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शनिवार, 4 मई 2013

त्रिपुरी के कलचुरि

त्रिपुर सुंदरी तेवर
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ज का दिन भी पूरा ही था हमारे पास। रात 9 बजे रायपुर के लिए मेरी ट्रेन थी। मोहर्रम के दौरान हुए हुड़दंग के कारण कुछ थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा दिया गया था। आज कहीं जाने का मन नहीं था। गिरीश दादा को फ़ोन लगाए तो पता चला कि वे डूबलिया कार्यक्रम में डूबे हुए हैं। ना नुकर करते 11 बज गए। आखिर त्रिपुर सुंदरी दर्शन के लिए हम निकल पड़े। शर्मा जी नेविगेटर और हम ड्रायवर। दोनो ही एक जैसे थे, रास्ता पूछते पाछते भेड़ाघाट रोड़ पकड़ लिए। त्रिपुर सुंदरी मंदिर से पहले तेवर गाँव आता है। यही गाँव विजय तिवारी जी का जन्म स्थान एवं पुरखौती है। हमने त्रिपुर सुंदरी देवी के दर्शन किए और कुछ चित्र भी लिए। मंदिर के पुजारी दुबे जी ने बढिया स्वागत किया। 

तेवर का तालाब
ससम्मान देवी दर्शन के पश्चात हम तेवर गाँव पहुंचे। राजा हमे सड़क पर खड़ा तैयार मिला। तेवर गाँव में प्रवेश करते ही विशाल तालाब दिखाई देता है। कहते हैं कि यह तालाब 85 एकड़ में है। अभी इसमें सिंघाड़े की खेती हो रही हैं। तेवर पुरा सामग्री से भरपूर गांव है। जहाँ देखो वहीं मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। कोई माई बाप नहीं है। खंडित प्रतिमाए तो सैकड़ों की संख्या में होगी। इससे मुझे लगा कि यह गाँव कोई प्राचीन नगर रहा होगा। तालाब के किनारे पर शिवालय दिखाई दे रहा था और एक चबुतरे पर शिवलिंक के साथ कुछ भग्न मूर्तियाँ भी रखी हुई थी। ग्राम के मध्य में एक स्थान पर खुले में उमा महेश्वर की प्रतिमा रखी हुई है, यहाँ कुछ लोग पूजा कर रहे थे। ढोल बाजे गाजे के साथ कुछ उत्सव जैसा ही दिखाई दिया।

तेवर की बावड़ी
इससे आगे चलने पर एक विशाल बावड़ी दिखाई देती हैं। इसके किनारे पर एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में एक शानदार पट्ट रखा हुआ है जिसमें बहुत सारी मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इस मंदिर के ईर्द गिर्द सैकड़ों मूर्तियाँ लावारिस पड़ी हुई हैं जिनका कोई माई बाप नहीं है। इसके बाद राजा हमें एक घर में मूर्तियाँ दिखाने ले जाता है, वहां पर सिंह व्याल की लगभग 5 फ़िट ऊंची प्रतिमा है, जिसे रंग रोगन लगा दिया गया है और उसके साथ ही दर्पण में प्रतिबिंब देखते हुए श्रृंगाररत अप्सरा की सुंदर प्रतिमा भी दिखाई थी। पास ही चौराहे पर उमामहेश्वर की एक बड़ी भग्न प्रतिमा रखी हुई है। राजा यहाँ से हमें झरना दिखाने ले चलता है। 

झरने में गड्ढे
4-5 किलो मीटर कच्चे रास्ते पर जाने के बाद एक स्थान पर झरना दिखाई देता है। इस स्थान के आस-पास बड़े टीले हैं और टीलों के बीच के मैदान में गाँव के बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। उम्मीद है कि इन टीलों में भी कोई न कोई मंदिर या भवन के अवशेष अवश्य ही दबे पड़े होगें। झरने का जल निर्मल है, हमने यहीं पर बैठ कर भोजन किया और झरने के निर्मल जल पीया। झरने की तलहटी में लगभग 1 फ़ीट त्रिज्या के कई गड्ढे बने हुए हैं और यहीं पर शिवलिंग भी विराजमान है। साथ ही एक दाढी वाले बाबा की मूर्ति भी रखी हुई है जिसे विश्वकर्मा जी बताया जा रहा है। अवश्य ही यह किसी राजपुरुष की प्रतिमा होगी। विजय तिवारी जी ने बताया था कि त्रिपुर सुंदरी मंदिर के रास्ते में खाई में महल के अवशेष भी दिखाई देते हैं। 

विशाल मंदिर का मंडप
हम महल के अवशेष देखने के लिए खाई पर पहुंचे, वहाँ सब्जी बोने वालों ने अतिक्रमण कर रखा है। कहते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान यहाँ से बहुत सारी पुरासामग्री निकली है और मिट्टी के कटाव में बहुत सारे मृदा भांड के अवशेष हमें भी दिखाई दिए। झाड़ झंखाड़ के बीच हम खाई में उतरे और मंडप तक पहुंचे। यह किसी विशाल मंदिर का मंडप है। गर्भगृह के स्थान पर एक गड्ढा बना हुआ है, खजाने के खोजियों ने यहाँ पर भी अपना कमाल दिखा रखा है। इस गड्ढे को लोग सुरंग कहते हैं। बताया जाता है यहाँ से रास्ता महल तक जाता था। खाई में सैकड़ों की संख्या में बिल दिखाई दे रहे थे ऐसी अवस्था में अधिक देर हमने ठहरना मुनासिब न समझा। क्योंकि यह स्थान सांपों के लिए मुफ़ीद स्थान है। 

अप्सरा
अब तेवर के ऐतिहासिक महत्व की चर्चा करते हैं, पश्चिम दिशा में भेड़ाघाट रोड पर स्थित वर्तमान तेवर ही कल्चुरियों की राजधानी त्रिपुरी है जो कि शिशुपाल चेदि राज्य का वैभवशाली नगर था। इसी त्रिपुरी के त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण ही भगवान शिव का नाम ‘त्रिपुरारि‘ पड़ा। यहाँ स्थित देवालयों एवं भग्नावशेषों से ही ज्ञात होता है कि कभी यह नगर वैभवशाली रहा होगा। तेवर की प्राचीनता हमें ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाती है। तेवर जिसे हम त्रिपुरी कहते हैं यह चेदी एवं त्रिपुरी कलचुरियों की राजधानी रहा है।  गांगेय पुत्र कल्चुरी नरेश कर्णदेव एक प्रतापी शासक हुए,जिन्हें ‘इण्डियन नेपोलियन‘ कहा गया है। उनका साम्राज्य भारत के वृहद क्षेत्र में फैला हुआ था। सम्राट के रूप में दूसरी बार उनका राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ। कहा जाता है कि शताधिक राजा उनके शासनांतर्गत थे।

भग्नावशेषों का निरीक्षण करते हुए
जबलपुर के पास ही गढ़ा ग्राम पुरातन "गढ़ा मण्डलराज्य' के अवशेषों से पूर्ण है। गढ़ा-मण्डला गौड़ों का राज्य था गौड़ राजा कलचुरियों के बाद हुए हैं। जबलपुर के पास की कलचुरि वास्तुकला का विस्तृत वर्णन अलेक्ज़ेन्डर कनिंहाम ने अपनी रिपोर्ट (जिल्द ७) में किया है। प्रसिद्ध अन्वेषक राखालदास बैनर्जी ने बी इस विषय पर एक अत्यन्त गवेष्णापूर्ण ग्रंथ लिखा है। भेड़घाट और नंदचंद आदि गाँवो में भी अनेक कलापूर्ण स्मारक हैं। भेड़ाघाट में प्रसिद्द "चौंसठ योगिनी' का मंदिर। इसका आकार गोल है। इसमे ८१ मूर्तियों के रखने के लिए खंड बने हैं। यह १०वीं शताब्दी में बना है। मन्दिर के भीतर बीच में अल्हण मन्दिर है। इन सभी स्थानों में मन्दिरों और मूर्तियों में जिस प्रकार की कला पाई जाती है। 

हमारा त्रिपुरी दर्शन पूर्णता की ओर था। राजा को गाँव में छोड़ कर हम जबलपुर वापस आ गए, मुख्यमार्ग में कर्फ़्यू लगे होने के कारण कई घुमावदार रास्तों से गुजरते हुए हम सिविल लाईन पहुंचे। यहाँ से स्टेशन थोड़ी ही दूर है, 9 बजे हमारी ट्रेन का टाईम था और अमरकंटक एक्सप्रेस हमारी रायपुर वापसी थी। नियत समय पर ट्रेन पहुंच गई और जबलपुर की यादें समेटे हुए चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर नर्मदे हर नर्मदे हर का जयघोष करते हुए। इति जाबालिपुरम् यात्रा

14 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छी जानकारी देता यात्रा विवरण ..
    85 एकड में तालाब होने की बात सुनकर बहुत आश्‍चर्य हुआ !!

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  2. तेवर के बारे में किसी यायावर की पहली रपट पढ रहा हूँ। सुन्दर.

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  3. इतिहास और पौराणिक जानकारी से परिपूर्ण आपका आलेख ..बधाई

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  4. Tewar ke bare men foto sahit sundar janakari di hai ... sundar prastuti ...abhaar

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  5. यायावर की एक और खुबसूरत यात्रा जीवंत चित्रों सहित

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  6. त्रिपुरी के कलचुरि की बहुत सुन्दर जीवंत प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.. ..चलिए इसी बहाने हम भी कुछ पल घूम-फिर लेते हैं ...

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  7. आपकी यात्राओं ने बहुत कुछ जानकारी घर बैठे मिल जाती है, आपकी लगन व यायावरी को नमन.

    रामराम.

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  8. रोचक. नंदचंद अच्‍छा लग रहा है, लेकिन इस शब्‍द का उच्‍चारण मैंने नांदचांद ही सुना है.

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  9. आदरणीय ललित जी
    जबलपुर संस्मरण लिख कर आपने अभिभूत कर दिया
    आभार

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  10. तेवर का वृहद् तालाब और मूर्तियों का बिखराव , कितनी उन्नत सभ्यताएं , वैभवशाली नगर , देश में यात्रा तत्र बिखरी पुरातात्विक सामग्री की रोचक जानकारी मिलती है आपके ब्लॉग से !

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