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शुक्रवार, 11 मार्च 2011

ब्लॉग लेखन को कानून के दायरे में लाना मौलिक अधिकार का हनन

ब्लॉगिंग को कानून के दायरे में लाकर सरकार ब्लॉगरों का मुंह बंद करना चाहती है। दुसरी तरफ़ फ़िल्मों एवं टीवी चैनलों पर धारावाहिकों में खुले आम अश्लीलता और गंदगी परोसी जा रही है।
जिससे समाज में विकृतियाँ और अपराध पैदा होते  स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है, टीवी और फ़िल्मों का गलत असर समाज पर पड़ रहा है। इन्हें कानून के दायरे में लाकर इस प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा रहा? 
सुगबुगाहट तो पहले से चल रही थी, अब सरकार का स्वर बाहर आया है कि ब्लॉगिंग को जिम्मेदार बनाने के लिए कानून के दायरे में लाना चाहिए। अंतर जाल पर बढती हुई उच्श्रृंखलता इसका पहला कारण माना जा सकता है।

दूसरा कारण ट्युनिशिया और मिश्र के आन्दोलन में अंतरजाल ने जो भूमिका निभाई है, वह सरकार के कान खड़े करने के लिए काफ़ी थी।

ब्लॉगिंग स्वतंत्र उपाय है अभिव्यक्ति का। आज गाँव तक इंटरनेट का विस्तार हो  चुका है। लोग मोबाईल पर इंटरनेट की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।

वेब साईट से लेकर ब्लॉग भी पढ रहे हैं। सूचना क्रांति के इस युग में अब सूचनाएं कुछ सेकंडों में ही आम जनता तक पहुंच जाती है। अब लोगों को इसका व्यापक असर समझ में आने लगा है। 

मध्यवर्ती संस्थाओं के टर्म का दायरा ब्लॉगर तक बढाने के पीछे तर्क यह है कि जिस तरह इंटरनेट प्रोवाईडर संस्थाएं पाठक को  इंटरनेट से जोड़ती  हैं उसी तरह ब्लॉग पर लिखे गए लेख भी पाठकों को अपने तक जोड़ते हैं।

ब्लॉग स्वामी किसी के खिलाफ़ व्यक्तिगत आरोप आक्षेप वाली पोस्ट लगाता है और पाठक जब ब्लॉग पर अपमानजनक, अमर्यादित टिप्पणी करता है तो उसका जिम्मेदार ब्लॉग स्वामी ही होगा। इसके लिए ब्लॉग स्वामी को मध्यवर्ती संस्था मान कर कानून के दायरे में लाया जा रहा है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का गला घोंट कर फ़ासीवादी कानून बनाना जायज नहीं कहा जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का प्राण होती है और प्रत्येक नागरिक को अपनी बात कहने का संवैधानिक अधिकार है।

ब्लॉगिंग को कानून के दायरे में लाकर सरकार ब्लॉगरों का मुंह बंद करना चाहती है। दुसरी तरफ़ फ़िल्मों एवं टीवी चैनलों पर धारावाहिकों में खुले आम अश्लीलता और गंदगी परोसी जा रही है। जिससे समाज में विकृतियाँ पैदा हो रही है।

स्पष्ट दिख रहा है टीवी और फ़िल्मों का असर समाज पर पड़ रहा है। इन्हे कानून के दायरे में लाकर इस प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा रहा?

समाज में जो भी अपराध होते हैं, उसमें से अधिकतर अपराधिक प्रेरणा टीवी चैनलों एवं फ़िल्मो द्वारा ही मिलती है। इससे तो यह जाहिर होता है कि संगठित होकर किया गया अपराध भी क्षम्य होता है। उसे अपराध नहीं माना जाता।

टीवी चैनलो, मीडिया वालों एवं सिनेमा वालों के अपने संगठन हैं और ये संगठन के माध्यम से अपना विरोध प्रकट करके अपनी मांग मनवा लेते हैं।

समय आ गया है अब ब्लॉ्गरों को भी संगठित होने की दिशा में सोचना पड़ेगा। तभी किसी भी काले कानून के खिलाफ़ संगठित होकर ही लड़ाई लड़ी जा सकती है। इस पर कानून विशेषज्ञों से राय लेनी चाहिए, अन्यथा भुगतने के तैयार रहना पड़ेगा।

39 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लागिंग से कोई अश्लीलता नहीं फ़ैल रही है, जबकि समाचार दिखाने का दावा करने वाले तथा कथित टी.वी. न्यूज चैनल फूहड़ धारावाहिकों और जोकरों के भद्दे मजाक वाले कॉमेडी सीरियल हर दिन ,हर घंटे और हर मिनट परोस कर समाज में सांस्कृतिक प्रदूषण फैला रहे हैं. अब तो कुछ एफ.एम्. रेडियो वाले भी यह अपराध करने लगे हैं बड़े -बड़े होटलों में खुले आम शराब और शबाब का नंगा नाच हो रहा है. क्या इनसे देश को कोई ख़तरा नहीं है ? लेकिन खतरे की घंटी सिर्फ ब्लाग-जगत के लिए बज रही है. यह देश की जनता को संविधान-प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार पर हमले की तैयारी का संकेत है. इसका तो हर हाल में विरोध होना चाहिए. आपने सावधान कर दिया. आभार.

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  2. अश्लीलता, फूहड़पन और वैमनस्यता फैलाने वाले विचारों से सरकार और व्यवस्था को कभी कोई हानि नहीं पहुँचती। वे तो उस के मददगार ही साबित होते हैं। लेकिन व्यवस्था के लिए जनसंचार के माध्यमों पर जनता की पहुंच घातक सिद्ध होती है, वे उन के माध्यम से आपसी विचार विमर्श कर सकते हैं संगठित हो सकते हैं। इस कारण व्यवस्था उन से भयभीत रहती है और अश्लीलता, फूहड़पन और वैमनस्यता को नियंत्रित करने के बहाने जनचेतना को विच्छिन्न करने के लिए पाबंदियाँ आयद करती है। हमें स्वानुशासन पैदा करना होगा और सरकार/व्यवस्था के प्रयत्नों को का संगठित विरोध करते हुए उन्हें नाकाम करना होगा।

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  3. यह तो आने वाली छुपी हुई तानाशाही की चेतावनी है..

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  4. आदरणीय ललित जी
    आपने एक जरुरी बिंदु पर विचार किया है , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही नहीं बल्कि ब्लॉगिंग में जिस तन्मयता से किसी बिंदु पर विचार किया जाता है उसका भी हनन करने का प्रयास किया जायेगा , प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर तो इन लोगों ने अधिकार जमा लिया है , अब जब ब्लॉग ने खुद को इनके समकक्ष खुद को खड़ा किया है तो ब्लॉग पर भी कानून बनाने का इरादा सार्थक नहीं ,

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  5. आपने सही लिखा है, मैं भी मानता हूँ कि हम सभी को अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए, पर साथ ही यह भी चाहता हूँ कि दूसरे के धर्म पर कीचड उछालने वाले व्यक्ति के ब्लॉग पर रोक लगानी चाहिए तथा उसको बढ़ावा देने वाले सामूहिक ब्लॉग पर भी,

    देखते हैं क्या होता है

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  6. अन्यथा भुगतने के लि‍ए तैयार रहना पड़ेगा।
    बंदूकधारी प्रोफाइल चित्र और आज का लेख का संयोग देखते ही बन रह है। ☺ ☺ ☺ ☺

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  7. आपने सही कहा हे ललित जी संगठन में ही ताकत है जब तक हम खुद संगठित नही होगे --कोई भी मसले का हल निकल नही सकता --

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  8. लोकतंत्र पर हमले की तैयारी है.
    हमलावर भ्रष्टाचारी हैं.
    अभिव्यक्ति को जब-जब रोका ,
    तब-तब कुर्सी हारी है.

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  9. ब्लॉग का अपना अलग क्षेत्र है, स्वतन्त्रता मिले अभिव्यक्ति की।

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  10. bhaai lalit ji ne dil jit liyaa shi frmaaya lekin bs thodi khud hi is mamle men mryadaayen tay kr len to thik hogaa . akhtar khan akela kota rajsthan

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  11. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तो होनी चाहिए , मगर इसके आड़ में व्यक्तिगत कुंठा निकालने वालों पर अंकुश तो होना चाहिए ...इल्ली के साथ घुन पीसता ही है !

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  12. सहमत हूँ। मगर हमारी आपकी सुनेगा कौन? शुभकामनायें।

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  13. संगठित होकर किया गया अपराध भी क्षम्य होता है।


    -संगठन में ताकत है...सुनना ही पड़ेगा उन्हें.

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  14. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा मिलनी ही चाहिये ।
    मगर यहाँ कुछ लोग ज्ब धर्म की आड मे काफी कुछ गलत कर रहे है , उसको रोकना भी हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती ही है ।
    एग्रीगेटर्स को इस विषय पर सोचना चाहिये

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  15. कौंग्रेस सदा से इस देश के लोगो को अर्ध-गुलामी में रखने की पक्षधर रही है ! इमरजेंसी इसका एक उदहारण है , इसे ब्लॉग्गिंग में गंदी सामग्री से कुछ खास लेना देना नहीं अपितु उद्देश्य यह है की कोई इनके काले कारनामो के विरुद्ध न लिखे !

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  16. अभी से फूट के स्वर निकल रहे है. लगता है सेंसर शिप पक्की है.

    संगठित होकर किया गया अपराध भी क्षम्य होता है।
    -संगठन में ताकत है...सुनना ही पड़ेगा उन्हें.

    एक रहिये बुरा समय आने वाला है.

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  17. सत्ता के तालाब में हलचल होने लगी
    यानि ब्लॉगिंग सही राह पर हैं

    जै राम जी की

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  18. जब कोई आपका टांग खींचने लगे तो समझ लो आपकी प्रसिध्दि से वो जल रहा है।
    यही ब्‍लाग जगत के साथ हो रहा है।
    मीडिया हाऊस जिन खबरों या कंटेटों को विज्ञापन के दबाव में छापने से कतरा रहे हैं उन्‍हें ब्‍लागर पूरी दिलेरी से उठा रहे हैं और यह सरकारी तंत्र को नहीं सुहा रहा।
    सो कानून का डंडा दिखाने की कोशिश....।
    चलो देखते हैं, ....
    सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है
    देखना है जोर कितना बाजु ए कातिल में है।

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  19. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर यूँ पहरे लगाना कदापि उचित नहीं ...... सहमत हूँ आपसे

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  20. लेखन की स्वतंत्रता छीनना अत्यंत निंदनीय है ।

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  21. सहमत हूँ। मगर हमारी आपकी सुनेगा कौन? शुभकामनायें।

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  22. ललित भाई
    क्या गजब का संयोग है… मैंने भी आज ही इस मुद्दे पर पोस्ट डाली है…
    सरकार को इंटरनेट की पहुँच से खतरा महसूस होने लगा है…
    जिस तरह "भोंदू युवराज" द्वारा किये गये "नारी-उद्धार" की खबर को दबाया गया है उससे लगता है कि आपातकाल करीब ही है… :)

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  23. प्रणाम,
    आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ...सरकार को अगर कानून बनाना ही है तो टेलीविजन पर प्रसारित उन कार्यक्रमों के खिलाफ बनाना चाहिए जिनका एकमात्र उद्देश्य वर्तमान में लोगों को गलत सन्देश देना ही रह गया है |

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  24. हम सभी को अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए. लेकिन कानून भी होना चाहिए

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  25. अंग्रेज चले गए ..अपने पदचिहन्न छोड़
    गए ..उसी लीक पर कुछ सफेदपोश
    चल रहे हैं, पर ऐसा नहीं है की संगठन
    में ताकत नहीं होती , अपना हक़ चाहिए
    तो लड़ना ही होगा !

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  26. आपसे सहमत हूं, साथ हूं । नन्हीं बूंदें संगठित होकर चट्टानों को काट देती हैं फिर हम तो इंसान हैं ।

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  27. अगर कोई ऐसा जन-विरोधी क़ानून बन भी गया तो उसमे यह कौन तय करेगा कि ब्लाग पर लिखी गयी सामग्री आपत्तिजनक है ? क्या कुछ सोचने और लिखने के लिए किसी से अनुमति लेनी होगी ? यह तो लेखक और कवि के स्वाभिमान के खिलाफ होगा . ऐसा कोई भी क़ानून हमें वर्ष १९७५ के आपातकाल और प्रेस-सेंसरशिप की याद दिलाएगा . दुनिया जानती है कि अपनी कुर्सी पर खतरे के कारण देश की जनता पर आपातकाल और प्रेस-सेंसरशिप थोपने वालों का क्या हश्र हुआ था !

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  28. अब समय आ गया हे ब्लागरो के संगठन बनाने का, कोई एक फ़संता हे तो लाखो उस के पीछे खडे होंगे, बाकी समीर जी ने बात पुरी कर दी

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  29. भारत में किसी भी तरह का फासीवाद ज़्यादा दिन नहीं चलता है...

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  30. समाचार से पहले विज्ञापन बाद में विज्ञापन वह भी अश्लील , कोई लगाम है सरकार के पास ?

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  31. द्विवेदी जी के विचारों से सहमत हूँ ललित भाई !!शुभकामनायें रंगीन होने के लिए !:-))

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  32. सब मेरी वजह से हो रहा है, ही ही।

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  33. आप ही बना लो जी पार्टी ,हम तो सब आपके साथ ही है |

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