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सोमवार, 19 दिसंबर 2016

भालु खांचा: खारुन नदी की रोमांचक पदयात्रा

कंकालीन मंदिर में पक्का हाल भी बना हुआ है, वहाँ रात काटने के लिए हमने रामकुमार से चर्चा की तो वह हमें स्थान देने के लिए तैयार हो गया और एक दरी हमारे सोने के लिए भी बिछा दी। रात बातचीत करते हुए सुबह का कार्यक्रम बनाते हुए गहरी होती गई। 
सफ़र का साथी पोयाम
लगभग बारह बजे के बाद नींद आई। सुबह की चाय के लिए मैने रामकुमार से कह दिया था। सुबह के खाने के लिए मैने रामकुमार कोमर्रा को घर से अंगाकर रोटी और टमाटर की चटनी बनाने के लिए रुपए दे दिए। ग्राम के तीन चार लोग हमारा मार्ग दर्शन करने के लिए तैयार हो गए।
दोपहर का भोजन अंगाकर रोटी
इस यात्रा में मेरा एक साथी बना बन्नु सिंह उकै। इसके पास छ: एकड़ की किसानी एवं बीबी-बच्चे सब हैं, पर घुमक्कड़ जीवन व्यतीत कर रहा है। भोजन बनाने के लिए जर्मन के दो बर्तन, एक लाल रिफ़िल का पेन, फ़ुल स्केप का पेपर, थैली में तम्बाखू चूना की पुड़िया तथा चिलम ही इसकी कुल सम्पत्ति है। जिसे हमेशा साथ रखता है। सुबह हमारी नींद खुली तो बन्नु राम ने नदी के किनारे चूल्हा बना एवं जलाकर गुड़ की लाल चाय पिलाई। चाय पीकर तबियत तर हो गई क्योंकि मुझे सुबह की चाय की आवश्यकता होती है। उसके बाद दिन भर चाय की कोई दरकार नहीं। लगा कि बिगबॉस का लक्जरी आयटम मिल गया।

बन्नु सिंह ऊकै
हम लोगों के दैनिक कार्यों से निवृत्त होते तक बन्नु सिंह नदी में नहाकर आ गया और उसने चूल्हे में राहर दाल बनने के लिए चढा दी थी। मेरे लिए आंवला वृक्ष की दातौन तोड़ लाया। मेरे दातौन मुखारी करते तक भोजन तैयार हो गया। भोजन करने से पहले उसने बालों में तेल लगाया और डबरा के जल में चेहरा देखकर जुल्फ़ों को संवारा। फ़िर लहसुन, टमाटर एवं मिर्च का तड़का देकर दाल फ़्राई की। जिस सलीके से उसने सीमित संसाधन में भोजन तैयार किया उससे लगा कि बन्नु सिंह भोजन का शौकीन है।

खारुन नदी पदयात्रा प्रारंभ
सुबह छ: बजे रामकुमार अपने साथियों के साथ आ गया, साथ में बड़ी-बड़ी तीन अंगाकर रोटी एवं टमाटर मिर्च की चटनी भी लाया। रोटी के एक टुकड़े का नाश्ता करके हम ट्रेकिंग पर चल पड़े। कंकालीन मंदिर से पथरीला उबड़ खाबड़ क्षेत्र प्रारंभ हो जाता है। हम नदी के साथ-साथ ही चल रहे थे। जंगल के भी अपने नियम और कायदे होते हैं। यहाँ अनजान आदमी तो चक्कर काटते ही रह जाएगा। 
सुबह तालाब का दृश्य
जिस तरह शहरों में गली मोहल्लों को नाम रख कर चिन्हित किया जाता है उसी तरह जंगल में स्थानीय ग्रामीण स्थानों को विभिन्न नामों से चिन्हित करके रखते हैं, यही चिन्ह जंगल में रास्ता न भूलने में सहायक होते हैं। बन्नु सिंह बड़ा ही फ़क्कड़ एवं मस्त मलंग है, इसके साथ नदी के आस-पास देखते हुए बात चीत करते रास्ता कट रहा था।
यात्रा मार्ग में भालु खांचा - यहाँ बारहो महीने पानी रहता है।
प्राकृतिक वनों विभिन्न प्रजाति के पेड़ पौधे एवं वनस्पति होती हैं। जिन्हें जंगल का आदमी बराबर पहचानता है और स्थानीय भाषा में उसका नाम रखकर चिन्हांकित कर लेता है। कुछ दूर चलने पर पथरीली धरती पर एक स्थान पर चारों तरफ़ से पानी आकर जमा होता है। इसे भालू खांचा नाम दिया गया है। जंगल में जब पानी की कमी हो जाती है तो भालु इस खांचे में आकर पानी पीते हैं। जारी है …… आगे पढें।

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