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गुरुवार, 1 मई 2014

सनी दा ब्याह @ मुंबई

नेट भी ऐसा वर्क करता है कि दूरस्थ बैठे लोगों को भी जोड़ देता है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। अंतरजाल पर आने के बाद कुछ बहुत अच्छे दोस्त मिले तो कुछ बहुत घटिया भी। जो घटिया थे उन्हें मैने छांट दिया और उनकी शक्ल भी नहीं देखता। वे स्वमेव किनारे हो गए। ये घटिया लोग जीवन में इस तरह रड़कते हैं जिस तरह रोटी चबाते वक्त अगर कोई कंकरी दांत के नीचे आ जाए। बस हमने कंकरियों को निमार दिया।
मुंबई लोकल की सवारी
जिन मित्रों की जिंदादिली से दुनिया कायम है उनमें से एक हैं दर्शन कौर धनोए। उनकी मेरी पहचान ब्लॉग़ पर आने के बाद ही हुई। शास्त्र कहते हैं न - संगच्छध्वं संवदध्वं संवोमनांसि जानताम्। अगर मिजाज एक जैसा हो तो मित्रता हो ही जाती है। ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ, दर्शन जी को घुमक्कड़ी का शौक है और मुझे देशाटन का। मित्रता की बात कुछ ऐसे ही जम गई। 
चल भंगड़ा पाईएं
मुझे ब्लॉग लेखन में आए 5 वर्ष बीत गए, अब छठवां वर्ष प्रारंभ है। इस अवधि में न जाने कितने ब्लॉगर आए और कितने चले गए। कईयों का ब्लॉग तो बरसों से बंद पड़ा है और उस पर धूल की परतें जमा हो गई है। पर कुछ लोग अभी भी हैं जो निरंतर लिख रहे हैं भले ही पोस्टों की आवृत्ति कम हो गई, लेकिन उपस्थित बनी हुई है। कुछ महीनों पहले दर्शन जी ने फ़ोन पर कहा कि उनके पुत्र का विवाह है और आपको विवाह समारोह में उपस्थित होना है।
बल्ले बल्ले, तुस्सी किद्धर चल्ले
मैंने हामी भर ली और बात आयी गयी हो गयी। बीच-बीच में वे मुझे याद दिला देती थी। मैं भी हामी भर देता था। फ़िर सोचता था कि बात मुंबई जाने की है। मुझे तो सिर्फ़ दर्शन जी ही पहचानती हैं और अगर शादी में चला गया तो अकेले बोर हो जाऊंगा। क्योंकि शादी में जाने का मतलब है कि उससे जुड़े सभी कार्यक्रमों में उपस्थित भी रहना होगा।
बारात विद डांस
विवाह 26 मार्च का था, मुझे 25 को मुंबई पहुंचना था। 15 मार्च को रेल्वे स्टेशन गया टिकिट करवाने के लिए, टोकन ले लिया जब मेरा नम्बर टिकिट के लिए आने वाला था तब मैने सोचा कि अगर चला गया तो बोर हो जाऊंगा और यही बोरियत मेरे मन पर इतनी हावी हो गई कि बिना टिकिट कराए घर वापस चला आया। मालकिन ने टिकिट के लिए पूछा तो मैने अपने मन की दुविधा बता दी। विवाह के एक हफ़्ते पहले निमंत्रण पत्र भी पहुंच गया। मालकिन ने बताया कि निमंत्रण पत्र आया है, आपको जाना चाहिए। रात को चैट पे मैने बिकास से कहा तो उसने सुबह उठकर तत्काल में 24 मार्च की जाने की टिकिट कर दी। तो मुझे भी जाने की तैयारी करनी पड़ी। 
बारात एवं बाराती 
24 मार्च की सुबह हावड़ा मुंबई मेल से मुंबई के लिए चल पड़ा। दोपहर का खाना नागपुर में मिल गया और रात का खाना घर से लेकर चला था। सफ़र में मुझे बाहर का खाना जमता नहीं है। अगर कोई आपातकालीन स्थिति बन जाए तो फ़लादि का सेवन कर लेता हूँ, पर तला हुआ खाना मेरे लिए पेरु हो जाता है। रायपुर से मुंबई के लिए 2 तरह की ट्रेन चलती हैं। एक तो यहाँ से चलकर सीएसटी जाती हैं, दूसरी एल टी टी कुर्ला जाती है। कुर्ला जाने वाली ट्रेन में जाने से एक तकलीफ़ ये रहती है कि वहाँ से कहीं जाने के लिए 2 बार ट्रेन बदलनी पड़ती है। सीएसटी वाली में दादर उतरने के बाद कहीं भी जाया जा सकता है। इसलिए मैने हावड़ा मुंबई मेल का चयन किया।
गुरुद्वारे में सगाई 
रायपुर से चलने की सूचना मैने मेसेज द्वारा दर्शन जी को दे दी थी। उन्होने कहा कि दादर पहुंचने पर फ़ोन कर देना। हम आ जाएगें लेने के लिए। हमारी ट्रेन सुबह लगभग 5 बजे दादर स्टेशन पर पहुंची। अब मुझे सेंट्रल लाईन से लोकल वाली लाईन पर जाना था। जहाँ से वसई रोड़ के लिए ट्रेन चलती है। पूछने पर पता चला कि 3 नम्बर प्लेटफ़ार्म से वसई रोड़ के लिए ट्रेन जाएगी।
शादी का फ़ुल्ल लोड
दादर से वसई रोड़ के लिए 15 रुपए की टिकिट लेनी पड़ती है, जो फ़ास्ट लोकल एवं स्लो लोकल दोनों में लागु होती है। हमारे यहाँ की अपेक्षा मुंबई में दिन थोड़ी देर से निकलता है। एक ट्रेन आकर प्लेटफ़ार्म पर रुकी और मैं उसमें सवार हो गया। वहीं पर मुझे एक बिलासपुर के अग्रवाल जी मिल गए, उन्हें मीरा रोड़ उतरना था। मीरा रोड़ तो मैं पहले भी आ चुका था संजय जी के पास। मैने दर्शन जी को फ़ोन लगा कर बता दिया कि अब मीरा रोड़ पहुंच रहे हैं। इससे आगे ही वसई रोड़ स्टेशन आता है।
निकासी
मुझे वसई वेस्ट में जाना था। वेस्ट के प्लेट फ़ार्म पर उतरा तो मोबाईल बजा। देखा कि दर्शन की कॉल थी। अर्थात वे प्लेट फ़ार्म  पर पहुंच गई हैं। प्लेट फ़ार्म पर थोड़ा चलने के बाद वे दिख गई। ये हमारी पहली मुलाकात थी। हमने एक दूसरे को पहचान लिया। फ़िर वे मुझे ऑटो से गुरुद्वारा लेकर गयी। हमारी आवास की व्यवस्था गुरुद्वारे में ही थी। वहाँ मेरी पहचान इन्होने ने अपने परिजनों से कराई।
सगाई के वक्त सरदार जुझार सिंह, बहु एवं दर्शन कौर धनोए
जिसमें इनके एक पारिवारिक मित्र सेवानिवृत फ़ुड कंट्रोलर राधे श्याम सिसोदिया जी भी थे। उनसे चर्चा होने पर पता चला कि उन्होनें बस्तर में कई बरसों तक नौकरी की है। उनके कई अधिकारी और दोस्त हमारे कामन फ़्रेंड निकल गए और बात जम गई। अब बोर होने का सवाल नहीं था। मामला फ़िट हो गया। बारात नवी मुंबई के लिए दोपहर निकलनी थी। इसलिए सभी को तैयार होकर इनके घर समय पर पहुंचना था।
शादी में कुछ रुपयों को भी धुंआ दिखानी पड़ती है।
वसई मुंबई का ही एक कस्बा है। जो मुंबई में जनसंख्या का दबाव बढने के कारण अब नगर बन गया है। मुंबई के ऑटो रिक्शा वालों की तारीफ़ तो करनी पड़ेगी। चाहे आदमी नया हो या पुराना सबसे तय किराया ही लेते हैं। अगर 9 रुपया हुआ तो 1 रुपए बाकायदा वापस देते हैं। बाकी अन्य शहरों में देखा कि ऑटो वाले सवारियों के कपड़े भी उतारने को तैयार हो जाते हैं। 
तन्ने घोड़ी किन्ने चढाया …… :)
हम तैयार होकर बराती बन गए, दोपहर 2 बजे हम नवी मुंबई के लिए चल पड़े। गुरुद्वारे में आज सगाई का कार्यक्रम होना था और अगले दिन यहीं से बारात निकल कर खारघर गुरुद्वारे में विवाह होना था। शाम तक हम नवी मुंबई पहुंच गए, गुरुद्वारे में सगाई का कार्यक्रम हो गया और फ़िर वहाँ से चलकर पंजाबी भवन में बाकी कार्यक्रम हुआ। यहीं मेरी मुलाकात अल्जिरा लोबो एवं मीना से हुई।
आनंद कारज 
दर्शन जी के मिस्टर सरदार जुझार सिंह जी से तो 25 को ही भेंट हो चुकी थी। वे मुंबई में टी टी ई थे, उन्होने बताया कि वे मुंबई से राजधानी एक्सप्रेस लेकर दिल्ली जाते थे। अब सेवानिवृत होकर घर पर ही रहते हैं। दर्शन जी ने विवाह का कार्यक्रम मुस्तैदी से संभाल रखा था। अगली सुबह हम बारात लेकर विवाह स्थल खारघर गए और वहीं सभी की उपस्थिति में आनंद कारज सम्पन्न हुआ।
आनंद कारज सम्पन्न
वहाँ से बारात विदा होने के बाद हम रात 9 बजे वसई रोड़ पहुंच गए। नवी मुंबई में ब्लॉगर देव कुमार झा भी रहते हैं। मैने उन्हें फ़ोन पर आने की सूचना दी थी और उन्होने वादा किया था कि वे आकर मिलेगें। पर हम एक दिन नवी मुंबई में रहे। वे पहुंच नहीं पाए, शायद कोई आवश्यक काम आ गया हो। न ही उसके बाद हमारी कोई चर्चा हुई। इस तरह दो दिनों में विवाह समारोह निपट गया। 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बड़ी बात है दोस्ती होना और उससे बड़ी बात उसे मान देना और निभाना जियो :)

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  3. ललित जी....
    बहुत अच्छा लगा आपका यह लेख और दोस्ती निभाते हुए..... सन्नी के शादी में हम नहीं जा सके साल के लेखावर्ष के अंतिम दिन होने के कारण ...... देखते है दर्शन बुआ जी से कब मिलने का मौका मिले.....
    लेख के जरिये शादी के काज का वर्णन और शादी में शामिल करने के लिए धन्यवाद

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद जो आप इस नाचीज के घऱ पधारेँ प्रभु -- -- --चित्र बहुत ही सुन्दर आये है --

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  5. दर्शनजी को ढेरों शुभकामनायें, आपने सब रसमों से अवगत कराया, आभार।

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  6. दर्शनजी को बेटे के विवाह की हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनायें, बहुत सुन्दर फोटो हैँ, आपके लेख ने हम सबको भी इस सुन्दर समारोह में शामिल कर दिया …

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  7. Wahh Lalit ji bade hi achhe tareeke se aapne shadi ke poore programme ko cover kiya hai.. Aap se milkar khushi hui.. Haan afsos raha ke main jyada samay nahi de paayi.. Kyun ke chhutti nahi thi.. Mumbai ki life bahot hi hectic hoti hai..

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  8. आज तीन वर्ष बाद ये शादी की यादगार सुनहरी यादों में शामिल हो गई ।

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