Menu

रविवार, 11 दिसंबर 2011

अरे! मारिए दू चार गदा इनको -- ललित शर्मा

सुबह का नाश्ता
प्रारंभ से पढें
रात खूब सोना बनाया, मन-तन की थकान दूर हो गयी थी। चिड़ियों की चहचहाट सुनाई दे रही थी, बाहर बरामदे में गौरैया फ़ुदक रही थी। बरामदे में ही कुर्सी डालकर बैठा, चाय वाला भी आ गया। मैने कहा कि डबल चाय चाहिए, रात की खुमारी उतराने के लिए। काफ़ी दिनों से स्नान के लिए गर्म पानी नहीं मिला, ठंडे पानी से ही हर हर गंगे कर रहे थे। आज भी कोई चांस नहीं था गर्म पानी मिलने का। हवा में थोड़ी ठंडक थी, पर नहाना ही था। कभी-कभी नहाना भी बड़ी मजबुरी बन जाता है। डबल चाय ने राहत दी, इंजन गर्म हो गया, अब ठंडे पानी का कोई खास असर नहीं होने वाला था। चलो नहा लिया जाए, गायत्री मंदिर में साथी प्रतीक्षा कर रहे थे। पंकज भी तैयार हो चुका था, हम गायत्री मंदिर की ओर चल पड़े। आज नाश्ते में सिर्फ़ दही और केला खाया। सुबह - सुबह दही केले की ही दरकार थी, आधे दर्जन केले दही के साथ पेट के हवाले किए और पंकज ने चने और मुंग लिए। आगे बढे तो एक स्थान पर सायबर कैफ़े दिख गया। वापस आकर यहीं डेरा डालने का इरादा बना। राम लला के दर्शन करने वालों की कतार लगी थी। हमें तो गायत्री मंदिर जाना था.

कनक भवन में सामुहिक फ़ोटो
गायत्री मंदिर पहुंचने पर देखा कि सभी साथी तैयार हो गए हैं और अग्निहोत्र भी सम्पन्न हो चुका है। कहने लगे चलिए अब किधर चलना है? जिधर रास्ता जाता है उधर ही चलना है, कम से कम अयोध्या की गलियों को तो घूम कर देखा जाए। यहां घूमने के लिए तो लोग किराया भाड़ा खर्च करके आते हैं। पैदल - पैदल हम लोगों का दल निकल पड़ा दर्शन को। सबसे पहले रास्ते में आया कनक भवन। बड़ा ही सुंदर बना है, कहते हैं कि ब्याह कर आने के बाद सीता जी को माता कैकयी ने उपहार स्वरुप यह महल दिया था। यह भवन सीता एवं श्री राम जी का निज भवन माना जाता है, यहाँ इन दोनो के अतिरिक्त किसी तीसरे की मूर्ति स्थापित नहीं है। स्वर्ण आभा भवन आलोकित हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि सोने का ही बना हो। 

दशरथ महल
किवदंती है कि कनक भवन 5 कोस में बना था। इसकी भव्यता देखते ही बनती थी। वर्तमान में बना हुआ कनक भवन 300 साल पुराना है, इसे ओरछ स्टेट मध्यप्रदेश की महारानी ब्रृजभानि कुंवरी ने ईश्वरीय प्रेरणा से बनवाया था और ऐसा ही एक मंदिर ओरछा में भी बनवाया। मंदिर के प्रांगण में हमने स्मृति स्वरुप एक सामुहिक चित्र भी लिया। ताकि सनद रहे वक्त जरुरत पर काम आवे। कनक भवन से आगे हनुमान गढी की तरफ़ आने पर राजा दशरथ का महल पड़ता है। इस महल के सामने दुकान एवं होटल वालों का कब्जा है, यत्र-तत्र गंदगी बिखरी हुई थी। हम दशरथ जी का महल देखने पहुंचे। आरती हो रही थी, आरती के बाद कुछ देर बैठकर साथियों ने वहां कीर्तन किया,"श्रीराम जय राम जय जय राम, सीता राम मनोहर जोड़ी, दशरथ नंदन जनक किशोरी"। कीर्तनोपरांत बाहर आए तो मंदिर परिसर में ही। 

सुग्गे की भवि्ष्यवाणी
सुग्गा भविष्य बता रहा था। मुझे सुग्गे की फ़ोटो की जरुरत थी, इसलिए पंकज को फ़ोटो लेने का ईशारा करके सुग्गे वाले से भविष्य दिखाने लगा। 5 रुपए में एक कार्ड निकलवा रहा था। मुझे देख कर और भी साथी भविष्य जानने लग गए। सुग्गे वाले पहले मेरा नाम पूछा और फ़िर सुग्गे ने मेष राशि का कार्ड निकाल दिया। सब हाथ की सफ़ाई का कमाल था। उसने 12 राशियों  के कार्डों पर अलग अलग पहचान चित्र बना रखे थे, चिड़िया को पिंजरे से निकाल कर उसके सामने 4-5 कार्ड ले जाता था, वह उस लिफ़ाफ़े से कार्ड नहीं निकालती थी। जिस कार्ड के सामने काले रंग ला टेप लगा था उसे ही चिड़िया निकालती थी, मैने यही ध्यान से देखा। सबकी पेट रोजी लगी है, सभी का अपना अपना धंधा है।

कार्ड निकालता सुग्गा
मैने कार्ड निकलवाए तो साथियों ने भी देखा देखी निकलवाने शुरु कर दिए,चौरसिया जी, नीरु, गणेशु, सुखचंद यादव एवं अन्य लोगों ने भी सुग्गे से कार्ड निकलवाए, सुखचंद जी के कार्ड में भविष्य में होने वाली कुछ समस्या निकल आई , चश्मा न होने के कारण उन्होने अपना कार्ड देवयानी चंद्राकर से पढ कर सुनाने कहा। भविष्यवाणी उनकी पत्नी ने भी सुन लिया। वह बोली - (तेखरे सेती त मैं मना करत रहेवं, अब भुगत तैंहा, आनी-बानी के गोठ बतावत हे) इसीलिए तो मैं मना कर रही थी, अब देखो सब गड़बड़ भविष्य बता रहा है। सुनते ही सुखचंद जी का पारा चढ गया - मैं तो कमावत हंव न, तोला काय परे हे, चुप राह" (मैं तो कमा रहा हूँ, तेरे क्या लेना देना! चुप रह) अगर वह चुप न होती तो वहीं दोनो में फ़ायटिंग हो जाती और तीन तलाक की नौबत आ जाती, सुग्गे की भविष्यवाणी सच हो जाती।

ठग्गु के लड्डू
दशरथ महल से दर्शन करने के बाद हनुमान गढी की ओर बढे, पंकज फ़ोटो लेने में मशगूल था, हमने लड्डू लिए और पुन: लाल लंगोटे वाले के दरबार में पहुंच गए। "जय बजरंग बली की, साथियों ने जयकारा लगाया। मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए 76 पैड़ियों से जाना पड़ता है, कहते हैं कि हनुमान जी यहीं गुफ़ा में रहते थे, अब गुफ़ा तो कहीं नजर नहीं आती पर बालरुप में हनुमान जी, माता अंजनी सहित विराजमान हैं। देशी घी का छौंक और विलायती घी के लड्डू इन्हे बहुत रास आ रहे हैं। देशी के नाम  पर विलायती घी के लड्डू बेच कर दुकानदार माला माल हुई जा रहे हैं। डालडा घी के लड्डूओं को देशी घी का बता कर दावे से बेचा जा रहा है। धड़ल्ले से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।

हनुमान गढी का मुख्य द्वार
हमने बजरंग बली से विनती की। आप नगर  के कोतवाल हैं, भगवान ने आपको अयोध्या में रहने के लिए स्थान दिया है। कैसी भर्राशाही चल रही है? पूरा अयोध्या गंदगी से बजबजा रहा है, जहाँ देखो वहीं मल,शौच कचरा पड़ा हुआ है। घर का कचरा लोग सड़क पर ही डाल देते हैं, कहीं भी हगो-मूतो। जितना रुपया देश से अयोध्या के नाम पर लिया गया, अगर उसका एक प्रतिशत ही यहाँ लगा देते तो बाहर से आए दर्शनार्थियों को शर्मिन्दा नहीं होना पड़ता। जरा देखिए वीर हनुमान, इन्हे भी सुधारिए, लंका के रावण को तो सुधार दिया था, इन्हे कब सुधारेगें? आपकी नाक के नीचे ही ठगी-फ़ुसारी का खेल चालु है। अरे! मारिए दू-चार गदा इनको। तभी तो सुधरेगें, लूटम-लूट मचाए हुए हैं। चारों तरफ़ गंदगी फ़ैला रखी है। अयोध्या नगरी का बैंड बजा रखा है। लगता है कि आप अपना हिस्सा पाकर चुप बैठ जाते हैं, कलजुग की बीमारी आपको भी लग गयी। अब टंकी अनशन होगा तभी आपको कुछ सुनाई देगा। नहीं तो आपके खिलाफ़ भी आर टी आई लगाना पड़ेगा।:)

देवयानी चंद्राकर अपना भविष्य बंचवाते सुखचंद यादव
हनुमान गढी से हमें कार्यशाला देखने जाना था जहां पर मंदिर के पत्थरों की घड़ाई हो रही थी। अब यहाँ से हमारा दल दो भागों में बंट गया। आधे इधर गए, आधे उधर गए, बाकी मेरे पीछे आए। हनुमानग़ढी से हम बिरला मंदिर आए, लेकिन मंदिर के पट बंद मिले। दोपहर भी हो रही थी, वहीं सिंधी के होटल में हमने भोजन किया, लगभग 50 लोग तो होंगे ही, महिलाओं की संख्या अधिक थी। होटल वाला भी एक बार में 50 ग्राहक पाकर गद-गद हो गया। दोपहर के भोजन में मैने मीठा दही और रोटियाँ ली। भूख कस के लगी हुई थी, बेरोकटोक रोटियाँ भीतर जाने लगी, बिना टोल टेक्स पटाए ही। तंदूर वाले ने स्पीड पकड़ ली। पर सभी छत्तीसगढिया चावल ही खाने के मुड में थे।

बड़ी भूक लगी है
मदन साहू ने पूछा कि 35 रुपए की थाली में क्या-क्या देते हैं? बैरा ने बताया कि दो रोटी, हाफ़ चावल, दो सब्जी औए एक दाल, अचार, सलाद मिलेगा। मदन लाल जी का पेट एक थाली में भरने वाला नहीं था, उसने पूछ ही लिया कि "एक बार देगें कि मांगने पर दुबारा भी मिल जाएगा? दुबारा लेने पर एक्स्ट्रा चार्ज लगेगा, बैरे ने कहा। मन मसोस कर मदन साहू ने भी आर्डर दे दिया। सभी लोग भोजन करते में एक डेढ घंटा लग गया। अपने-अपने भोजन के रुपए सभी ने अलग-अलग दिए, यहाँ भी समस्या 500 के नोट के खुल्ले की थी। हरिद्वार से अयोध्या तक बड़ी मुस्किल से 500 के नोट के खुल्ले मिले। पता नहीं आज कल लोग 500 और 1000 के नोटों से इतना क्यों घबराने लगे हैं। सहज कोई लेने को ही तैयार नहीं होता। 

मंदिर के लिए शिला तराशते शिल्पकार और हमारा दल
फ़िर एक बार चल पड़े कार्यशाला की ओर। कार्यशाला रामघाट मार्ग पर बनी हुई है। रास्ते में दोनो तरफ़ गंदगी का आलम इधर भी दिखाई दिया, नालियाँ बजबजा रही थी, मुंह पर कपड़ा रख कर चलना पड़ा। रास्ते में जैन मंदिर और घर्मशाला भी देखी। अंत में कार्यशाला पहुचें,यहां 1992 में भारत के कोने कोने से आई रामशिलाएं भी रखी हुई हैं। मंदिर के पत्थरों की गढाई हमारे आने से 15 दिन पहले ही शुरु हुई थी। इस आशय का समाचार अखबारों में पढा था। कुछ राजस्थान के शिल्पकार लाल पत्थरों पर पत्थरों पर कढाई कर रहे थे। मंदिर के लिए सामग्री निर्माण का कार्य विगत 3-4 वर्षों से बंद था। यहाँ पर मंदिर का माडल भी रखा हुआ है। जिससे हमें मंदिर की विशालता का अंदाज लग जाता है। एक जगह रुक कर जिज्ञासु साथियों साथ प्रश्नोत्तरी भी हुई, उनके प्रश्नों के जवाब भी दिए। मुफ़्त का गाईड सभी को अयोध्या भ्रमण करा रहा था।

मणिराम की छावनी
कार्यशाला से निकल कर संकरी गलियों से होते हुए हम मणिराम की छावनी पहुंचे। छावनी के सामने ही वाल्मिकी भवन है, जहां दीवालों पर संगमरमर पत्थर में उकेरी हुई सम्पूर्ण वाल्मीकी रामायाण प्रदर्शित है। दोपहर का समय होने के कारण इसके पट बंद मिले। हम मणिराम की छावनी में प्रवेश किए। पहले यहां महंत नृत्यगोपाल दास जी थे, तीन साल पहले उनका देहावसान हो गया, उनकी जगह दूसरे महंत हो गए हैं। महंत जी भी सोए हुए थे। इस मंदिर में एक स्तम्भ पर ताम्रपत्र पर सम्पूर्ण गीता उकेरी हुई है। यह ताम्रपत्र स्तम्भ पर लगे हुए हैं। हमने कुछ देर यहां आराम किया, कुछ साथी यहाँ से आराम करने गायत्री मंदिर जाना चाहते और कुछ घूमना चाहते थे। हम मणिराम की छावनी से चलकर मुख्य मार्ग पर आ गए। वहाँ महिलाओं ने कुछ खरीददारी की, जुगल साहू के चिरंजीव ने कहा कि अब भरत कुंड चला जाए। अयोध्या भरत कुंड लगभग 15 किलोमीटर है। दर्शन नगर होते हुए जाना पड़ता है। एक आटो वाले को पूछने पर उसने एक तरफ़ का किराया 800 रुपए बताया, हमने उसे जाने दिया, दुसरा आया, उसने प्रति सवारी 20 रुपए जाने का कहा, हमें यह किराया जंच गया। तो उसे वापसी के लिए भी तय कर लिया। 20 रुपए में जाना और 20 रुपए में आना। हम 14 लोग ऑटो में सवार होकर भरत कुंड की तरफ़ चल पड़े। जारी है........। आगे पढें

16 टिप्‍पणियां:

  1. तसल्ली से आपने जो वर्णन किया है हम उसका पूरा लुत्फ़ उठा रहे है, लडडू वाले भी चूना लगाने में कम नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार, हमारी भी तीर्थ यात्रा हो गयी।

    जवाब देंहटाएं
  3. जीवंत वर्णन यात्रा का लाभ दे रहा है !
    रोचक !

    जवाब देंहटाएं
  4. वाणी जी ने सही कहा है, बिलकुल जीवंत वर्णन है, इस पोस्ट के साथ हमने भी अयोध्या के दर्शन कर लिए हाँ थोडा सा गन्दगी का माहौल परेशान कर गया...

    जवाब देंहटाएं
  5. यात्रा में देश के विभिन्न रूपों के दर्शन हो रहे हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही रोचक यात्रा वर्णन। ऐसा लगा जैसे हम भी यात्रा में आपके साथ हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. तीर्थयात्रा में पाठकों को साथ लेने का आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. क्‍या खूब कीमियागिरी. आपके खान-पान का ख्‍याल रखने लायक है.

    जवाब देंहटाएं
  9. मजा आ रहा है पढने में... साथ में यात्रा कर रहे हैं ऐसा लग रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपका यात्रा वृतांत ज्ञानवर्द्धक होता है .. विद्वानों का ज्ञान तोतों के हाथ में देखकर ताज्‍जुब तो होता ही है !!

    जवाब देंहटाएं
  11. बजरंग बली से विनती बहुत ही अच्छी की आपने, समयानुरुप।

    जवाब देंहटाएं
  12. आनन्द आ रहा है. सुन्दर ब्यौरा. पहली लाइन देखते ही चौंक गया. :)

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत जीवंत वर्णन ...तीर्थ यात्रा का पुण्य हमें भी मिलेगा .

    जवाब देंहटाएं
  14. समय का सदुपयोग कर रहे है ललित जी ।

    जवाब देंहटाएं