अभी हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे हैं. हम इस ढोंगी तांत्रिको एवं गरीब बेसहारा औरतों को ही "टोनही" घोषित करने के कारणों का विश्लेषण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं,.पिछली पोस्ट पर कुछ प्रतिक्रियाए आई हैं, हम उनका यहाँ उल्लेख कर रहे हैं
.महफूज़ अली ने कहा… आज तुम जितना भी पैसा दोगे तुम्हे दुगनाकर दूंगा. लोंगों ने विश्वास करके उसे पैसे लाकर दिये. और बाबा रात को ढाई लाख रुपया लेकर चंपत हो गया. जब दुसरे दिन लोगों को नही मिला तो पुलिस थाने में रिपोर्ट की गई, मिडिया में समाचार बना, और वो चमत्कारी तांत्रिक बाबा अंतरध्यान हो गया, आज तक नही मिला है.उसकी तलाश जारी है......................... jee....aise bahut se case hamare lucknow mein bhi ho chuke hain.........achcha laga ......
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने कहा… अंधविस्वास का भंडाफोड़ बहुत अच्छा .....
.ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा… बाबा जी का काम हुआ, फिर भला वे वहां क्यूं रूकते?
संगीता पुरी ने कहा… ग्रामीणों की अज्ञानता और भोलेपन का हमेशा ही नाजायज फायदा उठाया जाता है .. उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है .. पर वह बिना आग के चावल बनाता कैसे था ?
.महफूज़ अली ने कहा… आज तुम जितना भी पैसा दोगे तुम्हे दुगनाकर दूंगा. लोंगों ने विश्वास करके उसे पैसे लाकर दिये. और बाबा रात को ढाई लाख रुपया लेकर चंपत हो गया. जब दुसरे दिन लोगों को नही मिला तो पुलिस थाने में रिपोर्ट की गई, मिडिया में समाचार बना, और वो चमत्कारी तांत्रिक बाबा अंतरध्यान हो गया, आज तक नही मिला है.उसकी तलाश जारी है......................... jee....aise bahut se case hamare lucknow mein bhi ho chuke hain.........achcha laga ......
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने कहा… अंधविस्वास का भंडाफोड़ बहुत अच्छा .....
.ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा… बाबा जी का काम हुआ, फिर भला वे वहां क्यूं रूकते?
संगीता पुरी ने कहा… ग्रामीणों की अज्ञानता और भोलेपन का हमेशा ही नाजायज फायदा उठाया जाता है .. उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है .. पर वह बिना आग के चावल बनाता कैसे था ?
एक दिन की बात है मै रायपुर शहर में किसी काम से घूम रह था, लेकिन जिससे काम था वो कहीं चला गया था, अब शाम को मिलता। अब क्या करूँ?
टाइम पास करना था तो मै टाटीबंध टांसपोर्ट नगर में चला गया, वहां पर एक मित्र का मोटर बाडी बनाने का कारखाना है, सोचा उससे मुलाकात हुए बहुत दिन हो गए है. आज टाइम है मिल के कुछ गप-शप हो जायेगी और मुलाकात भी जायेगी.
मै वहां पहुच गया. कारखाने में काम चल रहा था. हमारे मित्र के साथ कुछ लोग और भी बैठे थे. उसमे काला सा पीले कपडे पहने एक आदमी अलग ही दिख रह था. उसने मेरे बैठते ही मेरा नाम पूछा. मैंने उसे बताया. फिर उसने मुझे कहा कि यहाँ ट्रासपोर्ट नगर में लोग मुझे "काला पंडित" के नाम से जानते हैं और मै तांत्रिक हूँ, किसी कोई भी समस्या हो उसका हल मेरे पास है. यहाँ के सारे सरदार (ट्रक वाले) मुझे जानते हैं और मेरा यही धंधा है.
मैंने कहा "बहुत अच्छा हुआ महाराज,आपके दर्शन हुए। मैं धन्य हो गया, आपके दर्शन ही मुझे मिलने थे इसलिए मैं यहाँ तक पहुच पाया, नहीं तो मुझे और कहीं ही जाना था.
वह बड़ा खुश हुआ और अपनी विद्या की चर्चा करने लगा कि वो तंत्र-मंत्र से क्या-क्या कर सकता है और किसका-किसका उसने काम सुधारा है, मुझे सब बताने लगा.
मैंने कहा "महाराज ये सब मुझे बताने की क्या जरुरत है. मैं तो यह सब नहीं मानता.
वो गुस्से में आ गया और मुझसे बोला" तुम क्या समझते हो? मैं तुम्हे तुम्हारे ठिकाने से उड़ा दुंगा, तुमको मेरे से उलझना बहुत ही महंगा पड़ेगा."
हमारी ये बातें वहा और लोग भी सुन रहे थे. जब वो गरम होने लगा तो मित्र बोले "छोडो ना महाराज आप क्यों फालतू ललित जी से उलझ रहे हो.
वो बोला " इसने मेरी तंत्र विद्या पर संदेह किया है मैं इसको तो अब उड़ा कर छोडूंगा.
अब मुझे उससे मजाक करके उसके क्रोध और बढ़ाने की इच्छा हो गई, देखता हूँ ये क्या करता है? ये सोच के मैं बोला " महाराज! मुझे उडाने के लिए पंख तो लगाना पड़ेगा? बिना पंख के मैं कैसे उड़ सकता हूँ? मेरे को जल्दी से ये विद्या सिखा दो, आज कल पैट्रोल भी बहुत महंगा हो गया है.मैं घर से उड़ कर सीधा रायपुर आ जाये करूँगा मेरा किराया भाडा भी बच जायेगा."
ऐसा सुनते ही वह उबल पड़ा-"मजाक करता है मेरे साथ, अभी तेरे को दिखाता हूँ.
मैंने वहां पर काम कर रहे सभी कारीगरों और अन्य आदमियों को बुलाया और बोला " यारों ये महाराज अब मेरे को उडाने वाला है तुम लोग भी देख लो, नहीं तो ये चमत्कार फिर देखने नहीं मिलेगा." और उस महाराज से बोला" दिखा महाराज मैं भी आज तेरी तंत्र शक्ति का चमत्कार देखना चाहता हूँ. तू तो मुझे उडाने की बात कर रह है. मैं तो ६ फुट का हूँ इतनी तकलीफ मत कर कहीं तेरा ज्यादा तेल जल जाये मुझे उडाने में तू एक काम कर अपने मंत्र शक्ति से मेरे हाथ का ही एक बाल हिला के दिखा दे सबके सामने तो मैं तुझे मान लूँगा."
वो मुझ पर और भी गरजने लगा, लाल आँखें करके. मित्र ने देखा कि कहीं मामला बिगड़ ना जाए सोच के उस महाराज को बोले " क्यों तुम फालतू काम कर रहे हो, मेहमान मुझसे मिलने आया है और तुम उसके ही पीछे पड़ गए, आज के बाद मेरे गैरेज में मत आना,
महाराज, मित्र पर ही चढ़ बैठा. बोला "तुम भी मेरा अपमान कर रहे हो. तुम्हे भी ठिकाने लगा दूंगा".
मुझे भी अब क्रोध आने लगा था. मैंने एक लड़के को बुलाया.और दो सौ रूपये देकर बोला "जा दो किलो तेल और आधा किलो चावल लेकर आना, आज इस महाराज का बैंड बाजा कर ही जाऊंगा. तुम भी तमाशा देखना और आज टाटीबंध में ये रहेगा या मैं. आज हो जाने जंतर-मंतर। अब कौन जीतता है तुम ही देखना".
तमाशबीनों की भीड़ लगने लगी थी. मैंने कहा- महाराज मैंने तेल मंगवा लिया है. तुमको उबलते हुए तेल से अपने हाथ पैर धोने हैं और फिर उबलते तेल की कडाही अपने सर पर डाल कर नहाना है. लेकिन कहीं पर जलना नही चाहिए। अपना तंत्र मंत्र चला कर बच जाना, अगर नही बच सका तो मैं तुम्हे गरमा-गरम तेल से अभी सबके सामने नहा कर बताऊंगा। उसके बाद तुम इस टाटीबंध में मुझे कभी नजर नहीं आना. अगर ये नहीं करना चाहता तो दूसरा रास्ता भी है मैंने अभी जो चावल मँगवाया है. उसे बिना आग जलाये पका कर दिखाना मंत्र से, अगर नहीं पका पाया तो मैं सबके सामने पका कर दिखाऊंगा। जो मंजूर है वो बोल दे। उसके बाद तू क्या मुझे उडाएगा मैं तुझे यही से उड़ा कर सबके सामने दिखाता हूँ बोल-मैंने कहा।.
अब उसकी सिट्टी पिट्टी गोल हो गई. मित्र बोले "महाराज मैं आपको पहले से ही बोल रहा हूँ कि तुम इनके साथ मत उलझो, ये भी बहुत बड़े तांत्रिक हैं तुम अब अपने रोजी रोटी का भी सत्यानाश कर लोगे" इतनी देर में वो कारीगर तेल लेकर आ गया था.
मैंने उसे गरम करने कहा. और जोर से बोला" तेल को एकदम गरम करले उसमे से धुंवा निकालना चाहिए उसके बाद इस महाराज को पकड़ कर इसके सर पर डालना है"
इतना सुन कर वो इधर-उधर तांक- झांक करने लगा. मैंने कहा इसे आज छोड़ना नही है और ये नहीं जला तो इसको मैं अपना गुरु बना लूँगा. चरण पकड़ लूँगा.
बात बढ़ते देख कर वो अब भागने की तैयारी करने लगा. मैं बोला इसका पकड़ कर रखो भागने मत देना, आज इसका भूत उतरना ही पड़ेगा, अब उस तांत्रिक ने सोचा कि आज तो फँस गए तो दुकानदारी भी चौपट हो जायेगी और गरम तेल से तो जलना ही पड़ेगा। उसने एक नया नाटक चालू किया, वह जोर जोर से रोने लगा,
मेरे पैर पकड़ने लगा "नहीं-नहीं ऐसा मत करो मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे पैर छोड़ ही नही रहा था।
मैंने कहा "पहले ही मै तुम्हारे को कह रह था कि मेरे से मत उलझ अपनी दुकानदारी कर, लेकिन तू तो मेरे को मंत्र से उडाने(मारने) की धमकी दे रहा था। अब चला तेरा मंत्र"
वो पैर छोड़ नहीं रहा था। मुझे माफ़ कर दो, मुझे माफ़ कर दो। वहां उपस्थित बाकी लोग उसका तमाशा देख रहे थे. तभी मित्र बोले - छोड़ दो ना, इसको सबक मिल चूका है।
मैंने कहा नहीं, अभी तो इसका भूत उतारना है। फिर सब बोलने लगे छोड़ दो ना। तो मैंने एक शर्त पर उसे छोडा कि आज के बाद यहाँ इस इलाके में नज़र मत आना। उसने कहा नहीं आउंगा मैं ये इलाका ही छोड़ दूंगा।
ऐसा बोल के वो अपनी सायकिल उठा कर ऐसे भगा जैसे उसके पीछे भूत लग गए हों. कहीं मेरे को फिर से ना पकड़ ले.
टाइम पास करना था तो मै टाटीबंध टांसपोर्ट नगर में चला गया, वहां पर एक मित्र का मोटर बाडी बनाने का कारखाना है, सोचा उससे मुलाकात हुए बहुत दिन हो गए है. आज टाइम है मिल के कुछ गप-शप हो जायेगी और मुलाकात भी जायेगी.
मै वहां पहुच गया. कारखाने में काम चल रहा था. हमारे मित्र के साथ कुछ लोग और भी बैठे थे. उसमे काला सा पीले कपडे पहने एक आदमी अलग ही दिख रह था. उसने मेरे बैठते ही मेरा नाम पूछा. मैंने उसे बताया. फिर उसने मुझे कहा कि यहाँ ट्रासपोर्ट नगर में लोग मुझे "काला पंडित" के नाम से जानते हैं और मै तांत्रिक हूँ, किसी कोई भी समस्या हो उसका हल मेरे पास है. यहाँ के सारे सरदार (ट्रक वाले) मुझे जानते हैं और मेरा यही धंधा है.
मैंने कहा "बहुत अच्छा हुआ महाराज,आपके दर्शन हुए। मैं धन्य हो गया, आपके दर्शन ही मुझे मिलने थे इसलिए मैं यहाँ तक पहुच पाया, नहीं तो मुझे और कहीं ही जाना था.
वह बड़ा खुश हुआ और अपनी विद्या की चर्चा करने लगा कि वो तंत्र-मंत्र से क्या-क्या कर सकता है और किसका-किसका उसने काम सुधारा है, मुझे सब बताने लगा.
मैंने कहा "महाराज ये सब मुझे बताने की क्या जरुरत है. मैं तो यह सब नहीं मानता.
वो गुस्से में आ गया और मुझसे बोला" तुम क्या समझते हो? मैं तुम्हे तुम्हारे ठिकाने से उड़ा दुंगा, तुमको मेरे से उलझना बहुत ही महंगा पड़ेगा."
हमारी ये बातें वहा और लोग भी सुन रहे थे. जब वो गरम होने लगा तो मित्र बोले "छोडो ना महाराज आप क्यों फालतू ललित जी से उलझ रहे हो.
वो बोला " इसने मेरी तंत्र विद्या पर संदेह किया है मैं इसको तो अब उड़ा कर छोडूंगा.
अब मुझे उससे मजाक करके उसके क्रोध और बढ़ाने की इच्छा हो गई, देखता हूँ ये क्या करता है? ये सोच के मैं बोला " महाराज! मुझे उडाने के लिए पंख तो लगाना पड़ेगा? बिना पंख के मैं कैसे उड़ सकता हूँ? मेरे को जल्दी से ये विद्या सिखा दो, आज कल पैट्रोल भी बहुत महंगा हो गया है.मैं घर से उड़ कर सीधा रायपुर आ जाये करूँगा मेरा किराया भाडा भी बच जायेगा."
ऐसा सुनते ही वह उबल पड़ा-"मजाक करता है मेरे साथ, अभी तेरे को दिखाता हूँ.
मैंने वहां पर काम कर रहे सभी कारीगरों और अन्य आदमियों को बुलाया और बोला " यारों ये महाराज अब मेरे को उडाने वाला है तुम लोग भी देख लो, नहीं तो ये चमत्कार फिर देखने नहीं मिलेगा." और उस महाराज से बोला" दिखा महाराज मैं भी आज तेरी तंत्र शक्ति का चमत्कार देखना चाहता हूँ. तू तो मुझे उडाने की बात कर रह है. मैं तो ६ फुट का हूँ इतनी तकलीफ मत कर कहीं तेरा ज्यादा तेल जल जाये मुझे उडाने में तू एक काम कर अपने मंत्र शक्ति से मेरे हाथ का ही एक बाल हिला के दिखा दे सबके सामने तो मैं तुझे मान लूँगा."
वो मुझ पर और भी गरजने लगा, लाल आँखें करके. मित्र ने देखा कि कहीं मामला बिगड़ ना जाए सोच के उस महाराज को बोले " क्यों तुम फालतू काम कर रहे हो, मेहमान मुझसे मिलने आया है और तुम उसके ही पीछे पड़ गए, आज के बाद मेरे गैरेज में मत आना,
महाराज, मित्र पर ही चढ़ बैठा. बोला "तुम भी मेरा अपमान कर रहे हो. तुम्हे भी ठिकाने लगा दूंगा".
मुझे भी अब क्रोध आने लगा था. मैंने एक लड़के को बुलाया.और दो सौ रूपये देकर बोला "जा दो किलो तेल और आधा किलो चावल लेकर आना, आज इस महाराज का बैंड बाजा कर ही जाऊंगा. तुम भी तमाशा देखना और आज टाटीबंध में ये रहेगा या मैं. आज हो जाने जंतर-मंतर। अब कौन जीतता है तुम ही देखना".
तमाशबीनों की भीड़ लगने लगी थी. मैंने कहा- महाराज मैंने तेल मंगवा लिया है. तुमको उबलते हुए तेल से अपने हाथ पैर धोने हैं और फिर उबलते तेल की कडाही अपने सर पर डाल कर नहाना है. लेकिन कहीं पर जलना नही चाहिए। अपना तंत्र मंत्र चला कर बच जाना, अगर नही बच सका तो मैं तुम्हे गरमा-गरम तेल से अभी सबके सामने नहा कर बताऊंगा। उसके बाद तुम इस टाटीबंध में मुझे कभी नजर नहीं आना. अगर ये नहीं करना चाहता तो दूसरा रास्ता भी है मैंने अभी जो चावल मँगवाया है. उसे बिना आग जलाये पका कर दिखाना मंत्र से, अगर नहीं पका पाया तो मैं सबके सामने पका कर दिखाऊंगा। जो मंजूर है वो बोल दे। उसके बाद तू क्या मुझे उडाएगा मैं तुझे यही से उड़ा कर सबके सामने दिखाता हूँ बोल-मैंने कहा।.
अब उसकी सिट्टी पिट्टी गोल हो गई. मित्र बोले "महाराज मैं आपको पहले से ही बोल रहा हूँ कि तुम इनके साथ मत उलझो, ये भी बहुत बड़े तांत्रिक हैं तुम अब अपने रोजी रोटी का भी सत्यानाश कर लोगे" इतनी देर में वो कारीगर तेल लेकर आ गया था.
मैंने उसे गरम करने कहा. और जोर से बोला" तेल को एकदम गरम करले उसमे से धुंवा निकालना चाहिए उसके बाद इस महाराज को पकड़ कर इसके सर पर डालना है"
इतना सुन कर वो इधर-उधर तांक- झांक करने लगा. मैंने कहा इसे आज छोड़ना नही है और ये नहीं जला तो इसको मैं अपना गुरु बना लूँगा. चरण पकड़ लूँगा.
बात बढ़ते देख कर वो अब भागने की तैयारी करने लगा. मैं बोला इसका पकड़ कर रखो भागने मत देना, आज इसका भूत उतरना ही पड़ेगा, अब उस तांत्रिक ने सोचा कि आज तो फँस गए तो दुकानदारी भी चौपट हो जायेगी और गरम तेल से तो जलना ही पड़ेगा। उसने एक नया नाटक चालू किया, वह जोर जोर से रोने लगा,
मेरे पैर पकड़ने लगा "नहीं-नहीं ऐसा मत करो मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे पैर छोड़ ही नही रहा था।
मैंने कहा "पहले ही मै तुम्हारे को कह रह था कि मेरे से मत उलझ अपनी दुकानदारी कर, लेकिन तू तो मेरे को मंत्र से उडाने(मारने) की धमकी दे रहा था। अब चला तेरा मंत्र"
वो पैर छोड़ नहीं रहा था। मुझे माफ़ कर दो, मुझे माफ़ कर दो। वहां उपस्थित बाकी लोग उसका तमाशा देख रहे थे. तभी मित्र बोले - छोड़ दो ना, इसको सबक मिल चूका है।
मैंने कहा नहीं, अभी तो इसका भूत उतारना है। फिर सब बोलने लगे छोड़ दो ना। तो मैंने एक शर्त पर उसे छोडा कि आज के बाद यहाँ इस इलाके में नज़र मत आना। उसने कहा नहीं आउंगा मैं ये इलाका ही छोड़ दूंगा।
ऐसा बोल के वो अपनी सायकिल उठा कर ऐसे भगा जैसे उसके पीछे भूत लग गए हों. कहीं मेरे को फिर से ना पकड़ ले.
बिना आग के चावल पकाने की मुझे जानकारी नहीं मिली .. अब अगली कडी में इसका इंतजार रहेगा .. ये लोग वास्तव में ठग होते हैं .. ये सिर्फ साधु बनकर ही नहीं .. कई अन्य तरीकों से भी घूमा करते हैं .. कभी सोने चांदी साफ करने के बहाने ये लोग सोने चांदी को साफ कर देते हैं .. तो कभी इन्हे साफ करने का पाडडर बेचते ये लोग नजरों के सामने से सोने चांदी को गायब कर देते हैं .. कभी खुदाई में गडा हुआ कीमती सामान बताते हुए नकली सामानों को चुपके चुपके महंगे दामों में बेच जाते हैं .. उनके अचानक गायब होने के बाद ही लोगों को मालूम हो पाता है कि वे ठगे गए हैं .. वहां शायद हिप्नोटाइज करने का सहारा लेते हैं .. उनके पोल को भी खोले जाने की आवश्यकता है .. वैसे साधु बनकर ठगी करना सबसे आसान है .. इसलिए इसका अधिक सहारा लेते हैं !!
जवाब देंहटाएंइसीलिए कहा जाता है - मुच्छड़ से पंगा, ना बाबा ना।
जवाब देंहटाएंजय हो !
जवाब देंहटाएं@गिरिजेश राव ने कहा…
जवाब देंहटाएंइसीलिए कहा जाता है - मुच्छड़ से पंगा, ना बाबा ना।
हा हा हा हा हा हा - सुपर टिप्पणी
हिन्दूस्तान में ऎसे काले/पीले/नीले/हरे पंडितों और रहमान अली/सुलेमान अली/मियाँ मलिक/बाबा बंगाली जैसे बाबाओं की कोई कमी नहीं...एक ढूंढों,हजार मिलेंगें...वैसे ढूंढने की भी कोई जरूरत नहीं,ये लोग खुद आपको ढूंढ लेंगें :)
जवाब देंहटाएंकिस्सा बढिया सुनाया आपने...लेकिन बिना आग के चावल पकने की जानकारी छुपा गए... शायद अन्त में देंगें जैसे कि मजमे वाले करते हैं...देखने वाला बेचारा इसी इन्तजार में खडा रहता है कि बाबा जी बस अभी बताने ही वाले हैं :)
जाने दो महाराज जीने-खाने दो गरीबों को।
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