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रविवार, 4 अगस्त 2013

दर्द ही दर्द


दर्द होने पर चेहरे पर विभिन्न तरह की भंगिमाएं बनती हैं। दर्दमंद मनुष्य के चेहरे को देख कर गुणी जन अंदाज लगा लेते हैं कि उसे शारीरिक या मानसिक किस तरह का दर्द है। दोनो तरह के दर्दों की चुगली मनुष्य का चेहरा करता है। शारीरिक चोटों और फ़ोड़े फ़ुंसियों से होने वाले अंगों के दर्द चेहरे पर दिखाई देते हैं। चेहरा देख कर पता चल जाता है कि उसके किस अंग में दर्द है। अंगों के दर्द के अनुसार चेहरे पर दर्द के भाव प्रगट होते हैं। अब इन भावों को पहचाना और उनका बयान करना बहुत कठिन है। विभिन्न तरह के दर्दों से भावों को जोड़कर देखने का प्रयास करने पर ही सिद्धियाँ हासिल होती हैं।

मीरा ने कहा है - हे री मै तो प्रेम दीवानी, मेरो दर्द न जाने कोय। दर्द तो वह जानता है जो जिसे दर्द होय या वह किसी दूसरे के दर्द से अनुभव ले। दर्दों का राजा दिल के दर्द को माना गया है। साहित्य में दिल के दर्द को उच्चतम स्थान प्राप्त है। कवियों और लेखकों ने दिल के दर्द को बयान करने में सारी उम्र गुजार दी। दिल की धड़कने जरुर बंद हो गई पर दर्द नहीं गया। ऊर्दु शायरों का दर्द तो "सरापा" हो जाता है। ऐसा कोई अंग ही नहीं जहाँ इश्किया दर्द न हो। बस यहीं से करुण रस टपकना प्रारंभ हो जाता है। शेर कहते कहते गज़ल हो जाती है और गज़ाला की आँखों से टपकता सारा दर्द गज़ल में उतर आता है।

इश्किया दर्द का मारा व्यक्ति खुजैले कुत्ते की तरह इधर-उधर सिर मारता हुआ फ़िरता है पर किसी से अपना दर्द बयान नहीं कर पाता। अस्तु उसे कागजों पर उतारना प्रारंभ करता है तो शायर या कवि की उपाधि पा जाता है। किसी किसी को दर्द में पारंगत होने पर पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। दिल का दर्द रचनात्मक होने के साथ विध्वन्सात्मक भी हो जाता है जब वह सिर पटकने लगता है। खुजैले कुत्ते को जब तक दो-चार डंडे न पड़ जाएं तब तक दर्द का ईलाज नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त इस दर्द का ईलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं।

आँख में तिनका गिरने पर दर्द कसकता बहुत है। आँख ही नहीं खोलने देता, अश्रुधार प्रवाहित होने से पता चल जाता है कि आँख की किरकिरी है। नाक में दर्द होने पर नाक लम्बी होकर लाल हो जाती है। माथे का दर्द होने पर व्यक्ति सिर झटकता है। कान का दर्द होने पर उसे सहलाते बैठा रहता है। दांत का मीठा-मीठा दर्द सुहाता है पर अधिक बढने पर सत्यानाशी रुप ले लेता है। चेहरे पर उमड़ता दर्द जहरीला हो जाता है। पेट की मरोड़ के तो क्या कहने। जैसे समंदर की लहरें उठती और गिरती हों। कभी दर्द कभी मुस्कान, कभी धूप कभी छाया। शरीर अन्य किसी अंगों का दर्द तो झेला जा सकता है पर मर्म स्थलों का दर्द बेचैन कर जाता है।

दर्द पर लिखने के लिए मुझे प्रेरणा आचारज जी से मिली। लेकिन आचारज जी कौन हैं, यह न पूछिएगा, तलाशिए आपके ईर्द-गिर्द ही मिल जाएगें। जब कभी उन्हे देखता हूँ तो उनकी दर्द भरी मुस्कान कत्ल करने के लिए काफ़ी होती है। मंचासीन होने पर कुर्सी पर बैठे बैठे जब दर्द की लहर उठती है तो आचारज जी का चेहरा देखने लायक होता है। चेहरे की भंगिमाएं ही चुगली कर जाती हैं कि बवासीर का दर्द भयंकर कष्ट दायक होता है। अगर मंच से किसी षोडसी पर निगाह टिक जाती है तो बढता हुआ दर्द अचानक तिरोहित हो जाता है।कुटिल नागरी मुस्कान चेहरे पर छा जाती है और मुंह ऐसा दिखाई देता है जैसे कोई फ़ोड़ा फ़ूटकर मवाद बह निकला हो।

इस दर्द भरी दुनिया में सिर्फ़ दर्द ही दर्द नजर आता है। किसी को मनवांछित फ़ल न प्राप्त होने का दर्द है, किसी को कार्योपरांत निष्कर्ष प्राप्त न होने का दर्द है, किसी को पड़ोसी की उजली कमीज का दर्द है, तो किसी को टूटी हुई पसली का दर्द है। किसी को बच्चे की फ़ीस न भर पाने का दर्द है, तो किसी को चाँद पर न पहुंच पाने का दर्द, किसी को कुर्सी का दर्द है तो किसी को अर्थी का दर्द है, किसी को अर्थ का दर्द है तो किसी को व्यर्थ का दर्द है। किसी को गिलास का दर्द है तो किसी को पास का दर्द है। किसी को राज का दर्द है तो किसी को काज का दर्द है। बस चहुं ओर दर्द ही दर्द है। दर्दमय संसार में बेदर्द न मिलया कोय। दर्द की फ़िकर वह करे जो दर्दमंद होय।

21 टिप्‍पणियां:

  1. जोरदार लिखा है -ऐसे ही लिखा करिए बेदर्द जी :-)

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  2. सच कहा है आपने, पीड़ा कैसे व्यक्त की जाती है, किस भाषा में की जाती है, कौन जाने।

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  3. वाह, दर्द की इबारत ही लिख डाली, पर सच तो है महाराज.

    रामराम.

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  4. अरे वाह ! आप तो दर्द के डॉक्टर बन गए ! अब दवा भी बता दीजिये। :)

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  5. वाह !
    निर्दयी हो चले है सब जनाने मर्द यहाँ,
    एक तरफ दर्द है, एक तरफ बेदर्द जहां।

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  6. ha ha ha ha .... badhiya...
    दर्दमय संसार में बेदर्द न मिलया कोय।
    दर्द की फ़िकर वह करे जो दर्दमंद होय।

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  7. वाह-वाह… इस दर्द के भी क्या कहने …बहुत बढ़िया ... एक दर्द को भी नहीं छोड़ा आपने की कल को कहीं -
    "कोई दर्द ना दर्द को होय
    जिक्र न होने का रोना रोए "… :)

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  8. अरे प्रभू ..

    सुबह सुबह क्या पढ़ा दिया है,दूर भगाओ जाले को

    इन दर्दों की दवा न कोई , जूते मारो साले को !
    :)

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  9. परिकल्पना ब्लॉग के ज़रिये आप तक आया..ब्लॉगपोस्ट पढ़ मन को अतीव प्रसन्नता हुई...साथ ही परिकल्पना साहित्य सम्मान पाने के लिये हार्दिक बधाई...

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  10. सच्ची कहा चहुं और दर्द ही दर्द है ।
    इश्किया दर्द का मारा व्यक्ति खुजैले कुत्ते की तरह इधर-उधर सिर मारता हुआ फ़िरता है पर किसी से अपना दर्द बयान नहीं कर पाता।

    जबरदस्त ।

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  11. दर्द का बाज़ार बहुत बड़ा हैं ज़माने में ...
    .....पर ये जो चेहरा हैं जाहिर कर देता हैं |

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  12. ललित जी ,
    सही है ., दर्द पर इतना अच्छा लेख .. वाकई जबर्दश्त है .

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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  13. दर्द को ब्यक्त करने के सचमुच अनेक तरीके .... बधाई सर जी

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  14. आदरणीय ललित शर्मा जी .. परिकल्पना साहित्य सम्मान पाने के लिए बधाई ....
    सुन्दर लेख और अनूठे प्रयास

    भ्रमर ५

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  15. आदरणीय ललित शर्मा जी .. परिकल्पना साहित्य सम्मान पाने के लिए बधाई ....
    सुन्दर लेख और अनूठे प्रयास

    भ्रमर ५

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