Menu

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

चतुरानाऊ भोकवा पांड़े

चतुरानाऊ भोकवा पांड़े--भाग-1--यहाँ पढिए

सेठ चिरौंजी लाल और परसादी घर पहुंचे । सेठ ने माता जी का तेरहीं भोज बड़ी धूम धाम से किया और परसादी की बड़ाई सबके सामने जोर शोर से की। परसादी को सेठ ने बहुत कुछ दान दक्षिणा दिया। लेकिन परसादी के दिल में बदले की भावना पल रही थी। कब मौका मिले और सेठ का हिसाब चुकता किया जाए।
इधर दीवाली बीती और कटाई हो कर धान खलिहान में पहुंच गया। मौसम बदलने लगा। धान आने के साथ लोगों के मन में उमंग आ चुकी थी। अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीद रहे थे। यही समय इलाहाबादी पंडो के आने के भी होता है।
पंडा महाराज गाँव में पहुंचे, उन्होने परसादी ठाकुर का पता एक बालक से पूछा तो बालक ने महाराज को परसादी के घर पहुंचा दिया।
पंडा महाराज ने आवाज दी-“ठाकुर हो क्या? हम रामनिधि पाण्डे इलाहाबाद वाले आए हैं”
हांका सुनकर ठकुराईन ने बाहर आके तखत पर सोलापुरी चादर बिछाई, महाराज को पै लागी किया, और अंदर चली गयी। एक लोटा पानी लाकर रखा, पीछे-पीछे परसादी भी पहुंच गया-“ महाराज, पाय लागुं। कब पहुंचे? कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई रास्ते में”-परसादी ने एक साथ कई सवाल दाग दिए।
“अभी ही पहुंचे हैं, कोई तकलीफ़ नहीं हुई, सारनाथ एक्सपरेस में कई जजमान मिल गए थे। बस सेवा पानी लेते चले आए, और कहो कैसे हो”?
“आपकी कृपा से सब कुशल है महाराज, जाही पर कृपा राम के होई, ताही पर कृपा करे सब कोई”-परसादी रौ में आकर बोला।
“जाओ भई हमारी दक्षिणा का इंतजाम करो, अभी तो हमें बहुत जगह जाना है। विलंब मत करो।“
“इतनी क्या जल्दी है महाराज, पाँच गाँव की दक्षिणा है स्टॉम्प लिखाना पड़ेगा, नोटरी ओकिल के पास जाना पड़ेगा। कोरट कचहरी का काम है, आप जल पान किजिए और आराम करें, कोई तकलीफ़ नहीं होगी। तब तक मैं सेठ को बता कर आता हूँ”- कह कर परसादी चल पड़ा।
सेठ गल्ले पर बैठा था, कोई चाय गुड़ मांग रहा था तो कोइ माटी राख, कोई बीड़ी तम्बाखु, हो हल्ला हो रहा था। नौकर सामान दे रहे थे। सेठ रुपए पैसे का हिसाब कर रहे थे। सेठानी परदे के पीछे से सब पर नजर रखे हुए थी। तभी परसादी पहुंचा-“ राम राम सेठ जी।“
सेठ ने सिर उपर उठा कर देखा-“राम राम कैसे आए ठाकुर”?
“इलाहाबाद वाले पंडा महाराज आए हैं, चलिए अब उनका दान-दक्षिणा करना है।“
“अरे तुम तो वहां पाँच गाँव, 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर दक्षिणा एव भुर्सी दक्षिणा के 5000 रुपए का संकल्प करा आए थे। मैं कोई जमीदार या मालगुलार हूँ क्या? गाँव की दक्षिणा कहाँ से दूंगा।“
“जब संकल्प किया है तो देना ही पड़ेगा, नहीं तो बेईज्जती होगी और पंडा महाराज अपने बही खाता में लिख देगा तो तुम्हारी सैकड़ों पीढियों तक दाग लग जाएगा।“- परसादी बोला।
“तुमने ही मुझे फ़ंसाया था वहाँ, मैं तो नगद देकर पाँव पड़ लेता महाराज के। अब तुम ही निपटाओ मामला। मेरे बस का नहीं है।–“ सेठ चिरौंजी लाल ने खिसियाते हुए कहा।
“मामला तो मैं निपटा दुंगा, लेकिन एक शर्त है।“
“अब और कौन सी शर्त बाकी है तुम्हारी।“
“अगर तुम अपनी लड़की चम्पा की शादी मेरे लड़के अंकालु से कर दो तो मैं पाँच गाँव की दक्षिणा वाला मामला निपटा दूंगा।“ परसादी ने मौका देख कर अपनी चाल खेली।
“हरामखोर, तेरी इतनी हिम्मत हो गयी। साले तेरा खून पी जाऊंगा मैं।“ सेठ गल्ले से उठने लगा। तभी परदे के पीछे से देख रही सेठानी उसे पकड़कर अंदर खींच लिया।
“क्या तमाशा करते हो जी, जरा सब्र से काम लो। नाजुक समय है, दोनो तरफ़ से इज्जत खतरे में है, और इस नाऊ ने तो फ़ंसा ही दिया हमें। अगर दान-दक्षिणा नहीं देते हैं तो पुरखों की इज्जत जाती है और कुल पर कलंक लगता है और लड़की का हाथ देते हैं तो जग हंसाई होती है। जरा ठंडे दिमाग से बिचार किया जाए, मैं परसादी को सुबह बुलाती हूँ तब तक हम कुछ हल निकालने का प्रयास करते हैं।”
“इस विषय पर कल बात करेंगे ठाकुर, अभी सेठ जी का दिमाग बहुत गर्म है। कल सुबह आना।”- कह कर सेठानी ने परसादी को टाल दिया।
रात को भोजन करके सेठ सेठानी ने संकट पर विचार करना शुरु किया कि समाधान कैसे किया जाए।
“साले परसादी ने बदला लेने का बढिया तरीका ढुंढा है। उसका तो मैं खून पी जाऊंगा, भले ही जेल हो जाए।“-सेठ ने कहा
“मैने तुम्हे इतना समझाया लेकिन वही ढाक के तीन पात। अरे ठंडे दिमाग से काम लो। पाँच गाँव का हिसाब तो परसादी ही कर सकता है, तभी उसने यह पेंच फ़ंसाया है। उसके बिना काम चलने वाला नहीं है।“
“तुम कह तो सही रही हो, जिसे उत्तर मालूम होता है वही भरी सभा में सवाल खड़े करता है। तो क्या लड़की उसके हवाले कर दें, बिरादरी में नाक कटवा लें, एक नाऊ को समधी बना कर।“
“लखन महाराज की डॉक्टर लड़की ने हरिजन लड़के से कोर्ट में शादी कर ली, उसकी तो नाक नहीं कटी। बड़े मजे से गाँव में शान से रहता है कि उसका दामाद कलेक्टर है। बैसाखु मन्डल के लड़के ने डेरहु धोबी की लड़की से शादी कर ली, वह अब मजे से उसके घर में बहु बनी हुई है, उसे तो कोई फ़रक नहीं पड़ा। ऐसे पचीसों उदाहरण हमारे गाँव में हैं।“
“ये नाऊ का लड़का कौन सा कलेक्टर-डॉक्टर है, अभी तो पढ रहा है, क्या देख के लड़की दी जाए।“
“हो सकता है आगे पढ कर कुछ बन जाए, अभी उमर ही क्या है बच्चों की। एक काम करो, कल जब परसादी आए तो उसे कह दो, हमें तुम्हारा रिश्ता मंजुर है, मगर एक शर्त है, अगर लड़का पढ लिख कर साहब बन गया तो शादी पक्की, नहीं बना तो फ़िर जो हम चाहेंगे वो करेंगे। लड़की अभी नाबालिक है, इसलिए अभिभावक की जिम्मेदारी है उसके विषय में फ़ैसले लेने की।“
“हां तुम्हारी बात तो जच रही है, पहले इस झमेले से निपटा जाए।“ अब सोया जाए, सुबह देखेंगे।
सुबह 8 बजे परसादी पहुंच चुका था सेठ की दुकान पर, सेठ उसका बेताबी से इंतजार कर रहे थे।
“राम राम सेठ जी, हो गया फ़ैसला।“
“तुम्हारी शर्त मंजुर है परसादी, हम समधी बन सकते हैं।“
“रुको, जरा मैं सरपंच और पंचों को बुला लेता हूँ, उनके सामने ही बात होनी चाहिए, पंचायत गवाही रहेगी तो ठीक रहेगा।“
“बुला लो सभी को, मुझे कोई आपत्ती नहीं है।“-सेठ ने कहा
परसादी पंचायत को बुला लाया, सबके सामने करार हो गया, सेठ और परसादी गले मिले। सरपंच और पंच ने उन्हे बधाई दी। अब सेठ ने परसादी से पंडा महाराज की दक्षिणा निपटाने कहा। परसादी ने सोचा की वह मामला भी यहीं निपटा दिया जाए पंचायत के सामने, उपयुक्त रहेगा। उसने महाराज के लिए तखत लगाने कहा और उसे बुलाने चला गया।
परसादी महाराज को लेकर आया। तखत पर बैठते ही सेठानी ने पंडा महाराज के चरण पखारे, सेठे ने पैलागी किया। जल पान प्रस्तुत हुआ। परसादी सेठ से बोला-“ 500 रुपए दिजिए जो महाराज ने हमें नगद दिए थे किराए भाड़े के लिए, बस और कुछ नहीं। महाराज को मैं बिदा करता हूँ, खुशी-खुशी।
“महाराज ये 500 रुपए रखिए, जो आपसे नगद लेकर आए थे और मैं घर से तुरंत आता हूँ, आपकी बाकी व्यवस्था करके।“-कहके परसादी अपने घर चला गया। वहां से उसने अपने औजारों की पेटी उठाई और पंचायत में लाकर पंडा महाराज के आगे धर दी।
“ये क्या है? नाऊ पेटी, इसका मैं क्या करुंगा?-महाराज ने कहा
“यही तो काम की चीज है महाराज, इसका संबंध आपकी दक्षिणा से है। मैं पाँच गाँव में सालाना स्थाई तौर पर नाई का काम करता हूँ जिसके एवज में मुझे सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलते हैं। आज से ये पाँच गाँव आपके हुए, वहां अब काम शुरु करिए, आपको सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलेंगे। मैं और कोई काम कर लुंगा। ये पाँच गाँव वचन अनुसार आपको समर्पित करता हूँ…………..।

22 टिप्‍पणियां:

  1. आज से ये पाँच गाँव आपके हुए, वहां अब काम शुरु करिए, आपको सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलेंगे।
    ...... हा हा हा , मार दिया पापड़ वाले को ... एक तीर में दो शिकार ... बाह रे चतुरा ... शर्मा जी कहानी इतनी जबरदस्त और कसी हुई है कि लगातार अपने साथ लिए रहती है ,... ग्राम्य जीवन को बहुत नज़दीक से देखने समझने का आपका अनुभव स्पष्ट झलकता है ... समाज में हो रहे परिवर्तन के प्रति स्वीकार्यता और बदलते परिवेश को चित्रित कहानी बेहद सटीक बन पड़ी है ... एक सलाह है ... दुसरे भाग के प्रारम्भ में पहले भाग का लिंक या संक्षिप्त विवरण दें नए पाठकों की सहजता के लिए ...
    पुनश्च ... बहुत अच्छी कहानी

    जवाब देंहटाएं
  2. पोस्‍ट में कहानी की पिछली कडी का लिंक भी डाल दीजिए .. ग्राम्‍य जीवन के कई सच को उजागर करती हुई अच्‍छी वास्‍तविक सी लग रही है ये कहानी !!

    जवाब देंहटाएं
  3. चौपाल और बाबा ईया, नाना, नानी की कहानी का मज़ा है इसमें ।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. आज से ये पाँच गाँव आपके हुए, वहां अब काम शुरु करिए, आपको सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलेंगे। मैं और कोई काम कर लुंगा। ये पाँच गाँव वचन अनुसार आपको समर्पित करता हूँ…………..।

    अरे वाह! आपकी कहानी का पात्र परसादी तो बड़ा चालाक निकला.

    जवाब देंहटाएं
  5. रोचक शैली में अच्छी कहानी!

    वैसे भी हमारे छत्तीसगढ़ में कहा जाता हैः

    पक्षी में कौवा अउ आदमी में नौवा!

    जवाब देंहटाएं
  6. kahani series bahut achhi rahi....gramin parivesh kaa yathaarthpurn chitran....bahut badhiya.

    जवाब देंहटाएं
  7. ऐसे ही नहीं नाईयों को चतुर कहा जाता था ...:):) बहुत बढ़िया कहानी ...

    जवाब देंहटाएं
  8. समझदारी इसे कहते है, :) बढ़िया कहानी ललित जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. नाईयो ने घाट घाट का पानी पिया होता है, ओर रोज कितने तरह के लोगो से मिलते है ....तो चलाक तो होंगे ही, अभी पहली किस्त भी पढ कर आता हुं, राम राम जी की

    जवाब देंहटाएं
  10. अरे आपने तो अंतिम भाग लिख दिया है शीर्षक में ....... थोडा और आगे सुनते कहानी को अभी तो मज़ा शुरू हुआ था ........खैर बहुत ही बढ़िया कहानी है जी .......मज़ा आ गया पढ़ कर !

    जवाब देंहटाएं
  11. हा हा हा ..सही हजामत कर डाली नाऊ ने ..रोचक शैली में लिखी कहानी .

    जवाब देंहटाएं
  12. क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी" का क्लिक कोड अपने ब्लॉग पर लगाया हैं?

    हमारीवाणी एक निश्चित समय के अंतराल पर ब्लाग की फीड के द्वारा पुरानी पोस्ट का नवीनीकरण तथा नई पोस्ट प्रदर्शित करता रहता है. परन्तु इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है. हमारीवाणी में आपका ब्लाग शामिल है तो आप स्वयं क्लिक कोड के द्वारा हमारीवाणी पर अपनी ब्लागपोस्ट तुरन्त प्रदर्शित कर सकते हैं.

    कोड के लिए यहाँ क्लिक करें

    जवाब देंहटाएं
  13. कहानी का सार, सबसे पंगा ले लेना पर नाई से नहीं। हर महीने उसके उस्तरे के नीची सर देना पड़ता है।

    जवाब देंहटाएं
  14. हमने तो पिछली ही पोस्ट में कह दिया था कि ये परसादी तो संपूर्ण ताऊत्व को प्राप्त आत्मा है.:)

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  15. dono kishtein padhi maine... badhiya kahani.
    vaise bhi aadarniy avadhia ji ne jo kahaa uske baad kuchh kahne ko baaki nahi bachta....

    shukriya.....

    जवाब देंहटाएं
  16. मस्त शैली है भई..आनन्द आ गया.

    यही तो काम की चीज है महाराज, इसका संबंध आपकी दक्षिणा से है। मैं पाँच गाँव में सालाना स्थाई तौर पर नाई का काम करता हूँ जिसके एवज में मुझे सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलते हैं। आज से ये पाँच गाँव आपके हुए, वहां अब काम शुरु करिए, आपको सालाना 5 गाड़ी धान और 2 बोरा मसूर एवं 5000 रुपए नगद मिलेंगे। मैं और कोई काम कर लुंगा। ये पाँच गाँव वचन अनुसार आपको समर्पित करता हूँ……



    -बहुत सटीक दिया. आनन्द आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  17. namaste... meri hindi itni achchi nahin hain lekin koshish kartha hoon :-)

    aapki ek help chahiye thi... mein indiblogger me ek contest me

    bhaag le raha hoon aur aapki vote ki bohut zaroorat hain..
    krupya post padkar zaroor vote karein...

    http://www.indiblogger.in/indipost.php?post=30610

    bahut bahut dhanyavaad... bahut mehebaani hogi...

    जवाब देंहटाएं
  18. आपकी लेखन शैली हमेशा ही रोचक रही है| यह कहानी बहुत ही पसंद आयी | कहानी हेतु आपका आभार |

    जवाब देंहटाएं