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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना विट्ठल मंदिर हम्पी : दक्षिण यात्रा 11

विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी को मंदिरों का नगर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि यहां शैव, वैष्णव, शाक्त सभी पंथो का प्रतिनिधित्व करते हुए मंदिरों का निर्माण भव्यता के साथ हुआ है। विरुपाक्ष स्वामी मंदिर शिव को, विट्ठल मंदिर विष्णु को एवं माता मंदिर देवी को समर्पित है। इसके साथ ही जैन मंदिर एवं मठ भी है। इससे स्पष्ट होता है कि विजय नगर साम्राज्य में सभी पंथो का समान आदर था। अगर हम्पी नगर का भ्रमण करना है तो कम से कम पर्यटक के पास 3 दिन का समय होना चाहिए तथा वाहन भी। क्योंकि सभी मंदिर एवं स्मारक दो-चार किमी की दूरी पर है। यहाँ किराये पर सायकिल मिलती है, जिससे भ्रमण किया जा सकता है।
तलारी गट्टा द्वार
विरुपाक्ष मंदिर के दर्शनों के पश्चात हम विट्ठल मंदिर पहुंचे यह मंदिर से पूर्व दिशा की ओर लगभग 5 किमी की दूरी पर है। विट्ठल मंदिर के लिए तलारीगट्टा द्वार से होकर जाना पड़ता है। तलारी गट्टा का अर्थात चुंगी द्वार। इस द्वार से प्रवेश करने वाले व्यापारी से यहां चुंगीकर वसूल किया जाता था। 
बैटरी चलित वाहन को चलाती लड़की
यह मंदिर तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर है। यहां पहुंचने पर मंदिर एक किमी पहले वाहन पार्किंग में खड़े करवा लिए जाते हैं, इसके बाद यहां से बैटरी चलित वाहन से मंदिर तक ले जाया जाता है। इन वाहनों को यहां के गांव की लड़कियाँ चलाती हैं। मुझे कर्नाटक सरकार का यह कार्य पसंद आया। अधिक लड़कियां विद्यार्थी हैं, जो पार्ट टाईम में वाहन चलाकर कुछ खर्च जुटा लेती हैं।
विट्ठल मंदिर का दृश्य
कड़प्पा पत्थरों का शहर होने के कारण यहाँ के सभी भवन पत्थरों से ही निर्मित है। मंदिरों के प्रथम तल कड़प्पा पत्थरों से बने हुए हैं और ऊपर के तल में ईंटों का प्रयोग हुआ है। कड़प्पा पत्थर अधिक सख्त होता है, इसलिए इस पर नक्काशी का काम सावधानी एवं कठिन परिश्रम भी मांगता है। विट्ठल मंदिर के गोपुरम का शीर्ष भाग भग्न हो चुका है। इसकी निर्माण शैली में इस्लामिक प्रभाव नहीं है, यह विशुद्ध हिन्दू शैली में निर्मित है। इसके मुख्यद्वार पर शिलापट का उपयोग हुआ है। द्वार पदतल शिला पर दंडवत होकर प्रणाम करते हुए मनुष्यों का अंकन दिखाई देता है। स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर मूल दक्षिण भारतीय द्रविड़ मंदिरों की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
हम्पी का लैंडमार्क गरुड़ रथ
इस मंदिर का निर्माण सोलहवीं सदी में राजा कृष्णदेव राय द्वारा किया गया बताया जाता है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर हम्पी के लैंडमार्क गरुड़ रथ का पार्श्व भाग दिखाई देता है। यह मंदिर के विशाल प्रांगण के मध्य में रखा हुआ है। इसे इस तरह स्थापित किया गया है कि मंदिर के गर्भगृह भगवान विट्ठल को गरुड़ रथ में विराजित होकर देखता रहे। मंदिर के गर्भगृह से गरुड़ रथ का द्वार दिखाई देता है। गरुड़ रथ का निर्मान एकाश्म चट्ठान से करने की बजाए, पत्थर से किया गया है। जिस तरह लकड़ी से रथ के सभी अंगों को बनाकर जोड़ा जाता है, इसी तरह गरुड़ रख में पत्थर से बनाकर रथ के सभी अंगों को जोड़ा गया। जिसे पत्थर के बने दो हाथी खींच रहे हैं। पहले इसे घोड़े खींचा करते। घोड़े को किसी ने भग्न कर दिया तो उसी पत्थरों को शिल्पकार ने हाथी की आकृति में बदल दिया। इसके प्रमाण स्वरुप रथ में जुते घोड़े की टांगे दिखाई देती हैं।
महामंडप - इसके ही स्तंभों से मधुर ध्वनि निकलती है।
मंदिर में महामंडप, रंग मंडप एवं अन्य कई मंडप हैं, महामंडप की छत भग्न हो चुकी है। इस महामंडप में जड़ित 56 स्तंभ हैं, जिन्हें थपथपाने मधुर संगीत सुनाई देता है। प्रत्येक स्तंभ से अलग तरह का स्वर निकलता है। सुरक्षा की दृष्टि से स्तंभो के थपथपाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। महामंडप के पश्चात गर्भगृह है, जो प्रतिमा विहीन है। मंदिर के गर्भगृह द्वार पर नदी देवियों के स्थान द्वारपाल बनाए गए हैं। द्वार शिलापट पर गजाभिषिक्त लक्ष्मी अंकित हैं। अधिष्ठान रिक्त है, यहां अवश्य ही विष्णु विग्रह रहा होगा। विट्ठल देव मंदिर हम्पी का सर्वाधिक अलंकृत मंदिर है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। सिंह व्याल, गज व्यालादि का अंकन प्रस्तर भित्तियों पर दिखाई देता है।
रंग मंडप का भीतरी भाग
गर्भगृह की भित्तियों पर रामायण की कथा का चित्रण किया गया है। जिसमें राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ। अशोक वाटिका में हनुमान द्वारा सीता को राम मुद्रिका देना, वानर सेना का सीता जी खोज करने का अंकन प्रमुख है। इसके साथ ही लक्ष्मी नारायण इत्यादि को प्रदर्शित किया गया है। बाहरी भित्ति पर पद्मासन लगाए हुए ध्यानरत साधु का अंकन किया गया है। यह आद्य शंकराचार्य हो सकते हैं। इसके साथ ही रामायण के अन्य प्रसंगों का चित्रण भी महत्वपूर्ण है। इस मंदिर को देखने के लिए भरपूर समय चाहिए। पर हमारे पास समय की कमी थी, सांझ ढल रही थी, इसलिए हम जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे। फ़िर भी बहुत कुछ छूट गया। 
अशोक वाटिका में सीता जी
इससे तो सभी विज्ञ है कि प्राचीन काल में भारत में तकनीकि विज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर था। जहाँ पुष्पक विमान से लेकर अन्य आश्चर्यचकित करने वाली तकनीकि सामने आई। विट्ठल मंदिर की बाहरी भित्ति में उत्कीर्ण एक प्रतिमा में दो चक्के का स्कूटर दिखाया गया है। जिसमें हैंडिल भी है और इक स्त्री इसे फ़र्राटे से संचालित करते हुए दिखाई दे रही है। उसने एक हाथ में स्कूटर का हैंडिल पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में खड्ग दिखाई दे रही है। अवश्य ही यह युद्ध का चित्रण किया गया है, स्कूटर सवार वेगवती स्त्री हाथ में खडग लेकर जैसे अरिसेना को ललकार कर आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इस तरह दो चक्कों के इलेक्ट्रानिक स्कूटर आज दिखाई देते हैं। वैसे भी स्कूटर का अविष्कार उन्नीसवीं सदी की औद्यौगिक क्रांति की देन है। परन्तु विट्ठल मंदिर का यह स्कूटर सोलहवीं शताब्दी में ही तैयार हो गया और संचालन नारी के द्वारा हो रहा है, इससे यह भी जाहिर होता है कि समाज में नारियों की स्थिति शीर्ष पर रही होगी। 
स्वचालित स्कूटर सवार स्त्री
विट्ठल मंदिर की भव्यता ऐसी है कि दर्शक ठगा सा खड़ा रह जाएगा। प्रस्तर स्थापत्य का अद्भुत कार्य यहाँ देखने को मिलता है। मंदिर की सुरक्षा परिखा काफ़ी मजबूत बनाई गई है। इसके साथ ही यहां फ़ूल बाजार भी है।  इस स्थान पर मंदिर में अर्पण करने एवं अन्य कार्यों के फ़ूलों का विक्रय होता था। इसके साथ ही अन्य सामान भी मिलता होगा। प्रस्तर स्तंभों से निर्मित बाजार की दुकानें अपने वैभव का गुणगान स्वत ही करती हैं। दुकानों के मध्य प्रतिमा विहीन एक मंदिर भी है। इस मंदिर किस देवता का विग्रह स्थापित था और किसे समर्पित था, इसकी जानकारी मुझे प्राप्त नहीं हो सकी। मंदिर का दर्शन करके हम सन सेट पाईंट की लौट गए।
राम मंदिर हम्पी का गोपुरम
सन सेट पाईंट एक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ से अस्ताचल को जाते हुए सूर्य का दृश्य सुंदर दिखाई देता है। यहां बड़े परकोटे घिरा हुआ राम मंदिर भी है। यह अयोध्या की हनुमानगढ़ी से संचालित होता है। इस मंदिर का गोपुरम छोटा है तथा द्वार शीर्ष पर गजलक्ष्मी का अंकन है। भीतर प्रवेश करने पर चतुष्टिका में लगे हुए शिलालेख दिखाई देते हैं तथा एकाश्म प्रस्तर का एक स्तंभ भी गड़ा हुआ है। शायद इस पर गरुड़ विराजमान रहे होगें। परन्तु अभी उपर का हिस्सा रिक्त है। मंदिर का गर्भगृह एकाश्म चट्टान को खोद कर गुहानुमा बनाया गया है। तथा उसी चट्टान को निर्माण में सम्मिलित करते हुए महामंडप का निर्माण किया गया है। हम जब पहुंचे तो यहाँ रामचरित मानस का अखंड पाठ जारी था।
सुर्यास्त स्थल पर हनुमान जी
मंदिर के पीछे पहाड़ी से सूर्यास्त देखा जाता है। जब हम पहुंचे तो सुर्य अस्ताचल को जा चुके थे, थोड़ी सी लालिमा दिखाई दे रही थी। इस स्थान पर बहुत से पर्यटकों के पहले से ही डेरा जमा रखा रखा था। यहां एक चट्टान पर कई शिवलिंग बने हुए हैं। जिस पर लोग पुष्प चढा रहे। पर्यटक सूर्यास्त की फ़ोटो खींचने में व्यस्त थे। एक व्यक्ति गदाधारी हनुमान जी का रुप धरकर उनसे कुछ दक्षिणा मिलने की उम्मीद लगाए, पूंछ हिलाते खड़ा था। यहां की फ़ोटो लेते हुए अंधेरा होने लगा था। इसके बाद हम कमलापुर लौट आए। आर्कियोलॉजी के गेस्ट हाऊस में रुम खाली न होने पर हमने एक होटल में रुम लिया और पुन: अम्बेडकर सर्किल के होटल में भोजन कर विश्राम गति को पहुंच गए। जारी है, आगे पढें।

4 टिप्‍पणियां:

  1. हम्पी की भव्य स्थापत्य कला का ऐसा अद्भुत व शानदार विवेचनात्मक जीवंत वर्णन व मनोहारी चित्रों को देखकर मन एक बार अवश्य इस स्थान तक जाने के लिए ललायित हो उठा है. बहुत - बहुत आभार

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  2. भागमभाग में भी बहुत कुछ देख पाए हम

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  3. बहुत बहुत आभार...यहीं से बैठे बैठे हमारा आधा भ्रमण हो गया....

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