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शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

कैम्प में फ़ायर एवं पारो का खतरनाक एयरपोर्ट : भूटान

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अब आगे की कथा यह है कि फ़ुंतशोलिन से टीका राम वर्मा जी अपने घुटनों की दशा बताते हुए हमेशा नीचे का रुम ही मांगते रहे और समस्या यह थी कि उनसे पैड़ी नहीं चढी जाती। वो आज टायगर मोनेस्ट्री की खड़ी चढाई चढकर सकुशल नीचे तक पहुंच गए और मैं आधी दूर से लौट आया। इससे मुझे लगा कि कुछ लोग जानबूझकर ही मौज लेते हैं। आज की रात कैम्प फ़ायर का आयोजन किया गया था। हमारी बस आते ही हम रिसोर्ट में लौट आए। जब मैं अपने रुम का ताला खोलने पहुंचा तो ठंड के मारे मुझे कंपकंपी चढ़ गई। टूर आपरेटर तुरंत चाय लेकर आए और मै तीन कंबल रजाई ओढकर सो गया, सांसे लम्बी लम्बी चल रही थी। थामने से रुक नहीं रही थी। एक घंटे के बाद जाकर कहीं तबियत ठिकाने लगी।
कैम्प फ़ायर पारो भूटान
कैम्प फ़ायर की लकड़ियां जल रही थी, परन्तु वहां कोई नहीं था। मैने सबको आवाज देकर बुलाया। स्टीरियो की व्यवस्था भी की गई थी। परन्तु उनके पास भूटानी गानों के अलावा हिन्दी गाने नहीं थे और मेरे पास भी मुकेश के सैड सांग के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी गाने थे। मोबाईल की चिप निकाल कर लगाने पर छत्तीसगढी गाने बजने लगे। छत्तीसगढ़ी गानों का आनंद की कुछ अलग है। माधुरी अग्रवाल जी ने कहा कि इसे बंद कर दो, मेरा सिर दर्द होने लगा है, अगर हिन्दी गाने हैं तो लगाओ। बाकी लोग छत्तीसगढ़ी गाना सुनना चाहते थे। यहीं से कैम्प फ़ायर का वातावरण खराब होना शुरु हो गया। इस तू-तू मैं-मैं से सब चुप हो गए। जिस आनंद लेने के प्रयोजन से एक क्विंटल लकड़ी जलवाई गई थी वो स्वाहा हो गई।
आग तापते हुए
इतने में टूर आपरेटर ने कहा कि कल सुबह हम जल्दी आठ बजे निकल जाएंगे, क्योंकि कल हमको न्यू जलपाईगुड़ी तक जाना है, यह लम्बी दूरी का सफ़र है, तो द्वारिका प्रसाद जी कहने लगे कि आपने आज हमारा दिन खराब कर दिया, हम नहाए भी नहीं, सबसे पहले तैयार हो गए थे और योग भी छूट गया।  हम तो योग करके निकलेंगे चाहे नौ बज जाए। संतराम तारक जी ने कहा कि आपको सबका ध्यान रखना चाहिए। दल में आप अकेले ही नहीं है। तो द्वारिका प्रसाद जी बोले कि आप लोग चले जाना हम अपनी गाड़ी करके आ जाएंगे। इस तरह नाहक ही ठंड में वातावरण गर्म हो गया। 

टीका राम वर्मा जी एवं द्वारिका प्रसाद अग्रवाल जी
मुझे द्वारिका प्रसाद जी का यह व्यवहार बिलकुल पसंद नहीं आया। जो प्रभा मंडल उनकी आत्मकथा पढकर बना हुआ था वो सारा एक पल में ही चूर चूर हो गया। इसके बाद सभी रात का भोजन करने चले गए। रात की बात आई गई हो गई। सभी भोजन करने के उपरांत सोने चले गए। हम भी अपने बिस्तर के हवाले हो गए। अकेले दुकेले मित्रों के साथ 1985 से सफ़र कर रहा हूँ, भारत में तो डेढ सौ लोगों को भी एक साथ लम्बा टूर करवा चुका हूँ परन्तु पन्द्रह बीस लोगों को अपनी जिम्मेदारी लेकर पहली बार विदेश लेकर आया था, इसलिए बहुत कुछ सीखने भी मिला।
पारो की हवाई पट्टी
छ: अप्रेल की सुबह सभी नहा धोकर आठ बजे निवृत हो गए। बस तक सामान पहुंचाने एवं निकलने वही नौ बज गए। पारो से हम जब निकल रहे थे यहां का एयरपोर्ट भी देखना था। इस एयरपोर्ट को दुनिया के दस खतरनाक हवाई अड्डों में से एक माना गया है। हमारी बस जब एयरपोर्ट से निकल रही थी तो एक प्लेन लैंड कर रहा था। बहुत ही सुंदर अवसर था विमान की लैंडिग देखने का। यह कभी कभी ही मुनासिब हो पाता है, जब आप निकल रहे हो और आपको टेक ऑफ़ करता या लैंड करता प्लेन दिख जाए। एक स्थान पर हमने बस रुकवा ली। सभी उतरकर यह नजारा अपने कैमरे में कैद करने लगे।
लाल घेरे में लैंड करता हूआ प्लेन
इसे खतरनाक माने जाने का कारण यह है कि यह चारों तरफ़ पहाड़ियों से घिरा है और यहाँ विमान उतारना एवं उड़ाना दोनो ही कठिन है। इसलिए यहाँ सिर्फ़ रायल भूटान की फ़्लाईट उसके कुशल पायलटों द्वारा उतारी जाती है। यहाँ के राजा के पास दो प्लेन हैं, जो कोलकाता से सवारियां लाने ले जाने का काम करते हैं। ये प्लेन अस्सी सीटर हैं, परन्तु सुरक्षा के लिहाज से सत्तर सवारियों को ही स्थान दिया जाता है, दस सीटें खाली रखी जाती हैं। यहाँ के पायलटों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है, इन पायलेटों एक भूटान के राजा के ससुर भी हैं। जो बड़ी जिम्मेदारी के तहत निरंतर पारो से विमान उड़ान का कार्य करते हैं।
ड्रुक एयर भूटान
यह विमानतल पारो नदी के तट पर उसके कैचमेंट एरिया में बना हुआ है। यहाँ से थिम्पू राजधानी की दूरी एक डेढ घंटे की है। हवाई जहाज से आने वाले यात्रियों को पारो में उतरकर थिम्पू जाना पड़ता है। हवाई अड्डे की सजावट किसी बौद्ध मोनेस्ट्री जैसी ही की गई है। प्लेन का हवाई पट्टी पर उतरना बड़ा ही रोमांचक लगा, जब छोटी सी हवाई पट्टी पर पारो नदी के किनारे विमान लैंड कर रहा था। यहाँ की फ़्लाईट की बुकिंग ऑन लाईन नहीं होती, कुछ एजेंटों के माध्यम से मनमाने मुल्य पर टिकिटें बेची जाती है। चारों तरफ़ पहाड़ियों से घिरे होने के कारण विमान यात्रा रोमांचक हो जाती है और चाहे नास्तिक ही क्यों न हो, यात्री एक बार तो अपने ईष्ट देव को स्मरण कर ही लेते हैं। जारी है आगे पढें…॥

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