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गुरुवार, 17 जून 2010

अचानकमार की यात्रा और जंगल में मंगल

यात्रा वृतांत आरंभ से पढें
म बिलासपुर पहुंचकर कोटमी सोनार जाना चाहते थे जहां क्रोकोडायल पार्क बना हुआ है। उदय भाई को साथ लेकर हम पहुंचे अरविंद झा जी के पास, उन्हे साथ लिया और चर्चा हुई कि अब किधर चलना है?

तो बात-चीत से फ़ैसला हुआ कि कोटमी सोनार न जाकर रतनपुर चलते हैं और वहां महामाया माई के दर्शन करते हैं, उसके पश्चात अचानकमार के जंगलों में भोजन करते हैं।

गाड़ी में अवधिया जी
उदय भाई ने फ़ोन कर भोजन बनाने का आर्डर दे दिया, तब तक हम महामाया मंदिर (जो कि प्राचीन शक्ति पीठ है) पहुंच चुके थे। मंदिर मैने 3 साल बाद देखा था। अब यहां का निर्माण काफ़ी विस्तार ले चुका है।

ज्ञात हो कि रतनपुर छत्तीसगढ की राजधानी रह चुकी है, कलचुरी काल में शासन यहीं से चलाया जाता था। मंदिर तक पहुंचने वाले मार्ग पर छत बनाकर छाया कर दी गयी है ताकि दर्शनार्थि्यों को परेशानी न हो।

अभी कुछ दिन पहले हमने दिल्ली यात्रा की एक पोस्ट में एक फ़ल दिखाया था। जिसे पोखरा कहते हैं, कमल गट्टा भी कहते हैं। इससे मखाने बनते है जिन्हे पंच मेवा में स्थान दिया गया है।

मंदिर के रास्ते में कुछ लोग पोखरा बेच रहे थे। अब मनपसंद चीज सामने थी। हमने 10 रुपए में 5 पोखरा लिया। अवधिया जी ने याद दिलाया था कि उन्होने बरसों से पोखरा नहीं खाया है। इसलिए हमने भी ले लिया।

कमल गट्टा याने पोखरा-बीज के साथ
थोड़ी देर बाद देखता हूँ कि अवधिया जी भी पोखरा लेकर आ रहे हैं। सभी ने पोखरा खाने का मजा लिया। इस फ़ल की विशेषता है कि फ़ल के अंदर एक आवरण में बीज है और बीज के अंदर अंकुर है। इससे सिद्ध होता है कि बीज के अंदर वृक्ष समाया हुआ है। बीज के अंदर के अंकुर को निकाल कर बीज को खाया जाता है अन्यथा उसकी कड़ूवाहट स्वाद खराब कर देती है। इसके हमने चित्र लिए हैं जिससे आपको स्पष्ट समझ में आ जाएगा।

गर्मी कुछ ज्यादा ही थी लेकिन तवेरा के एसी ने ठंडक बना रखी थी फ़ि्र भी अंदर का माहौल गर्म होने लगा क्योंकि अब चर्चा ब्लागजगत पर छिड़ चुकी थी।

गहन विचार विमर्श
अवधिया जी का कहना था कि वे ब्लागजगत में रुपया पैसा कमाने आएं है जिसे वे सार्वजनिक रुप से स्वीकार करते हैं। अंग्रेजी ब्लागिंग का उदाहरण देते हैं जहां लोग पैसे से विषय संबंधित आर्टिकल खरीद कर अपना ब्लाग चलाते हैं और कमाई भी करते हैं। हिन्दी ब्लागिंग में लोग कमेंट के पीछे भागते हैं। ब्लाग पर कमेंट भले ही मत आए लेकिन पाठक आना चाहिए। इसका फ़ायदा अवश्य ही मिलता है।

कमाई की आवश्यक्ता तो सभी ब्लागर्स को है, यह दे्खने में आता है जिस पोस्ट का शीर्षक ब्लाग की कमाई से संबंधित होता है, उसमें उस दिन ज्यादा हिट्स आती हैं। इसका मतलब यह है कि लोग ब्लागिंग से कमाई चाहते हैं, लेकिन आवश्यक्ता है ब्लागिंग को समझने की। इस विषय पर हम भी अवधिया जी सहमति रखते हैं लेकिन ब्लागिंग से कमाई की शुरुवात तो कहीं से हो।

फ़िर चर्चा चली बेनामी महाराज की पापाजी, दादाजी, काकाजी, अम्माजी, फ़ूफ़ाजी, बड़े भैइय्या, अर्थात बेनामियों का पूरा कुनबा ही ब्लाग जगत में इकट्ठा हो गया है।

आचार्य उदय
अभी नए सज्जन पधारे हैं ब्लाग बाबु और आचार्य जी अमृतवाणी सुनिए, जानिए मै कौन हूँ। यह भी ब्लाग जगत का एक पहलु है कि लोग मायावियों की तरह मुंह छुपा कर घूमते हैं।

अभी की दो चार घटनाओं का भी जिक्र हुआ। ब्लाग जगत में हो रहे लेखन पर भी चर्चा हुई।

नापसंदी लाल के कारनामों पर भी प्रकाश डाला गया। राजकुमार सोनी ने अपने जीवन से जुड़े संस्मरण से सभी को जोड़ा और हँसा हँसाकर हिला दिया। रास्ते में अमृत वाणी सुनाते रहे। अरविंद झा, अजय सक्सेना, आचार्य उदय के साथ हम भी मजा लेते रहे अमृत वाणी का। गाड़ी चलती जा रही थी अमरकंटक मार्ग पर।

जी के अवधि्या जी चिंतन मुद्रा में
अमरकंटक जाने के लिए अचानकमार के 80 किलो मीटर के जंगल को पार करके जाना पड़ता है। यह रिजर्व फ़ारेस्ट है। इस जंगल में शाम 6बजे के बाद वाहनों का प्रवेश वर्जित है। फ़िर गेट बंद हो जाता है रुके हुए वाहन सुबह 6 बजे ही भीतर प्रवेश करते हैं।

प्रारंभ होता है अचानकमार का बीहड़ वन। यहां बिजली की लाईन नहीं है, अचानकमार वनग्राम वन के बीचों बीच स्थित है यह ग्राम सोलर उर्जा से प्रकाशित होता है, जगह जगह सौर उर्जा के पैनल दिखाई देते हैं उनसे प्रत्येक घर में जलाने के लिए एक सीएफ़एल दिया हुआ है।

सड़क के कि्नारे एक झोपड़ी में होटल है जहां बड़ा-भजिया चाय एवं-नानवेज मिल जाता है भूख मिटाने के लिए। हमें खाने का कोई परहेज नहीं है विषम परिस्थितियों में पेट भरने के लिए सामिष-निरामिष कुछ भी खा सकते हैं।

यहां शाम को ठंड हो जाती है तथा अक्तुबर में तो अचानकमार ग्राम में ओवरकोट पहना पड़ सकता है। एक बार हम यहां आए थे तो मुझे मालूम था कि ठंड का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए पूरी व्यवस्था के साथ गए थे। वैसे अचानकमार के जंगल देखने के लायक हैं।

जरुर कोई बात है अरविंद झा
हम एक घंटे के बाद निर्धारित स्थान पर पहुंच चुके थे। चारों तरफ़ पहाड़ियाँ और रमणीय वातावरण। अजय सक्सेना को किसी ने बता दिया कि यहां पर पास में कोई डैम है, वे वहां जाकर नहाने को तैयार हो गए। वैसे नदी इत्यादि में नहाने की इच्छा लेकर वे सुबह से ही घर से निकले थे, जब बिलासपुर पहुंचे तो अजय ने कहा था कि वे स्नान करने के लिए अलग से कपड़े लेकर आए हैं।

बिलासा की नगरी की अरपा नदी सूख चुकी थी उसमें तो अब रेत स्नान ही हो सकता था। विडम्बना देखिए बिलासपुर में अरपा डिस्टलरी भी है वहां कोई सूखा नहीं है वहां तो मय की गंगा बह रही है।

अब अजय को हमने मना कर दिया कि भाई अनजान तालाब,नदी, डैम की थाह नहीं होती इसलिए यहां नहाने इत्यादि का लोभ छोड़ देना चाहिए। कुछ देर तक बालहठ चला लेकिन फ़िर मान गए और हमने अपना डेरा जमा लिया।

खानसामा संतोष भोजन बना रहा था। पत्थरों को जोड़ कर चुल्हा बनाया और जंगल की लकड़ियां लेकर चूल्हा जला लिया। एक चूल्हे पर भात चढा दिया  दूसरे पर दाल और स्वयं नानवेज को सु्धारने लग गया। हमारे साथ एक वेजिटेरियन भी थे। उनके लिए बैंगन और आलू को भूनकर चोखा तैयार हो रहा था।

राजकुमार सोनी-निशाने पे नजर
आचार्य उदय ने चोखा की बहुत तारीफ़ की थी। इधर गाना चल रहा था" धीरे-धीरे मुर्गा सिके-चप्पा चप्पा चरखा चले" हा हा हा बस मौजां ही मौंजा। राजकुमार सोनी अचानक अपनी कुर्सी से उठकर भाषण देने लग गए, रंग कर्म जो उनकी रग-रग में बसा हुआ है, बस वह रंगकर्मी जाग गया था।

इधर अजय सक्सेना के घर से फ़ोन आ गया था जिससे वे समझाने में सक्सेस हो गए, हा हा हा बड़ा ही मजेदार माहौल था। जिन्दगी के एक-एक पल को जिया जा रहा था। कहीं पल छूट ना जाएं। किसी ने कहा है--

मौसम का क्या ठौर ठिकाना,जोड़े हाथ चला जाए
फ़ागुन बन आया था,वह सावन बनके छा जाए
पल हैं थोड़े,रस है ज्यादा,पीना लेकिन खोना ना
ऐसा न हो, गायक चुप हो और सुनने वाला गा जाए

बस ऐसा ही कुछ समय का बंधन हमारे साथ भी था। सभी ने भोजन कि्या। संतोष ने बहुत अच्छा खाना बनाया था। जंगल में मंगल करवा दिया। दूर चिड़ियों की चहचहाहट वातावरण को आनंददायी बना रही थी।

कालु कुत्ता-पार्टी के बाद मस्ती में
आलु बैंगन के चोखा में सब अपना हाथ मार रहे थे, सामने पड़ा हुआ चिकन इंतजार कर रहा था कि मेरी कुर्बानी भी किसी के काम आए। तभी अवधिया जी हाथ बढाया और चिकन को कुछ राहत मिली कि कोई तो कदरदान है उसकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी।

सेमल के पेड़ की घनी छाया में ठंडी हवा चल रही थी। एक वृक्ष चौड़े पत्तेवाली नीलगीरि का भी था। जिसकी खुश्बू वातावरण को महका रही थी. एक को छोड़कर बाकी ने चिकन पर हाथ आजमाया,

पास में ही कालू कुत्ता भी बैठ के जीभ निकालकर लार टपका रहा था कि बोटी नहीं सही हड्डियाँ तो खाने मिलेगी, आज उसकी भी पार्टी हो जाएगी। भोजन में आनंद आ गया। संतोष भी भोजन करवाकर संतुष्ट था कि मेहमानों को उसका बनाया भोजन पसंद आया और हम भी अपने आपको तृप्त महसूस कर रहे थे, लजीज भोजन करके।

भोजन करके हम चल पड़े अपनी वापसी की यात्रा पर, फ़िर एक नई यात्रा के मंसुबे बनाते हुए, पीछे छूट गया संतोष, कालू कुत्ता और सेमल-नीलगीरि का पेड़.

25 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा जोरदार रोचक यात्रा विवरण है...nice

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  2. सचमुच जंगलों में लाकर जिंदा कर दिया है ललित भाई ने।

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  3. अचानकमार की यात्रा अच्छी रही
    अवधिया जी के शीतल पेय के बोतल में क्या है?
    पापा, चाचा .. अम्मा जी की भी चर्चा की चलो अच्छा हुआ. कौन सा ये चर्चाओ से मानने वाले हैं ..
    कालू कुत्ता तो मस्ती में कम पर गस्ती में ज्यादा नज़र आ रहा है.

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  4. वाह बहुत ही बढ़िया वर्णन किया है आपने...
    आपलोगों ने बहुत ही अच्छा समय बिताया वहां...
    ब्लॉग्गिंग के कारण आपसी सम्बन्ध कितने अच्छे हो रहे हैं देख कर बहुत अच्छा लगा...
    फोटोस बहुत ही अच्छे आये हैं...चिकन और आलू बैंगन के भरते का भी होता तो क्या बात थी...
    आपका आभार...

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  5. @ M VERMA

    अवधिया जी की शीतल पेय की बोतल में है"दो घुंट जिंदगी की"
    याने हा हा हा "दो बूंद जिंदगी की" पोलियो ड्राप पियों खुश रहो।

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  6. महराज पाय लागी। हा हा हा हा हा जीवन्त चित्रण्। अ इ से लगे लगिस ज इ से महू हव तुहर सन्ग्। मजा आ गे। तेखर दई।

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  7. ओह!...तो वो आप ही थे जो अचानकमार के जंगलों में अचानक ही पहुँच गए थे ... :-)

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  8. आपने साबित कर दिया कि जब कॉलिज के दोस्त छूट जाएँ तो ब्लोगर बंधुओं के साथ मौज उड़ायें ।
    बहुत मस्ती रही ये तो । अवधिया जी क्या बोतल से नीचे हाथ नहीं लगाते ? हा हा हा !

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  9. सुन्‍दर चित्रण. चित्र भी लाजवाब.
    अचानकमार के जंगल में ब्‍लॉग विमर्श - आचार्य उदय और स्‍वामी ललितानंद तीर्थ साधु महराज की अध्‍यक्षता में - जंगल में मंगल - भक्‍तो का प्रेम. बहुत सुन्‍दर.

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  10. ...छा गये ललित भाई .... जय जोहार!!!!

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  11. अचानकमार का यात्रा वृत्तांत रोचक रहा. आभार.

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  12. अइसे लागत हे के तैं हा मोर बुढ़ापा के कुछु खयाल नइ राखस अउ मोर पूरा-पूरा छीछालेदर करवाच् के मानबे। :-)

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  13. ललित भाई,
    यात्राओं का जो वर्णन तुम करते हो उसका जवाब नहीं। एक प्रवाह रहता है। सबसे अच्छी बात यह है कि कही क्रम नहीं टूटता।
    आज रात को मैं फिर घर में बैगन और आलू का भरता खाने का विचार कर रहा हूं।
    एक कार्यक्रम और बनाओ... लेकिन थोड़ा रूककर.. बरसात में निकलना है।

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  14. बहुत जीवंत चित्रण किया है ..

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  15. wah, badhiya ghum aaye aap sab, badhiya vivaran,
    achanakmar jana hua tha tab jab is solar bizli ka udghatan tatkaleen CM ajit jogi ne kiya tha, coverage ke liye hi jana hua tha bas... ghumna nahi ho paya tha..

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  16. बहुत ही बढ़िया वर्णन किया है आपने...बहुत जीवंत चित्रण .....ललित भाई .... जय जोहार

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  17. बहुत खूब ललित भाई...आपकी लिखी यात्रा संस्मरण जब कभी भी पढ़ेगें हर बार उन मस्तीयों को याद करेंगे....

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  18. यात्रा विवरण दिया या हमें भी यात्रा में शामिल कर लिया... बहुते खूब...

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  19. अवधिया जी का फोटू बढ़िया है ।
    भैया कभी कभार हमे भी याद कर लिया करो ..।

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