Menu

मंगलवार, 12 जून 2012

नींद की खुमारी ------------- ललित शर्मा

किरींग… किरींग… कीरिंग… की आवाज सुनकर चेतना जागी। लगा कि कहीं कुछ बज रहा है चलभाष जैसा, कहाँ बज रहा है? क्यों बज रहा है? आँखे मसलते हुए उठ कर देखता हूँ, टेबल पर पड़े गुप्त चलभाष की घंटी आवाज दे बुला रही है। सुनाई देता है- अब तो उठ जाओ,कब तक सोए रहोगे। तब मुझे अहसास होता है कि मैं सोया हुआ हूँ। फ़ोन सुनने के बाद भी अर्धचेतनावस्था मे ही हूँ। क्या घट रहा है समझ नहीं आ रहा। लगा कि सुबह हो गयी, घड़ी में 6 बज रहे हैं। ओह सुबह की सैर को एक घंटा विलंब हो गया। अब क्या करुंगा सैर पर जाकर, दिन तो निकल गया, सूरज सर पर होगा। अब सुबह की सैर का मजा किरकिरा हो गया। क्यों न आज सुबह की सैर से डूबकी मार ली जाए? कल ही तो गया था सैर पर। बेड पर पड़े-पड़े आवाज लगाता हूँ, मम्मी…… चाय,  मम्मी…… चाय, उठ गया क्या? अभी लाती हूँ, तू गहरी नींद में सो रहा था, सोचा न जगाऊं, सोने दूँ। वैसे भी सोते से जगाना मुझे अच्छा नहीं लगता। मम्मी ने किचन से जवाब दिया।

मै बेड से उठकर किचन में पहुंचता हूँ, फ़्रीज से पानी निकालकर पीना है, प्यास लग रही है जोरों से। खिड़की के पार अभी उजास दिखाई दे रही है जैसे सूर्य निकलने वाला है। मम्मी रोटियाँ सेक रही है। इतनी जल्दी रोटियाँ बनाने की जरुरत क्यों आन पड़ी? अभी तो ठीक से सुबह भी नहीं हुई है। दूसरे चुल्हे पर चाय चढी देख कर मन को तसल्ली होती है। वापस बेड पर आ जाता हूँ, चाय पीकर थोड़ी देर और सोया जाए, आज मार्निंग वाक की पक्की छुट्टी। कोई कहेगा तब भी नहीं जाऊंगा। थकान सी मन और तन पर है, अलसाई सी सुबह, कुछ बेहतर अहसास नही। तभी ख्याल आता है कि वार्ता तो लिखना ही भूल गया रात को। कल संगीता जी ने लिखी थी और आज मुझे लगानी थी। कोई बात नहीं, अभी कौन सी देर हुई है। चाय पीकर लगा दुंगा। कमरे से खिड़की के बाहर देखता हूँ, आम के वृक्ष पर कोयल कूक रही है। मन कोयल की कूक के साथ रम जाता है चाय की प्रतीक्षा के साथ, अगर सुबह की चाय न मिले तो लगता ही नहीं कि दिन निकल गया है, लत सी हो गयी है। शाम को चाय की कोई अधिक दरकार नहीं। वैसे भी मैं चाय नहीं के बराबर ही पीता हूँ, पर सुबह होने का अहसास तब होता है जब गरमा-गरम चाय का कप मेरे हाथ में होता है और आँख बंद किए पीता रहता हूँ।


कभी-कभी एक आँख खोलकर देख लेता हूँ, दोनों आँखे खोलने में आलस आता है। मम्मी हँसती है - तेरी बचपन की आदत अभी तक गयी नहीं। चाय पीकर फ़िर सो जाएगा। नहीं अब नहीं सोऊंगा, कुछ काम करना है मुझे, पर घूमने नहीं जाऊंगा। चाय पीने के बाद पीसी ऑन करता हूँ, तभी एक मित्र चैट पर आते हैं, वे भी मार्निंग वाक करते हैं और कभी-कभी मानिंग वाक के साथ चलते-चलते मोबाईल से ही चैट पर आ जाते हैं। उनसे पूछता हूँ - मार्निंग वाक पर हो? नहीं… घर पर पीसी पर हूँ। मै कल वार्ता नहीं लगा पाया। कोई बात नहीं, अभी लगा देता हूँ। कोयल लगातार कूके जा रही है, खिड़की से देखता हूँ कालू कुत्ता रेत के ढेर पर अठखेलियाँ कर रहा है, तभी उसका एक जोड़ी दार और आ जाता है, दोनो मस्ती करने लगते हैं, रेत के ढेर पर कुश्ती करने का मजा ले रहे हैं। मै वार्ता लगाने के लिए डेशबोर्ड खोलता हूँ, चैट पर हाजिर एक वार्ताकार मित्र से पूछता हूँ- कल की वार्ता लगाई किसी ने? क्या हो गया आपको…… कल की वार्ता संध्या जी ने लगाई थी और आज की संगीता जी ने। कौन सा वार है आज? सोमवार…… मै पीसी की सिस्टम ट्रे पर कर्सर ले जाता हूँ, तो 11 जून सोमवार दिखा रहा है। हद हो गयी ये क्या हो रहा है? सब कुछ उल्टा-पुल्टा, मेरी तो समझ के बाहर का काम हो गया।

कुर्सी से उठकर मुंह धोकर आता हूँ। खिड़की से देखता हूँ तो सुबह होने की बजाए अंधेरा गहराने लग रहा है। हम्म! अब समझ में आता है कि शाम हो रही और रात होने वाली है। मतलब मैं दोपहर में सोया था और शाम को जागा, लगा कि सुबह हो गयी। मम्मी रात का खाना बना कर रख रही थी। तभी तो मैं कहूं कि इतनी सुबह कभी खाना नहीं बनता, आज कैसे बन रहा है? नींद का खुमार उतरने लगता है धीरे-धीरे और सब कुछ फ़िर समझ आने लगता है। दोपहर को गहरी नींद में सोया और पता ही नहीं चला कहां, कब सोया। कभी-कभी ही आती है ऐसी नींद, जिसमें शरीर की जैविक घड़ी भी धोखा दे देती है। सुबह और शाम में अंतर करना कठिन हो जाता है। मम्मी कहती है- बिजली का बिल आया है। कितने का है?…… मैने देखा नहीं… कोई गेट पर ही टांग कर चला गया था। मम्मी बिजली का बिल लाकर देती है तो मै पूरे ही होश में आ जाता हूँ, एक झटके से खुमारी उतर जाती है…… 4840/- रुपए। बहुत ज्यादा बिल आया है? क्या एक मही्ने में हमने इतनी बिजली जला ली?…… कोई मीटर रीडिंग करने आया था क्या इस महीने? … नहीं आया……। बस यही झमेला है…… घर बैठे रजिस्टर में रीडिंग भर देते हैं। जिसका खामियाजा उपभोक्ता को भरना पड़ता है। अब मगजमारी करो बिजली ऑफ़िस में जाकर। तब भी वे बिल कम करने वाले नहीं है। इतना ही भरना पड़ेगा।


आम के पेड़ पर हलचल मची हुई है, मम्मी कहती है - बंदर फ़िर आ गए। इन लंगुरों ने इस साल बहुत नुकसान किया। पहले नहीं थे, लेकिन पिछले दो साल से न जाने कहां से पूरी डार की डार ही पहुंच गयी। इस साल तो हम कैरियां भी नहीं तोड़ पाए। इंतजार कर रहे हैं आमों के पकने का। जब एक बारिश आए तो पेड पर पके हुए आम खाने का मजा ही कुछ और है। लेकिन ये लंगुर छोड़ेगें तब न। आधा खाते है और आधा गिराते हैं जो किसी के काम का नहीं होता। मिट्ठू और कोयल जितना नहीं खाते उससे अधिक नुकसान बंदर कर जाते हैं और इनका इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं। बाहर जाकर भगाता हूँ उन्हे, उनका सरदार मेरी तरफ़ खों खों करके चिल्लाता हुआ भाग कर टीले पर बैठ जाता है। सारे वहीं इकट्ठे हो जाते हैं, प्रतीक्षा में कि मैं जाऊं और वे फ़िर आम के पेड़ पर मौज मस्ती शुरु कर दें। उदय होता तो उसे पटाखे फ़ोड़ने कहता, जिससे दो-चार दिन के लिए आराम मिल जाता। लेकिन बंदर अब पटाखों  की आवाज से परिचित हो गए हैं। क्योंकि सड़क पर किसी नेता के आगमन पर रोज धमाके होते हैं उनके चमचों द्वारा।

कभी नींद आने में बहुत समय लग जाता है, करवटें बदलते रहो नींद नहीं आती। बिस्तर पर पड़े रहो तो कम्पयुटर की हार्डडिस्क जैसे दिमाग चलता ही रहता  है। जैसे घड़ी चलते रहती है। पुन: उर्जा संचय करने के लिए गहरी नींद जरुरी है। एक मित्र का कहना है कि- दिन भर काम करके अपने को इतना थका दो कि बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ जाए। एक गहरी नींद आदमी को तरोताजा कर देती है। थकान उतर जाती है और नए सिरे से काम में लग जाता है। नींद का आना भी जरुरी है, निठल्ले ब्लॉगर को नींद आने पर सपने भी कमेंट के दिखाई देते हैं। अगर बिना सपनों के चैन की नींद आए तो क्या बात है, जैसी आज आई मुझे। 4 घंटे की चैन की नींद ने उर्जा भर दी तन मन में। सोचता हूँ वह नींद कैसी होगी, जिसकी सुबह नहीं होती? न प्रतिदिन का जागना होगा न सोने की तैयारी। एक लम्बी नींद अगले जन्म में काम करने के लिए भरपूर उर्जा भर देती होगी। लेकिन इस लम्बी नींद से सब डरते हैं। जो सोया है उसके उठने की प्रतीक्षा की जाती हैं, नहीं उठता है तो झिंझोड़ कर उठाया जाता है। फ़िर भी नींद तो नींद ही हैं। चाहे छोटी हो या लम्बी……  आखिर उर्जा तो देगी ही जीवन के लिए……।

10 टिप्‍पणियां:

  1. दिनचर्या के विविध प्रसंगों को नींद के माध्यम से अभिव्यक्त किया है आपने ....!
    @ सोचता हूँ वह नींद कैसी होगी, जिसकी सुबह नहीं होती? न प्रतिदिन का जागना होगा न सोने की तैयारी। एक लम्बी नींद अगले जन्म में काम करने के लिए भरपूर उर्जा भर देती होगी। लेकिन इस लम्बी नींद से सब डरते हैं। जो सोया है उसके उठने की प्रतीक्षा की जाती हैं, नहीं उठता है तो झिंझोड़ कर उठाया जाता है। फ़िर भी नींद तो नींद ही हैं। चाहे छोटी हो या लम्बी…… आखिर उर्जा तो देगी ही जीवन के लिए……। "
    इन पंक्तियों में जीवन की वास्तिवक स्थिति को भी उजागर किया है आपने ..बेहतर ...!

    जवाब देंहटाएं
  2. नींद की जागी-जागी सी बातें, थोड़ी अलसाई, थोड़ी ताजी.

    जवाब देंहटाएं
  3. दोपहर की ऐसी नींद का झोंका एक बार हम भी ले चुके . शाम को उठ कर ब्रश करना शुरू कर दिया और माँ से कहा कि आज इतना हेवी नाश्ता क्यों बन रहा है :)
    आखिर पंक्तियों की भरपूर दार्शनिकता कभी समझदार बनाती है , कभी डराती भी है !

    जवाब देंहटाएं
  4. लग रहा था कि हमारा हाल बताया जा रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाकई ऐसी नींद जिसमे सपने न हों, गहरी सुकून की नींद कभी - कभी ही आती है, मन और तन को तरो - ताज़ा कर जाती है. अंतिम पंक्तियाँ दर्शन और ज्ञान के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वो रात भी क्या हमारा कहने का अर्थ है वो नींद ही क्या जिसकी सुबह ना हो, जिस तरह सोना जरुरी है उसी तरह जागना भी उतना ही जरुरी है... शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. फ़िर भी नींद तो नींद ही हैं। चाहे छोटी हो या लम्बी…… आखिर उर्जा तो देगी ही जीवन के लिए……

    ।बहुत शान दार प्रस्तुति,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  7. दोपहर की नींद में कभी कभी ऐसा आभास होता है....
    राम राम

    जवाब देंहटाएं
  8. अंतिम पंक्तियाँ यथार्थ को कहती हुई .... क्या सच ही नया जन्म होता है ?

    जवाब देंहटाएं