केवल राम के ब्लॉग चलते चलते से लौट कर बगैर मीटर और हेड लाईट की गजल। कृपया प्रकाश डालें।
जाने वो क्या मजा है पीने पीलाने में
जो एक बार हो आया हो मयखाने में।
वाईज औ पंडित गले मिलते देखे हमने
दीवानों की महफ़िल जमती मयखाने में
ईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
मयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
रफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
रकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
वरना क्युं आते सर ए आम मयखाने में
जाने वो क्या मजा है पीने पीलाने में
जो एक बार हो आया हो मयखाने में।
वाईज औ पंडित गले मिलते देखे हमने
दीवानों की महफ़िल जमती मयखाने में
ईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
मयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
रफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
रकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
वरना क्युं आते सर ए आम मयखाने में
बढिया लिखा है :)
जवाब देंहटाएं"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
जवाब देंहटाएंवरना क्युं आते सर ए आम मयखाने में
...नशा नशा नशा नशा बस नशा.....बहुत सुन्दर कविता
आपका भी जवाब नहीं ललित जी आपने भी चलते चलते कविता रच डाली
जवाब देंहटाएंईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
जवाब देंहटाएंमयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
सही कहा है भाई ......क्या मजा आता है पीने और पिलाने में .....मेरे ब्लॉग का नशा आपको भी चढ़ गया ना ..चलो दोनों बैठ कर पीते हैं और पिलाते हैं ...फिर दिल की बात सबको बताते हैं ...हा..हा..हा.!
bahut badhiya gazle hai aapke khazaane mai
जवाब देंहटाएंhamne padhi ab le chalo kisee maykhane mai
mazaa nahee laddu pede kachauree khane mai
vo mazaa aata hai saaki tere maykhaane mai
वाह वाह
जवाब देंहटाएंDr Satyajit Sahu -- By mail
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा ......................अब ललित जी है रूमी और बच्चन के बाद .............................कुछ और अध्यातिम्क रहस्यों को इस प्रकार की शराब बनाकर दीजेये
वाह हिच्च, हिच्च, वाह बाकी हम टून्न है, कल बतियाते है हिच्च हिच्च, लेकिन वाह ....वाह
जवाब देंहटाएंअब न रहे वो पीने वाले अब न रहा वो मयखाना । पीकर रोड मे गिरने वालो मे बदनाम कर दिया । वरना हम पियक्कड़ भी नामचीन थे
जवाब देंहटाएंबहुत खूब दादा बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंमैने उसे मेल की थी इसके बारे मे कि ये गज़ल नही है। वो निरुत्साहित न हो इस लिये ब्लाग पर कुछ नही कहा था। आभार
जवाब देंहटाएंमीटर तो इसे हम भी नही लगा सकते उसके लिये किसी उस्ताद से पूछें मगर भाव अच्छे हैं।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्या बात है उर्दू भी बुरी नहीं आपकी..मीटर वीतर का हमें पाता नहीं.
जवाब देंहटाएंकमाल की है भैया बिना मीटर और हेड लाइट की ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएं" पिला दे ओंक से साकी जो हमसे नफरत है !
जवाब देंहटाएंप्याला गर न देता न दे ,शराब तो दे !"
पिने वाले को पिने का बहाना चाहिए ! चाहे शराब हो, चाहे लस्सी हो, सब चलता है
kyaa bat hai jnaab nshaa shaayri kaa hotaa to naachte lebtop kmpyutar bhtrin likh daali hai gzal . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
जवाब देंहटाएंवरना क्युं आते सर ए आम मयखाने में
-और क्या...दीवानगी ही तो है....बेहतरीन.
ग़ज़ल तो प्रकाशित होकर चमक रही है, इस पर और प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है।
जवाब देंहटाएंगजल भी तो कहला देती है यह.
जवाब देंहटाएंरफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
जवाब देंहटाएंरकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
खूब कहा आपने....
हम सजायेगे अपना मय खाना,
जवाब देंहटाएंवहां सारी रात नाचेगे गायेगे,
रकीब भी रफीक हो जाते मयखाने में ...
जवाब देंहटाएंयूँ ही नहीं लिख जाती है मधुशाला ...
लय, विलय, प्रलय इसी मयकाने में।
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