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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

निगाह जलती हुई ढिबरी पर -- ललित शर्मा

कनागत (पितृ पक्ष) समाप्त होते ही घरों में साफ़-सफ़ाई का कार्य प्रारंभ हो जाता है। दीवाली ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें घरों की सालाना मरम्मत होती है, छबाई-मुंदाई के साथ-साथ लिपाई पोताई। सभी घरों में एक साथ ही काम चलता है। इसके साथ फ़सल पकने का समय भी आ जाता है, खेत में पानी पलाने से लेकर, पैरा डोरी (धान का बोझा बांधने की रस्सी) बांटने का काम द्रुत गति से जारी रहता है। हरुना धान (जल्दी पकने वाला) आने के कारण भराही गाड़ा भी चलता है। किसान भी चाहता है कि दीवाली से पहले कुछ धान घर में आ जाए तो बेचकर दीवाली का त्यौहार ठीक-ठाक सामर्थ्य के अनुसार मना लिया जाए। चारों तरफ़ काम बोझ, मजदूरों के अभाव में निठल्लों की मौज हो गयी, काम कम और दाम अधिक, रामराज्य के 2 रुपए चावल का असर इतना अधिक हुआ कि दीवाली पर साफ़ सफ़ाई करने के लिए मजदूर ही उपलब्ध नहीं हैं। एकाध मिल गया तो बड़ी बात। अब लगता है कि अपना हाथ जगन्नाथ ही ठीक है।
वाश बेसिन का नल खराब हो गया, चूड़ी जाम होने के कारण मेरे से खुला नहीं। उसे अब काट कर निकालना पड़ेगा। तीन दिनों से प्लम्बर को ढूंढ रहा था। शाम को वह एक दुकान में बैठा मिल गया। बोला कि कल सुबह मुझे मोबाईल पर मिस काल कर देना पहुंच जाऊंगा। इधर व्यस्तता बढने के कारण सुबह उसे मिस काल नहीं दे पाया। शाम को फ़ोन लगाने पर उसने बताया कि ड्रिंक कर लिया हूँ, पीछे से मुर्गों के बासने की आवाज आ रही थी। मैने कहा कि त्यौहार की तैयारी हो गयी क्या? मुर्गे को झटका देने का टैम आ गया? बोला कि- अब काम में नहीं आ सकता, एक जगह दस हजार में ठेका लिया था, काम पूरा होने के बाद भी मजदूरी नहीं दे रहा है, दो दिन से साहब को बोल रहा हूं, मजदूर सिर पर चढाई कर रहे हैं। इसलिए आज उनकी सेवा (दारू सेवा) कर दिया। दो चार दिन सेवा का असर रहेगा तब तक मजदूरी मिल जाएगी। वाश बेसिन का नल निर्बाध चल रहा है। :)

पेंटर के पहुंचने पर पेंटिग का सामान लेने गया। उसका बताया सामान लेकर आया। हॉल में बरसों से एक ही रंग लग रहा है। दूकानदार से वाईल्ड लीलाक कलर मांगा। एसियन पेंट का डिब्बा उसने थमा दिया, दो लीटर के पैक पर 1188 रुपए मूल्य लिखा था, उसने मेरे से 120 रुपए लिए, मैने सोचा की माल सस्ता हो गया है। घर लाने पर पेंटर ने देखा कि रंग तो पहले लगे रंग से मैच नहीं कर रहा था। उसे लौटाने के लिए फ़िर जाना पड़ा। मैने दुकानदार से कहा कि - सब नकली माल रख रखा है, वह बोला असली ही है, बड़े पालिथिन पैक की पैकिंग फ़ूट गयी इसलिए 2-2 किलो के डिब्बे में डाल दिया था। अब असलियत सामने आ गयी। एसियन पेंट के डिब्बे में नकली माल धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। मैने दूसरा डिब्बा लिया, वो एसियन का ट्रेक्टर ब्रांड था, डिब्बा पहचान में आ गया, यही लगता है हमेशा। मतलब दीवाली के नाम पर धड़ल्ले से ठगी जारी है। उसे दो-चार गालियाँ दी कि-तुम सुधरने वाले नहीं हो।

बाड़े में घास अधिक हो गयी, लगातार बरसात होने के कारण उसका उपाय नहीं हो सका, कुछ कांग्रेस घास(गाजर घास) के बीच भी बह कर आ गए और घर के आस-पास उग गए। उदय इनके बीच ही सायकिल चलाता है, मना करने पर भी नहीं मानता, पिछले हफ़्ते रोज रात को खांसता था, एक दिन कहने लगा कि डकार नहीं आ रही, बड़ा व्याकुल दिखा, उसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि एक फ़ेफ़ड़े में कफ़ जमा हो गया है। 5 दिन दवाई लेने के बाद ठीक हुआ, यह गाजर घास का दुष्प्रभाव था, लगभग डेढ एकड़ की घास साफ़ करने के लिए मजदूर तो मिलना मुश्किल था, इसलिए घास खत्म करने वाली दवाई छिड़कने के लिए एक मजदूर बुलाया, दवाई कुछ मंहगी है पर घास का उपचार अच्छी तरह से कर देती है। बस छिड़कने के बाद दो-चार घंटे तक बरसात नहीं होनी चाहिए, दवाई छिड़कने का शुरु हुआ तो एक घंटे बाद ही जमकर बरसात हुई, दवाई सब धुल गयी। मतलब गयी भैंस पानी में। करलो खेती, भर लो दंड। आस पास की गाजर घास की छिलाई करवानी पडी, अब फ़िर किसी दिन दवाई का उपयोग किया जाएगा।

दीवाली चोरों के लिए भी है, चोरी उनकी पेट रोजी है, जो भी मिल जाए दीवाली के समय, उठाओ और चलो। पुलिस को दीवाली खर्चा उपर तक पहुंचाना पड़ता है। पिछली दीवाली पर शाम को मैं कहीं गया हुआ था, शालिगराम जी आए थे, जब घर वापस आया तो वे गेट के बाहर खड़े मिले। मुझे किसी अनिष्ट की आशंका हुई, पहुंचने पर उन्होने बताया कि बाड़े में चोर घुसे और कार की हेडलाईट निकाल रहे थे, खट-पट की आवाज सुनकर माता जी बाहर आई तो वे भाग गए, देखा तो कार की लाईट सलामत थी पर स्कूटर की हेडलाईट गायब थी। छोटी सी चोरी के लिए क्या पुलिस थाना जाएं, लोग बड़ी-बड़ी चोरी होने पर नहीं जाते, कौन झमेला करे? थ्री चीयर्स के बाद चोरों के मोहल्ले में ही पहुंच गया। चोरों के सरदार की खबर ली और कहा कि सुबह तक स्कूटर की हेडलाईट कौन ले गया है? मुझे खबर कर देना। सुबह जब सो कर उठा तो गेट के सामने स्कूटर की हेडलाईट लिए दो बंदे खड़े थे, उनका मुखिया बोला- माफ़ कर देना महाराज, ये मेरा दामाद है, अनजाने में इधर चोरी करने घुस गया, कुछ दीवाली खर्चा-पानी निकालने।

थाने के मुंशी को चोरों के ठिकाने का पता था और याराना भी, क्योंकि मुखबिरी भी इनसे ही करानी पड़ती है। एक बार दीवाली पर छेदक चोरहा का दांव कहीं नहीं लगा। दीवाली सूखी ही जा रही थी, मुंशी रोज पहुंच जाता था दीवाली खर्चा के लिए, कभी सिपाही भेज देता था। हलाकान होकर छेदक ने मुंशी के घर पर ही हाथ साफ़ कर दिया। मुंशी चोर ढूंढता रहा, उसे पता ही नहीं चला किसने चोरी की। छेदक के घर पहुंचा, वहाँ जुआ की महफ़िल जम गयी, मुंशी भी ढिबरी की लाईट में दांव पर दांव लगाने लगा। अचानक उसकी निगाह जलती हुई ढिबरी पर पड़ी, उसने पहचान लिया कि ढिबरी तो उसी के घर की है :), छेदक से पूछताछ की तो उसने बता दिया कि उसी के घर का माल है। मुंशी उसे पकड़ कर थाने ले गया तो दरोगा साहब से छेदक चोरहा ने सच-सच बता दिया कि मुंशी और सिपाही रोज हलाकान करते थे तो मुझे मजबूरी में मुंशी की वाट लगानी पड़ी। मतलब यह है कि दीवाली पर काम के साथ खर्च भी बढ जाता है। खर्च पूरा करने के लिए इंतजाम तो करना पड़ता है।


25 टिप्‍पणियां:

  1. सारे के सारे मतलब समझ आ गए ...मतलब ये है कि दिपावली की बधाई और शुभकामनाएं आप और आपके पूरे परिवार को :-)

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  2. इन सब मोरचों पर फतह करने का ही उत्‍सव है दीवाली.

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  3. कम से कम दिवाली पर तो सब निठल्ले काम पर लाग ही जाते है|

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  4. यह तो सच लिखा है आपने ! एक बार मेरा पर्स जेबकतरे ने साफ़ कर दिया था , एरिया एस एच ओ की पत्नी से सिफारिश करवाने पर अगले दिन पर्स घर पर आ गया !
    हाँ , पैसे जरूर गायब थे मगर पेपर आदि सुरक्षित थे ! पैसे बँट गए होंगे !
    शुभकामनायें !

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  5. धान सस्ता मिलने से और कमाने की चाह भी जाती रही।

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  6. दिवाली मतलब आम इंसान का दिवाला !

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  7. देवारी के तियारी म घर भर माते हवे लागत हे....
    बधई...

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  8. दिवाली की अच्छी तैयारी हो रही है ... स्कूटर की हैड लाईट वापस मिल गयी ... यह आश्चर्य की बात लगी ..

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  9. यही कामना है, सभी के जीवन का एक - एक पल दीप के आलोक से प्रकाशित हो और मन और जीवन लक्ष्मी की विभूति से परिपूर्ण... सुन्दर पोस्ट

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  10. वाह... त्योहारों के साइड इफेक्ट.

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  11. नलका ठीक हुआ या नहीं ??????? दिवाली पर दिवाला तो निकलता ही हैं -अब तो बोनस भी नहीं मिलता ..?

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  12. आज तो घर बार का सारा हाल बयाँ कर डाला भाई ।
    वैसे सच है , दशहरे के बाद दिवाली तक का समय बड़ा व्यस्त रहता है ।

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  13. हर इंसान के करीब है ये पोस्‍ट।
    बेहतर तरीके से आपने चित्रण किया।

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  14. सब अपने अपने तरीके से दिवाली मनाते हैं।
    रोचक पोस्ट

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  15. दीपावली की तैयारी में भी होते हैं खट्टे-मीठे अनुभव.अच्छी लगी यह रम्य रचना .
    दीवाली की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं .

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  16. दिवाली के लिए तैयार रहें , नफा नुकसान न देंखें.

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  17. ललित जी, गाजर घास को बीस प्रतिशत नमक के घोल से भी नष्ट किया जा सकता है| पांच ग्लास पानी में एक ग्लास नमक मिलाकर स्प्रे कर दीजिये कुछ ही समय में यह नष्ट होना शुरू हो जायेगी| खड़ा नमक का उपयोग करे|

    गाजर घास के कारण हो रही एलर्जी को गाजर घास से बनी होम्योपैथी दवा पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस से ठीक किया जा सकता है| आप किसी अच्छे होम्योपैथ से सम्पर्क कर सकते हैं| वैसे दूध हल्दी से भी काफी लाभ होता है|

    पिछली गर्मी जब आपके घर के आहते में मै आपके बाल वैज्ञानिकों (यानी आपकी बेटियों) के साथ घूम रहा था तब मैंने उन्हें बहुत से एलर्जी वाले पौधे (गाजर घास के अलावा) दिखाए थे| सभी खरपतवारों को खत्म करना हो तो ग्लाईफोसेट का सहारा लिया जा सकता है|

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  18. sir ..pad kar aisa lag raha ki mere aaspaas ki hi ghatnaye hai ye..
    ati sundar chitran....

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  19. अच्छा है। कभी हमारे यहां भी चोरी होगी तो आपसे संपर्क करेंगें।

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