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शुक्रवार, 4 मार्च 2011

चुटैयानंद जी का प्रज्ञावतरण: व्यंग्य

अरबी नाम से ही लगता है कि अरब जगत का प्रोडक्ट होगा। इसकी सब्जी बड़ी स्वादिष्ट बनती है। स्थानीय भाषा में इसे कोचई कहते हैं। जैसे जिमिकंद को काटने से हाथों से में खुजलाहट और  बिना पकाए खाने से मुंह में खुजलाहट होती है उसी प्रकार कोचई का भी हाल है।

अब कोचई में बिना दही-मही डाले सब्जी बना लिए तो समझो दिन भर जय जय कार करनी पड़ेगी। क्योंकि मुंह खुजाएगा और खुजली मिटाने के लिए कुछ न कुछ बोलना ही पड़ेगा और बोलने के लिए विषय न मिले तो बाबा और बीबी की जय जयकार ही सही।

कुछ लोगों के मुंह में जन्म जात खुजली के जरासीम होते हैं। उनका मुंह रुकता ही नहीं है। चाहे उसमें पैरा(धान का तूड़ा) ही घुसेड़ दो। बिना बोले मानेगें नहीं।

कई लोगों में यह बीमारी प्रज्ञा अवतरण के पश्चात आती है। प्रज्ञा अवतरण संस्कार याने (मुंडन कराने एवं कान फ़ूंका कर गुरु बनाने) के बाद आता है। इसके पश्चात प्रज्ञा जागने की सौ प्रतिशत गारंटी होती है।

जिसकी प्रज्ञा न जागे समझो वह साधना नहीं करता है और गुरु के आदेश का पालन नहीं करता है। निम्न कोटि का चेला है। अब उच्च कोटि का पट्ट चेला बनने के लिए कुछ तो उद्यम करना ही पड़ेगा। बात यूँ हुई कि चंडालानंद ओभरसियर के अंतर में खलबली मच रही थी।

उन्हे ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या दिखने लगा था। एक दिन किसी ने सलाह दे दी कि डामर, गिट्टी बहुत खा लिए अब कुछ धर्म का काम भी कर लो। पाप को पचाने के लिए सत्कर्म का चुरण भी होना चाहिए।

सलाह उन्हे जंच गयी, हरिद्वार जाकर मुंड मुंडाए और कान फ़ुंकाए, धर्म-ध्वजा के संवाहक हो गए। गुरु धारण करते ही नाम चुटैयानंद बदल लिए, सबसे पहले हमारे पास ही पहुंचे और वहाँ की सब कहानी बताए।

कहने लगे महाराज-“कुछ सत्कर्म तो करना ही चाहिए। माटी का चोला है क्या साथ लेकर जाना है। सब यहीं रह जाएगा।“ उनके अंतर में वैराग भाव जागृत हो गया। दिन भर लोगों के पास घूम-घूम कर धर्म प्रचार करते रहे।

कुछ दिनों के पश्चात इन्हे चेले चपाटी भी मिल गए। चेले भी एक से एक, सारे मिल कर ज्ञान बांटने लगे। मतलब यह हुआ कि सभी ने कोचई (अरबी) का स्वाद ले लिया। दिन रात मुंह खुजाता था इनका और ये 24X7 चैनल बन कर लोगों का दिमाग चाटते थे।

अगर कहीं इन्हे माईक मिल गया तो फ़िर क्या पूछने! धुंआधार प्रज्ञा प्रसाद वितरण शुरु हो जाता था। एक बार की बात है, इनके चेले ने पास के गाँव में प्रवचन कार्यक्रम का आयोजित कर लिया।

रात को 9 बजे हमारे पास आए और बोले –“महाराज आपको इस कार्यक्रम में चलना ही पड़ेगा। गाँव वालों ने आपको विशेष निमंत्रण दिया है। वे आपको सुनना चाहते हैं।“ मैने रात होने के कारण मना कर दिया। वे माने ही नहीं, उनके हठ करने पर मुझे जाना ही पड़ा।

जब गाँव में पहुंच कर देखा तो सुंदर मंच बना हुआ था। माईक और लाईट की शानदार व्यवस्था थी। चार-पांच चेले तैनात थे। श्रोताओं का इंतजार हो रहा था। बार-बार घोषणा होने के बाद भी श्रोता श्रद्धालु नहीं आ रहे थे।

उन्होने मुझसे कहा कि-“महाराज आप चालु करो, आपको सुन कर लोग आ जाएगें।“ मैं तो आपका मान रखने के लिए आ गया था, मेरा मन नहीं है प्रवचन करने का, आप ही करें।–मैने कहा।

उन्हे तो मन चाही मुराद मिल गयी। रात 11 बजे से जो शुरु हुए संस्कार ज्ञान बांटने के लिए तो भोर के चार बज गए। कुछ मिला कर छ: मनुष्य और 14 कुत्ते मिला कर 20 प्राणी उनका प्रवचन सुन कर निहाल होते रहे।

वे थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अंत में मुझे ही उन्हे जाकर संदेश देना पड़ा कि –“ स्वामी जी, अब प्रवचन को विराम दीजिए, सारे गांव वाले घर से ही श्रवण कर कृतार्थ हो गए हैं और हम भी यहाँ बैठे बैठे  धन्य हो गए।

आपको धन्यवाद देते हैं कि आपने हमारा ज्ञानरंजन किया। रही बात इन 14 कुत्तों की तो ये आपके प्रवचन के प्रभाव से जब अगले जन्म में मनुष्य योनि में जन्म लेगें तो, आपको अवश्य ही धन्यवाद देने आएगें।

तब कहीं जाकर बड़ी मुस्किल से उन्होने माईक छोड़ा। एक ऊंघ रहे चेले ने आभार प्रदर्शन किया। चुटैयानंद बोले-“बड़ा मजा आ रहा था प्रवचन में महाराज आपने बीच में ही समापन करवा दिया।“ अब हम क्या कहते निरत्तुर थे, बेशरम की झाड़ियाँ तो दे्खी थी लेकिन बेशरम का महावृक्ष अभी देखा था। मैं तो एक सलाह देना चाहता हूँ कि अगर शांति से जीवन गुजर-बसर करना है तो इन कोचई(अरबी) खाने वालों से बचें। अगर नहीं बच सकते तो खुद भी कोचई खाना शुरु कर दें, कहा गया है”लोहे को लोहा ही काटता है।”

23 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी व्‍यापक मार है, जिधर नजर फिराओ, जिस पर नजर डालो, उसी पर चिपकती जान पड़ रही है.

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  2. प्रज्ञा अवतरण संस्कार और कोचई की सब्जी ...
    क्या मेल है ...
    व्यंग्य की लटपटाहट अरबी सा ही स्वाद दे रही है ...!

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  3. हा हा हा..... ज़बरदस्त!!!



    आपकी भी झेलन क्षमता की दाद देनी पड़ेगी.... सुबह चार बजे जाकर रोका स्वामी महाराज को...

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  4. 'एक दिन किसी ने सलाह दे दी कि डामर, गिट्टी बहुत खा लिए अब कुछ धर्म का काम भी कर लो। बेशरम की झाड़ियाँ तो दे्खी थी लेकिन बेशरम का महावृक्ष अभी देखा था।'--बेशर्मों को तिलमिला देने वाला तीखा व्यंग्य . लेकिन आज तो बेशर्मों से शरमा कर बेशर्म की झाडियाँ भी विलुप्त होती जा रही हैं. बहरहाल दिलचस्प व्यंग्य -रचना के लिए आभार .

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  5. एक तीर से कई शिकार किया है आपने।
    बहुभेदी बाण तीखा है।

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  6. बहुत ही सटीक व्यंग, शुभकामनाएं.
    रामराम.

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  7. ज़बरदस्त..... एकदम सही पकड़ा है आपने तो....

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  8. कोचई की याद दिला दी आपने.....मेरे नाना जी की पसन्द....
    कोचई की सब्जी बड़ी स्वादिष्ट बनती है।

    करारा व्यंग,वाह..क्या खूब लिखा है आपने।

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  9. ललित शर्मा जी,
    कोचई में खुजलाहट होती है......
    मुंह खुजाएगा और खुजली मिटाने के लिए कुछ न कुछ बोलना ही पड़ेगा......
    बहुत सुन्दर हास्य-लेख पढ़ कर मन आनंदित हो गया !

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  10. धारदार पोस्ट, बहुत व्यापक प्रभाव है।

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  11. कोचई से खूब कोंचा है ....बढ़िया व्यंग

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  12. वाह........बेहतरीन पोस्ट पढ़कर मजा आ गया.......!!

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  13. हा हा हा...मतलब यह हुआ कि सभी ने कोचई (अरबी) का स्वाद ले लिया। दिन रात मुंह खुजाता था इनका और ये 24X7 चैनल बन कर लोगों का दिमाग चाटते थे।

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  14. great story.Keep posting such useful stuff.Will remain tuned to more such updates.
    Thank You
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