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सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

उसके बिन यात्रा अधूरी : काठमांडू

नेपाल यात्रा प्रारंभ से पढें
रासी से हमें भूख लगनी शुरु हो गई। हमने दौन्ने में नदी किनारे कतार से बने होटल देख कर गाड़ी रोक ली। अब खाना खाकर ही आगे बढा जाए। 2 तो यहीं बज गए थे, गिरीश भैया व्यग्र हो रहे थे कि कब काठमाण्डौ पहुंचे और कार्यक्रम में सम्मिलित हों, खाना जाए भाड़ में पहले कार्यक्रम में पहुंचे, जिसके लिए इतनी दूर का सफ़र तय करके आए हैं लेकिन समय अपनी रफ़्तार से चलता है और गाड़ी अपनी रफ़्तार से। दोनों की रफ़्तार में सामंजस्य नहीं बैठता। यहाँ से होटलों की शुरुवात होती है जो काठमाण्डू तक नदी के किनारे किनारे बने हुए हैं। चाय पानी से लेकर दारु-बीयर तक की सहज उपलब्धता है। होटल में तीन महिलाएं दिखाई दे रही थी। 1 पुरुष था वो नींद भांज रहा था। टीवी पर हिन्दी फ़िल्म चल रही थी जिसका आनंद सारा परिवार उठा रहा था।

मैने सोचा कि खाना प्लेट के हिसाब से मिलता होगा। एक प्लेट सब्जी और रोटी चावल ले लेगें उससे काम चल जाएगा। लेकिन महिला ने बताया कि खाना थाली हिसाब से मिलेगा। रोटी सब्जी दाल चावल इत्यादि सभी थाली में शामिल है। हमारा मुड नानवेज खाने का था। तो उसने कहा कि मुर्गा का मासू है। हमने खाने का आर्डर दे दिया। पहली थाली आई, उसमें मुर्गा दिखाई नहीं दिया तो पाबला जी ने हुंकार भरी "मुर्गा किधर है?" उसने कहा कि वह अलग से दिया जाएगा। थाली में आलु-गोभी की सब्जी, आलु का चोखा, तिल की चटनी, एक कटोरी दाल और पतले-पतले पापड़ जैसे फ़लके थे। मैने वह थाली गिरीश भैया की ओर बढा दी। शाकाहारी थाली देख कर उनकी भूख जाग गयी और वे सहर्ष भोजन करने लगे।

थोड़ी देर में हमारी थाली भी आ गई। भोजन में जब मुर्गा हो तो 56 भोज की आवश्यकता नहीं रहती। सिर्फ़ एक ही सब्जी से काम चल जाता है। चटनी स्वादिष्ट थी, पूछने पर पता चला कि टमाटर, धनिया, मिर्च के साथ तिल पीसा गया है। मैने कहा कि इसमें लहसून डाल देते तो आनंद आ जाता। तो वह कहने लगी कि - तिल के साथ लहसून नहीं डाला। हम तिल में लहसून डालना पाप समझते हैं। चलो एक नया ज्ञान प्राप्त हुआ। चिकन एक दम घरेलू तरीके से बना हुआ था। उस पर तेल नहीं तैर रहा था। चावल भी अच्छी क्वालिटी का था। खाने में मजा आ गया। पेट भर खाने का हमने तीन आदमियों का 800 रुपए नेपाली मुद्रा में बिल चुकाया और आगे बढे।

नेपाल में नदियों पर जितने भी पुल पुलिया बने हैं उनमें लोहे का इस्तेमाल अधिक हुआ है। पहाड़ी नाले पर बने हुए पुलिया को नाम देकर उसके साथ खोल शब्द का प्रयोग किया गया है। जैसे अरुण खोल, प्रकाश खोल या अन्य। तराई से शुरु हुआ सफ़र निरंतर पहाड़ों की तरफ़ जाने लगा। आकाश में पहाड़ियों की धुंधली परछाईयाँ दिखाई देने लगी। इस घाटी को पार करने के बाद नारायणगढ शहर आता है। जब हम शहर के चौक पर पहुंचे तो वहाँ झंडे डंडे लिए रैली निकल रही थी। चौराहे पर खड़े यातायात पुलिस ने ट्रैफ़िक रोक रखा था। जब रैली आगे बढ गई तो हम आगे बढे। पता चला कि हम शहर में घुस रहे हैं और हमें बांए मुड़ना था। जी.पी.एस वाली बाई की कमी हमें यहीं पर महसूस हुई। जी.पी.एस तो काम कर रहा था पर उसमें नेपाल का मैप नहीं था। हमने वापस आकर काठमाण्डू वाली सड़क पकड़ी।

नारायणगढ़ से मुग्लिंग की दूरी 35 किलोमीटर है, यहीं से रामपुर का जंगल पार करने के बाद एक तरफ़ पहाड़ियाँ और दूसरी तरफ़ नदी का खड्ड प्रारंभ हो जाता है। नदी के किनारे पर टीन शेड के होटल बने हुए हैं और प्रत्येक होटल में 4-5 महिलाएं अवश्य दिखाई दे रही थी। कुछ वृद्ध पुरुष भी उनकी सहायता के लिए दिखाई दे रहे थे। रास्ते में नदी पार करने के लिए कुछ रस्सी के पुल भी दिखाई दिए। काठमाण्डू मार्ग पर कुछ स्थानों पर कांक्रीट सड़क का निर्माण हो रहा है जिसके कारण गाड़ियों की लाईन लग जाती है। एक तरफ़ गाड़ी रोक कर दूसरी तरफ़ की गाड़ियों के मार्ग खोला जाता है। इसमें समय लग जाता है। हम काठमाण्डू जल्दी पहुंचना चाहते थे लेकिन सड़क और उंचाई साथ दे तो संभव था।

रास्ते में पाबला जी को चाय की दरकार हुई, गाड़ी चलाते हुए आगे बढ़ते गए, होटल में गाड़ियाँ रोकी नहीं। बीच में एक स्थान पर चाय पी थी। अभी शाम होने को थी और धुंधलका छाने लग रहा था। एक स्थान पर मुत्रालय एवं होटल देख कर गाड़ी को विश्राम दिया। एक होटल में चाय पूछने पर उसने बगल वाले होटल की तरफ़ इशारा कर दिया कि चाय वहाँ मिलेगी। यहाँ सिर्फ़ दारु और खाना मिलता है। मैने दूसरे होटल में पूछा तो उसने कहा कि दूध नहीं है। हमने काली चाय ही पीने की ठानी। सामने बने चुल्हे पर एक महिला भोजन बना रही थी। कड़ाही में सब्जी चढा रखी थी। मेरे पूछने पर उसने बताया कि मासू बना रही है। किसका पूछने पर उसने कहा कि बड़ा बकरा। ये बड़ा बकरा क्या होता है, तो वह बोली बफ़ेलो। ओह बफ़ेलों। मैने सुना था कि नेपाली दैनिक भोजन में पाड़े के मांस का प्रयोग करते हैं तथा किसी उत्सव में सामुहिक रुप से पाड़े काटे जाते हैं।

चाय दूसरी औरत ने गैस चूल्हे पर बनाई। सभी होटलों एक-एक सीएफ़एल जल रहा था। बिजली के खम्बे दिखाई दे रहे थे लेकिन उनमें करेंट नहीं था। यहाँ सोलर पैनल का प्रयोग हो रहा था। चाय पीकर हम आगे बढ़े। एक स्थान पर जाम दिखाई देने लगा। एक तरफ़ सड़क का निर्माण हो रहा था दूसरी तरफ़ एक ट्रक चढाई पर बंद हो गया था। यातायात कर्मी ट्रैफ़िक नियंत्रण कर रहे थे। हमारी गाड़ी रिवर्स करवा कर उसने एक स्थान से कांक्रीट सड़क पर चढाने के लिए कहा। पाबला जी ने उचित स्थान देखकर गाड़ी चढा दी लेकिन उतारने के लिए स्थान दिखाई नहीं दे रहा था। सड़क से कांक्रीट रोट लगभग 1 फ़ुट की ऊंचाई पर था। मैने उतर कर टायर निकलने के स्थान पर 2 पत्थर रखे तब हमारी गाड़ी सड़क पर आई।

इस रुकावट से निकलने के बाद हम आगे बढते रहे। नेपाली ड्रायवर बहुत ही रफ़ गाड़ी चलाते हैं। हार्न बजाते हुए सीधे ही घुस जाते हैं। उन्हे जबरिया साईड देनी पड़ती है। वे इस सड़क के नित्य चलने वाले है और हम पहली बार चल रहे थे इसलिए सोच रखा था कि दुर्घटना से देर भली। सही सलामत पहुंच जाए वही सबसे बड़ा पुरस्कार है। लगभग साढ़े 10 बजे हमने काठमांडू की सीमा में प्रवेश किया। लगभग 1300 मीटर की ऊंचाई पर आ चुके थे। थोड़ी सीढी चढाई होने पर गाड़ी का इंजन भी हांफ़ रहा था। एक स्थान पर गाड़ी रोक कर हमने इंजन को भरपूर सांस लेने का मौका दिया। काठमाण्डू के लिए एक ही सड़क होने के कारण यहाँ जाम बहुत जल्दी लगता है। 

काठमांडू प्रवेश करने पर फ़िर जीपीएस वाली बाई याद आई। अगर उसका साथ रहता तो हम बिना किसी से पता पूछे ही वांछित स्थान पर पहुंच जाते। आगे बढ़ने पर बाईक सवार दो युवकों ने हमें रोका। पता चला कि वे होटल वाले हैं और यहीं से होटलों के लिए ग्राहक पकड़ रहे हैं। हमने उन्हे बताया कि होटर रिव्यु हमारे लिए बुक है। तो उन्होने होटल रिवर व्यू का पता बताया। हमें थमेल जाना था, थमेल में ही बहुत सारे होटल हैं और सारे पर्यटक यहीं पर आकर ठहरते हैं। होटल बुक होने की बात सुनकर उन्होने हमसे किनारा कर लिया। आगे बढने पर थमेल का पता एक टुरिस्टर वाले ड्रायवर से पूछा तो उसने अपने पीछे आने के लिए कहा। वह भी टुरिस्ट लेकर थमेल जा रहा था।

काठमांडू के एक चौक पर पहुंचने के बाद दो मोटर सायकिल सवारों ने हमें फ़िर रोक लिया। वो अपने होटल का गुणगान करने लगे। वह भी थमेल में था। हमने मंत्रणा की कि इनके साथ ही चलते हैं, कम से कम थमेल तो पहुंच जाएगें। फ़िर वहाँ जाकर होटल का पता भी पूछ लेगें। 11 बज रहे थे और सारा काठमाण्डू सो रहा था। सड़क पर इक्का दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। वे दोनो हमें अपने होटल में ले गए। पाबला जी ने पीछा छुड़ाने की दृष्टि से उनका होटल देख कर आने कहा। इस सब में समय तो खराब हो रहा था, लेकिन हमारे सामने भी होटल रिव्यू तक पहुंचने की मजबूरी थी। मैं उनके होटल में गया तो उन्होने 1 कमरे का किराया 6500 भारतीय मुद्रा बताया और कहा कि 24 घंटे सुविधा मिलेगी। मैं मना करके लौट आया। हमने मनोज पांडे जी के नम्बर पर फ़ोन लगा कर पता पूछा। लेकिन नई जगह होने पर नाम और पता समझ नहीं आया।

उन दोनो बाईक सवारों ने बताया कि होटल का नाम रिव्यू नहीं रिवर व्यू है। आप गलत पता ढूंढ रहे हैं। तो पाबला जी ने कहा कि पहले हमारे साथियों के पास पहुंचाईए फ़िर आपके होटल के विषय में कुछ सोचेगें। वे दोनो हमें होटल रिवर व्यू में ले गए। जहाँ रेस्टोरेंट में  सबसे पहले शैलेष भारतवासी दिखाई दिए। फ़िर अंतर सोहिल, मनोज पांडे इत्यादि भी पहुंच गए। इनका भोजन चल रहा था। मनोज भावुक एवं सरोज सुमन भी संग थे। हमने खाने के बारे में पूछा तो पता चला कि खाना सम्पन्न हो गया है और किचन भी बंद हो गया है। कुछ भी नहीं मिलने वाला। सभी ब्लॉगर खाए अघाए सो रहे थे। रविंद्र प्रभात जी को पता चला तो वे नींद से उठ कर आ गए। रेस्टोरेंट में उनसे मुलाकात हुई। हमें कमरा नंबर 20 की ताली थमा दी गई तथा ताकिद दी गई कि सुबह 8 बजे तैयार हो जाईएगा। दही पराठे का नाश्ता मिलेगा और उसके बाद काठमांडू भ्रमण पर चलना है। रास्ता बताने वाले दोनो बाईक सवार वहीं होटल में जमें हुए थे, पाबला जी ने 150 रुपए दक्षिणा देकर उनसे पीछा छुड़वाया और हमने अपने कमरे की राह ली, लेकिन भूखे नींद कैसे आएगी? आगे की किश्त पढ़ें……

10 टिप्‍पणियां:

  1. यादगार रोचक यात्रा वर्णन !
    विजयादशमी की शुभकामनाए...!

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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  2. जिन्दगी भर न भूलेगी ये यादगार यात्रा

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  3. यात्रा-वृत्तांत 'रोचकतम' होता जा रहा है। इसे पढ़ने के बाद लग रहा है कि एक बार फिर काठमांडू-यात्रा पर हूँ।अभिन्दन है इस सरस-लेखन का। .

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  4. अपने वाहन से काठमांडू जाना रोमांचक लग रहा है

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