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बुधवार, 24 अगस्त 2016

चीतल मृग - बार नवापारा अभ्यारण्य छत्तीसगढ़

अभ्यारण्य में भ्रमण करते हुए चीतलों का झूंड कई जगह दिखाई दिया। परन्तु मनचाहे चित्र नहीं मिल पाए। इस वन में बुंदिया बाघ (तेंदुआ - बिल्ली का फ़ूफ़ा) भी खासी संख्या है। इसलिए संझा के समय अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है। घास चरने वाले प्राणी सांझ के समय दिन ढलने से पूर्व जल स्रोतों के समीप पानी पीने आते हैं। हमें दूर से तालाब की ओर एक झूंड आते हुए दिखाई दिया। बस अच्छी फ़ोटो की चाह में रुक गए। मादा चीतलों के साथ नर चीतल भी था। 

मैने तालाब के किनारे एक पेड की आड़ ले ली, तालाब तक आने के लिए इनका आधा घंटा इंतजार करना पड़ा। चौकन्ने चीतल धीरे-धीरे अगल-बगल देखते हुए जल पीने के लिए तालाब में उतरे। नर चीतल तालाब की मेड़ पर चौकस खड़ा हो कर चौकीदारी कर अपने नर होने का दायित्व निभा रहा था। मैने पेड़ की आड़ से एक के बाद एक कई चित्र लिए। तभी मेडाडोर में सवार पीए-खाए लोग हल्ला मचाते पहुंच गए। 

उनकी आवाज सुनकर सारे चीतल भाग गए। गुस्सा तो इतना आया कि मत पूछो। पर क्रोध पर नियंत्रण करना भी योग ही माना जाता है। खुले में वन्य प्राणियों के अच्छे चित्र मिलना भी किस्मत की बात ही होती है। चीतलों के शिकार की खबर अखबारों में आते रहती है। शिकारी इसे मांस के लिए मारते हैं। फ़िर भी भारत में ये काफ़ी संख्या में दिखाई देते है, पर पाकिस्तान में तो सारे चीतलों को मार कर खा गए, इसलिए वहाँ इनकी संख्या बहुत ही कम है। 


बार नवापारा अभयारण्य रायपुर से लगभग 100 किमी की दूरी पर कलकत्ता मार्ग पर है। यहाँ पिथौरा होते हुए भी जा सकते हैं और बलौदाबाजार से भी जाना हो सकता है। बार नवापारा के अतिरिक्त श्री लंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश में भी चीतल पाए जाते हैं। बार के जंगल में इनका उन्मुक्त विचरण काफ़ी राहत देता है। जरुरत है इन्हें इस प्राकृतिक आवास में शिकारियों से बचाने की……।

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