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सोमवार, 3 सितंबर 2012

बरसात में जहरीले सांप-बिच्छू बचाव ---- ललित शर्मा

रसात होते ही जहरीले कीड़ों और सांप के दंश के खतरे बढ जाते हैं। बिलों में पानी भरते ही ये बाहर निकल आते हैं सुरक्षित जगह की तलाश में शिकार हो जाते हैं मनुष्य के हाथों या फ़िर मनुष्य और मवेशी को डस लें तो उनकी मौत हो जाती है। बरसात के मौसम में सर्प के दंश की शिकायतें बढ जाती है। प्रतिदिन ही समाचार मिल जाते हैं सर्प दंश के शिकार होने के। असावधान होकर लोग अनजाने में ही काल का ग्रास बन जाते हैं। किसी स्थान पर मनुष्य का बसेरा करने से पहले वहाँ पर सांप या जहरीले जीव जंतुओं का ही वास रहता है। उनके निवास स्थान पर मनुष्य अपना निवास स्थान बना लेता है तो ये भी अपने निवास की खोज में मनुष्य के घर, बाड़ी, मवेशियों के कोठे में घुस जाते हैं। मनुष्य द्वारा थोड़ी सी असावधानी हुई या अनजाने में इन पर पैर या हाथ पड़ा तो वह शिकार बन जाता है। मनुष्य और सांप दोनो एक दूसरे से भय खाते हैं और अपने प्राण बचाने के प्रयास में एक दूसरे पर हमला कर बैठते हैं।

सर्प का नाम सुनते ही आदमी को पसीना आ जाता है। सामने मिलने पर भय से कांपने लगता है। क्योंकि इसके विष की एक बूंद ही आदमी को मृत्यू के मार्ग तक पहुंचा देती है। ऐसा नहीं है कि सभी सांप जहरीले होते हैं पर भय अधिक असर करता है और उसके कारण भी हृदयाघात से जान चली जाती है। आम आदमी नाग (कोबरा) की सभी प्रजातियों को उसके फ़न होने के कारण पहचान लेता है, लेकिन अन्य जहरीले सर्प करैत, घोड़ा करैत, रस्सेल वायपर इत्यादि को नहीं पहचान पाता। सावन मास के प्रारंभ होने वाले चौमासे को नाग जाति के प्रजनन का समय माना गया है। इस समय संकोची और संवेदनशील माने जाने वाले सर्प मनुष्य से टकरा ही जाते हैं। समाज में सांपों को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियाँ और कहानियाँ प्रचलित हैं। जो कि इनके प्रति भय का वातावरण बनाने के लिए काफ़ी होती हैं। जबकि सर्प चूहों और मेंढकों को खाकर पर्यावरण के साथ अनाज की रक्षा भी करते हैं।

विशेषकर छत्तीसगढ अंचल में तीन तरह के जहरीले सर्पों की प्रजातियाँ मिलती हैं। इनमें नाग (कोबरा) की कई प्रजातियाँ हैं, काला नाग, गेंहूआ नाग, एवं किंग कोबरा, घोड़ा करैत वायपर (यह दो से तीन फ़ीट तक की लम्बाई का होता है और काले रंग पर सफ़ेद पट्टियाँ होती है) करैत ( यह घोड़ा करैत से लम्बा होता है और धूवें के रंग पर सफ़ेद पट्टियां होती हैं।) अहिराज ( यह लम्बा होता है और काले रंग पर पीली पट्टियाँ होती हैं) इन्हे जहरीला माना गया है। कोबरा सांप के दंश से व्यक्ति की आँखों की पलकें स्वत: ही बंद होने लगती हैं तथा व्यक्ति को दो-दो दिखने लगता है। सांस लेने में तकलीफ़ होती है तो वह लम्बी सांसे लेता है। करैत के काटने से दंश वाले स्थान पर कोई दर्द नहीं पर व्यक्ति को नशा छाने लगता है और बेहोश होने लगता है। गर्मी लगती है। वाईपर का विष सबसे अधिक खतरनाक होता है और थोड़ी ही देर में अपना असर दिखाने लग जाता है। व्यक्ति की नाक से खून निकलने लगता है, शरीर पर नीले धब्बे पड़ने के साथ मूत्र में खून आने लगता है, विष के कारण गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं, जिससे पांव में सूजन आने लगता है। ग्रामीण अंचल में सर्प दंश के शिकार को नीम की पत्तियाँ खिलाई जाती हैं। अगर नीम की पत्तियाँ कड़वी न लगें तो समझा जाता है कि किसी जहरीले सर्प ने डसा है और फ़िर उसका इलाज किया जाता है।

सर्प दंश होने पर ग्रामीण अंचल में बैगा-गुनिया से झाड़ फ़ूंक करवाने पर अधिक विश्वास किया जाता है। अगर सर्प जहरीला न हो तो वह दंश का शिकार व्यक्ति बच जाता है, यदि जहरीला सर्प हुआ तो झाड़ फ़ूंक के बाद भी व्यक्ति की मौत तय है। इसलिए सर्प दंश का पता चलने पर व्यक्ति की दंश की जगह को रस्सी से बांध कर तत्काल अस्पताल तक ले जाने की व्यवस्था करने में ही भलाई है। जहर का असर होने के विषय में सीधा सा फ़ार्मुला है, जितनी देर में दारु का नशा होता है उतनी ही देर में जहर दंश के शिकार की नसों में फ़ैल जाता है और शरीर की जीवन प्रणाली को ध्वस्त करने करने लग जाता है। यदि व्यक्ति समय रहते अस्पताल पहुंच जाता है तो बचने की संभावना अधिक रहती है। सर्प दंश की स्थिति में व्यक्ति को सोने नहीं देना चाहिए, अस्पताल पहुंचते तक उससे बातें करके ध्यान बंटाए रखना चाहिए। बरसात के मौसम में अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम तैय्रार रखा जाता है। जिसके इस्तेमाल से सांप का जहर उतर जाता है और व्यक्ति बच जाता है।

कुछ दिनों पूर्व छत्तीसगढ के लवन तहसील के ग्राम सरखोर की 55 वर्षिया महिला तिरिथ बाई वल्द बाबूलाल पटेल सर्पदंश का शिकार हो गयी। वह बारिश होने पर कंडों (उपलों) को देखने गयी थी कि कहीं बरसात में भीग तो नहीं रहे हैं। तभी उसके पैर के अंगूठे को सांप ने डस लिया। अस्पताल पहुचते-पहुचते उसकी मौत हो गयी। दमोह के जमुनिया गाँव की 14 वर्षिया कविता लोधी चूल्हा जलाने के लिए कंडे निकाल रही थी तभी उसमें छिपे बैठे तीन सांपों ने उस पर एक साथ हमला कर दिया। उसे कई जगह डसा और शरीर से जोंक की तरह चिपक गए। चीखने-चिल्लाने पर उसकी दादी ने एक सांप को पटक कर मार डाला तथा दो अन्य सांपों को अलग कर बर्तन से ढका, तक कविता का शरीर नीला पड़ गया था। अस्पताल ले जाने पर उसने एक दिन बाद दम तोड़ दिया। अभनपुर के पास खरखराडीह गाँव की स्कूली छात्रा छुट्टी होने पर एक पेड़ के नीचे पेशाब करने बैठी तो उसे सांप ने डस लिया। अभनपुर अस्पताल में लाने पर उसकी मौत हो गयी।

गाँव में खपरैल के कच्चे घरों में सांपों का अधिक खतरा रहता है। चूहों के पीछे खपरैल की छत में सांप घूमते रहते हैं, फ़िर नीचे उतर जाते हैं और सोए हुए आदमी को डस लेते हैं। जंगली कोरवा सर्प दंश के अधिक शिकार होते हैं। क्योंकि वे अपनी कबीले की मान्यतानुसार खाट पर नहीं सोते। कुछ वर्षों पूर्व मैने एक समाचार पढा था, जिसमें एक परिवार के 5 लोगों की मृत्यू सर्प दंश से हो गयी। मनुष्य के जमीन में सोने के कारण सर्प उसके ईर्द-गिर्द पहुंच जाते हैं और व्यक्ति के करवट लेने पर दबने के कारण उसे डस लेते हैं। आदिवासी अंचल से सर्पदंश की शिकायतें शहरों की अपेक्षा अधिक आती हैं। इस इलाके में असावधानी के कारण प्रतिवर्ष सर्प दंश से सैकड़ों व्यक्ति अकाल मृत्यू को प्राप्त होते है। बरसात में सर्प दंश की घटनाएं अत्यधिक मात्रा में सामने आती हैं। सर्प दंश से मृत्यू के पीछे शिकार व्यक्ति का समय पर अस्पताल तक न पहुंचना ही है। क्योंकि ग्रामीण बैगा को बुला कर झाड़-फ़ूक में लग जाते हैं तब तक देर हो जाती और सर्प के जहर का असर सारे शरीर में हो जाता है।

बरसात के समय जहरीले कीड़ों और सर्प से बचाव करने के लिए सबसे पहले सावधानी जरुरी है। अक्सर ये सांझ के समय ही निकलते हैं अपने शिकार पर, इसलिए कहीं भी जाते वक्त प्रकाश का साधन अवश्य साथ रखें। पक्के घरों में सोते वक्त दरवाजे की नीचे कपड़ा लगाकर सोएं जिससे सर्प को भीतर आने की जगह न मिले। गाँव में अक्सर सर्प लकड़ी एवं कंडे रखने की जगह, गौठान इत्यादि में अधिकतर दिखाई देते हैं। यहाँ काम करते वक्त सावधानी बरतें। अगर सर्प या बिच्छू डस ले तो घबराएं नहीं। काटे हुए स्थान को एन्टीसेप्टिक से धोकर उसके उपर की तरफ़ रस्सी बांध ले, जिससे विष का प्रभाव रक्त में धीमी गति से होगा और जान बचने की संभावना अधिक रहेगी।सर्प दंश से प्रभावित को स्थिर कर दें, अधिक हिलने डुलने से रक्त का संचार तीव्रता से होता है तथा भय उत्त्पन्न करने वाली कोई बात उससे न करें। बैगा-गुनियों के चक्कर में पड़ कर समय खराब करने से अच्छा समीप के किसी सरकारी अस्पताल में शीघ्रता से पहुंचे। जिससे समय पर चिकित्सा मिल सके। बरसात के समय सर्प दंश से बचने के लिए सावधानी आवश्यक है, इस बात का हमेशा ध्यान रखे एवं लापरवाही न करें। तभी बचाव संभव है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. जानकारीपूर्ण आलेख है। सावधानी की ज़रूरत तो है ही, हानिप्रद मान्यताओं के विरुद्ध वातावरण बनाने की भी ज़रूरत है।

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  2. बरसात के साथ छत्‍तीसगढ़ के नागलोक यानि कांसाबेल-तपकरा-फरसाबहार-लैलूंगा से सर्पदंश की खबरें आने लगती हैं.

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  3. बहुत ही उपयोगी सलाह..सर्प और मानव का संबंध बहुत पुराना है..

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  4. जी, हमारे गाँव की तरह तो इस समय दुमुन्ही दिखती है - उसका भी जहर खतरनाक होता है.

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  5. सम-सामयिक सलाह पूर्ण पोस्ट
    और एक उपाय और भी इनके देवता गुगोजी ध्यान धरते रहो और एक नारियल ध्वजा बोल दो फिर अगर घर में निकल भी आये तो गुगोजी की कृपा से अपने आप बाहर कही चले जायेगे।

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  6. यकीनन बरसात में साँपों से खतरा बढ़ जाता है,हमे सावधानी से रहना चाहिए,,,,
    RECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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  7. बहुत उपयोगी पोस्ट, बारिश के दिनों में इस प्रकार की सावधानी रखने की अत्यंत आवश्यकता होती है... हम तो यही प्रार्थना करते हैं इनके दर्शन भी न हो कभी किसी के घर के अन्दर, वो अपने और हम अपने घर भले, वैसे हम जानते हैं, कि हमारे घर उनकी ही जमीन पर बने हैं....

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  8. हम भी सबसे नीचे के फ्लैट में है ..बगीचे में चूहों का साम्राज्य है और इस बरसात में २-३ बार सांप देख लिया एक बार एक पकडाया भी..खिड़की दरवाजे बंद कर रखने पड़ते हैं ..
    बढ़िया लाभप्रद जानकारी के लिए आभार

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  9. और उन सर्पों का क्या करें जो दो मुहें होते है पारी बदल-बदल कर काटते हैं आम आदमी को और आस्तीनों में पलते हैं

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  10. ललित भाई जी मेरी भी श्री राजेश सिंह जी से सहमति है कृपया उपाय बतलाएं एंटी वेनाम खासकर दोमुहे सांप का ?

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  11. @ राजेश सिंह
    @ रमाकांत सिंह
    दोमुंहे सांपों के लिए शोले के ठाकुर के जूते लाने पड़ेगें। इसका एकमात्र ईलाज उन जूतों से दोमुंहे सांपों का फ़न कुचलना ही है।:)

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  12. इन से तो जैसे तैसे निबट ही लेंगे ... ब्लॉग जगत के विषधरों का क्या किया जाए महाराज !?


    मोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  13. मौसम के मिजाज़ के अनुसार उचित सलाह और मार्गदर्शन ! राजेशजी का प्रश्न मेरा भी था ,जवाब आपने दे ही दिया , मगर ये जूते से कहाँ मरते हैं , इनके लिए तो रोडरोलर की जरुरत होती है :)

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