वनांचल के निवासी निरंतर प्रकृति से जुड़े रहते हैं, नदी, पर्वत, वन एवं वन्य पशुओं के साथ अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं के पोषक होते हैं। शुद्ध वायु के साथ हरियाली सेहत को बनाए रखती है। शहर का व्यक्ति भी प्रकृति से जुड़ना चाहता है, उसे देखना, समझना एवं परखना चाहता है, परन्तु जीवन की आपा-धापी में उसके पास भौतिक सुविधाओं की कमी नहीं है, परन्तु प्रकृति से जुड़ने के लिए समय नहीं है। फ़िर भी वह व्यस्ततम समय में से कुछ समय चुरा कर वनों की तरफ़ चल पड़ता है। कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी है, मुझे जंगल, नदी, पर्वत हमेशा आकर्षित करते हैं और इनकी समीपता पाने का प्रयत्न करता रहता हूँ। समय मिलते ही निकल जाता हूँ प्रकृति को जानने, मानव संस्कृति समझने।
कंकालीन मंदिर पेटेचुआ |
इसी कड़ी में एक दिन खारुन नदी की ट्रेकिंग करने का ख्यान मन में आया। क्योंकि सभ्यताएँ, संस्कृतियाँ नदियों के किनारे ही पुष्पित पल्लवित हुई और उनका पतन भी हुआ। उनके अवशेष इन स्थानों पर मिलते हैं। खारुन नदी रायपुर शहर की प्राणदायिनी है। शहर में पेय एवं उद्योगों आदि के लिए इसी नदी से जल लिया जाता है। इसलिए तय हुआ कि खारुन नदी के उद्गम से संगम तक की पदयात्रा की जाए, इस पदयात्रा से खारुन द्वारा पोषित ग्रामों का इतिहास, संस्कृति एवं वर्तमान जान पाऊंगा।
खारुन उद्गम पेटेचुवा में नारायण साहू के साथ |
अब बारी थी योजना को अमलीजामा पहनाने की। नये स्थान से पदयात्रा प्रारंभ करना और जहाँ कोई पहचान का भी न हो तो काफ़ी कठिन कार्य हो जाता है, यदि स्थानीय निवासियों का सहयोग न मिले तो। इस विषय में एक दिन मैने मित्र नारायण साहू से चर्चा की, वे तैयार हो गए। मैने तय किया था कि उद्गम तक मोटर सायकिल से जाएंगे। परन्तु नारायण साहू ने कहा कि कार से चलेंगे। मामला फ़िट हो गया और अगले दिन सुबह हम खारुन के उद्गम की ओर चल दिए। खारुन का उद्गम पेटेचुवा ग्राम में है, जिसे स्थानीय लोग कंकालीन भी कहते हैं। रायपुर से पेटेचुआ की दूरी 115 किमी है। चारामा घाट के नीचे से मरका टोला नामक ग्राम है, यहाँ से पेटेचुवा लगभग तीन-चार किमी की दूरी पर है।
खारुन नदी |
हमने ठंड से बचने का सामान ले लिया था, परन्तु ओढने एवं बिछाने के सामान का ध्यान नहीं रहा। इसकी जरुरत वहाँ पहुंचने पर पता चली। पेटेचुवा हम दोपह्रर को पहुंचे, कंकालीन माता के मंदिर के समीप गाड़ी खड़ी की। मंदिर के समीप ही सायकिल पंचर बनाने की एक दुकान एवं छोटा सा चायपानी का होटल था। इस ग्राम में हम पहली बार आए थे, इसलिए कोई पहचान का नही था।
मंदिर परिसर का भीतरी पैनारामा दृश्य |
होटल में चाय बनवाई और चाय पीते हुए खारुन नदी के उद्गम की चर्चा की। सायकिल दुकान वाला हमें खारुन नदी के उद्गम पर ले जाने के लिए तैयार हो गया। उसके साथ हम पैदल चलकर नायक तालाब पहुंचे, इस तालाब से झरिया से पानी निकलता है, जो खेतों से बहते हुए आगे चलकर कंकालीन नाले का रुप ले लेता है। यह नाला मंदिर के दाईं तरह से होकर जंगल में चला जाता है और मैदान में पहुंच कर खारुन नदी नाम पाता है।
खारुन नदी के प्रारंभ स्थल पर |
तालाब बहुत बड़ा था, मंदिर के पुजारी रामकुमार ने बताया कि इस तालाब का रकबा सत्रह एकड़ है। पुरखे बताते थे कि इसका निर्माण नायक लोगों ने कौड़ी पैसे में कराया था, पहले इस जगह पर एक झरिया था, जिसमें पेड़ का खोल गाड़ा हुआ था, ग्रामवासी उसी जल से अपना निस्तार करते थे। प्राचीन काल में नायक बंजारे अपनी गाड़ियों में सामान भर कर बेचने आते थे। उनके काफ़िले के लिए पानी की जरुरत पड़ती थी,
नायक तालाब पेटेचुवा, इसी तालाब से खारुन नदी का उद्गम हुआ |
पानी की जरुरत को पूरा करने के लिए उन्होंने गांव वालों को मजदूरी देकर इस तालाब का निर्माण कराया, जिसके कारण इसे नायक तालाब कहा जाता है। रामकुमार की बातों से पता चला कि यह तालाब प्राचीन है। छत्तीसगढ़ में अन्य स्थानों पर भी बनजारों ने तालाबों का निर्माण कराया। अभनपुर के जनपद के एक ग्राम का नाम ही नायकबांधा है। अवश्य ही इसका संबंध नायकों द्वारा बनवाए गए तालाब से ही है। इसके बाद मुझे नायकबांधा नामक एक अन्य ग्राम महासमुंद के समीप भी मिला तथा पिथौरा में नायक लोग अभी भी रहते हैं।
नायक तालाब का निरीक्षण करते हुए |
कंकालिन मंदिर से खैरडिगी ग्राम की दूरी लगभग सात किमी है। इस सात किमी में सघन वन है, इसके बाद मैदानी क्षेत्र प्रारंभ हो जाता है। हमारी नदी ट्रेकिंग का यही कठिन हिस्सा था। इसलिए हमने ट्रेकिंग को अगले दिन पर टाल दिया और रात के खाने का सामान लेने गुरुर ग्राम चले गये। हमारे साथ धमतरी से सुनील बरड़िया भी आये थे, उन्हें भी गुरुर से धमतरी वापसी के लिए बस पकड़वा दी। हम रात का खाना लेकर कंकालीन लौट आये। जारी है… आगे पढे
अगले पोस्ट के इंतजार में।
जवाब देंहटाएंखारून नदी के उदगम ठउर जाने के बाद अब अगोरा हवय अवइया कड़ी के सादर...
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर
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