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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

इन आँखों की मस्ती के ............... ललित शर्मा

प्राम्भ से पढ़ें 
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं …… मेरे चलभाष फ़ोन ने धुन बजाई। आदित्य सिंह जी का फ़ोन था, तब कुहरी मोड़ 25  किलोमीटर दूर था। मैने उनसे कुहरी मोड़ आने के लिए कह दिया। वे सिरपुर में मेरे मेजबान थे और मैं उनका मेहमान। बस कंडक्टर को बता दिया कि कुहरी मोड़ पर मुझे उतार दे। लगभग डेढ़ बजे मैं कुहरी मोड़ पर पहुंचा। प्यास जोरों की लग रही थी। मालकिन ने घर से खाना बना कर भी दिया था। भूख अभी तक लगी नहीं थी। मोड़ पर एक छोटा सा होटल है, जहाँ उपलब्धता एवं आवश्यकता पर चाय नाश्ता मिल जाता है। यहीं मैने पानीग्रहण कर आदित्य सिंह जी को फ़ोन खड़काया। आप जिन्हें कॉल कर रहे हैं वो कवरेज एरिया के बाहर हैं जवाब फ़ोन कम्पनी की बाला ने दिया। सिरपुर की तरफ़ जाने वाली बस खड़ी थी। सवारियाँ ठसाठस भरी थी। एक बारगी तो मन  हुआ  कि इसी बस से सिरपुर चला जाए अगर सिर्फ़ पैर रखने  की  जगह मिल जाए। सोच ही रहा था तभी तूफ़ानी वेग से जापानी-भारतीय लाल वर्णसंकर घोड़े पर सवार आदित्य सिंह दिखाई दे गए।  


उन्होने घोड़े की लगाम ढीली  कर दी। घोड़ा मेरे समीप ही आकर रुका। उन्होने मुंह हिला कर मेरा अभिवादन स्वीकार किया और मेरे सवार होते ही घोड़े को एड़ लगा दी। घोड़े फ़िर वही अपनी तूफ़ानी गति पकड़ ली, वेग से चल पड़ा सिरपुर की ओर। मैं बात करता था और आदित्य सिंह जी जवाब में सिर हिला देते। मुझे कोफ़्त होने लगी …… अरे भारी पीक तो बाहर करो या फ़िर मौन व्रत ले रखा है। मेरे कहने से उन्होने ढेर सारा पीक उगल  कर धरा संग मुझे भी धन्य किया। अब बात बन गयी। कुहरी से सिरपुर के बीच बाबा किशा राम की समाधि होने की जानकारी देता बोर्ड दिखाई देता है। परन्तु इस स्थान पर कभी नहीं जा पाया। मैने आदित्य सिंह जी से यहाँ जाने की इच्छा प्रगट की। थोड़ी देर बाद हम सागौन के प्लांटेशन के बीच से होकर जंगल में बाबा किशा राम की समाधि पर पहुंचे। यहाँ पर समाधि स्थल बना हुआ है। साथ ही कांक्रीट से निर्मित एक बड़ा परिसर भी दिखाई दिया। एक हैंड पंप भी लगा हुआ  है।


बाबा किशाराम की समाधि पर देहावसान की तारीख 7/7/77 लिखी थी। संयोग  ही था जब इन्होने देहत्यागी तो  तारीख 7 जुलाई 1977 थी। इस दिन यहाँ इनके अनुयायी और परिवार के लोग आकर प्रतिवर्ष बरसी मनाते हैं एवं लंगर भंडारे का आयोजन किया जाता है। इनके विषय में कहा जाता है कि ये संत प्रवृति के थे तथा देहत्यागने के अवसर इन्होने अपने परिजनों को कहा कि उनकी देह का दाह संस्कार न किया जाए। मृत देह को घने जंगल में छोड़ दिया जाए, जिससे वह मांस भक्षी पशु पक्षियों के आहार के काम आ सके। उनकी अंतिम इच्छानुसार यही हुआ। कुछ दिनों पश्चात उनकी अस्थियों को समेट कर इसी स्थान पर समाधि बना दी गयी। यहाँ पर उनकी पत्नी की समाधि है। लोग यहाँ पहुंच कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। हमारी सिरपुर यात्रा का दूसरा चरण यहीं से प्रारंभ हो चुका था।

हम घर पहुंचे तो मेजबान के सारे परिजन छुट्टियों के पश्चात महासमुंद लौट रहे थे। घर पर सामान रख कर हम पैदल ही सिरपुर भ्रमण पर चल पड़े। सिरपुर गाँव के बीच में बस स्टैंड हैं जहाँ कसडोल रायपुर महासमुंद जाने वाली बसें आकर सवारी लेती हैं। रायपुर के लिए सीधी बस सुबह और दोपहर को ही मिलती है। इसके बाद महासमुंद जाने वाली बसों में तुमगाँव मोड़ तक या कुहरी मोड़ तक आना पड़ता फ़िर वहाँ से रायपुर-महासमुंद या सराईपाली-रायपुर मार्ग की बसें या टैक्सियाँ मिल जाती है। पान दुकान पर पहुंचने पर वह पहचान जाता है क्योंकि इससे पहले भी दो तीन बार पहले भी ताम्बुल सेवन यहीं से हो चुका है। 

यहीं पर अमलोर में पदासीन प्रधानाध्यापक प्रद्युम्न प्रसाद पाण्डे जी से भेंट होती है। सोनवानी भौजी के होटल से  चाय ग्रहण कर हम तीनों सिरपुर के पुरावशेषों को देखने चल पड़ते हैं। महासमुंद से शैलेंद्र दुबे ने भी फ़ेसबुक पर अपने सिरपुर पहुंचने का जिक्र किया था। उनकी भी हमें प्रतीक्षा थी और वे चलभाष पर समपर्क में थे। महासमुंद निवासी शैलेन्द्र इतिहास और पुरातत्व में काफ़ी रुचि रखते हैं तथा घुमक्कड़ी के साथ स्टेज पर भी अपनी कला दिखाते हैं अर्थात रंगकर्मी हैं, प्ले भी करते हैं। इनसे मेर्री मुलाकात फ़ेसबुक पर हुई थी। इन्होने संदेश दिया था कि सिरपुर पहुंचने का समाचार इन्हे दूँ तो वे सिरपुर भेंट करने आ जाएगें………जारी है  …………

5 टिप्‍पणियां:

  1. बाबा किशाराम तक पहुचती आपकी बारीक खोजी नजर, कमाल है.

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  2. जगह की बारीकियों संग आपकी भौजी भौजाइयों का रिश्ता सफ़र को और भी रोचक और सुखदायी बना देता है ,

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  3. अगली कड़ी का इंतजार है... शुभकामनायें

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  4. अभी अभी १२ १२ १२ से निपटे हैं, ७ ७ ७७ की याद दिला दी आपने। नदी का स्नान तरावट दे जाता है।

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