छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह ने 1857 में अकाल के कारण भुखमरी की स्थिति पैदा होने के पर अंग्रेजों को सूचना देकर हजारों किसानों के साथ लेकर कसडोल के जमाखोरों के गोदामों को खोल कर दाने-दाने को तरस रही प्रजा भुखमरी से बचाने के लिए अनाज बांट दिया। जिसके परिणाम स्वरुप अंग्रेजों ने देशद्रोही व लुटेरा होने का बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना लिया। 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के चौराहे वर्तमान में जयस्तंभ चौक पर बांधकर वीरनारायण सिंह को फांसी दी गई। बाद में उनके शव को तोप से उड़ा दिया गया। ये अकाल के कारण भुखमरी से उपजे हालात का दुष्परिणाम था।
एक प्रत्रिका में पढा था कि छत्तीसगढ़ का एक परिवार गरीबी और भुखमरी से तंगहाल रोजी रोटी की तलाश में आसाम की ओर जा रहा था। रास्ते में भूख से तड़पती बेटी चल बसी, उसे चलती हुई रेलगाड़ी से कलकत्ता के पहले गंगा माई में अर्पण करना पड़ा। भूख से व्याकुल परिवार की दूसरी बेटी भी मरणासन्न थी। थोड़ी देर बाद उसने भी भूख से तड़पते हुए प्राण त्याग दिए। इस बेटी को भी भारी मन से कलपते हुए पिता ने चलती हुई रेलगाड़ी से रास्ते में पड़ने वाली पद्मानदी में विसर्जित कर दिया। दो बेटियों को खोने के बाद परिवार आसाम पहुंच गया लेकिन दुर्भाग्य एवं भूखमरी ने यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा। स्त्री पुरुष दोनों को भूख कारण पैदा हुई व्याधियों ने घेर कर काल का ग्रास बना दिया। उनकी दस वर्ष की बच्ची अकेली पड़ गई। यह छत्तीसगढ़ के अनाथों का सहारा मिनिमाता के नाना-नानी का परिवार था।
पेट की ज्वाला क्या नहीं करवाती? चोरी, झूठ, स्वाभिमान की हत्या, जिस्मफ़रोशी से लेकर पलायन तक। जो यह सब नहीं कर पाता उसे मरना पड़ता है। लोक कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य होता है कि वह हर हाथ को काम एवं भूखे को भोजन उपलब्ध कराए। नैतिक रुप से काम एवं भोजन उपलब्ध कराने की जवाबदारी सरकार की बनती है। वर्षों से माँग उठती रही है कि रोजगार के अधिकार को भी संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रदत्त मूल अधिकारों में सम्मिलित किया जाए। जिस व्यक्ति ने भारत में जन्म लिया हो उसे रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी सरकार की हो। इसी तरह गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी सरकार की होनी चाहिए।
भविष्य में भूखमरी से किसी व्यक्ति या परिवार को संकट का सामना न करना पड़े इसे ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने एतिहासिक लोक कल्याणकारी पहल करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराने को अपना नैतिक दायित्व मानकर विधानसभा में छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा विधेयक 2012 शीतकालीन सत्र 21 दिसम्बर 2012 में पारित कर कानून बनाया एवं भारत गणराज्य में खाद्य सुरक्षा देने वाले प्रथम राज्य होने का गौरव प्राप्त किया है। छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून बनाने का उद्देश्य राशन की वर्तमान पात्रता को कानूनी अधिकार प्रदान करना है ताकि हर गरीब और जरुरतमंद को भोजन का अधिकार प्राप्त हो सके। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार नागरिकों को पूर्ण गरिमा के साथ जीवन का अधिकार है। जीवन हेतु भोजन सबसे महत्वपूर्ण एवं मूलभूत आवश्यकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार नागरिकों के पोषाहार स्तर और जीवन के स्तर में सुधार कर लोक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्य का दायित्व है।
केन्द्र सरकार द्वारा अपने खाद्य सुरक्षा कानून में ग्रामीण क्षेत्र की 75% जनसंख्या एवं शहरी क्षेत्र की 50% जनसंख्या को खाद्यान्न देने का प्रावधान किया गया है। ग्रामीण क्षेत्र की 75% जनसंख्या में से प्राथमिकता वाले परिवार के नाम से मात्र 46 % जनसंख्या को गरीब परिवार तथा शेष 29 % जनसंख्या को सामान्य या गरीबी रेखा के उपर का परिवार माना गया है। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों की 50% जनसंख्या मे से मात्र 28% जनसंख्या को गरीब तथा शेष 22% को जनसंख्या को सामान्या या गरीबी रेखा के उपर का परिवार माना गया है।
केन्द्र सरकार के इस कानून के लागू होने से छत्तीसगढ़ राज्य के मात्र 23 लाख 64 हजार परिवारों को बीपीएल परिवार माना जाएगा और केन्द्र सरकार मात्र इतने ही परिवारों के लिए रियायती अनाज देगी। एक बात उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा बिना विचार किए पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों के 46% और शहरी क्षेत्रों के 28% परिवारों को गरीब मानकर कानून बनाया जा रहा है। जबकि तेंडुलकर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 13.1% जम्मू कश्मीर में 13.2% केरल में 19.7%, गोवा में 25% और पंजाब में 20.9% परिवारों को बीपीएल माना गया है। केन्द्र सरकार का खाद्य सुरक्षा कानून लागु होने से इन राज्यों के एपीएल परिवार भी बीपीएल राशन के पात्र हो जाएगें जबकि छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्य में कई पात्र और जरुरतमंद परिवार रियायती दर की राशन सुविधा से वंचित हो जाएगें। छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया डॉ रमन सिंह ने दूरदर्शितापूर्ण सोच रखते हुए इस विसंगति को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ का पृथक खाद्य सुरक्षा कानून बनाया।
केन्द्र सरकार का खाद्यान्न सुरक्षा कानून गरीब के साथ छलावा होने साथ परेशानी बढाने वाला प्रतीत होता है। इससे गरीब परिवारों की समस्या कम होने की बजाए और बढ जाएगीं। इस कानून में प्रति परिवार की बजाए प्रतिव्यक्ति अनाज देने का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार प्राथमिकता वाले गरीब व्यक्ति को प्रतिमाह 7 किलो और सामान्य परिवार के व्यक्ति को 3 किलो अनाज देने का प्रावधान किया गया। केन्द्र सरकार के इस प्रावधान से 5 व्यक्तियों के छोटे परिवार को 35 किलो से कम अनाज प्राप्त होगा जबकि सामान्य परिवार को अधिकतम प्रतिमाह 15 किलो अनाज प्राप्त होगा। इससे छोटा परिवार रखने वाले अनावश्यक दंडित होगें तथा यह कानून देश की परिवार कल्याण नीति और जनसंख्या नीति के विरुद्ध दिखाई देता है। इस कानून के लागु होने से अन्त्योदय योजना भी समाप्त होती दिखाई दे रही है।
राज्य सरकार के खाद्य सुरक्षा कानून में 11 लाख अन्त्योदय अथवा विशेष रुप से कमजोर समूह के परिवारों के लिए 1 रुपए किलो की दर से हर महीने 35 किलो चावल का प्रावधान किया गया है। शेष गरीब परिवारों के लिए 2 रुपए किलो में प्रति माह 35 किलो खाद्यान्न की व्यवस्था है। इसके अलावा राज्य सरकार के खाद्य सुरक्षा कानून में 42 लाख गरीब परिवारों को हर महीने 2 किलो नि: शुल्क नमक, अनुसूचित क्षेत्रों में 5 रुपए किलो की दर से 2 किलो चना और गैर अनुसूचित क्षेत्र में 10 रुपए किलो की दर पर 2 किलो दाल देने की व्यवस्था की गई है। केन्द्र सरकार के कानून में इसकी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
इस योजना का पात्र कौन होगा, गरीब परिवारों के अंतर्गत किन्हें शामिल किया जाएगा, इसका स्पष्ट उल्लेख केन्द्र सरकार के कानून में नहीं है। छत्तीसगढ खाद्य सुरक्षा कानून में यह प्रावधान है कि प्रदेश में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे। इसके लिए सभी निराश्रित, आवासहीन, प्रवासी, प्राकृतिक आपदा प्रभावित लोगों के लिए इस कानून में भोजन की व्यवस्था की गई है। महिलाओं एवं बच्चों के लिए पोषण युक्त आहार का भी प्रावधान है। छात्रावासों एवं आश्रमों रहने वाले छात्र-छात्राओं के लिए भी रियायती दर पर अनाज की व्यवस्था की गई है। राज्य ने खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन के हेतू खाद्य वितरण के लिए 1 हजार 904 करोड़ रुपए की सब्सिडी, नमक के लिए 97 करोड़ रुपए की सब्सिडी, चना के लिए 208 करोड़ की सब्सिडी, दाल के लिए 132 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रतिवर्ष उपलब्ध कराने का प्रावधान किया है।
छत्तीसगढ़ राज्य देश का प्रथम राज्य है जिसने अपना खाद्यान्न सुरक्षा कानून बना कर हितग्राही परिवारों को भोजन का अधिकार कानूनी रुप से प्रदान किया है तथा यह व्यवस्था की है कि राज्य में कोई भूखा न रहे। केन्द्र सरकार का खाद्यान्न सुरक्षा कानून कितने परिवारों को खाद्यान्न सुरक्षा दे पाएगा यह तो अभी तय नहीं है पर छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने एक कदम आगे बढाकर राज्य के निवासियों को भोजन प्राप्त करने का कानूनी अधिकार देकर यह सुनिश्ति कर दिया कि राज्य में सभी को जीवनोपयोगी राशन प्राप्त हो सके तथा राशन की कालाबाजारी रोकने के लिए इस कानून में कड़े प्रावधान भी किए गए हैं। जिससे हितग्राही तक राशन पहुंचने और छत्तीसगढ़ राज्य में कोई भूखा न रहे।
भूखा व्यक्ति कुछ भी कर जाता है या कुछ भी कर जाये कम है एक बात आपसे कहानी है आंकड़े कभी सच नहीं कहते अतः नियमों का क्रियान्वयन बहुत मुश्किल हो जाता है . हाँ आपकी एक बात नमन योग्य कोई भूखा न रहे न ही कोई भूखा सोये। मेरा गाँव मुलमुला इस परम्परा के लिए जाना जाता है जब से पैदा हुआ हूँ आज तक किसी हालत में कोई भूखा नहीं रहा किसी की मृत्यु ये अलग बात रही .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी आपने हम तक पहुँचाई है, जिसके लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकृपया इस जानकारी को भी पढ़े :- इंटरनेट सर्फ़िंग के कुछ टिप्स।
कोई भूखा न सोये वही हमारा पहला लक्ष्य हो..
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