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सोमवार, 28 सितंबर 2009

बस्तर के प्रसिद्द दशहरे की कुछ चित्रावलियां

मित्रों कल से आपको बस्तर के प्रसिद्द दशहरे की कुछ चित्रावलियां दिखाना चाहता था लेंकिन कुछ तकनिकी समस्या आने के कारण विलंब हो गया,अब सब ठीक हो गया है,इसलिए विलंब से ही सही लेकिन आपके साथ आज ही इसे बांटना चाहता था,तो आप इस दशहरा यात्रा का आनंद लीजिये,इस यात्रा प्राम्भ हम बस्तरराज की कुलदेवी माँ दन्तेश्वरी के दर्शन से कर रहे हैं,इसके साथ ही इस दशहरे के विषय में नीचे कुछ संक्षिप्तजानकारियां भी दी जा रही हैं,आप उसका भी आनंद ले तथा अपनी प्रतिक्रियाओं से टिप्पणी द्वारा मुझे अवगत करावे,


बस्तर दशहरा
की जानकारी चित्रों के साथ थोड़े विस्तार से आप तक पहुचाने की कोशिश है,
१.पाटा जात्रा 
बस्तर के आदिवासी अंचल में लकडियों को पवित्र माना जाता  है, आदिवासी संस्कृति में लकडी का एक विशिष्ट स्थान है,दशहरा के रथ के निर्माण के लिए गोल लकडी (पेड़ के तने) का उपयोग किया जाता है,७५ दिनों तक  मनाये जाने वाले दशहरा त्यौहार का प्रारम्भ "पाटा जात्रा" का अर्थात लकडी पूजा से होता है,इसका लकडी के एक बड़े तने को महल के मंदिर के सिंह द्वार पर लाकर हरेली अमावश्या(जुलाई के मध्य में) पूजा जाता है,जिसे पता यात्रा कहते है,
डेरी गढ़ई


भादो माह के शुक्ल पक्ष के १२ दिन एक लकडी के स्तम्भ को "सीरसार" अर्थात जगदलपुर के टाऊन हाल जो कि दशहरा मनाये जाने के केंद्र स्थल है वहां स्थापित किया जाता है,
कंचन गादी
दशहरा उत्सव की वास्तविक शुरुआत में एक मिरगन कुल की एक कन्या पर देवी के रूप में पूजा की जाती है तथा उसे देवी के सिंघासन पर बैठाकर कर झुलाया जाता है,

कलश  स्थापना 
नवरात्रि के प्रथम दिवस में पवित्र कलश की स्थापना की जाती है
जोगी  बिठाई
इस परमपरा के अंतरगत सिरासर चौक में एक व्यक्ति के बैठने लायक एक गड्ढा खोद कर एक युवा जोगी (पुरोहित) को बैठाया जाता है जो नौ दिन नौ रात तक वहां पर बैठ कर इस समारोह की सफलता के लिए प्रार्थना करता है, उपरोक्त पूजा कार्य क्रम का प्राम्भ मांगुर प्रजाति की मछली की बलि से किया जाता है,
रथ परिक्रमा 
जोगी बिठाई के दुसरे दिन ही रथ परिक्रमा प्रारंभ होती है,पूर्व में १२ चक्के का एक रथ बनाया जाता था, लेकिन वर्त्तमान में दो रथ क्रमश: ४-एवं ८ चक्के के बनाये जाते है, पूलों से सजे ४ चक्के के रथ को "फूल रथ" कहा जाता है, जिसे दुसरे दिन से लेकर सातवें दिन तक हाथों से खिंच कर चलाया जाता है,पूर्व में राजा फूलों की पगड़ी पहन कर इस रथ पर विराजमान होते थे ,वर्तमान में कुलदेवी दन्तेश्वरी का छत्र रथ पर विराजित होता है,  
निशा  जात्रा- 
इसमें रात्रि कालीन उत्सव में प्रकाश युक्त जुलुस इतवारी बाजार से पूजा मंडप तक निकला जाता है,

जोगी  उठाई 
नव रात्रि के नवमे दिन शाम को गड्ढे में बैठाये गए जोगी को परम्परागत पूजन विधि के साथ भेंट देकर धार्मिक उत्साह के साथ उठाया जाता है,
मोली  परघाव- 
महाष्टमी की रात्रि में मौली माता का दन्तेवाडा के दन्तेश्वरी मंदिर से दशहरा उत्सव हेतु विशिष्ट रूप से  आगमन होता है, चन्दन लेपित एवं पुष्प से सज्जित नविन वस्त्र के रूप में आकर जगदलपुर के महल द्वार में स्थित दन्तेश्वरी मंदिर में विराजित होती है, 
भीतर  रैनी-
विजयादशमी वाले दिन से ८ चक्के का रथ चलने को तैयार होता है, इस रथ पर पहले राजा विराजते थे अब माँ दन्तेश्वरी का छत्र विराजता है,तथा ये रथ पूर्व में चले हुए फूल रथ के मार्ग पर ही चलता है,जब यह रथ सीरासार चौक पर पहुचता है तो इसे मुरिया जनजाति के व्यक्ति द्वारा चुरा कर २ किलोमीटर दूर कुम्भदकोट नामक स्थान पर ले जाया जाता है,

बाहर  रैनी  
११ वें दिन कुम्भ्दकोट का राजा नयी फसल के चावल का भोग देवी को चढाकर सबको प्रसाद वितरित करते हैं, और रथ को समारोह पूर्वक मुख्य मार्ग से खींच कर महल के सिंह द्वार तक पुन: लाया जाता है,
कचन  जात्रा- 
समारोह के १२ दिन देवी कंचन को समारोह के सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के उपलक्ष्य में कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है,
मुरिया  दरबार  
उसी दिन सीरासार चौक पर मुरिया समुदाय के मुखिया, जनप्रतिनिधि एवं प्रशासक एकत्रित होकर जन कल्याण के विषयों पर चर्चा करते है,
देवी माँ की बिदाई - 
समारोह के १३ दिन मौली माता को शहर के पश्चिमी छोर पर स्थित मौली शिविर में समारोह पूर्वक विदाई दी जाती है, इस अवसर पर अन्य ग्राम एवं स्थान देवताओं को भी परम्परगत रूप से बिदाई दी जाती है, इस प्रकार यह संपूर्ण समारोह सम्पन्न होता है,


(फोटो -डी.डी.सोनी से साभार)

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर यात्रा आपने बस्तर दशहरे की करवाई,बहुत ही सुन्दर लगभग 20-25 चित्र है,घर से ही हमने बस्तर का द्शहरा देख लिया
    साथ मे आपने जो जानकारी दी है वो भी बहुत महत्वपुर्ण है,आपको दशहरे की शुभ कामनाये।

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  2. आभार इस चित्र प्रदर्शनी का.

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  3. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  4. आपने बस्तर के दशहरे का बहुत ही सचीव चित्रण किया है । सुंदर तस्वीरों के लिए आभार ।

    http://gunjanugunj.blogspot.com

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  5. पहली बार जाना ...........चित्रों से ही पता चल रहा है कितना उत्साह रहता है .................आपका आभार .इस अद्भुत जानकारी के लिए ....

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