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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

अलवर का अजेय दुर्ग: बाला किला

पीतल  तोप 

किले के प्रवेश द्वार पर वन विभाग के कर्मचारी रजिस्टर में आवक जावक दर्ज करने के साथ पर्यटकों से पूछ्ताछ भी करते हैं। हमने भी अपनी उपस्थिति यहाँ के रजिस्टर में दर्ज कराई।हस्ताक्षर करने के लिए पेन ढूंढने पर बैग में दिखाई नहीं दिया तो एक फ़ारेस्टर ने अपना पेन दिया। मुझे किले पर पहुंच कर भी कुछ जानकारियाँ लिखनी थी, उन्होने कहा कि यह पेन आप रख लीजिए। मैने कहा कि लौटकर आपको दे दिया जाएगा। उन्होने कहा कि जरुरत नहीं है। लेकिन मुझे पेन की जरुरत उस समय थी, लौटने के बाद वापिस किया जा सकता था। पहाड़ी सड़क पर आगे बढने पर अलवर का विहंगम दृश्य दिखाई देने लगा। आगे चलने पर जयपोल द्वार दिखाई देता है। यहीं पर बांए तरफ़ की सड़क धंस गई है। जहाँ बोरियाँ लगा रखी है, अगर ध्यान नहीं रहा तो भयानक दुर्घटना भी हो सकती है।  जयपोल द्वार के समीप नीचे खाई में करणी माता का मंदिर है। इसका दर्शन हमने लौटते हुए करने का तय किया।

झरोखे से किले की प्राचीर 
अब हम पहाड़ के शिखर पर पहुच चुके थे। यहां से दो तरफ़ रास्ते जाते हैं, बांई तरफ़ का रास्ता हनुमान मंदिर की तरफ़ जाता है और दांई तरफ़ का रास्ता महल में। इस चौक पर सिंटेक्स की पानी की टंकी लगी है। यहीं पर दो सज्जन बैठे मिल गए उन्होने हमें महल का रास्ता बताया। आगे चलने पर महल दिखाई देने लगा। महल के बाहर दांई तरफ़ एक चाय नास्ते की दुकान है। हमने महल में प्रवेश किया तो दो पुलिस वाले दिखाई दिए और प्रांगण में कोई नहीं था। नीचे मंदिर बना हुआ है। महल में आर्कियोलॉजी वालों द्वारा मरम्मत की जा रही थी। पुलिस वाले से चर्चा हुई तो उसने कहा कि यह किला अलवर पुलिस के कब्जे में है। आप उस दरवाजे से भीतर जा सकते हैं।

महल का उपरी हिस्सा 
हमने महल में प्रवेश किया, सामने प्रांगण था, यह महल तीन मंजिला है। उपर की मंजिल में राजा का खास दरबार है उसके दाईं तरफ़ के कमरे में वायरलेस सेट चलने की आवाज आई। कुछ लोग दिखाई दिए। हमने पूरे किले का भ्रमण किया। इस राजमहल किले के निर्माण के बाद में बना हुआ दिखाई दिया। कुछ दिनों पूर्व यहाँ आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की 150 वीं जयंती मनाने के चिन्ह दिखाई दे रहे थे। महल में कई तोपें रखी हुई है। जिसमें दो पीतल का पतरा चढाई हुई तोपें भी शामिल थी। राजमहल के सिंह द्वार पर उत्कीर्ण राज चिन्ह में ध्वज धारण किए हुए वृषभ एवं सिंह दिखाई देते हैं। यह महल बहुत ही अच्छी हालत में है। यहाँ पुलिस की उपस्थित होने के कारण असामाजिक तत्वों की उपस्थिति से बचा हुआ है। महल को देखने के लिए पर्यटकों के लिए कोई रोक टोक नहीं है। इस किले के साथ हसन खान मेवाती का भी नाम जुड़ा हुआ है। 

अलवर यात्रा का सूत्रधार मेरा फुफेरा भाई दिलीप 
किले में सलीम सागर नाम का एक तालाब है, कहते हैं कि जब बादशाह ने सलीम को देश निकाला दे दिया था तब दिल्ली से ईरान तक उसे किसी भी राजा ने बादशाह के भय के कारण शरण नहीं दी तब उसे अलवर गढ के राजा ने अपने किले में शरण दी। ढाई वर्ष तक सलीम यहाँ शरणार्थी रहे। उसी की याद में सलीम सागर का निर्माण किया गया। कहते हैं कि यह किला हमेशा अजेय रहा। इस पर आक्रमण तो अवश्य हुए लेकिन कोई भी इसे जीत नहीं सका। इसलिए इसे बाला किला या कुंवारा किला कहा जाता है। अजेय गढ होने के कारण ही राजा ने हिम्मत करके सलीम को यहाँ पर शरण दी थी। महल दर्शन करने हमने स्टाल वाले से चाय बनवा कर पी। वह अलवर से यहां आकर रोज अपनी दुकान लगाता है।

करणी माता 
मुगल साम्राज्य के उदय से पूर्व निर्मित इस किले के चारों और परकोटा बना हुआ है जो बाहरी हमले से किले कि सुरक्षा करता था. यह किला उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक १०६ किलोमीटर में फेला है. यह १५ बड़े व ५१ छोटे बुर्जो और तोपों के लिए ४४६ द्वारों से युक्त एक सुदृढ़ प्राचीर है जिसे आठ विशाल बुर्ज घेरे हुए है. इसमें अनेक द्वार है. जैसे जय पोल, सूरज पोल, लक्ष्मण पोल, चाँद पोल, कृष्ण पोल और अँधेरी गेट प्रमुख है. इसमें जल महल, निकुम्भ महल, सलीम सागर, सूरज कुंड व अन्य मन्दिर स्थित है.हम यहां से हनुमान मंदिर के दर्शन हेतु गए, यहां पहुचने पर मंदिर बंद दिखाई दिया। 

उजड़ी कोठी 
इसके आगे एक भग्न महल (कोठी) और है। जहाँ जाने के लिए कच्चा मार्ग है। मार्ग में इतनी सारी रोड़ियाँ पड़ी है कि मोटर सायकिल के पंचर होने का खतरा बना रहता है। आगे बढने पर सघन जंगल है। यहाँ पर काले हिरण (सांभर) विचरण करते मिल जाते हैं। अब इन्हे मनुष्यों का अनुभव हो गया है। इसलिए देख कर भी नहीं भागते। मुझे कई सांभर मिले। आगे चलकर एक द्वार बना हुआ है, इस द्वार पर कोई किवाड़ नहीं  है। बांए तरफ़ के मैदान पर कोठी बनी हुई है। निर्माण के अनुसार यह अधिक पुरानी दिखाई नहीं देती। फ़िर भी कळी और सूर्खी के निर्माण के आधार 200 वर्ष पुरानी तो मानी जा सकती है।

काला हिरण (सांभर )
लौटते हुए सांझ होने लगी थी। हमें जयपोल के समीप मोटर साईकिल खड़ी करके करणी माता के दर्शन करने थे। सड़क पर एक पूजा सामग्री बेचने वाली की दुकान लगी हुई थी और समीप ही सांभर बैठा हुआ था। दुकान वाला नदारत था। हम पैड़ियों से उतरकर मंदिर तक पहुंचे। पुजारी ने बताया कि नवरात्रि के अवसर यहां बहुत भीड़ होती है और श्रद्धालुओं का नौ दिनों तक तांता लगा रहता है। दो-दो घंटे लाईन में लगे रहने के बाद दर्शन का नम्बर आता है। यहाँ करणी माता के मंदिर में बेल्जियम के काँच की सुंदर पच्चीकारी की गई है। इस मंदिर में बिजली नहीं है। अभ्यारण क्षेत्र होने के कारण बिजली नहीं लगाई जा सकती। काँच लगे होने के कारण थोड़े से ही प्रकाश से मंदिर जगमगा उठता है। इसका निर्माण महाराज विनय सिंह ने करवाया था। करणी माता का दर्शन करके हम वापस शहर की तरफ़ चल पड़े। किले के द्वार स्थित वन विभाग के गार्ड का पेन वापस किया और उसे धन्यवाद दिया।सांझ घिरने लगी थी, अलवर पहुच कर हमने कचौड़ी खाई और खैरथल के लिए चल पड़े। 

11 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार ऐतिहासिक जानकारी

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  2. कुछ किले ही हैं जो समय की मार से बच पाए !
    रोचक जानकारी !

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  3. बहुत दिनों बाद मेरी इतहास में रूचि आपके इस लेख की ओर खींच लाई |इस जानकारी और सैर के लिए धन्यवाद्|

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  4. बहुत अच्छी जानकारियां लिए पोस्ट....

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  5. रोमांचक, रोचक, सुन्दर चित्रों संग यात्रा वर्णन के लिए खुबसूरत पोस्ट आपके हस्ताक्षर हैं

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  6. अलवर किले की सैर करवाने के लिए आपका आभार....किले के अलावा वहां की कचौरी भी खास है क्या?

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  7. सुंदर विवरण ..
    ज्ञानवर्द्धक लेख !!

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