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शनिवार, 3 मई 2014

किल्ला बंदर: वसई फ़ोर्ट की सैर -2

म भी लौट रहे थे कि रास्ते के किनारे एक भवन दिखाई दिया जिस पर आर्किओलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया का बोर्ड लगा था। सोचा कि बाकी जानकारी यहाँ मिल जाएगी। वहाँ मुझे जितेन्द्र कुमार मिले। फ़िर उन्होने बताया कि इस किले 109 एकड़ भूमि में विस्तार है। तब मुझे लगा कि हम तो बहुत कम ही देखे हैं, मतलब काफ़ी कुछ यहाँ पर छूट रहा है। अब जितेन्द्र के साथ आम्रवन में भ्रमण करने लगे। किले में उत्खनन एवं सरंक्षण कार्य प्रारंभ है। इस स्थान पर पुर्तगालियों ने कैदखाना बना रखा था। जिसके खंडहर आज भी विद्यमान हैं। जितेन्द्र ने बताया कि ये भूमि में दबे हुए थे और इन्हें उत्खनन के द्वारा बाहर निकाला गया है तथा साथ ही साथ संरक्षण कार्य भी किया गया है।
वसई फ़ोर्ट का एरियल व्यू
हमें पता चला कि इस किले में 5 चर्च थे, जिनमें से 2 चर्च जमींदोज हो चुके हैं और 3 चर्चों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं। आगे बढने पर हमें शाही स्नानागार दिखाई दिया। जिसमें एक बहुत ही सुंदर हौद बना हुआ है। हौद तक पहुंचने के लिए पैड़ियाँ भी बनाई हुई है। हौद को सीपियों से अलंकृत किया गया है। अलंकरण में सीपों का प्रयोग मैने पहली बार देखा। देख कर ही लगता है इसे बड़े मनोयोग से निर्मित एवं अलंकृत किया गया है। अलंकरण में रकाबियों का प्रयोग भी किया गया है। प्रतीत होता है कि यह हौद किसी विशिष्ट रानी के लिए बनाया गया होगा। यह शाही स्नानघर किले के मध्य में स्थित है। 
रानी का हौद
आगे बढने पर कस्टम कालोनी किले के भीतर बनी हुई दिखाई दी। पता चला कि इस कालोनी का निर्माण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अपने अधिकार में लेने के पूर्व किया गया है। इस कालोने के पास एक प्राचीन हनुमान मंदिर भी है। जिसका दीप स्तंभ पाषाण निर्मित है। इस मंदिर के समीप ही सेंट फ़्रांसिस चर्च की विशाल ईमारत है। इस ईमारत को जितेन्द्र ने कब्रिस्तान बताया। जब हम ईमारत में पहुंचे तो इसके फ़र्श पर स्मृति पट लगे हुए दिखाई दिए। पढने पर ज्ञात हुआ कि ये पुर्तगालियों के हैं। कई पत्थरों पर राज्य चिन्ह बना हुआ था और उसके नीचे मृतक के विषय में जानकारी दी हुई थी। कई स्मृतिपट लगभग 8 फ़ुट के भी दिखाई दिए।
मृतक स्मृति शिलापट
इतिहास पर नजर डालें तो वसई गाँव उल्लास नदी के तट पर बसा है, इसे वसई बेसिन भी कहते हैं। वसई फ़ोर्ट का इतिहास अधिक पुराना तो नहीं है पर यह जलदूर्ग अपने समय में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह स्थान बड़ा व्यापारिक केंद्र था इसलिए गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने 1533 ईस्वी में इस दुर्ग की संरचना के रुप में बाले किला को अंजाम दिया। व्यापारिक दृष्टि से इस किले पर पुर्तगालियों की नजर थी। उन्होने अपने सेना के द्वारा इस किले पर कब्जा कर लिया और गुजरात के सुल्तान के साथ 23 दिसम्बर 1534 को संधि के द्वारा मुंबई सहित पूरे तटीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। 1590 में परकोटे का निर्माण कराया गया। पुर्तगालियों ने इसे नए सिरे से बनवाया। जिससे पूरी बस्ती ही इस परकोटे भीतर समा गई। 
वसई फ़ोर्ट का पिछला द्वार
सुरक्षा की दृष्टि से किले के चारों ओर 11 बुर्जों का निर्माण करवाया और भव्य चर्च एवं भवनों का निर्माण किया। इसे पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र बनाया। पुर्तगाल की राजकुमारी का विवाह इंग्लैंड के राजकुमार से 1665 में हुआ। कन्याधन के रुप में मुंबई का द्वीप समूह एवं आस पास के क्षेत्र अंग्रेजों को ह्स्तांतरित कर दिए गए। यह किला लगातार 200 वर्षों तक पुर्तगालियों के अधिकार में रहा। मराठा शासक बाजीराव पेश्वा के छोटे भाई चीमा जी अप्पा ने 1739 में अपने कब्जे में ले लिया। इस युद्ध में भवनों एवं चर्चों को अपार क्षति पहुंची, भारी लूट पाट की गई, चर्चों के घंटों को हाथियों पर लाद कर ले जाया गया और उन्हें मंदिरों में स्थापित कर दिया गया। सन 1801 में  बाजीराव द्वितीय के निरंकुश शासन से तंग आकर यशवंत राव होलकर ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। 
पिछले द्वार के समीप हनुमान  जी का मंदिर
इस युद्ध में बाजीराव द्वितीय पराजित हुआ। उसने वसई के किले में शरण ली। इसके बाद कुछ वर्षों तक वसई किले का नाम बाजीपुर भी रहा। सन 1802 में बाजीराव द्वितीय एवं अंग्रेजों के बीच संधि (बेसीन संधि) हुई। जिसके तहत बाजीराव को पुन: पेशवा की गद्दी पर बैठाने का वचन अंग्रेजों ने दिया। इस कूटनीतिक चाल के बदले अंग्रेजों वसई के किले साथ सम्पूर्ण  समुद्री क्षेत्र पर ही अधिकार कर लिया। वैसे पुर्तगालियों ने इस स्थान को अपनी नौसेना का प्रमुख केंद्र बनाया था और इस तट पर जहाज निर्माण के कारखाने भी संचालित किए थे। 
सेंट फ़्रांसिस चर्च (कब्रिस्तान)
इस भवन में कई खंड हैं, मध्य खंड  के अंतिम छोर पर वेदी बनी दिखाई देती है। जहाँ से पादरी धार्मिक प्रार्थना करवाते होगें। हो सकता है यह स्मृति शिलापट कहीं अन्य स्थान से लाकर यहाँ लगाए गए होगें। क्योंकि मुझे वहां कब्र जैसी कोई संरचना दिखाई नहीं थी। दूसरे खंड में कुछ गोलटोपी वाले क्रिकेट खेल रहे थे। स्मारक के भीतर किसी को क्रिकेट खेलते हुए देख कर मुझे हैरानी भी हुई। परन्तु फ़िर ख्याल आया कि वर्तमान में पर्यटकों सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान असुरक्षित है। किसके साथ कब दुर्घटना घट जाए उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इस सुनसान स्थान का उपयोग आपराधिक प्रवृत्ति के लोग निर्बाध रुप से करते हैं। यहाँ कई हत्या एवं आत्महत्या जैसी घटनाएँ घट चुकी हैं। क्योंकि सारे अपराध सुनसान स्थानों पर ही होते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कर्मचारी इन अपराधिक तत्वों से मुड़भेड़ नहीं कर सकते, जान सभी को प्यारी है।
चर्च की वेदी पर लव स्टोरी
इस स्थान का उपयोग अधिकतर प्रेमालाप के लिए किया जाता है। दूर-दूर से लड़के एवं लड़कियाँ बाईक पर आते हैं और प्रेमार्थ प्रयोजन सिद्ध करते हैं। सेंट फ़्रांसिस चर्च कि जिस वेदी की मैं चर्चा कर रहा था उस वेदी पर एक जोड़ा काफ़ी देर से आलिंगनबद्ध था। उसे हमारी उपस्थिति की भी कोई समस्या नहीं थी। मुंबई में स्पेस की कमी है। विवाहित जोड़ों को भी सप्ताह में एक बार होटल बुक करना पड़ता है। अगर किसी के पास इतनी राशि नहीं है तो वे ऐसे ही निर्जन स्थानों पर अपनी क्षुधा शांत करते हैं। जब मैं फ़ोटो लेने लगा तो वह जोड़ा अलग हुआ और बैठ गया। मेरे चित्र लेने से उसे कोई परहेज नहीं था। वर्तमान में कमोबेश सभी पर्यटक स्थलों पर यह नजारे देखने मिल जाते हैं। मैने कई बार दिल्ली के बोट क्लब में दोपहर में ही झाड़ियों की हल्की सी आड़ में खेल होते देखे हैं फ़िर भी यह तो मुंबई है। 
कब्रिस्तान में लेखक

यहाँ से लौटने पर हमारी भेंट वसई फ़ोर्ट के उत्खनन एवं संरक्षण इंचार्ज कैलाशनाथ शिंदे से होती है। इनके निर्देशन में ही यहाँ उत्खनन कार्य हो रहा है। कैलाशनाथ शिन्दे मुझे 30-35 वर्ष के उर्जावान युवा दिखाई दिए। उन्होने किले से उत्खनन में प्राप्त सामग्री दिखाई। जिसमें मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक की सामग्री थी। 5 किलो से लेकर 50 किलो वजन तक के तोप के गोले उत्खनन में प्राप्त हुए। पुर्तगालियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले चीने के बर्तन भी उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। काफ़ी बड़ी संख्या में मृदाभांड के टुकड़े भी दिखाई दिए। लोहा, तांबा, कांसे की सामग्री भी दिखाई दी। हम थोड़ी देर उनके दफ़्तर में बैठे। सामग्री के अवलोकन के साथ ठंडा पानी पीते हुए चर्चा हुई।
किले का कारागार
मैने कहा कि किले भीतर की ईमारतें सुनामी में नष्ट हुई हैं। सुनकर कैलाशनाथ ने कहा कि आपने यह आंकलन कैसे किया? मैने कहा कि किला तीन तरफ़ से समुद्र से घिरा हुआ है और इसके समीप इतनी बड़ी कोई नहीं है जिसकी बाढ के कारण इसे नुकसान पहुंचे। उत्खनन में दिखाई दे रहा है कि लगभग 6 फ़ुट से 10 फ़ुट तक गाद (शिल्ट) जमी हुई है। यह गाद भीषण बाढ़ द्वारा ही लाई जा सकती है। नदी की बाढ में 10 फ़ुट तक गाद जमना मुस्किल है, परन्तु सुनामी की एक लहर ही इतनी गाद जमा सकती और भवन को धराशायी कर सकती है। अब अगर कोई लिखित प्रमाण मिल जाए कि अंग्रेजों के समय में या पुर्तगालियों के समय में इस स्थान कौन से वर्ष में सुनामी आई थी, तो मेरा आंकलन प्रमाणित हो सकता है। मेरे विचारों से कैलाशनाथ भी सहमत थे। 
भवनों का संरक्षण कार्य
इनसे विदा लेकर समीप ही स्थित बस स्टॉप पहुंचे। हमें शाम 5 बजे तक वसई रोड़ स्थित घर पहुंचना था। बस स्टॉप के सामने नहर दिखाई दी इस नहर का प्रयोग किले के भीतर जलप्रंबधन के लिए होता होगा। नहर के समीप ही  ब्रजेश्वरी देवी एवं नागेश्वर महादेव के मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में सतत पूजित हैं तथा इनकी संरचना भी नई है। बस आने में 10 मिनट हो गए तो कैलाशनाथ शिंदे ऑटो लेकर आ गए और उन्होने वसई रोड़ तक हमारे छोड़ने की व्यवस्था की तथा ऑटो का पेमेंट भी खुद ही किया, हमारे मना  करने पर भी उन्होने किराया नहीं देने दिया। इस तरह हमारा वसई फ़ोर्ट भ्रमण सम्पन्न हुआ। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. ललित जी आप ने वसई फोर्ट मे सरल भाषा के साथ भ्रमण करवाया इसकी लिये धन्यवाद ……
    मुझे आपकी पोस्ट पढ़ते पढ़ते ऐसा लगा जैसे कदम से कदम आपके साथ ही चल रहा हूँ। बहुत सुंदर

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  2. "सिरपुर सैलानी की नजर से" की तरह इतिहास से परिचय कराता शब्दालंकृत वर्तमान में प्रेमी-प्रेमियों का मिलन स्थल होने सम्बन्धी जानकारी देता सजीव चित्रण....बहुत ही सुंदर रचना

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  3. सुन्दर. बहुत अच्छी बात थी कि आपको पुरातत्व वाले मिल गये और उनका मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ.

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  4. Aapse suni thi ye kile ki jankari aaj pad bhi li sach me aapke sath na ja kar pachta raha hu

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  5. vaha na jaa kar bhi poora ghoom liya ..sadhuvad ..aise hi sudoor sthano ka bhraman karvate rahiye

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  6. वसई में सूनामी ????? सुनकर कुछ डर -सा लगा

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