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शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

चौरसिया की कविता


जिसने आंतरिक सौन्दर्य निखारा
उसको नमन किया जग सारा

अपने भीतर का खजाना जो खोज पाया हैं
जगत में वही असली धनवान कहलाया हैं,

परम सौभाग्यशालियों में अपना नाम लिखायें
मानवता के रास्ते पर चल कर तो दिखलायें
अच्छाई कहीं से भी मिले उसका लाभ उठाना चाहिए
प्रियजनों की भी बुराई कदापि नहीं अपनाना चाहिए

अपने लोगों को सही बात समझाना हैं बड़ा कठिन काम
इतिहास पढ़ कर देख लो अच्छे अच्छे हुए इसमें नाकाम

रचनाकार
रामसजीवन चौरसिया

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ललित जी ये राम सजीवन जी तो संतकवि लगते हैं बधाई -शरद कोकास दुर्ग

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  2. सही कह रहे हैं राम सजीवन जी अपने लोगों को समझाना बडा कठिन काम है. सुफियाना अंदाज की इस कविता के लिए बधाई. ललित जी का आभार जो आपको इंटरनेट का अंतर्राष्‍ट्रीय नेटवर्क दिया. क्षेत्रीय कवि व लेखकों की रचनांए इसी तरह हिन्‍दी के विश्‍वव्‍यापी पटल में आनी ही चाहिए.

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