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शनिवार, 23 जुलाई 2016

काले हीरे की खान झरिया की व्यथा कथा

गले दिन सुबह हम धनबाद के लिए चल पड़े।  हम कोयलांचल का भी भ्रमण करना चाहते थे। यहां की अर्थ व्यवस्था ही काले हीरे की खुदाई पर टिकी हुई है। कोयले से जो भी आय होती है, उससे ही अंचल के लोगों का जीवन चलता है। गैंगस ऑफ वासेपुर इसकी कलई खोलती है। सरकार भी मानती है कि बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन हो रहा है, लेकिन उससे निपटने का कोई साधन नही है। प्रोफेसर रमेश शरण का कहना है कि एक एकड़ मे कोयला खुदाई से 35 से 40 करोड की आय होती है। 5 करोड बांट भी दिया जाए तो बाकी आमदनी कम नहीं है। पर जिसकी जमीन अधिग्रहित की जाती है उसे कुछ हजार, लाख ही रुपये मिलते हैं। इसके साथ उसे अपनी जमीन से विस्थापित होना पड़ता है।
धनबाद स्टेशन
काले हीरे की कमाई की चमक ने कोल माफिया को जन्म दिया। बंद खदानों से कोयला खोद कर बेचने वालों से भी रंगदारी वसूली जाती है। बड़े की तो बात ही छोडिए। इसी रंगदारी की कमाई पर कब्जा करने के लिए गैंगवार होती हैं और हत्याएं भी। कुल मिलाकर कहानी कठिन ही है। हमारे मन मे एक ओपन कास्ट खदान देखने की इच्छा हो गई, खदान के पास फटकते ही कई लोगों ने घेर लिया, पूछताछ करने लगे, हाथ मे कैमरा देखते ही उनका रवैया और टोन सब बदला हुआ था। बिकास बाबू ने कह दिया कि पत्रकार हैं तो और मामला गडबड हो गया। उन्होने हमें फोटो नहीं खींचने दी और झगडा करने लगे, हाव भाव से लगा कि फोटो नही खींचने देने लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं।
कोयला खदान धनुवाडीह
हमने वहां से निकल जाने मे ही भलाई समझी। इससे साबित तो होता है कि खदान चाहे निजी क्षेत्र के हाथों में हो या सरकारी, पोलम पोल मची है, वरना यूं ही कोई कैमरा देख कर नही बिदकता। खैर माहोल देखकर हमने फोटो नही ली। इसलिए आज की पोस्ट मे फोटो नही लगा रहे। वैसे भी सब कुछ राम भरोसे है, राम चिड़िया राम का खेत, खाए जा चिड़िया भरपेट। कोयला राजधानी धनबाद ने स्वागत किया। हमें कोयला खदान के चित्र लेने थे। पहुंचने पहले कल की बराकर घटना दिमाग पर छाई हुई थी। यहां पहुचने पर पता चला कि "साला ऊ लोग पागले है, कुछ सोचते समझते ही नही।" हम भी सोचे कि साला काहे दू ठिक फोटो के लिए जी परान दें, कौन सा हमको "गैलेन्टरी अवार्ड" मिल जाएगा।
धनुवा डीह में सौ बरस से जलता हुआ कोयला
हमको सोच मे देख कर बाबा बोले "काहे टेंसन लेते है, देखिए हम दू मिनट मे लैन अप करते हैं। फोटो लेगें और लौट आएगें। हम धनबाद के सांसद पशुपतिनाथ सिंह के घर पहुंचे तो वे नित्य क्रिया को प्रस्थान कर रहे थे। बाबा से कहे कि 10 मिनट दीजिए हम लौट के आते हैं। नेताओं का 10 मिनट मतलब एक दू घंटा समझिए। हमने तय किया कि तब तक झरिया की धनुवाडीह खदान से फोटो लेकर लौटा जा सकता है। हम झरिया चल पडे, झरिया की कहानी भी किसी तिलस्मी शहर से कम नही है। यहां के बाजार की एक गली में ही जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक का सामान मिल जाता है। 
मृत्युंजय पाठक संग सेल्फ़ी
इसका इतिहास तीन सौ साल पुराना है, रींवा के बघेल शासकों की एक शाखा यहां राज करती थी। लगभग 100 कमरों का खंडहर महल आज झरिया के हालात पर जार-जार आंसू बहा रहा है। शासक की नई पीढी दो वक्त की रोटियों के लिए संघर्ष कर रही है। पुराना राज खत्म हुआ तो नया राज "सिंग मेंसन" शुरु हो गया। यहां की कोयला मार्केट का बाजार खुलता है तो एक घंटे मे अरबों रुपये का लेन-देन हो जाता है। कोयला खदान शुरु करने का श्रेय गुजरातियों को जाता है। किसी जमाने मे गुजरातियों की बडी संख्या रहती थी। हम धनुवाडीह पहुंच गए, खदान में से उठता धुंआ आकाश की ओर बढ रहा था दूसरी तरफ लोहे का राक्षस कोयले को अपने पंजों से कुरेद रहा था। कगार पर पुलिस चौकी और सुरक्षा बलों का निवास है।

धनुवाडीह पुलिस चौकी
यहां की खदान में 1916 में आग लगी थी। एक शताब्दी पूर्ण हो रही है, तब से आग में धू धू कर कोयला जल रहा है। यहां की खदानो से सबसे अच्छा कोयला "कोकीन" निकलता है, जो अन्य किसी जगह नही पाया जाता। प्रिंसपाल सेक्रेटरी खनिज झारखंड सरकार ने कहा कि "इन सौ बरसों मे यह आग बुझाने बहुत प्रयास हुए, करोडो रुपये खर्च हो गये, विदेशी विशेषज्ञ भी माथाफोडी कर गये पर आग नही बुझी।" स्थानीय पत्रकार गोविदनाथ शर्मा कहते है कि "आग बुझाने का प्रयास तो एक नाटक है" असल बात तो यह है कि सरकार झरिया शहर को विस्थापित कर इसके नीचे का भी कोयला निकालना चाहती है। आज झरिया टापू बनकर रह गया है। इसके चारों तरफ का कोयला खोद लिया गया। स्थिति यह हो गयी है कि अब लोगों के मकान के दरवाजे खदान मे खुलते है।"
धनबाद सांसद पी एन सिंह 
खदान से हमने फोटो ली और सांसद जी के यहां लौट आए, दरबार लगा था और वे हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्हे एक प्रति ":सरगुजा का रामगढ" की भेंट किए। किताब पलटते हुए उन्होने कहा कि छत्तीसगढी संस्कृति की झलक विमल मित्र के उपन्यास "सुरसतिया" में मिलती है। झरिया भेरी हॉट नगरी है, यहां धन, कोयला, खून और दिमागी गरमी अत्यधिक है। इतनी गरमी से आदमी पगलैट न हो यह संभव नहीं है। दो दिन पहले समाचार था कि धनबाद के बाहूबली डिप्टीमेयर ने मीटिंग के दौरान एक पार्षद को कारबाईन से छलनी करने की धमकी दे दी। वह फटी मे थाना एस पी के दुवारे चक्कर काट रहा है। 

झरिया राज परिवार की व्यथा दशा
इधर सांसद जी भी हलकान परेशान हो कर सन्नाए हुए थे। किसी पुराने चेलवा ने उनका ही सरेआम पुतला फूंक दिया। हमे पहली बार समझ आया कि मात्र पुतला फूंकने के बाद नेता कितना हलाकान होता है। ऊपर से लाख शांत दिखने के बाद भी भीतर खदबदाता लावा फूट ही पड़ता है। जलती हुई खदान इसका अच्छा उदाहरण है। खदान से निकलने के बाद झरिया महल में हमें राजा के वंशज रणजीत सिंह मिले। उन्होने बताया कि गढ से राजा ने मैदान मे बसने का इरादा किया और यहीं 1928 में टेकरी पर महल बनवाया। कभी झरिया के वैभव का प्रतीक झरिया महल अपनी दूर्दशा पर टसूए बहा रहा है। भले ही हाथी बंधान की जंजीरे अभी भी हाथियों की उपस्थिति का अहसास करवा रही हों, पर महल के झड चुके पलस्तर की मरम्मत कराने का सामर्थ वर्तमान मे नही है। अगर वह ढह गया तो दरबदर होना निश्चित है।
ज्योतिषी शालिनी खन्ना
महल के समीप ही प्रसिद्ध गत्यात्मक ज्योतिष परिवार की सदस्या शालिनी खन्ना जी का निवास है। इनकी बडी बहन संगीता पुरी जी आरकुट के जमाने से मेरी मित्र है और ब्लागर होने के कारण कई वर्षों से हम परिचित हैं। इनके आग्रह पर इस व्यस्ततम दौरे मे पांच मिनट का ही समय निकल पाया। मिलकर खुशी हुई। हिन्दूस्तान अखबार मे प्रति सप्ताह इनका ज्योतिष का फोनइन कार्यक्रम प्रकाशित होता है और कवितांए भी मानवीय संवेदनाओं के साथ सामाजिक सरोकार से भरपूर होती है। कुछ वर्षों पूर्व समाज में ब्लॉगर कम्युनिटी ही अलग बन गयी और आपसी ब्लाग पठन के साथ- साथ सामाजिक सहयोग की भावना भी विकसित हुई। दूर के लोग इंटरनेट के माध्यम से समीप हो गये और सात समन्दर की दूरियां भी एक क्लिक तक सिमट गयी। अब यह भूमिका फेसबुक निभा रहा है। जारी है आगे पढे……  

7 टिप्‍पणियां:

  1. धनबाद झरिया की बहुत सुनी अनसुनी कहानियो को उगलता है ये लेख ।

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  2. धनबाद झरिया के बारे में दिलचश्प जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार!

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  3. धनबाद के बारे में मुझे जानकारी नही थी, आपके पोस्ट ने तो यात्रा करा दिया ,धन्यवाद

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " रामायण की दो कथाएं.. “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. पढ़ने से ऐसा लगता है कि खनन माफिया के पैसे ने सिस्‍टम को जड़ से उखाड़़ दिया है... मल्‍टीनेशनल या विदेशी कंपनियों की निगाह नहीं गई अभी यहां पर ?
    क्‍या बड़े औद्योगिक घराने इधर नहीं आ रहे..

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