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बुधवार, 23 मार्च 2016

बैंगलोर के मड फ़ोर्ट के निर्माण की कहानी -7

यात्रा की थकान काफ़ी हो गई थी, एक दिन आराम करने के बाद अगले दिन बैंगलोर भ्रमण का कार्यक्रम बनाया गया। बैंगलोर  काफ़ी बड़ा है और भीड़ भरी सड़कों पर ही सारा समय निकल जाता है। पर्यटन करने के लिए वैसे बैंगलोर  में बहुत कुछ है, परन्तु पर्यटन अपनी रुचि के हिसाब से होता है। प्राचीन स्मारकों को देखने की रुचि होने के कारण हमने सर्च किया तो बंगलोर में तीन स्थान दिखाई दिए, पहला बैंगलोर  फ़ोर्ट, दूसरा बैंगलोर पैलेस, तीसरा टीपू सुल्तान का समर पैलेस, इसके बाद श्री रंगपट्टनम में टीपू सुल्तान का जन्म स्थल। इसके बाद गुगल मैसूर की जानकारियां देने लगता है।

हमने बैंगलोर शहर के अन्य स्मारक देखना ही तय किया। सुबह साढे नौ बजे नाश्ता करके हम बैंगलोर  दर्शन के लिए चल पड़े। एक डेढ घंटे चक्कर काटते हुए बैंगलोर फ़ोर्ट तक पहुंचे, उसके बगल में विक्टोरिया अस्पताल भी है। परन्तु वहाँ पार्किंग का स्थान नहीं होने के कारण आगे बढ़ गए। एक गोल चक्कर लगाने के बाद भी कोई पार्किंग का स्थान दिखाई नहीं दिया। लगातार चलते हुए अब माथा भी खराब होने लगा था। भीड़ एवं ट्रैफ़िक इतना अधिक रहता है कि मत पूछो। इससे एक सबक मिला कि अपनी गाड़ी के बजाए अगर कैब कर लेते तो सभी स्थान आराम से देखे भी जा सकते हैं और कोई समस्या भी नहीं रहती।
मड़ फ़ोर्ट बैंगलोर का मुख्य द्वार
किले के नाम पर वर्तमान में सिर्फ़ एक द्वार ही दिखाई देता है, जिसे दिल्ली गेट कहते हैं, जिन्होने राजस्थान एवं स्थानों के बड़े दुर्ग देखे हैं, उन्हें इस दुर्ग के नाम पर सिर्फ़ निराशा ही हाथ लगेगी। क्योंकि यह दुर्ग नष्ट हो चुका है और इसकी 95 प्रतिशत जमीन पर कब्जा होकर अन्य इमारते खड़ी हो गई हैं। वास्तव में यह मृदा भित्ति दुर्ग था, जिसे मड फ़ोर्ट कहते हैं। मड फ़ोर्ट बनाने के लिए उपयुक्त स्थान का चयन कर उसके चारों तरफ़ सुरक्षा गोलाकर खाईयाँ खोद दी जाती हैं। इसके निर्माण पत्थरों का प्रयोग नहीं होता। यह तात्कालिक तौर पर सुरक्षा उपलब्ध करता थै। छत्तीसगढ़ में इस तरह के दुर्गों की संख्या 48 तक पहुंच गई है।

इस किले का निर्माण 1537 में बैंगलोर शहर बसाने वाले केम्पे गौड़ा ने किया था। यह विजयनगर राज्य का जमीदार एवं बैंगलोर शहर का संस्थापक था। उसके बाद 1761 में हैदर अली ने इसमें निर्माण कार्य किया और इसे पत्थरों से निर्मित कर सुरक्षित किया। अंग्रेजों की सेना ने 21 मार्च 1791 को लार्ड कार्नवालिस के नेतृत्व में मैसूर के तीसरे युद्ध के दौरान इस किले की घेराबंदी कर अपने कब्जे में ले लिया। किसी जमाने में यह किला टीपू सुल्तान की नाक कहा जाता था आज इसका थोड़े से अवशेष और दिल्ली दरवाजा ही बाकी है। यहां पर अंगेजों ने अपनी विजय का जिक्र एक संगमरमर की पट्टिका में किया है।
मड फ़ोर्ट का प्लान
किले के लिए स्थान चयन एवं निर्माण के लिए कई किवंदन्तियाँ हैं। केम्पे गौड़ा एक बार शिकार के लिए जंगल में गया, शिकार करते हुए वह पश्चिम दिशा की ओर शिव समुद्र (हेसाराघट्टा) गाँव तक चला गया। यहां के शांत वातावरण को देख कर उसने इस स्थान को राजधानी बनाने के लिए उपयुत्क समझा। उसने यहां पर छावनी, जलाशय, मंदिर एवं व्यवसायियों के लिए बाजार की कल्पना की और इस स्थान पर राजधानी बनाने के निर्णय को स्थाई कर दिया। इस स्थान का एक केन्द्र बना कर उसने चारों दिशाओं में सजाए हुए सफ़ेद बैलों से जुताई कर राजधानी बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया।

इसके बाद मिट्टी के किले के लिए खाईयों का निर्माण किया गया और इसके नौ द्वार बनए गए। कहते हैं दक्षिण द्वार का जब निर्माण हो रहा था तब किसी विघ्न होने के कारण कार्य जल्दी सम्पन्न नहीं हो रहा था। किसी ने कहा कि यह मानव बलि मांगता है। अब बलि कौन दे और किसकी दे। तब केम्पे गौड़ा की भाभी लक्ष्म्मा ने रात्रि के समय तलवार से अपनी गर्दन काट कर बलि चढा दी। इसके बाद किले का निर्माण बिना किसी दुर्घटना से शीघ्रता से पूर्ण कर लिया गया। इसके बाद कोरमंगला में लक्ष्म्मा के नाम के एक मंदिर का निर्माण किया गया। अब इस मृदा भित्ति दुर्ग को बैंगलोर फ़ोर्ट कहा जाता है।
बैंगलोर फ़ोर्ट का गणेश मंदिर
इस किले में गणेश जी का एक मंदिर है। इसके साथ बैंगलोर का इतिहास जुड़ा हुआ है, परन्तु हमने अपने इतिहास को संजो कर रखना नहीं सीखा। यह किला अतिक्रमण की चपेट में आकर अपना वास्तविक स्वरुप खो चुका है। यह वही स्थान है जहां बीजापुर के सेनापति रुस्तमें जमां की तीस हजार फ़ौज को केम्पे गौड़ा की फ़ौज ने धूल चटाई थी। इतिहास की बातें तो इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं और धूल का किला धूल धुसरित हो गया। यहाँ से हम बैंगलोर पैलेस के लिए चल पड़े। जीपीएस वाली बाई को उसका पता बताया गया और हम आगे बढ गए। जारी है… आगे पढें।

11 टिप्‍पणियां:

  1. अनवरत भ्रमण कर बारीकी से ऐतिहासिक स्थलों के बारे जानकारी रोचक ढंग से प्रस्तुत करना काबिल-ए-तारीफ़ काम है आपका...भाई ललित का लालित्य कायम रहे...बधाई भाई

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  2. बंगलोर में अपनी गाड़ी से घूमना त्रासदायी. कब कहां नो एंट्री/वनवे आ जाय, पता ही नहीं चलता.सड़कों पर भयंकर भीड़. मडफोर्ट एरिया तो साक्षात नरक.

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  3. आज की पोस्ट से मड फोर्ट की नई जानकारी मिली । आभार

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  4. आज की पोस्ट से मड फोर्ट की नई जानकारी मिली । आभार

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  5. रोचक व ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए आभार...

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  6. रोचक व ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए आभार...

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  7. रोचक व ज्ञानवर्द्धक जानकारी के लिए आभार...

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  8. ललित जी, आपके ब्लाॅग की सामग्री पठनीय और रोचक है। आपके ब्लाॅग को हमने यहां लिस्टेड किया है। Best Hindi Blogs

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  9. ... रोचक नई जानकारी देने के लिए धन्यवाद ...

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