राम लीला प्रारंभ हो। बिना मौसम बरसात ने मामला बिगाड़ दिया।
ग्राम हसदा की राम लीला मंडली के कुछ प्रमुख कलाकार—अहिरावण के पात्र में- ब्यास नारायण साहू, रावण – बिसौहा गौंटिया, विभिषण- तोषण लाल साहू, हनुमान- यशवंत साहू, राम- परमेश्वर, लक्ष्मण- खिलेन्द्र साहु, मकरध्वज- बिसौहा राम, अंगद-जितेन्द्र साहु, सुग्रीव-विजय, महेन्द्र साहू, जगन्नाथ साहू, हास्य कलाकार-गुलशन साहु, उत्तम वाद्यक, रमाशंकर साहु, देवनाथ। डांसर- देवनाथ विश्वकर्मा, भाव सिंग साहु। जोकर-उदय राम साहु।वाद्य कलाकार- हारमोनियम- नारायण प्रसाद साहु, केसियो-पुरानिक राम साहु, ढोलक- लोकेश वाद्यक, तबला-नोहरु राम साहु, झांझ- भोज राम साहु, ढोल-लोकनाथ साहु, डफ़ली-सीताराम साहु।

कुछ देर पश्चात बरसात रुकी तो हमारा मन उखड़ चुका था। अगर फ़िर कहीं बरसात हुई तो रात हसदा में ही गुजारनी पड़ेगी। यह सोच कर हम वापस घर आ गए। अभी लगाए हुए चित्र मेरे मोबाईल कैमरे के हैं। आगामी पोस्ट में डिजिटल कैमरे के चित्र मिलेंगे।

32 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती ..वास्तव में इन झूठे माध्यमों के आने से पहले सबसे अच्छा मनोरंजन का साधन था रामलीला और गावों में होने वाले सामूहिक सहयोग से आयोजित नाटक इत्यादि ...

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  2. पानी ने मजा किरकिरा कर दिया नहीं तो और भी दृश्य देखने को मिलते .

    बेहतरीन अभिव्यक्ति !

    विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई !!

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  3. महराज पाय लागी। बने सुरता देवाये बीते दिन के। अब अईसन जम्मो चीज हा धीरे धीरे नन्दावत जात हे। बस अब तो "रावन" मन बिचारा प्रकाण्ड पंडित "रावण" के संग संग अपनो कद ला बढ़ा के, ओला जला के, फटाका उटाका फोर के इतिश्री कर लेथें। बने सुन्दर चित्रण करे हस। जय जोहार्……॥

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  4. अरे हां, दसहरा के (दस हरा) के गाड़ा गाड़ा बधाई।

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  5. बदलाव की बयार ने अच्छा भी किया है तो कहीं कुछ चीजों को सिरे से उखाड़ फेंका है. सार को गह लेते तो अच्छा होता....

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  6. कमल और कुमुदनी कहाँ याद दिला दिये? हम नदी नहाने जाते थे तो रास्ते में अनेक पोखर थे जहाँ यह स्वतः ही खिल कर सौन्दर्य बिखेरते थे। अब तो स्वप्न हो गए हैं। रामलीलाएँ व्यवसायिक हो गई हैं, वह आनंद नहीं रहा।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति. विजयदशमी की शुभकामनाएं.

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  8. बहुत मेहनत से तैयार की गई रिपोर्ट...मेहनती लोगो के बारे में जो खास लोगो के जन-जीवन की झांकी प्रस्तुत करती है --आम लोगो के लिए ....आभार और चित्रों का इंतज़ार रहेगा ...

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  9. गाँव के कुँए के पनघट को चाम्पा-चमेली का इंतज़ार....सहज-सरल लोक-शैली में रामलीला की तैयारी ...आपने तो मुझे भी मेरे गाँव की याद दिला दी. परम्पराओं का विलुप्त होना मन को विचलित कर रहा है. शब्द-चित्रों में ही सही , आपने हमारी परम्पराओं को शानदार ढंग से प्रस्तुत किया है .आभार . विजयादशमी की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ

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  10. पहले के समारोह में आत्‍मा तक तृप्‍त होती है लेकिन आज भव्‍य समारोह में भी लगता है कि प्‍यासे ही आ गए। रामलीला से सारा वातावरण परिवार मय हो जाता है लेकिन आजकल तो बस क्षणिक कार्यक्रम है। अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  11. आज हम भी यहाँ रामलीला देख कर आये हैं , आपको भी दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनायें !!

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  12. सबसे पहले ललीत जी आपको व आपके परिवार सहित सभी पाठकों को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
    आपकी प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर व सजीव है। इसके लिए बहुत बहुत आभार

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  13. भईया इस जानकारी परक, सचित्र विवरण के लिए आपको साधुवाद. साथ ही आपको एवं आपके परिवार, इष्ट मित्रो सहित समस्त सम्माननीय पाठकों को विजयोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.
    यह भी पढ़ें: "रावन रहित हो हर ह्रदय" http://smhabib1408.blogspot.com/

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  14. आधुनिकता का विकास प्राचीन सभ्यता को खाए जा रहा है । अब कहाँ मिलेंगे वो नज़ारे ।
    सुन्दर विवरण ।

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  15. आपने तो मुझे मेरा गाँव याद दिला दिया...... ऐसी रामलीलाएं देखी हैं....वही चित्र सजीव हो उठे मन में......दशहरे की शुभकामनायें

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  16. आपको भी दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनायें

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  17. रामलीला के चित्र और आपकी कलम द्वारा सचित्र वर्णन....सचमुच एक सराहनीय, संग्रहणीय, यादगार पोस्‍ट.. धन्‍यवाद....
    साथ ही बधाई विजयदशमी की....

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  18. मजा आ गया पढ़कर !
    दशहरे की शुभकामनाएं !

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  19. आप ,पाठकों कि नब्ज पकड के रखते है | पूरी पोस्ट पढ़े बगैर पोस्ट को छोड़ कर नहीं जा सकते है | रामलीला आजकल शुद्ध व्यापार बन गयी है | धार्मिक भावना का कोइ लेना देना नहीं है | लगभग सभी पात्र शराब पीकर ही अभिनय करते है |

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  20. सुन्दर तस्वीरों के साथ सुन्दर पोस्ट.
    विजयादशमी की अनन्त शुभकामनायें.

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  21. असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
    विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!

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  22. GAANV KI DUNIYA ME RAMLEELA KA BADAA MAHATV RAHAA HAI. DASHAHARAA PAR MAIN BHI GAANV MEY ''RAAM'' BAN KAR MANENDRAGARH MEY HATHEE PAR SAVAAR HOTAA THAA. SUNDAR-SARTHAK RAPAT PARH KAR PURANE DIN YAAD AA GAYE.

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  23. ओह जाने क्या क्या याद दिला दिया आपने सर । एक तो इन त्यौहारों में हम वैसे ही घर की याद में बिसूरते रहते हैं ..ऊपर से ऐसी पोस्टें तो जैसे ..घायल ही कर डालती हैं ..सब नोट कर लिया है ..अगली बार मधुबनी न सके तो छत्तीसगढ ही आ पहुंचेंगे ...जटायु , जाम्बवंत ..कोई भी रोल चलेगा

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  24. आप ने बहुत कुछ याद दिला दिया, हम भी राम लीला के बहुत शोकिन हुआ करते थे, ओर सारी रामायण ह ने यही से सुनी हे, बहुत अच्छा लगा सब पुरानी यादो को यहां पढ कर, चित्र सुंदर लगे लेकिन कुछ धुंधले या मेरी आंखे खारब हो गई होगी... लेकिन लेख मे राम लीला का पुरा मजा आया, धन्यवाद
    विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई

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  25. @राज भाटिय़ा

    आपकी आँखे दुरुस्त है जी
    मोबाईल कैमरे पर चश्मा नहीं लगा था।
    हा हा हा
    मतलब फ़्लेश नहीं था।

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  26. .

    पहले सबसे अच्छा मनोरंजन का साधन था रामलीला... बचपन की याद दिला दी आपने...बढ़िया प्रस्तुति ।

    .

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  27. बडी मेहनत से लिखी गई पोस्ट ! सुन्दर चित्र ! बस ज़रा देवनाथ को उसका चित्र दिखा ज़रुर दीजियेगा :)

    ये कमबख्त बारिश :(

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  28. बहुत पुरानी यादों में खो गये हम तो.....बहुत मजा आया आपकी पोस्ट पढ़कर.

    विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई

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  29. ... bahut sundar ... behatreen post ... vijayadashamee kee badhaai va shubhakaamanaayen !

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  30. आज तो दशहरा नही है गुरूदेव

    बहुत ही सुंदर पोस्ट है बचपन याद आ गया।

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