एक महात्मा दुकान पर खड़ा वहां की चीजों को देख रहा था कि उसे एक ख्याल आया. अपने मन से बोला तेरी बहुत तारीफ़ सुनी है,
कुछ अपनी करतूत तो दिखा. मन ने कहा ठहरो, अभी दिखाता हूँ. वहां पे एक आदमी शहद बेच रहा था. उसने शहद से भरी ऊँगली को दीवार से पोंछ दिया.
दीवार पर शहद लगाने की देर बस थी कि उसकी खुशबु पाकर कुछ मक्खियाँ आ बैठी. शहद खाने लगी. फिर मक्खियों की संख्या बढ़ गयी.
अभी वे शहद खा रही थी कि छिपकली ने देख लिया कि यह तो मेरा शिकार है. उसने छलांग लगायी और शहद समेत कुछ मक्खियों को खा लिया.
उस दुकानदार ने बड़े प्यार से एक बिल्ली पाल रखी थी. बिल्ली छिपकली पर झपटी और उसको एक ही बार में खा लिया.
पास ही एक कुत्ता खड़ा था, बिल्ली पर हमला करके उसको मार डाला. दुकानदार को बहुत गुस्सा आया. उसने नौकरों को कहा मारो कुत्ते को. उन्होंने कुत्ते को डंडे से पीट कर मार डाला.
वह कुत्ता पास ही खड़े ग्राहक का था. उस ग्राहक को बहुत ही गुस्सा आया. उसने दुकानदार को गाली दी.गाली देने की देर बस थी कि दोनों आपस में लड़ने लगे.
दुकानदार के साथ उसके नौकर और ग्राहक के साथ बहुत से लोग. खूब लडाई हुई तो मन ने उस महात्मा से कहा, ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं. मैं लोगों के मन में इच्छाएं पैदा करके उनको मुर्ख बनाता हूँ.
उन बेचारों को पता नहीं लगता कि उनकी इन इच्छाओं का उन्हें क्या फल भुगतना पड़ता है.ऐसे हैं मन के खेल.
कुछ अपनी करतूत तो दिखा. मन ने कहा ठहरो, अभी दिखाता हूँ. वहां पे एक आदमी शहद बेच रहा था. उसने शहद से भरी ऊँगली को दीवार से पोंछ दिया.
दीवार पर शहद लगाने की देर बस थी कि उसकी खुशबु पाकर कुछ मक्खियाँ आ बैठी. शहद खाने लगी. फिर मक्खियों की संख्या बढ़ गयी.
अभी वे शहद खा रही थी कि छिपकली ने देख लिया कि यह तो मेरा शिकार है. उसने छलांग लगायी और शहद समेत कुछ मक्खियों को खा लिया.
उस दुकानदार ने बड़े प्यार से एक बिल्ली पाल रखी थी. बिल्ली छिपकली पर झपटी और उसको एक ही बार में खा लिया.
पास ही एक कुत्ता खड़ा था, बिल्ली पर हमला करके उसको मार डाला. दुकानदार को बहुत गुस्सा आया. उसने नौकरों को कहा मारो कुत्ते को. उन्होंने कुत्ते को डंडे से पीट कर मार डाला.
वह कुत्ता पास ही खड़े ग्राहक का था. उस ग्राहक को बहुत ही गुस्सा आया. उसने दुकानदार को गाली दी.गाली देने की देर बस थी कि दोनों आपस में लड़ने लगे.
दुकानदार के साथ उसके नौकर और ग्राहक के साथ बहुत से लोग. खूब लडाई हुई तो मन ने उस महात्मा से कहा, ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं. मैं लोगों के मन में इच्छाएं पैदा करके उनको मुर्ख बनाता हूँ.
उन बेचारों को पता नहीं लगता कि उनकी इन इच्छाओं का उन्हें क्या फल भुगतना पड़ता है.ऐसे हैं मन के खेल.
ये मेरे खेल हैं, ये मेरे धोखे हैं. मैं लोगों के मन में इच्छाएं पैदा करके उनको मुर्ख बनाता हूँ. उन बेचारों को पता नहीं लगता कि उनकी इन इच्छाओं का उन्हें क्या फल भुगतना पड़ता है.ऐसे हैं मन के खेल. .....
जवाब देंहटाएंयही यथार्थ है...
यही खेल दिखा रहे हैं यह बाबा लोग और भोली जनता मूर्ख बनती रहती है.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कथा लाये!!
बहुत प्रेरक, सार्गर्भित प्रसंग है । धन्यवाद और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंललित जी उस महात्मा को तो नोबेल शान्ति पुरूस्कार देना चाहिए था! हा-हा-हा वैसे कहानी से सबक मिलता है
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं शिक्षाप्रद पोस्ट!
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंग
जवाब देंहटाएंinsan ko yahi bhram to marta hai.narayan narayan
जवाब देंहटाएंसही कहा जी
जवाब देंहटाएंमन ही है जो सारी आपा-धापी की जड है
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प्ररेक post.
जवाब देंहटाएंमन यानि मस्तिष्क का इंद्रजाल
जवाब देंहटाएंवाह रे मन के खेल.
जवाब देंहटाएंऔर बाबाओं का काम क्या है? सारगर्भित लेख.
जवाब देंहटाएंअरे अरे यही तो ब्लागिंग है .... भाई.
जवाब देंहटाएंरामराम
जवाब देंहटाएंसुंदर और शिक्षाप्रद
जवाब देंहटाएंरामराम
मतलब लिंक सही मिल गई ...।
जवाब देंहटाएंman hei baba dikha diya na kamal
जवाब देंहटाएंएक विशुद्ध पोस्ट है ललित जी। बजा फ़रमाया आपने।
जवाब देंहटाएंtattoo studios delhi
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