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शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

भूख मिटाने वाला साल्युशन -- ललित शर्मा

जूझती हैं कोहरे से
नित सूर्यकुमारियाँ
श्रमिक की तरह
रोटी के लिए
पृथ्वी का भार
कांधे पर लादे
बोझ से दबा एटलस
चलता है अनवरत
भूख मिटाने के लिए
कल पर्चे बंटे
बाजार मे
भूख मिटाने वाला
साल्युशन बनकर
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस

26 टिप्‍पणियां:

  1. एटलस को बोझा उतारने से पहले साल्यूशन मिल तो जाएगा न ...क्योंकि अभी तो पर्चे ही बँटे हैं, खर्चे के बारे में कुछ ....

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  2. जरा प्रूफ रीडि़ग हो जाय-
    'जुझती'-'जूझती'
    'सुर्यकुमारियाँ'-'सूर्यकुमारियाँ'
    'भुख'-'भूख'

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  3. यह सेलुशन इधर भी ट्रांसफर का दो जरा ...कुछ तो वजन कम होगा ..

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  4. गहरी बात, पर गहराई में जाता जौन है

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  5. मेरे ब्लॉग पर की टिपण्णी और facebook पर मेरी मित्रता स्वीकार करने हेतु आपका धन्यवाद !
    बोझ से दबा एटलस
    चलता है अनवरत
    भूख मिटाने के लिए
    कल पर्चे बंटे
    बाजार मे
    भूख मिटाने वाला
    साल्युशन बनकर
    तैयार
    अब बोझा उतार दो
    एटलस
    अति सुन्दर. बधाई !

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  6. क्या बात है...एक इधर भी भेजिए.काफी गहराई में उतर गए आज तो.

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  7. भूख मिटाने के लिए
    कल पर्चे बंटे
    बाजार मे
    भूख मिटाने वाला
    साल्युशन बनकर
    तैयार...

    बहुत अच्छी रचना... बहुत गहराई है इन शब्दों में...

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  8. आज क्या अरविन्द जी और आपने कोई साठ गांठ की है । :)
    बढ़िया दांव लगाया है भाई कविता में ।

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  9. आपने पेटेंट कराया है या यूं ही सरकार की तरह सबको बहकाया है।

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  10. हम भी तलाश में थे और अब भी हैं. अमरकंटक से इम्पोर्टेड तो नहीं?

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  11. पर्चे ही तो बंटे हैं
    बोझा उतारने को इतना बहुत है

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  12. बड बेरा हो गे आज.... छुट्टी म ब्लॉग मन ला पढ़त पढ़त...
    तोर पोस्ट ल पढ़ के भूख लागे लागिस.... कुछु खाना परही अब...
    फेर बने लिखे हवस... दूध के मशीन सुरता आगे...
    सादर...

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  13. क्या बात है ! बहुत खूब !
    गहरी रचना के लिये बधाई ।

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  14. काश ऐसा कोई उपाय होता... तो दुनिया में पनप रही मानवीय बुराईयों का अंत हो जाता............

    अच्‍छी प्रस्‍तुति.....

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