Menu

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

इहै नगरिया तू देख बबुआ …………… ललित शर्मा

प्राम्भ से पढ़ें 
प्राचीन राजधानी श्रीपुर के अवशेषों को देखने पर्यटक आते हैं, जरा चर्चा वर्तमान सिरपुर गाँव की भी कर ली जाए। प्राचीन राजधानी के वैभव को तो मैने देखा नहीं परन्तु उसके खंडहरों को देखकर उसके वैभव एवं महत्ता को महसूस किया है। वर्तमान में सिरपुर ग्लोब पर 21.40’51.13 उत्तर एवं 82.10’54.07 पूर्व में रायपुर से 81 किलोमीटर की दूरी पर महासमुंद तहसील, जनपद एवं जिलान्तर्गत आता है। इसका थाना क्षेत्र तुमगाँव है। सिरपुर के ढाई किलो मीटर पर नैनी नाला, 7 किलोमीटर पर मखमल्ला एवं खरखर नाला, 8 किलोमीटर पर धसकुड़ नाला एवं 12 किलोमीटर पर सुकलई नाला है। ये नाले महानदी में जाकर मिलते हैं। सुकलई नाला महासमुंद एवं बलौदाबाजार जिले की सीमा रेखा है।
महानदी के तीर सिरपुर एवं रायकेरा  तालाब 
पुष्पा बाई यादव सिरपुर ग्राम पंचायत की सरपंच एवं शंकर ध्रुव उपसरपंच हैं। सेनकपाट एवं खमतराई सिरपुर ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम हैं। 20 वार्डों में विभाजित इस पंचायत में लगभग 1700 मतदाता एवं 200 घर है। जिनमें 50% गोंड़ आदिवासी 30% कवंर एवं अन्य 20% में ब्राह्मण, राजपुत, चंद्राकर (कुर्मी) सतनामी, मोची, नाई, यादव, धीवर, निषाद, गिरी-पुरी आदि निवास करते हैं। यहाँ के 50% निवासी कृषक और 50% सरकारी कर्मचारी हैं।आस-पास के गाँवों का केन्द्र होने के कारण कर्मचारियों ने सिरपुर में निवास करना उपयुक्त समझा। ऐसा कोई घर नहीं है जिसमें किराएदार न बसे हों।
सिरपुर विहंगम दृश्य 
समीप के गाँवों अमलोर, पासिद, सुकुलबाय, लंहगर, बोरिद आदि का मुख्य बाजार सिरपुर ही है। यहाँ धान की खेती के साथ सब्जी का भी व्यवसाय बड़ी मात्रा में होता है। साप्ताहिक बाजार गुरुवार को भरता है जिसमें समीपस्थ गाँवों के निवासी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की साप्ताहिक खरीदी खरीदी करते हैं। सिरपुर के मुख्य चौराहे पर 3 होटल हैं जिनमें जलपान की व्यवस्था है। विश्राम गृह के समीप सोनवानी होटल में दोपहर एवं रात का खाना उपलब्ध हो जाता है। ग्रामीण आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए 2 मेडिकल स्टोर्स, 4 किराना दुकान, 3 कपड़ा दुकान, गाड़ी का पंचर बनाने की 2 दुकान, मोटर सायकिल मेकेनिक 2, इलेक्ट्रिकल दुकान 3 मोबाईल शॉप 4 एवं 2 फ़ोटो स्टुडियो, पैट्रोल पंप भी हैं। इस तरह आवश्यकता की समस्त सामग्री एवं सहायता सिरपुर में उपलब्ध है।
सिरपुर का रास्ता 
शैक्षणिक दृष्टि से सिरपुर के निवासियो ने अधिक तरक्की नहीं की है। विद्युत विभाग के इकलौते जुनियर इंजीनियर के अतिरिक्त कोई भी अधिकारी नहीं बन पाया। वन विभाग, पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग में कुछ लोग सेवारत हैं। शिक्षा के साधन के रुप में 2 प्राथमिक सहशिक्षा स्कूल, 1 कन्या माध्यमिक शाला, 1 बालक माध्यमिक शाला, 1 सहशिक्षा हायरसेकेंडरी स्कूल, 1 आदिम जाति कल्याण विभाग का आश्रम एवं गुड शेफ़र्ड नामक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल भी है। अंग्रेजी माध्यम का स्कूल होने का अर्थ है कि सिरपुर के निवासी अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का महत्व समझ रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर उप स्वास्थ्य केंद्र, आर्युवैदिक औषधालय है। यहाँ छोटी-मोटी बीमारी  का ईलाज हो जाता है। गंभीर बीमारी होने पर रायपुर या महासमुंद ही एक मात्र विकल्प है। पशुओं की चिकित्सा एवं कृत्रिम गर्भाधान के लिए पशुचिकित्सालय की व्यवस्थित है। पर्यटकों के लिए सूचना केंद्र है जिससे छत्तीसगढ पर्यटन के होटल, मोटल, एवं रिसोर्ट बुक किए जाते हैं और पर्यटन संबंधी सूचनाएं दी जाती हैं।
महानदी के तीर प्राचीन आश्रम 
सिरपुर में सरकारी कार्यालय के नाम पर ग्रामीण बैंक, सहकारी समिति, पुलिस चौकी, विद्युत सब स्टेशन, लकड़ी डीपो, पटवारी निवास, फ़ारेस्टर का निवास है। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए महासमुंद जाना पड़ता है। पर्यटकों एवं ग्रामीणों के मनोरंजन की सुविधा के लिए अंग्रेजी एवं देशी शराब के ठेके भी हैं। विडम्बना है कि शराब ठेके गाँव के मध्य में स्थित हैं और पुलिस चौकी गाँव की सीमा के बाहर। यात्रियों के निवास के लिए पीडब्लुडी का एक मात्र विश्राम गृह है। जिसके आरक्षण के लिए महासमुंद उप जिलाधीश या संबंधित विभाग के उच्चाधिकारियों से समपर्क करना पड़ता है। वर्तमान में पर्यटन मंडल द्वारा एक रिसोर्ट का निर्माण कराया जा रहा है। जो कि रिहायश से बाहर है। आवगमन की सुविधा के लिए सड़कों की  हालत बढिया है और स्कूल के खेल मैदान में एक हैलीपैड स्थित है। जिस पर विशिष्ट लोगों के आगमन हेलीकाप्टर उतारा जाता है।
हेलीपेड 
ग्राम विकास एवं पुरासामग्री की चोरी रोकने के लिए सिरपुर प्रवेश द्वार पर नाका लगाया गया है। फ़िर भी मूर्तियाँ चोरी होने की घटना हो चुकी है। नाके में प्रति 4 चक्के एवं उससे बड़ी गाड़ी के आगमन पर 10 रुपए टैक्स लिया जाता है तथा गाड़ी का नम्बर रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। इससे पता चल जाता है कि कितनी गाड़ियाँ सिरपुर में प्रतिदिन आ रही  हैं। ग्रामवासी  कहते हैं कि विद्युत व्यवस्था में ही समस्या है। बिजली कब चली जाए और आ जाए इसका पता नहीं चलता। यह भी विडम्बना है कि जितने दिन मैंने सिरपुर में निवास किया कभी बिजली नहीं गयी। पैट्रोल-डीजल भी कभी उपलब्ध रहता है कभी नहीं। उपलब्धता की निरंतरता नहीं  है। ऐसी स्थिति में स्थानीय दुकानदारों से अधिक मूल्य पर खरीदना पड़ता है।
सिरपुर के घोंघा बसंत 
माघ माह की पूर्णमासी को सिरपुर में मेला लगता है तथा तीन दिवसीय शासकीय कार्यक्रम "सिरपुर महोत्सव"  मनाया जाता है। मेले के दौरान सभी जाति समाजों के लोग जुटते हैं और अपनी जातिय समस्याओं का बैठक करके हल निकालते हैं। सिरपुर धर्म की ही  नगरी है। यहाँ वर्तमान में लगभग सभी समाजों के अपने मंदिर एवं धर्मशालाएं हैं। जिनमें पटेल मरार समाज का राधाकृष्ण मंदिर, कोसरिया यादव समाज का कृष्ण मंदिर एवं दुर्गा मंदिर, कोसरिया पटेल समाज का दुर्गा मंदिर, निषाद समाज का राम जानकी मंदिर, बेलदार समाज का रामजानकी मंदिर, कंवर समाज का रामजानकी मंदिर, धीवर समाज  का रामेश्वर शिव मंदिर, सेन समाज का राधाकृष्ण मंदिर, सतनामी समाज की गुरु घासीदास की गद्दी, झेरिया यादव समाज का राधाकृष्ण मंदिर, कबीर पंथियों की कबीर कुटी, वैष्णव समाज का राधाकृष्ण मंदिर, साहू समाज का कर्मा मंदिर, गोंड़ समाज का प्राचीन शिव मंदिर, समलेश्वरी मंदिर एवं 2 जगन्नाथ मंदिर, रविदास मंदिर(मेला स्थल), चंडी मंदिर (गंधेश्वर महादेव मंदिर के समीप) दुर्गा मंदिर (सुरंग टीला से विस्थापित) भी हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय ग्रामदेवता के रुप में  महामाया, शीतला, ठाकुरदेव, सांहड़ादेव भी हैं।
 रायकेरा  तालाब 
सिरपुर में तालाबों की भरमार है, शायद ही कोई ऐसा प्राचीन मंदिर हो जिसके समीप पोखरी या तालाब नहीं है।  निस्तारी के  लिए नित्य उपयोग में आने वाले प्रमुख तालाब रायकेरा बंधवा एवं कमार डेरा तरिया हैं। रायकेरा बंधवा के विषय में जन श्रुति है कि प्राचीन काल में एक साधु था, उसके पास एक गाय थी। साधु ने स्थानीय चरवाहे को गाय चराने के लिए दी। एक दिन साधु ने चरवाहे की सेवा से उसे प्रसन्न होकर एक पत्थर दिया। चरवाहा में पत्थर तो ले लिया पर मन-मन साधु को कोसने लगा कि बरसों की सेवा के दिया तो एक पत्थर। चरवाहे सोचा कि इस पत्थर का क्या किया जाए। उसने रायकेरा तालाब में जाकर पत्थर से अपनी कुल्हाड़ी मांजा और पत्थर तालाब में फ़ेंक दिया। जब चरवाहा घर पहुंचा और कांधे से कुल्हाड़ी उतारी तो देखा वह सोने की हो गयी थी। वहा आश्चर्य चकित रह गया और अपने भाग को कोसने लगा।
महानदी के तीर पर ब्लॉगर मंडली राजीव रंजन, ललित शर्मा एवं आदित्य सिंह
उसने तालाब में जाकर खूब डुबकियाँ लगाई पर वह पत्थर नहीं मिला। यह जानकारी गाँव से प्रारंभ होकर राजा तक पहुंची। राजा के मन में पारस पत्थर प्राप्त करने के लिए लोभ जागृत हो गया। एक पारस पत्थर राजा की दशा सुधार सकता था और उसके सेना समेत राज्य को बना सकता था। यही सोच कर राजा ने चरवाहे को बुलाकर सत्यता की जाँच की। चरवाहे सारी घटना का वर्णन राजा से किया। राजा ने हाथी के पैर में लोहे की जंजीर बांध कर तालाब में घुमाने का आदेश दिया। हाथी सारे दिन तालाब को मथता रहा। शाम को जब उसे तालाब से बाहर निकाला गया तो उस लोहे  की जंजीर की एक कड़ी सोने की हो गयी थी। उसके बाद से किंवदंती चल रही है कि रायकेरा तालाब में पारस पत्थर है। यह वर्तमान सिरपुर है। जारी है … आगे पढे।

13 टिप्‍पणियां:

  1. नदी तट पर बसा एक छोटा नगर सिरपुर, संस्कृति और इतिहास के बीच में खड़ा।

    जवाब देंहटाएं
  2. पारस पत्थर की कथा रोचक कथा ने आलेख को समृद्ध किया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. ललित भाई आपके फ़ोटो की क्वालिटी बेकार होती जा रही है इस पर ध्यान दे।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद रोचक और जानकारीपरक आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  5. wah , rochak aur history se bhara , aaj sardi se haath aur hindi softwere dono kaam nahi kar rahe .

    जवाब देंहटाएं
  6. सिरपुर इतिहास के साथ-साथ आपने वर्तमान को भी बहुत बारीकी से सहेज लिया है ... बेहद सूक्ष्म अवलोकन... आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतर लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  8. सिरपुर के पारस पथ्तर की कहानी वर्तमान विवरण को रोचक बना रही है । अप्राप्य की तरह हमारा खिंचाव रहता ही है । यह जानकर अच्छा लगा कि वहां की सरपंच एक महिला है ।

    जवाब देंहटाएं