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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

रतनपुर का गोपल्ला बिंझवार --------------- ललित शर्मा

रतनपुर किले का द्वार
दोपहर के 12 बज रहे थे हम बस स्टैंड के पास स्थित हाथी किला की ओर चल पड़े। यह किला केन्द्रीय पुरातत्व के संरक्षण में है। यहाँ केन्द्रीय पुरातत्व के 3 कर्मचारी हैं, पर मुझे एक भी नहीं मिला। किले के भव्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करने पर तालाब के बगल से दो-तीन गंजेड़ी बाहर निकलते दिखाई दिए। इससे लगा कि यह असमाजिक तत्वों का मुफ़ीद अड्डा हो सकता है। कहते हैं कि जब किला पुरातत्व के संरक्षण में नहीं था और उजाड़ पड़ा था तब रतनपुर के निवासी नगर के घरों में निकलने वाले सांपों को किले में छोड़ जाते थे। यहां कई प्रकार के सांप होने की बात सामने आई। पर पूरा किला घूमने पर भी हमें एक भी सर्प दिखाई नहीं दिया। यह किला राजा पृथ्वी देव ने बनाया था। यह चारों ओर खाईयों से घिरा हुआ है। किले में 4 द्वार सिंह द्वार, गणेश द्वार, भैरव द्वार तथा सेमर द्वार बने हुए हैं। सिंह द्वार के बांयी ओर गंधर्व, किन्नर, अप्सरा एवं देवी देवताओं के अलावा लंकापति रावण भी अपना सिर काटकर यज्ञ करते हुए दिखाई देता है।

गोपल्ला बिंझवार
सिंह द्वार में प्रवेश करने पर बायीं ओर एक विशाल पाषण प्रतिमा है, जिसके सिर और पैर ही दो भागों में दिखाई देते हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा का धड़ मल्हार में रखा है। अब इस प्रतिमा का धड़ मल्हार कैसे पहुंचा इसका कोई पता नही है। यह प्रतिमा गोपल्ला बिंझवार (गोपाल राय वीर) की मानी जाती है, इसे देवार गीतों में भी गाया जाता है। कहा जाता है कि गोपाल की वीरता से प्रभावित होकर मुगलबादशाह जहांगीर ने राजा कल्याणसाय को अनेक उपाधियां दी तथा रतनपुर से लगान लेना बंद कर दिया। आगे गणेश द्वार है, जहाँ हनुमान जी प्रतिमा है, कहते हैं कि इस प्रतिमा के पीछे सुरंग का द्वार है। जिसे प्रतिमा से बंद कर दिया गया है। इसके आगे थोड़ी दूर पर मराठा साम्राज्ञी आनंदीबाई द्वारा निर्मित लक्षमीनारायण मंदिर है। किले के मध्य में जगन्नाथ मंदिर स्थित है, इसका निर्माण राजा कल्याणसाय ने कराया था। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा, एवं बलभद्र की प्रतिमा एवं भगवान विष्णु, राजा कल्याण साय एवं देवी अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित है।

रनिवास-रतनपुर
मंदिर के पार्श्व भाग में रनिवास एवं महल के अवशेष विद्यमान हैं। रनिवास में माल खाना, हथियार खाना एवं सुरक्षा प्रहरियों के रहने के स्थान भी हैं। किले के पिछले द्वार पर ताला लगा था, यह रास्ता मोतीपुर की ओर जाता है। ताला बंद होने पर हम फ़ेन्सिग को उपर से पार करके मोतीपुर की ओर गए। कुछ दूरी पर यहाँ खाई से बने तालाब के किनारे एक बीसदुवरिया और बनी है। यहाँ राजा लक्ष्मणसाय की बीस रानियां सती हुई थी, उन्ही के स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है। यह बीस दुवरिया क्षतिग्रस्त है। इस में अभी भेड़-बकरियों का डेरा होने से यह बीसदुवरिया खंडहर भी ध्वस्त होने के कगार पर है। कहते हैं कि मलयगिरि की भीलनी चूल्हा जलाने के लिए चंदन की लकड़ियों को उपयोग में लाती थी वैसे ही इस भव्य किले को समीप के रहवासियों ने हागालैंड बना दिया है। वापसी के दौरान कुछ लोटाधारी महिलाएं पुरुष किले में दिखाई दिए। हम सिर झुकाए उनके आगे से निकल गए। लोगों ने अभी तक अपनी महत्वपूर्ण पुराधरोहरों को सम्मान देना एवं सुरक्षित रखना नहीं सीखा है।

रामटेकरी- रतनपुर
हाथी किला से हम रामटेकरी की ओर चल पड़े। रामटेक की राम टेकरी तो हमने देखी थी। रतनपुर की रामटेकरी के दर्शन एवं निर्माणकर्ता की जिज्ञासा लिए हम रामटेकरी पहुंच रहे थे। टेकरी के समीप ही एक तालाब है, जिसे टेकरी पर से देखने पर भारत का नक्शा तालाब में दिखाई देता है। आसमान में बादल घिर आए थे, सुबह से पंकज बारिश की मांग कर रहा था। मैने उससे वादा किया था कि बरसात बुलाना मेरी जिम्मेदारी है और उसे रोकना तुम्हारा काम। अगर रोक सकते हो तो अभी घनघोर घटा छाकर बरस जाएगी। पर कितनी देर बरसेगी यह मैं नहीं बता सकता। अरविंद झा भी मौज ले रहे थे, बार-बार घर फ़ोन लगा कर रात के खाने का इंतजाम कर रहे थे। भूख का समय हो गया था, झा जी एक दर्जन केले लेकर आए पर उन्होने खाए नहीं। रात को ही इतनी ओवरडोज हो गयी थी उसका असर दोपहर तक बना हुआ था। अर्थात संडे का पूरा-पूरा फ़ायदा लेने के चक्कर में थे, पर क्या करें? हमारे जैसे घनचक्करों के चक्कर में फ़ंस कर रह गए।

ब्लॉगर ललित शर्मा एवं पार्श्व में रामटेकरी
रामटेकरी पर पहुंचे तो यहां काफ़ी पर्यटक आए हुए थे, इस पहाड़ी पर राम दरबार का भव्य एतिहासिक मंदिर है। समीप ही खुंटाघाट जलाशय भी है, इस बांध का निर्माण अंग्रेजों ने 1926 में कराया था। यहां सुंदर उद्यान भी है। बरसात में खुंटाघाट जलाशय लबालब भरा हुआ दिखाई दे रहा था। मंदिर के प्रवेशद्वार पर नारियल, फ़ूल अगरबत्ती वगैरह पूजा सामग्री के एक दुकान लगी थी। संभवत: यह मंदिर के पुजारी का कोई अनुग्रही लगता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम, देवी सीता, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की प्रतिमा पंचायत शैली में विद्यमान हैं। भगवान राम की प्रतिमा के अंगूठे से जल की धारा प्रभावित होती है। साथ ही सभा मण्डप में भगवान विष्णु तथा हनुमान जी की प्रतिमा हैं। सभागृह के आगे रानी आनन्दी बाई द्वारा निर्मित राजा बिंबाजी का मंदिर है। मंदिर में फ़ोटो खींचने की मनाही है। मैने फ़ोटो लेने की कोशिश की, लेकिन पुजारी ने मना कर दिया और मेरे पीछे ही लगे रहे, कहीं फ़ोटो न उतार ले।

रामटेकरी से खुंटाघाट उद्यान का दृश्य
उनका कहना था कि फ़ोटो खींचने की मनाही सुरक्षा की दृष्टि से है। पूर्व में कभी मूर्ति चोरों ने यहाँ धावा बोल दिया था। फ़िर बाद में पता चला कि इस मंदिर को लेकर इसकी सर्वराकार चंद्रकांता और राज्य सरकार के बीच न्यायालय में संपत्ति के अधिकार को लेकर वाद विचाराधीन है। इसलिए मंदिर का पुजारी चित्र लेने से मना कर रहा था। इस पहाड़ी से रतनपुर का मनोरम दृष्य दिखाई देता है साथ ही हाथी किला भी, लेकिन वृक्ष आड़े आने के कारण हाथी किले की फ़ोटो नहीं ली जा सकी। जब हम जाने लगे तो पुजारी जी ने तीनों के लिए अलग से प्रसाद भिजवाया। आधे नारियल के साथ फ़ल और मिष्ठान भी थे। मैने मंदिर के परकोटे से एक चित्र खूंटाघाट बांध के समीप बने हुए उद्यान का लिया। नागपुर के समीप स्थित रामटेक के जैसे ही यहाँ पर भोसला राजा ने इस रामटेकरी मंदिर का निर्माण किया। रामटेक (महाराष्ट्र) का मंदिर भी मैने देखा है।

बूढा महादेव का  जलाभिषेक
 रामटेकरी से लौटकर हम बूढ़ा महादेव के प्राचीन मंदिर के दर्शन करने के लिए गए। पुराने शहर में संकरी गलियों से सिर्फ़ एक ही गाड़ी निकल सकती है। सामने से दो गाड़ियाँ आ गयी जिससे रास्ता जाम हो गया। हमने पास की गली में अपनी कार को बैक करके घुसाया तब कहीं जाकर भीतर जाने का रास्ता बन पाया। वृद्धेश्वर महादेव को बूढा महादेव कहते हैं। इस मंदिर के सामने बावड़ी बनी हुई है। मंदिर प्रस्तर से निर्मित है, तथा एक खम्बे पर उत्कीर्ण कुछ अभिलेख भी दिखाई दिया। यहाँ स्थापित लिंग बीच में खोल है। इसमें जितना भी जलाभिषेक करिए, जल का स्तर सामान्य ही बना रहता है। थोड़ा सा भी जल का स्तर नहीं बढता, जितना पहले था उतना ही रहता है। हमने भी सावन में शिवजी का जलाभिषेक किया। पुजारी जी ने केले एवं सेव का प्रसाद दिया।

बूढा महादेव
रतनपुर में देखने के लिए अभी बहुत कुछ बचा था लेकिन हमारे पास इतना समय नहीं था कि सब कुछ देख सकें। महालक्ष्मी मंदिर, जूना शहर तथा बादल महल, हजरत मुसे खाँ बाबा की दरगाह, गिरजावर हनुमान, रत्नेश्वर महादेव मंदिर, भुवनेश्वर महादेव मंदिर, कृष्णार्जुनी तालाब इत्यादि अनेक दर्शनीय स्थल हैं। पुरातत्व में रुचि रखने वाले के लिए रतनपुर दर्शन करना एक दिन में संभव नहीं है। इसके लिए कम से कम दो दिनों का समय होना चाहिए। फ़िर कभी अधिक समय लेकर आना होगा तभी सारे रतनपुर का भ्रमण हो सकता है। अब हमें पाली होते हुए चैतुरगढ एवं तुम्माण जाना था। पूछने पर पता चला कि बरसात में चैतुरगढ का मार्ग बंद हो जाता है और कार से जाना संभव नहीं होगा। तब हमने विचार किया कि रतनपुर से मल्लार होते हुए बिलासपुर चला जाए। मल्लार की दूरी भी यहां से 70 किलोमीटर के लगभग है तो हमने पाली और चैतुरगढ जाने का निश्चय किया और दीपक को छोड़ कर पाली की ओर चल पड़े। आगे पढें……

10 टिप्‍पणियां:

  1. छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक धरोहरों को सबके समक्ष लाने का महत कार्य कर रहे हैं आप, अतिशय आभार।

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  2. श्रेष्ठ कार्य के लियें मित्र बधाई ..

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  3. छत्तीसगढ़ के ब्रांड एम्बेसेडर है आप ...अब पुस्तक की शक्ल में इंतज़ार है इन पर्यटन स्थलों का !
    सार्थक श्रम !

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  4. संस्‍मरण और विवरण दोनों रोचक.

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  5. वाणी जी से सहमत हूँ... यायावर की दृष्टी से छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल... शुभकामनायें

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  6. बहुत खूबसूरत है छत्तीसगढ..!
    रतनपुर के शेष स्थानों को आपकी पोस्ट के जरिये देखने की प्रतीक्षा रहेगी।

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  7. यह लेख धरोहर साबित होंगे ...
    शुभकामनायें ललित जी !

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  8. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ को उसकी समग्रता में ब्लॉग के माध्यम से जानने के लिये ललित जी और राहुल सिंह जी के ब्लॉग अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। सम्भवत: अन्य और भी ऐसे ब्लॉग होंगे तथापि मेरी पहुँच अभी उन तक नहीं हुई है, जो मेरी अज्ञानता की मिसाल है। हाँ, छत्तीसगढ़ी गीत संगी भी एक ऐसा ही ब्लॉग है, जिसमें छत्तीसगढ़ी गीत प्रस्तुत किये जाते रहे हैं किन्तु पता नहीं किन कारणों से यह ब्लॉग बन्द पड़ा है। राजेश चन्द्राकर जी को इसे निरन्तर करना चाहिये। ये तीनों ऐसे ब्लॉग हैं जो शोधकर्ताओं के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे।

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  9. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ को उसकी समग्रता में ब्लॉग के माध्यम से जानने के लिये ललित जी और राहुल सिंह जी के ब्लॉग अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। सम्भवत: अन्य और भी ऐसे ब्लॉग होंगे तथापि मेरी पहुँच अभी उन तक नहीं हुई है, जो मेरी अज्ञानता की मिसाल है। हाँ, छत्तीसगढ़ी गीत संगी भी एक ऐसा ही ब्लॉग है, जिसमें छत्तीसगढ़ी गीत प्रस्तुत किये जाते रहे हैं किन्तु पता नहीं किन कारणों से यह ब्लॉग बन्द पड़ा है। राजेश चन्द्राकर जी को इसे निरन्तर करना चाहिये। ये तीनों ऐसे ब्लॉग हैं जो शोधकर्ताओं के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे।

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