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शनिवार, 20 अगस्त 2016

बाबू घाट की सुनहली सांझ

आरम्भ से पढ़ें 
हम पारो से लगातार चलते हुए तीन बजे फ़ुंतशोलिन पहुंचे। यहां से हमे छोटी गाड़ियों से न्यू जलपाईगुड़ी जाना था। फ़ुंतशोलिन पहुंच कर देखा कि वहां सिर्फ़ दो गाड़ियां आई हैं और हम कुल सत्रह लोग थे। टूर आपरेटर ने फ़ोन करके और गाड़ियों के लिए बोला तो पता चला कि मोदी जी के आगमन के कारण सभी गाड़ियां बुक हो गई हैं। मैने सोचा कि एक गाड़ी में द्वारिका प्रसाद जी एवं संतराम तारक जी का परिवार कुल सात नग चले जाएंगे। बाकियों के लिए और गाड़ी का इंतजाम हो रहा था। 
पारो का सुंदर दाचेन हिल रिसोर्ट
इंतजाम नहीं हुआ तो जैसे-तैसे हम लोग एक गाड़ी से पहुंच जाएंगे। इनको तकलीफ़ नहीं होगी, क्योंकि संग में महिलाएं भी थी। संतराम तारक जी का सामान उस गाड़ी में चढा दिया गया। जब ये गाड़ी में बैठे तो श्रीमती द्वारिका अग्रवाल ने कह दिया कि इस गाड़ी में तो हमारी फ़ैमिली जाएगी। तारक जी गाड़ी से उतर गए। अब इतना समय नहीं था कि कैरियर में बंधे हुए सामान को खोलकर फ़िर से निकाला जाए। मैने उस गाड़ी में नवीन तिवारी जी और राजेश अग्रवाल जी को भेज दिया और गाड़ी रवाना कर दी।
दाचेन हिल रिसोर्ट के कर्मचारी
इसके बाद एक छोटी कार आई उसमें ललित वर्मा टीकाराम वर्मा एवं संतराम तारक जी को सपत्नी भेज दिया । इसके बाद एक और गाड़ी की व्यवस्था हो गई, जिसमें मैं बिकाश, हेमंत, अंकित एवं राजेश सेहरावत आदि सबसे आखिर में चले। इसमें बसु दा भी साथ थे, उन्हें हासीमारा छोड़ना था। द्वारिका प्रसाद जी की गाड़ी को निकले आधा घंटा से अधिक हो चुका था। बसु दा को हासीमारा छोड़कर हम आगे बढे। हमारा ड्रायवर होशियार था, उसने गाड़ी सिलीगुड़ी ले जाने की बजाय एक अन्य रोड़ पर डाल दी। हम बांध के उपर से चलते हुए न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचे। दार्जलिंग मेल के चलने में मात्र पन्द्रह मिनट का समय बचा था।
दाचेन हिल रिसोर्ट के कर्मचारी
सतराम तारक जी अपने सामान की प्रतीक्षा कर रहे थे। मै द्वारिका प्रसाद जी के फ़ोन में घंटी बजा रहा था पर वे फ़ोन नहीं उठा रहे थे। आखिर में जब पांच मिनट बचे तो राजेश सेहरावत ने संतराम जी का बाकी सामान उठाया और दौड़ते हुए ट्रेन तक पहुंचे। हम लोग चिंतित थे कि इन लोग अभी तक नहीं पहुंचे हैं, गाड़ी के पास पहुंचकर देखा तो सारे लोग पहुंच चुके थे। जिनके कारण हमे विलंब हुआ और हम गेट पर खड़े होकर इंतजार करते रहे। हमारे ट्रेन में चढते ही वह चल पड़ी। अगर हम पारो से आठ बजे भी निकल लिए होते तो भागते हुए ट्रेन नहीं पकड़नी पड़ती। बिकास, अंकित और हेमंत यहीं रह गए। उनकी टेन हमारे बाद थी। हम एक ही बोगी में राजेश सेहरावत, संतराम तारक जी, राजेश अग्रवाल आदि थे। भोजन साथ में किए और सो गए।
फ़ुंतसोलिन की चेक पोस्ट
 सुबह हम कलकत्ता पहुंचे तो बसु के बताए होटल में गए, होटल बहुत घटिया सा था। उसने कहा नान एसी रुम खाली नहीं है। एक एसी रुम है पन्द्रह सौ में। मैने वह रुम ले लिया, क्योंकि मुझे अब अन्य किसी स्थान पर होटल ढूंढने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोचा कि जैसा भी है, यहीं टिका जाए। शाम को तो यहां से निकलना है। बाकी लोग हावड़ा के लिए चले गए। मैं नहा धोकर आराम करने लगा। तभी याद आया कि यहां किशन लाल बाहेती जी रहते हैं, समय है उनसे ही मिल लिया जाए। फ़ोन लगाने पर उन्हें प्रसन्नता जाहिर की और अपना पता बता दिया। 
किशन जी बाहेती कोलकाता
मैं टैक्सी लेकर उनके बताए पते पहुंचा। उनका एक आदमी मुझे लेकर उनकी दुकान तक गया। उनके भाई साहब के दुकान में आने के बाद वे फ़ारिग हो गए और हम कलकता घूमने चल पड़े। सबसे पहले तो कुछ खाने की सोचे तो मैने कहा कि टिपिकल बंगाली खाना खाया जाए। किशन जी मुझे बंगाली रेस्टोरेंट भजो  हरि मन्ना लेकर गए। कोलकाता में "भजोहरी मन्ना" परंपरागत बंगाली खाने के प्रसिद्ध रेस्टोरेंट की श्रृंखला है, जो भारत के अन्य मेट्रो सिटी में भी पाई जाती है। मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। यह रेस्टोरेंट धरमतल्ला एक्सप्लेनेड मैट्रो के समीप स्थित है। पहुंचने पर देखा तो काफी भीड़ थी, 10 मिनट तक अपनी बारी का इंतजार किया है, भूख चरम सीमा पर थी।

खुद खेंचु दंडिका से पहली सेल्फ़ी बड़ा बाजार कोलकाता
हमने विभिन्न तरह के बंगाली व्यंजनों का ऑर्डर दे डाला। एलिस मछली बंगालियों को सर्वकालिक प्रिय है। इसे विशेष तौर पर मेहमानों के लिए पकाया जाता है। भोजन लगने के बाद विभिन्न तरह की सब्जी दाल चावल सलाद इत्यादि देख कर मन खुश हो गया। एलिस मछली का स्वाद ही कुछ अलग था। इसके साथ ही पातौड़ी माछ का ग्रेडिएंट एवं मसाला बहुत ही पसंद आया। यह एलिस मछली से बाजी मार ले गई। किशन भाई ने निरामिष भोजन किया और हमने दोनों का आनंद लिया। इस तरह कोलकाता की दोपहर एक यादगार बन गई अगली यात्रा में भी कुछ इसी तरह भोजन का आनंद लिया जाएगा।
बाबू घाट कोलकाता से दिखाई देता विद्यासागर सेतु
इसके बाद हम कुछ सामान खरीदने बड़ा बाजार गए, वहां से अंग्रेजों के बसाए पुराने कलकत्ता शहर में चक्कर काटते हुए टैक्सी लेकर बाबू घाट पहुंचे। यहां की शाम देखी। वैसे कोलकाता में बाबू घाट प्रसिद्ध स्थान है। डूबते हुए सूरज की कुछ फ़ोटुएं खींची। इसके बाद किशन जी को डॉक्टर के पास जाना था वे मुझे एक स्थान पर छोड़ कर चले गए और मैं टैक्सी से होटल पहुंच गया। 
पुत्र उदय एव छोटा भाई कीर्ति
होटल से सामान लेकर हम हावड़ा स्टेशन आ गए। यहां राजेश सेहरावत से भेंट हुई। संतराम तारक और राजेश अग्रवाल की सीट भी मेरे ही कोच में थी।  ट्रेन में बैठने के बाद राजेश सेहरावत से विदा ली, उनको दिल्ली जाना था। संतराम तारक जी होटल से खाना लाए थे, हमने सबने साथ ही खाना खाया और सुबह रायपुर पहुंच गए। स्टेशन पर पुत्र उदय एवं छोटा भाई कीर्ती लेने के लिए आए हुए थे…। इति .........

2 टिप्‍पणियां:

  1. "विभिन्न तरह की सब्जी दाल चावल सलाद इत्यादि देख कर मन खुश हो गया।"
    प्याज थी या नहीं, इसका स्पष्ट उल्लेख किया जाय ��

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  2. आपके साथ बिताये सुनहरे पल की याद ताजा हो गयी ।

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