भालु खांचा से आगे बढने पर घना जंगल प्रारंभ हो जाता है, पेड़ों पर लटकती लताओं की बेलें मोटी हो जाती हैं। दीमक की बांबियाँ आठ-दस फ़ुट ऊंची हो जाती हैं। इन बांबियों में सांपों का बसेरा रहता है और भालू भी इनके आस पास दीमकों की तलाश में पहुंचते हैं।
पदयात्रा दल: लगभग दस फ़ुट ऊंची बांबी के साथ |
नदी अब चट्टानों के बीच से होकर बहने लगती है। नदी के मार्ग में बड़े बड़े बोल्डर दिखाई देने लगते हैं। बोल्डरों पर से होकर चलना कठिनाई भरा था। पैर फ़िसलने पर चोट लगने की आशंका बढ जाती है। इसलिए चाल धीमी हो गई और हर कदम जमीन देख कर रखना पड़ रहा था।
भकाड़ू डबरी |
आगे बढ़ने पर एक तालाब दिखाई दिया। पूछने पर बन्नु सिंह ने बताया कि इसे भकाड़ू डबरी कहते हैं। इसका निर्माण जंगलात वालों ने वन्य पशुओं के पानी पीने के लिए बनाया है। नामकरण के पीछे की कहानी पूछने पर रामकुमार ने कहा कि हमारे गाँव में निषाद जाति का भकाड़ू नाम व्यक्ति रहता था। उसका विवाह नहीं हुआ। गांव में अविवाहित आदमी की कोई कदर नहीं होती और भले ही न हो, पर उसे हमेशा नीयतखोर समझा जाता है।
भकाड़ू डबरी में धुंए के छल्ले बनाता बन्नु सिंह |
भकाड़ू की वृद्धावस्था में मृत्यु हो गई तो गांव वालों ने उसके दाह संस्कार के लिए गांव में जगह नहीं थी। जगह न देने की पीछे डर था कि मरने बाद वह रक्सा (कुंवारा प्रेत) बनकर गांव वालों को हलाकान करेगा। गांव वालों ने सहमति से इस तालाब के किनारे उसका दाह संस्कार किया। तब से इस तालाब को भकाड़ू डबरी कहा जाता है।
नदी में बेचांदी कांदा प्रसंस्करण: नाहर डबरी |
बातचीत करते हुए हम संभल कर चल रहे थे। आगे चलकर नदी का पाट थोड़ा चौड़ा हो जाता है, दोनों किनारों पर बड़ी बड़ी चट्टाने हैं। इस जगह पर नदी का पानी थोड़ी गहराई लिए हुए ठहरता है। दूर से हमें कुछ लोग नदी के किनारे कुछ चमकीली सी चीज धोते हुए दिखाई दिए। समीप पहुंचने पर देखा कि ये लोग एक कंद की चिप्स बनाकर धो रहे थे। इस काम में चार पांच परिवार लगे हुए थे। चिप्स को धो कर चट्टानों पर सुखाया हुआ था। इस स्थान को नाहर डबरी कहते हैं।
बेचांदी कांदा की चिप्स धोते हुए |
यहां हमारी भेंट तिहारु राम सोरी से हुई। उनका परिवार भी कंद का प्रसंस्करण कर रहा था। उसने इस कंद का नाम बेचांदी कांदा बताया तथा कहा कि इसमें बहुत नशा होता है। अगर इस कंद का गेंहूं के बराबर का दाना किसी को खिला दिया जाए तो उसके मांस पेशियां जाम हो जाती है अत्यधिक नशे में व्यक्ति शिथिल हो जाता है।
नाहर डबरी: खारुन पदयात्रा |
डाक्टरी इलाज से भी इसका नशा नहीं उतरता। जब इसके नशे की मियाद पूरी होती है तो स्वत उतरता है। इस कंद के चिप्स बनाकर ये बाजार में ले जाते हैं, जहाँ व्यापारी दवाई बनाने के लिए अस्सी रुपए किलों में खरीदते हैं। यहाँ आधे घंटे विश्राम कर हमने जल ग्रहण किया। अब हमारे दल में तिहारु राम भी जुड़ चुके थे।
अइरी बुड़ान |
उबड़ खाबड़ चट्टानों पर चलना दुखदाई भी था, परन्तु आगे की सोच कर रोमांच भी हो रहा था। यही रोमांच हमें आगे खींच कर ले जा रहा था। आगे चलकर अरई बुड़ान नामक स्थान आया। यहाँ पर नदी की धार में एक छोटा सा रेतीला टीला है, जिसके आस पास काफ़ी जानवरों के खुरों के चिन्ह दिखाई दिए।
नमकीन मिट्टी: यहां जानवर नमकीन मिट्टी चाटने आते हैं। |
इस स्थान की मिट्टी नमकीन है, जिसे चाटने के लिए वन्य पशु आते हैं। इस स्थान पर मछलियां भी खूब मिलती है, इसलिए अइरी नामक पक्षी भोजन की तलाश में डेरा डाले रहते हैं। अइरी पक्षी के नाम पर इस स्थान का नाम अइरी बुड़ान हो गया।
उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरती नदी का एक अलग ही रोमांच होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
मजा आ गया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंभकाड़ू डबरी,बेचांदी कांदा,अइरी बुड़ान...बेहद रोचक।
जवाब देंहटाएंEnjoy reading
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट का इंतजार रहेगा गुरूदेव
जवाब देंहटाएंबहुते बढ़िया
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर ,मनभावन आगे का वृत्तांत कि प्रतीक्षा है ।
जवाब देंहटाएं