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रविवार, 23 दिसंबर 2012

आरंग ........... ललित शर्मा

सिरपुर की ओर 18/11/12
प्राम्भ से पढ़ें 
दिनांक-18 नवम्बर 2012, समय-12.15 PM रायपुर तेलीबांधा रिंगरोड़ चौराहे पर मुम्बई से कलकत्ता जाने वाली सड़क के किनारे खड़ा था बस की प्रतीक्षा में। घर से सिरपुर के लिए तो निकले काफ़ी देर हो गयी थी । मुझे सिरपुर पहुंचाने वाला सार्वजनिक साधन नहीं मिला था। वैसे भी सिरपुर के लिए दिन में दो ही बार है रायपुर से सीधी सुविधा। इसके अतिरिक्त सरायपाली, बसना, पिथौरा जाने वाली बस से हम कुदरी मोड़ तक जा सकते हैँ, वहाँ से सिरपुर की 17 किलोमीटर की दूरी अन्य किसी साधन से तय करनी होती है। निजी वाहन के सिरपुर कई बार जाना हुआ। लेकिन सार्वजनिक वाहन का सुख लेने संकल्प लिए मैं अपने निर्णय पर अडिग था। विचारों में खोया हुआ बस की प्रतीक्षा में था, तभी हाईवे पर एक कार ने मेरे पास आकर ब्रेक लगाए। चींईईईईई उसके टायरों की आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई।जान-पहचान का एक नवयुवक था - आप यहाँ कैसे खड़े हैं चाचा जी, आपको जहाँ तक जाना  हो, कहिए तो मैं छोड़ दूँ? उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए कहा। नहीं यार, तुम काहे तकलीफ़ करते हो। मुझे सिरपुर जाना है, थोड़ी देर में कोई बस आती होगी, चला जाऊंगा। मुझे सिरपुर में दो-तीन दिन ठहरना है। मेरी बात सुन कर वह फ़र्राटे से निकल गया, अगर मैने कहीं हाँ कह दी होती तो लेने के देने पड़ जाते 160 किलीमीटर का चक्कर पड़ जाता। तभी सराईपाली की बस आ जाती है और मैं उसमे सवार हो जाता हूँ। बस सवारियों से खचाखच भरी हुई थी। दरवाजे के पास की सीट पर दो पतले-दुबले नवयुवक बैठे थे। लो बात बन गयी, मैं उनसे बैठने के लिए थोड़ी जगह बनाने कहता हूँ वे सहर्ष तैयार हो जाते हैं। दो व्यक्तियों की सीट पर हम तीन सवार हो जाते हैं।

भांड देवल मंदिर आरंग 
सफ़र जारी था, बस कंडक्टर ने मुझसे कुहरी मोड़ तक का किराया 50 रुपया लिया। मेरे बगल की सीट पर दो  महिलाएँ बैठी थी। उनके साथ लगभग डेढ़ साल का एक बालक भी था। बड़ा नटखट, वह मेरी गोदी में आकर खेलने के लिए लपक लिया। अरसा हो गया था किसी बच्चे को खिलाए। कभी वह मेरा चश्मा खींचता तो कभी नाक। खूब मस्ती करता रहा। फ़िर फ़र्श पर खेलने की जिद करने लगा। दरवाजा पास होने के कारण उसे फ़र्श पर छोड़ना खतरे से खाली न था। अगले स्टॉप पर एक सवारी और चढ़ी। उस महिला की पहचान सवारी से थी। औपचारिक अभिवादन के पश्चात सवारी ने मुझसे नमस्ते की और महिला से पूछा कि – ये आपके पति हैं क्या? शायद उसे बच्चे को मेरी गोद मे खेलते देख कर गलतफ़हमी हो गयी। महिला ने सकपका कर न में जवाब दिया तो सवारी झेंप गयी। फ़ोन आने पर बच्चे को मैने उसकी माँ को लौटा दिया।मंदिर हसौद पार होने के बाद राजा मोरध्वज की नगरी आरंग पहुंचे। यह रायपुर कलकत्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर 30 किलोमीटर की दूरी पर महानदी के तट पर स्थित प्राचीन पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर है। कभी यहाँ राजा मोरध्वज का शासन था। इसका एक पुत्र ताम्रध्वज था जिसके आरे से चीरने का उल्लेख पौराणिक किवंदंतियों में मिलता है। इसी से इस नगरी का नाम आरंग पड़ा। यह मंदिरों की नगरी है। यहाँ के प्रमुख मंदिरों में 11वीं-12वीं सदी में निर्मित भांडदेवल जैन मंदिर है। इसके गर्भगृह में तीन तीर्थकंरों की काले ग्रेनाईट से निर्मित प्रतिमाएं हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थकरों प्रतिमाएं दर्शनीय हैं। बागदेवल, पंचमुखी हनुमान तथा दंतेश्वरी मंदिर यहां के उल्लेखनीय मंदिर हैं। नदी किनारे स्थित होने से जल के कटाव से पुरातात्विक सामग्रियाँ प्राप्त होते रहती हैं।  

जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ आरंग 
इस नगर को राजर्षि तुल्य कुल वंश की राजधानी होने के गौरव प्राप्त है। यहाँ प्राचीन मंदिर एवं बसाहट के अवशेष प्राप्त होते हैं। यहाँ से ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है। उससे इस वंश के 6 शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इस वंश के अंतिम शासक भीमसेन द्वितीय ने यह ताम्रपत्र सुवर्ण नदी से जारी किया था। भीमसेन ने अपने माता-पिता की पूण्य स्मृति में भादो माह की अठारहवीं तिथि को हरि स्वामी और बोप्प स्वामी को भट्टापालिका  नामक ग्राम दान में दिया था। ताम्रपत्र के अनुसार इनकी वंशावली में शुरा, दयित प्रथम, विभिषण, भीमसेन प्रथम, दयित वर्मा द्वितीय, भीमसेन द्वितीय नाम उल्लेखित हैं। शुरा के वंशजों द्वारा गुप्त संवत का प्रयोग से अनुमान है कि वे गुप्तों के अधीन रहे होगें। राजर्षि तुल्यकुल वंश का काल 601 वीं से माना गया है।सहयात्रियों की बातचीत से जाहिर हुआ कि वे शिक्षा विभाग से संबंधित हैं तथा दीवाली मनाने के पश्चात अपने मुख्यालय को जा रहे हैं। रायपुर सराईपाली मार्ग पर बस द्वारा यह सफ़र मैने पहली बार किया था। बस यात्रा के आनंद के साथ सवारियों के वार्ता लाप और गतिविधियों का भरपुर मजा ले रहा था। अगर यह आनंद न हो तो सफ़र नीरस हो जाएगा। अगले स्टॉप पर बस रुकती है और कुछ सवारियाँ चढती हैं। दीवाली के बाद भाई दूज मना कर लौटने वाली सवारियाँ थी। जींस-टॉप एवं चलभाषधारी दो लड़कियाँ मेरे समीप आकर खड़ी हो जाती हैं क्योंकि सीटें तो रायपुर से ही भर चुकी थी। कान में  हेड फ़ोन लगा कर एक गानों का मजा ले रही थी। तभी दूसरी का चलभाष बजा। उसने पहले स्पीकर चालु करके अपनी बातचीत को सार्वजनिक कर दिया। 

हेलो……, क्या बात है? कैसे मुझे बिना बताए आ गयी डार्लिंग।  सुनते ही लड़की सकपका गयी। मेरी तरफ़ देखा और जोर से चिल्लाई…तेरे को कितने बार कहा कि मुझे फ़ोन न लगाए कर। …… अरे का  होगे? काली त बने गोठियावत रहे। …… अभी बस मा हंव गाँव जात हंव। संझा के फ़ोन लगाबे …… कह कर उसने बातचीत को विराम देते हुए मेरी तरफ़ देखा। मैं देख रहा था चलभाष क्रांति का असर। अभी तो सिर्फ़ बीपीएल एपीएल वालों को चलभाष बांटने की मनमोहनी घोषणा मात्र हुई है। अगर चलभाष बांट दिए जाएगें तो और भी विप्लवकारी परिवर्तन हमें गाँव-गाँव में देखने मिलेगें। पिछले लोकसभा चुनाव में भ्रमण के दौरान एक स्थानीय व्यक्ति भी मेरे साथ भ्रमण करता था। उसके फ़ोन पर दिन भर लड़कों के फ़ोन आते थे, फ़ोन उठाने पर वे बात नहीं करते थे। उसकी माध्यमिक कक्षाओं में अध्ययनरत बेटी थी। परेशान होकर मैने दूसरे दिन उसे नया सिम दिला दिया। रात घर गया और सुबह से फ़िर उसके चलभाष पर नए सिम में भी वही नम्बर आने लगे। अर्थात उसकी बेटी ने ही रात भर में अपने सारे फ़्रेंडस को नया नम्बर बांट दिया। यह  चलभाष क्रांति हो रही है। लड़कियों एवं महिलाओं के नम्बर सार्वजनिक होने पर अवांछित लोगों के फ़ोन कॉल का सामना करना पड़ता है।

कोडार जलाशय 
भाड़ में जाए ये लोग और इनकी चलभाष संस्कारयुक्त पीढी। वर्तमान में किसी को अपना समझ कर मुफ़्त की सलाह देना भी ठीक नहीं है। क्या पता कहीं बुरा मानने पर सलाहकर्ता का ही मुंडन हो जाए। घर्रर घर्रर घर्रर करती बस आगे बढ रही थी। लड़की के चलभाष पर अन्य कोई कॉल आई, कॉल देखते ही उसके होठों पर नौगजी मुस्कान तनी, वह बतरस में रस लेने लगी और हम भी फ़ोन रस में। आगे चल कर कोड़ार बांध दिखाई देने लगा। कभी निर्माण  के दौरान इस बांध के खूब चर्चे थे। वर्तमान महासमुंद जिले में स्थित इस जलाशय को शहीद वीरनारायण सिंह जलाशय के नाम से  जानते हैं। 1976 में इस बांध की परियोजना का आरंभ कौंआझार ग्राम की भूमि पर हुआ। इसके निर्माण से 5 गाँव पूरी तरह से एवं 11 गाँव आंशिक रुप से प्रभावित हुए। बांध का दिलकश नजारा बस से ही दिखाई देता है। इसके समीप ही खल्लारी माई का मंदिर बना हुआ है। इसका शेरमुखी प्रवेश द्वार राजमार्ग 6 से ही दिखाई देता है। ......... सफ़र जारी है ........   

14 टिप्‍पणियां:

  1. सफर के कितने रंग, कैसे-कैसे नजारे.

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  2. आरंग में
    एक और दर्शनीय मंदिर
    एक वृहद वृक्ष के अन्दर विराजित
    देवेश्वर महादेव और अगल-बगल चार और वृहदाकार शिवलिंग
    अवश्य दर्शन करें

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  3. मन को मोहित कर यात्रा का आनंद देती शानदार यात्रा वृतांत .

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  4. बहुत ही सोमाचक यात्रा वृतांत ,ललीत जी, यात्रा के दौरान अलग अलग नजरिये के लोग तो मिलते ही रहते हैं उनको अपनी जुबानी बताना बहुत ही अच्छा लगा

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  5. अच्छा लगा यात्रावृत्त ।
    'काली त बने गोठियावत रहे' इसका अर्थ बताएँ । जवाब हमारे मेलबॉक्स में ही डलवा दीजिए:)
    wadnerkar.ajit@gmail.com

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  6. रोचक विवरण... सहयात्रियों के वार्तालाप ने इसे जीवंत बना दिया है...प्रस्तुत करने का अंदाज़ भी निराला है आपका...

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  7. हर यात्रा के दौरान कैसे कैसे लोगों और बातों से दो-चार होना पड़ता है :)))

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  8. यात्रा लेख पढकर यात्रा करने का अहसास होता है।

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  9. शानदार लेखन, बधाई !!!

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  10. फिल्म के रूप में चलती आपकी यात्रा, बीच बीच में वृत्तचित्र जैसी।

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