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शनिवार, 7 अगस्त 2010

सबके अपने-अपने कल्लु खाँ

कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है, हरियाली भी तेजी से बढ रही है। पशुओं के लिए भरपूर चारा है तो मनुष्य के लिए मच्छर और बीमारी।

हमारे घर पर हरियाली आई
इन सबसे अलग सोचे तो हरियाली आंखो को भा रही है, हरी-हरी घास में लोटने का मन करता है लेकिन फ़िर सांप और बिच्छुओं का ख्याल आते ही मन मार कर रह जाना पड़ता है।

क्या पता मखमली घास के नीचे किस जन्तु का डेरा हो। इसलिए संभल कर चलना पड़ता है। आज शाम को कुछ देर के लिए धूप खिली।

जो घास के हरियाले रंग में परिवर्तन कर रही थी। बस इस सुंदर दृश्य को आंखों में बसा लेने का दिल किया। लेकिन आँखे स्थाई रुप से इसे संजोकर नहीं रख सकती, इसलिए कैमरे की आँख ने दृश्य को कैद कर लिया।

चारों ओर हरियाली ही  छाई
चित्र लेते समय गालिब का एक शेर याद आ रहा था " उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा गालिब, हम बयांबां में है घर में बहार आई है।" इस तरह बहार हमारे घर भी आई है और हम उसे देखने की बजाए, कम्प्युटर पर पिले पड़े हैं।

ऐसा ही कुछ गालिब के साथ भी हुआ होगा। तभी बहार और बयांबां का जिक्र आया है। चांदनी चौक के करीम ढाबे पर तो हरियाली नहीं तो बहार जरुर आई होगी। जिस पर मिर्जा साहब ने शेर कहे होगें और जामों के साथ साकी और दोस्तों ने जी भर दाद दी होगी।

जिसकी सदा कुचा-ए-बल्लीमरान तक उनकी बेगम सुनी होगी और कल्लु खाँ को खैरियत लेने फ़ौरी तौर पर भेजा होगा। पता नहीं कल्लु खाँ ने क्या-क्या नहीं कहा होगा, नमक मिर्च लगा कर।

देखो फ़ूल भी खिले हैं रंग रंगीले
ऐसा ही कुछ हम दोस्तों की महफ़िल में भी होता है। सभी का समय तय है और कल्लु खाँ की एवज में हाजरी चलभाष(कानाबाती) लगा देता है।

एक मित्र की बे-गम तो शाम 7 बजे ही छोटे लड़के को ड्युटी पर लगा देती है, वह अपने बाप की हर मुव्हमेंट की खबर माँ तक पहुंचाता है, फ़िर महफ़िल जमते ही वहां से दो चक्कर लगाता तीसरे चक्कर की बजाए, उनका चलभाष गुर्राता है, कानाबाती होती है।

सिर्फ़ हां, हूं और हूं के कोड वर्ड में बात खत्म हो जाती है, फ़िर खीसे निपोरते हुए कहते हैं-"घर से फ़ोन था, कह रही थी, मौसम खराब है, ज्यादा मत हरिया जाना।" तभी एक कह उठता है-"साले सब तेरी चाल है,तीसरे पैग में ही भाग लेता है।" वह फ़िर दांत निपोरता है। शायद गालिब के साथ भी ऐसा ही होता हो।
बरगद पर भी है हरियाली छाई
बरसों से हमारा चलभाष 9 बजे के अलार्म के साथ स्थाई रुप से स्थापित हो गया है, जैसे ही 9 बजता है, बिना कल्लु खाँ के आए ही वह चुपके से बता देता है कि-"अब फ़ुल हरियाली हो गयी है, ज्यादा हरियाणा ठीक नहीं है, नही तो पहले पंजाब , फ़िर हि्माचल, फ़िर बिहार होता हुआ कालाहांडी पहुंच जाएगा मामला, सारी हरियाली उतर जाएगी। 

अब चल पड़ो और सूखे से डरते रहो। अगर सूखे से डरते रहोगे तो हरियाली बनी रहेगी। जहांपनाह का जलवा कायम रहे हरियाली के साथ,"- कह के दोस्तों से विदा लेते हैं।

धीरे-धीरे सब चल पड़ते हैं क्योंकि सबके अपने-अपने कल्लु खाँ हैं, वहां दो ही बच जाते हैं साकी और ढाबे वाला, जिनके लिए बारहों महीना हरियाली है।

21 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया जी
    सुबह सुबह आपके खेतों की हरियाली के हमने भी दर्शन कर लिए

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  2. बे-गम
    और
    घर से फ़ोन था, कह रही थी, मौसम खराब है, ज्यादा मत हरिया जाना।"
    मजा आ गया जी।

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  3. उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा गालिब, हम बयांबां में है घर में बहार आई है।

    बहुत खूब, लाजबाब !

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  4. सुंदर चित्रों से सुसज्जित अच्‍छी पोस्‍ट .. सुबह सुबह हरियाली के दर्शन हो गए !!

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  5. बढिया मौसम लग रहा है। कहो तो आ जाऊं छत्तीसगढ।

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  6. वाह! पढ़कर सुबह सुबह मन हरा हो गया!

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  7. बहुत खूब ललित जी , प्रकृति की गाथा है यह !

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  8. वाह वाह जी बहुत मजा आ गया,प्रकृति की सुंदरता देख कर दिल बाग बाग हो गया. धन्यवाद

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  9. भैय्या चारों तरफ अब हरियाली फुल्लम्फुल हो गई है जैसे धरती ने हरी चूनर पहिन ली हो .....

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  10. अति सुन्दर.........
    आपका आलेख पढ़ कर दिल ये गदगद हो गया।
    भाव-नगरी की सुहानी वादियों में खो गया॥
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  11. हरियाली देख हरिया गये भई..बढ़िया

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  12. आँखों की नज़र तेज हो गयी इस हरियाली को देख कर.

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  13. हम तो पढ़ और देखकर ही हरिया गये ।

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  14. कलाकार की यही खूबी होती है कि वो कल्पना के घोड़े खूब दौड़ा लेता है ..आप तो ग़ालिब के जमाने की सैर भी कर आए ।

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  15. ऐसी इच्छा हो रही है कि बोरिया बिस्तर लेके आपके यहीं डेरा डाल दें कुछ दिनों के लिये.

    रामराम.

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