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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

पांडे के पोथी पतरा अऊ पंडियाईन के मुखगरा -- ललित शर्मा

सुबह-सुबह कम्प्युटर का बटन दबा कर अंतरजाल से जुड़े ही था कि श्रीमती जी ने टेबल पर सरोता ला कर रख दिया। हम सरोता देखते ही समझ गए कि आज कैरियाँ जिबह करनी पड़ेगीं अचार के लिए। साथ ही उन्होने कह दिया कि पेड़ से कैरियाँ भी तोड़नी पड़ेगीं। आदेश का तत्काल पालन किया और दादी ने कैरियाँ तोड़ी उदय ने सायकिल की टोकरी में रख कर घर पहुंचाया। अचार के लिए पेड़ से हाथ से तोड़ी गयी कैरियाँ ही श्रेष्ठ होती है। पेड़ से जमीन पर गिरी हुई कैरियों का अचार सड़ जाता है। इधर मैने सरोता संभाल लिया। मनोयोग से कैरियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। श्रीमती जी मसाले तैयार करने में जुटी थी। अचार बनाना श्रम साध्य कार्य है। भोजन का मुख्य अंग होने के कारण अचार का प्रचलन सम्पूर्ण भारत में है। लेकिन घर के बने अचार की तो बात ही निराली है। बनाते वक्त सावधानी भी रखनी पड़ती है, नहीं तो फ़फ़ूंद लग कर सड़ने का खतरा निरंतर बना रहता है। बाजार के अचार तो खाने लायक ही नहीं रहते। घर के बने अचार की विशिष्टता यह है कि एक तरह का मसाला डालने के बाद भी अलग-अलग घरों के अचारों में स्वाद का बदलाव पाया जाता है।

एक बार हरिद्वार में हर की पौड़ी के पास मैने एक अचार की दुकान देखी थी। जिसमें तरह-तरह के अचार बरनियों में सजे थे। अचार देखकर लालच आ गया और सोचा कि कुछ अचार ले लिए जाए। आम, नींबू, मिर्च, कटहल, गोभी, करील, केर, गाजर, सिंगरी और भी न जाने कितने तरह के अचार थे। मैने सभी आचार 100-100 ग्राम लिए। वहाँ से मुझे मसूरी तक की यात्रा करनी थी। रास्ते में अचार का स्वाद लिया जाएगा सोच कर बैग के हवाले किया और चल पड़े। द्रोणाचार्य गुफ़ा (झंडु नाला) के पास बैठ कर सभी अचारों का स्वाद लिया। किसी भी अचार में पृथक स्वाद नहीं मिला। सब में एक जैसा ही स्वाद था। पूरा मजा किरकिरा हो गया। तब जाकर घर के अचार का महत्व समझ में आया। घर के बने अचार के तो कहने ही क्या हैं।

कल 25 अप्रेल का दिन था, इस दिन वैवाहिक बंधन में बंध कर स्वेच्छा से अपनी स्वतंत्रता को खोया था  कुछ बंधन जीवनोपयोगी होते हैं। इसमें वैवाहिक बंधन को पवित्र बंधन माना गया है। वैवाहिक जीवन में आचार और सरोते का बड़ा महत्व है। अचार से ही आचार संहिता बनती है, जिसमें प्रेम, विश्वास, सम्मान, समर्पण, एवं परिवार के प्रति जिम्मेदारियों के निर्वहन का संकल्प इत्यादि मसाले डाले जाते हैं त्तब कहीं जाकर ग़ृहस्थी नामक अचार का निर्माण होता है। जिस तरह किसी राष्ट्र को चलाने के लिए स्वनिर्मित संविधान की प्रमुख भूमिका होती है ठीक उसी तरह गृहस्थी को चलाने के लिए स्वनिर्मित आचार संहिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वघोषित आचार संहिता के सहारे बिना किसी विघ्न बाधा के जीवन नैया खेते हुए वैतरणी पार हो सकते हैं।

हाँ! एक बात है सरोता का ध्यान रखना पड़ता है। यह सरोता सिर्फ़ काटने का ही काम करता है, जोड़ने के काम तो इसकी प्रवृति में ही नहीं है। इसका निर्माण काटने के उद्देश्य से ही हुआ है। इसे चलाते वक्त नजर चूकी और यह घायल करने से नहीं चूकने वाला। इस तरह सरोते का प्रयोग करते हुए सावधानी जरुरी है। समाज में सरोते जगह-जगह मिल जाएगें जो अवसर मिलते ही आपके विश्वास को काटने का प्रयत्न करते हैं। इन सरोतों से निपटने के लिए व्यक्ति को अच्छा श्रोता होना जरुरी है। तभी सार्थक चिंतन कर नीर-क्षीर किया जा सकता है। इतिहास गवाह है राम राज में भी ऐसे ही एक सरोते ने सीता की अग्नि परीक्षा कराई थी। सरोते ने अपना काम कर दिया। आगे अब तुम भुगतो। भगवान को भी गहरा संताप सहना पड़ा। सरोते का कुछ नहीं बिगड़ा, वह आज तक चल रहा है, जैसा पहले चला करता था।

सरोते कई तरह के होते हैं, छोटी सरोती से लेकर बड़े सरोते तक मिलते हैं। सुपारी आम काटने वाले से लेकर मधुर संबधों को भी काटने वाले सरोते मिलते हैं। सरोते ऐसा नहीं है कि दाम्पत्य जीवन में ही मिलते हैं वे तो आपको प्रत्येक जगह मिल जाएगें। सरोते को साधकर आचार संहिता का पालन करते हुए अब हमारी गृहस्थी बालिग हो चुकी है। समाज में तरह-तरह के सरोते मिलते हैं, प्राचीन काल का विभीषणी सरोता प्रसिद्ध है, इसने ही अपने भाई रावण का सर्वनाश कराया था। वर्तमान में जयचंदी सरोते चलन में हैं, जो घर परिवार से लेकर देश का सर्वनाश करने पर आमादा हैं। विभीषणी एवं जयचंदी सरोते मौका देखते ही काम कर जाते हैं। पर विडम्बना यह है कि इनसे काम पड़ ही जाता है, घर में ही संभाल कर रखना पड़ता है। आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसी भी मांग कर ले जाते हैं, लेकिन वापस कर जाते हैं। घर में रखना खतरे से खाली नहीं है।
सरोते से काम ले लिया। आम काट कर अचार बना लिया। घर में था इसलिए फ़टाफ़ट काम आ गया नहीं तो पड़ोसी से मांग कर लाना पड़ता। श्रीमती जी ने वर्षगांठ की सुबह ही सरोता सामने रख कर चिंतन करने पर मजबूर कर दिया। श्रोता को भी सरोता कहा जाता है। श्रोता वाला सरोता बनने में कोई बुराई नहीं है। अच्छा सरोता सभी पसंद करते हैं, अच्छा सरोता ही उम्दा वक्ता होता है। पांडे के पोथी पतरा अऊ पंडियाईन के मुखगरा, दुनो एकेच होथे। (पंडित जी जो पोथी पत्रा देख कर बताएंगे वह पंडिताईन मुंह जबानी ही बता देती है) क्योंकि पंडिताईन ने सरोता होने का मरम जान लिया है। इनके फ़जल से मैं भी अच्छा सरोता बनने के उद्यम में हूँ। क्योंकि वर्षगांठ पर इससे अच्छा तोहफ़ा कोई दूसरा नहीं हो सकता। आखिर कहना ही पड़ेगा सरोता जिंदाबाद।

27 टिप्‍पणियां:

  1. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत शुभकामनायें ...

    घर के बने अचार और वो भी माँ के हाथ के , बात ही और होती है ...एक कैरी से ही विभिन्न प्रकार के अचार बन जाते हैं ...
    कैरी काटने और नेह बंधना काटने के सरौतों पर अच्छा प्रकाश डाला !

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  2. अरे महाराज....वैवाहिक वशगांठ इतने दबे छुपे मना गये...पार्टी कहाँ है?


    बहुत बधाई और शुभकामनाएँ...अचार तो खैर घर का क्या होता है....बरसों बीते स्वाद भूले...अम्मा ले गई अपने साथ.

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  3. आपकी इस पोस्ट ने गाँव के वे मस्त दिन याद दिला दिए ! वैवाहिक वर्षगाँठ पर हार्दिक शुभकामनायें ललित भाई !

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  4. जय हो!
    हमें कहाँ हाथटूटी कैरियाँ नसीब। इधर मंडी में तलाशते हैं।
    कैरी का अचार तीन बार बन चुका है इस मौसम में। साल भर वाला तो मई के अंत तक बनेगा।

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  5. वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. bahut hi badhiya wishleshan , sarota aur shrota ka ! waivahik warshganth ki badhai ....!

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  7. lalit ji

    bahut hi accha lekh .. daampatya jeevan ki mahaata ko aapne bakhubhi , acchar aur sarote ke maadhyam se bataya hai ..
    aapki lekhni me bhi sarote jise hi dhaar hai ..

    aur haan varshghaanth ki shubhkaamnaye .. party udhaar rahi sir..

    aapka
    vijay

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  8. अचार संहिता के माध्यम से गृहस्थ जीवन की सफलता की अच्छी व्याख्या की आपने....विवाह की 25वी% सालगिरह मुबारक हो.

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  9. गुरूदेव अगली बार रायपुर आयें तो अचार जरूर साथ लायें मुह मे पानी आ चुका है कोई बहाना नही चलेगा

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  10. "जिस तरह किसी राष्ट्र को चलाने के लिए स्वनिर्मित संविधान की प्रमुख भूमिका होती है ठीक उसी तरह गृहस्थी को चलाने के लिए स्वनिर्मित आचार संहिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। स्वघोषित आचार संहिता के सहारे बिना किसी विघ्न बाधा के जीवन नैया खेते हुए वैतरणी पार हो सकते हैं।"
    अचार संहिता के माध्यम से गृहस्थ जीवन, समाज, राष्ट्र और धर्म की एक साथ व्याख्या वाह .... बहुत अच्छी जानकारी भरी पोस्ट...

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  11. विवाह की 25वीं सालगिरह पर सरौता पुराण ?

    बधाईयां स्वीकार करें...

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  12. सबसे पहले विवाह की वर्षगाँठ की बधाई .
    दाम्पत्य जीवन को अचार और सरोतें से खूब जोड़ा है .
    और बाजार के सारे आचार का स्वाद एक सा होता है ये बिलकुल ठीक कहा.मजा ही नहीं आता बस नमक नमक ही लगता है.
    कुल मिलाकर एकदम बढ़िया मसालेदार आचार में माफिक पोस्ट..

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  13. vivah ki varshganth par hardik shubhkamnayen.....ab to har ghar me sarote hi nahi paye jate....par varshganth aur sarote ke bahane achchha vishleshan.

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  14. आम का अचार मेरा फेवरेट है, आपने उसकी याद दिला कर मुंह में बाढ़ की सी स्थितियां उत्‍पन्‍न कर दी हैं।

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    देखिए ब्‍लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
    अंधविश्‍वासी आज भी रत्‍नों की अंगूठी पहनते हैं।

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  15. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

    अचार के विवरण ने तो मुहँ में पानी ला दिया...:)
    और सरोते से कैरियां काटी जाती हैं....ये बिलकुल नई जानकारी थी...मैने तो पान के लिए सुपारी काटते ही देखा है...

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  16. वाह अचार, गृहस्ती और विभिन्न प्रकार के "सरोता" के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हुआ... रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए सादर आभार |

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  17. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

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  18. अरे अरे यह सरोता देख कर तो हमारी जान ही निकल गई, पहले तो यह तोप ही लगी जब ध्यान से देखा तो लगा कि पुराने जमाने मे इस से केदियो की गर्दन..... लेकिन आप का लेख पढ कर पता चला की यह तो आम काटने का सरोता हे,वैसे घर मे बनी हर चीज स्वाद होती हे बाजार वाले पता नही कहां कहां से घटिया माल ला कर बनाते होंगे, बाकी आप दोनो को विवाह की वर्षगाँठ की बधाई ,

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  19. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत शुभकामनायें

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  20. शूटर एट पिकल (अचार) साइट...

    ये सौ-सौ ग्राम अचार लेकर भारत में ही भ्रमण ठीक है...कभी विदेश जाते वक्त ये भूल मत कर बैठिएगा...

    जय हिंद...

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  21. अरे क्यो भाई खुशदीप जी, विदेश मे हम ने दस किलो तक आम का आचार साथ मे लाये हे, अगर यकीन नही तो , हमारे लिये अलग से बनवा के रख ले, सर्दियो मे हम उसे यहां ले आयेगे, मेरे पास अभी तक मां के हाथ का बना आचार पडा हे करीब ७ साल पुराना, स्वाद बहुत खुब, लेकिन यहां हम लोग आचार बहुत कम खाते हे...डरो नही, लेकिन लाने से पहले सलाह कर ले, तरीका हम बता देगे,मना भी नही हे

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  22. वैवाहिक जीवन की एक और सीढ़ी ऊपर चढ़ जाने के लिये हार्दिक बधाई ललित जी ! आम के अचार का मसालेदार वृत्तांत और सरौते की मारक महिमा का विश्लेषण बहुत अच्छा लगा ! मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  23. विवाह की वर्षगाँठ के दिन सुबह-सुबह सरोता? अच्‍छा प्रयोग है। हमारे पास भी ऐसा ही था लेकिन उसका लकडी का बेस खराब हो गया तो अब बिना सरोते के ही हैं। लेकिन एक बात बताए, कहते हैं कि एक बारिश हो जाए तब अचार डालना चाहिए और आपने तो शुरुआत में ही अचार डाल लिया? विवाह की वर्षगाँठ पर अचार भी खाइए और मुरब्‍बा भी बनाइए।

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  24. निःसंदेह...यह अचार सबसे अधिक स्वादिष्ट होगा...

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  25. सरौते की महिमा बहुत बढ़िया रही ...घर पर बने अचार का तो कोई मुकाबला ही नहीं ...अब दिल्ली में आम का पेड़ कहाँ से लाएं ..हमें तो गिरी हुई कैरियों पर ही संतुष्ट होना पड़ता है

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