Menu

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

असोढिया सांप और बैगा से भेंट -- ललित शर्मा

आलमारी के नीचे
रसात होते ही सांपों की आमदरफ़्त बढ जाती है। इस पर एक पोस्ट मैने लिखी थी। असोढिया सांप की पहचान धामन के रुप में हुई। धामन चूहे खाने वाला बड़ा सांप है, इसके विषधर होने की जानकारी नहीं है। पर कहते हैं असाढ में डसने पर डेढ गांजे की चिलम के बराबर नशा होता है, इसकी लम्बाई अधिक होने के कारण खतरनाक दिखता है, इसलिए ग्रामीणों के भय का शिकार हो जाता है। दो दिन पहले यह बाड़े के घर में फ़िर दिखाई दिया। एक कमरे में यह छत से गिर गया। जिसकी सूचना मुझे मिली और मैं दौड़ कर पहुंचा। यह आलमारी के नीचे घूम रहा था। लम्बाई लगभग 8 फ़िट थी। आलमारी से खिड़की  की उंचाई लगभग साढे तीन फ़िट है। यह पूँछ के बल पर खुली खिड़की से बाहर निकलने के प्रयास में था। पूंछ पर सीधा खड़ा हो रहा था। लेकिन खिड़की इसकी पहुंच के बाहर थी। मैं सांप के दिमाग की थाह ले रहा था कि अब ये क्या करेगा?

आलमारी के उपर
फ़ौजी हर तरह की जगह में वक्त गुजारने के लिए अपना अस्थाई आशियाना (टेंट) हमेशा साथ ही रखते है। जंगल, पहाड़, रेगिस्तान, बर्फ़ और पानी में भी रहना पड़ता है। जमीन पर अस्थाई निवास (टेंट) बनाते समय सांप बिच्छुओं से बचने का इंतजाम भी करना पड़ता है, जिससे अनजान जगह पर थकान भरी ड्युटी करके चैन से आराम कर सकें। इनसे बचने के लिए ये अपने टेंट के चारों तरफ़ डेढ गुना डेढ फ़ीट की एक ट्रेंच खोदते हैं, जिसकी मिट्टी टेंट की तरफ़ चढाई जाती है। यह नियम अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे हैं, शोध के उपरातं इन्होने पाया कि कोई भी सांप बिना किसी सहारे के डेढ फ़ीट की जगह को नहीं फ़र्लांग सकता। पूंछ के बल पर भले ही 3 फ़िट खड़ा हो जाए पर जमीन पर सरक कर उसे डेढ फ़ीट फ़र्लांगना मुस्किल हो जाता है  और वह खोदी हुई ट्रेंच में गिर जाता है। जिससे टेंट के भीतर तक नहीं पहुंचता। शायद इसी लिए खाट, तखत, कुर्सी इत्यादि के की उंचाई भी डेढ फ़ीट या 21 इंच रखी जाती है।

आलमारी से खिड़की की ओर
उस सांप को देखकर मेरे मन में यही बात आ रही थी और आज परीक्षण का अवसर भी था। दो चार बार उस सांप ने खिड़की से निकलने की कोशिश की, कामयाबी नहीं मिली। फ़िर वह आलमारी पर चढ गया। आलमारी पर पूंछ के बल खड़े होकर खिड़की ढूंढने का प्रयास करने लगा। उसे खिड़की से आ रही रोशनी दिखाई दे रही थी। बार बार खिड़की तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था। अपनी लम्बाई का फ़ायदा उठा कर खिड़की तक पहुंचना चाहता था। लेकिन प्रयास करने पर गिर पड़ता था। शरीर का संतुलन संभल नहीं रहा था जिसके कारण वह खिड़की तक नहीं पहुंच पा रहा था। मैं उसकी हरकतें शांत होकर देख रहा था। कहीं थोड़ी सी भी आवाज आती तो फ़र्श से भाग सकता था। उसने फ़िर खिड़की तक पहुंचने का प्रयास किया, अबकी बार पहुंचने में सफ़ल हो गया।

खिड़की के बाहर दीवार की ओर जाने का प्रयास
श्रीमती जी और बच्चे भी देख रहे थे, 8 फ़ीट लम्बा सांप देखकर तो किसी को भी डर लग सकता है, बार-बार मुझसे मारने का आग्रह कर रहे थे। सांप जहरीला हो या न हो, पर इतने बड़े सांप को मारना अकेले आदमी के बस की बात नहीं है। प्रशिक्षित व्यक्ति तो पकड़ भी सकता है। मेरे भी बस की बात नहीं थी। थोड़ा छोटा होता तो एक दो प्रहार में काम हो जाता। सांप हमेशा कोने पड़े हुए कबाड़ में घुस जाते हैं, उस स्थान पर चोट सही नहीं पड़ती। थोड़ा खुले में आने के बात तो उसका राम नाम सत्य हो सकता है। गांव में लोहार सांप मारने का कांटा वाला भाला बना कर रखते हैं, जिसके एक वार में ही वह फ़ंस जाता है। फ़िर मारा जा सकता है, मेरे पास इस स्थिति में डंडा भी नहीं था मारने के लिए। फ़िर क्यों इनकी बातों में आऊं?मैने समझाया कि यह घूम-घाम कर चला जाएगा अपनी जगह पर।

वापस खिड़की से अंदर की ओर
सांप खिड़की पर चढ चुका था। सरिए लपट कर बाहर की तरफ़ आ गया। बाहर आकर उसने निकलने के लिए तांक-झांक की। खिड़की से बाउंड्रीवाल ओर जाना चाहता था, लेकिन खिड़की और बाउंड्रीवाल के दरमियान 10 फ़ीट से अधिक का फ़ासला है। वह खिड़की से लिपट कर थाह लेता रहा, कभी बरगद के पेड़ की तरफ़ मुंह घुमाता कभी बाउंड्रीवाल की तरफ़। सरियों पर उसने पूंछ की पकड़ मजबूत बना रखी थी। उसने कमरे में वापस जाने का विचार बना लिया। खिड़की से सरकता हुआ, आलमारी से होकर जमीन पर पहुंच गया।  कमरे में ही घूमता रहा। सभी कह रहे थे, इसे बाहर निकालो, बाहर निकालो। कोई गाय, भैस, बकरी तो नहीं, जो हांकने से बाहर निकल जाए। लेकिन यह समझ में आया कि सांप भी दिमाग का प्रयोग करता है, आलमारी से खिड़की तक पहुंचने की प्रक्रिया लाजवाब थी। वह अभी भी यहीं घूम रहा है।

फ़िर पलटी खाया- आलमारी की दिशा में
कुछ साल पहले एक संपेरा आया, जिसके विषय में एक मोहन भैया ने मुझे बताया था। उनके राईसमील में आकर उस संपेरे ने कुछ छोटी-छोटी हड्डियों के साथ धान का भूसा मिला कर राईसमील प्लांट के फ़ड़ में छिड़का और मंत्र पढने से उस जगह पर जितने भी जहरीले सांप थे निकल आए, उसने जहर निकाल कर सबको दिखाया, और उन्हे पकड़ कर ले गया। फ़िर एक अन्य राईसमील एवं रेडियंट स्कूल से भी इसी तरह सांप निकाले थे। वह सांपों के जहर का व्यवसाय करता था। मुझे उसकी याद आई, अगर वह मिल जाए तो मेरे भी इलाके के सांपों से मुक्ति मिल जाए। मोहन भैया से पूछने पर उसका पता नहीं चला। उनका कहना था कि कोई उत्तराखंड का पहाड़ी था और अचानक आया था। मेरी यह योजना भी फ़्लाप हो गयी। अब कहां से पहाड़ी ढूंढा जाए?

ठेलका नहर के किनारे एक दिन असोढिया सांप दिखाई दिया, उसी समय दो मोटरसायकिल सवारों ने उसे तुरंत दौड़कर पकड़ा, तत्काल उसका सिर अलग कर केले के छिलके जैसे उसकी चमड़ी उतार ली। पूंछ को काट कर फ़ेंक दिया। एक थैली में उसकी खाल और मांस को रख लिया। पूछने पर बताया कि वे इस खाल को बेच देंगे और मांस को मछली जैसे तल कर और तरकारी बना कर खाएगें। असोढिया सांप के विषय में जनश्रुतियां बहुत हैं, जितने मुंह उतनी बात। पर मैने जितना देखा है वही लिख रहा हूँ। जहरीले सांपो के दंश का शिकार होने पर ग्रामीण अस्पताल जाने की बजाए बैगा पर ही अधिक विश्वास करते हैं। सबसे पहले बैगा से झाड़ फ़ूंक कराने पहुंचते हैं। ऐसे ही एक बैगा का साक्षात्कार डॉ पंकज अवधिया ने किया। आप यह विडियो अवश्य देंखे, बैगा द्वारा सांपों के विषय में दी गयी जानकारी से ज्ञानरजंन होगा। बैगा ने मेरे द्वारा सांपों की वर्षा देखे जाने की पुष्टि की। उसने कहा कि- गुच्छे में आकाश से पिटपिटी सांप गिरते हैं बारिश में उसने भी देखा है।   

बैगा से बातचीत - डॉ पंकज अवधिया द्वारा




सांपों का युद्ध नृत्य-चित्र पर क्लिक करें
सर्प नृत्य (नई दुनिया से साभार दिनांक 5/7/2011)
NH-30 सड़क गंगा की सैर

31 टिप्‍पणियां:

  1. ललित भाई
    लगता है कि सांपो से कुछ खास लगाव है
    जो आपको छोडते ही नहीं है,
    हमें तो साँप दूर से देखते ही भाग जाते है।

    जवाब देंहटाएं
  2. शायद पहले भी कह चुका हूं-
    कहां जाही धमना, घूम-फिर के एही अंगना.

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया संस्मरण /लेख ............धमिना सांप के बारे में

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढिया आप के पोस्ट की फोटो भी
    आछा है

    जवाब देंहटाएं
  5. ललित भाई,
    ये नहीं बताया कि आखिर घर में घुस आए सांप का हुआ क्या...

    वैसे मुझे तो लगता है कि वो आपकी मूछों को देखने के बाद डर के मारे इधर-उधर घूम रहा था...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  6. सांप किसानो का दोस्त है पर लोग उसे दुश्मन की तरह देखते हैं खैर आपने साप की लीला का अच्छा वर्भन किया ढ़ेड़ फ़ीट वाली बात नयी मालूम हुयी

    जवाब देंहटाएं
  7. वो सब तो ठीक है लेकिन अंत क्या हुआ?

    मुझे भी अब इन डारावने मासूमों पर कुछ लिखने का मन कर रहा :-)

    जवाब देंहटाएं
  8. बी एस पाबला

    अभी अंत कहाँ हुआ है,
    अंत की भी पोस्ट आएगी।

    जवाब देंहटाएं
  9. आपने तो पूरी शूटिंग ही कर डाली ललित जी ..किसी टी.वी.सीरियल मैं भेज दे ..सांप का नाम हो जाएगा ...

    जवाब देंहटाएं
  10. गजब ! मुझे आज भी सांप देखने का बहुत शौक है.कहीं दिखा नही कि अपने राम जी गाडी खड़ी करके जम जाते है वहीँ और तब तक देखती रहती हूँ जब तक वो आँखों से ओझल नही हो जाता. हर तरह के सांप मार लेती हूँ मैं किन्तु अब नही .
    हम लोग नही मारते सांप.जाने देतेहैं उसे. 'धामन जहरीला होता है.कोबरा काला होता है धामन का रंग भूरा बाकि दोनों में कोई अंतर नही होता सिवाय 'फन' के .सर्प संसार में जाकर पढियेगा.मेरे पास एक बुक भी है स्कूल में ही रखती हूँ.वैसे मजा आगया पढ़ने से ज्यादा फोटो देखने में.

    जवाब देंहटाएं
  11. एक बात समझ नहीं आई कि धामन के काटने से ड़ेढ गांजे की चिलम जितना नशा होता है, मात्रा की इतनी नपी-तुली जानकारी का अंदाजा कैसे हुआ?

    जवाब देंहटाएं
  12. पोस्ट को पूरा पढ़ते तक उत्सुकता बनी रही।
    फिर क्या हुआ ?

    जवाब देंहटाएं
  13. डेढ़ गांजे की चिलम जितना नशा या गांजे की डेढ़ चिलम जितना :)

    जवाब देंहटाएं
  14. धामन एक तेज आवाज के साथ कुण्डली मारकर पीछे की ओर हवा में उछाल मारता है ..
    भाग्यशाली रहे आप ..
    बाकी बहुत सी अंधविश्वास की बातें इस पोस्ट में आयी हैं ....आप पिछली पोस्ट पर बतायी किताब अवश्य खरीद लें !

    जवाब देंहटाएं
  15. @Arvind Mishra जी

    ऐसा नहीं है कि आपने जो किताब बताई है वह भारतीय सर्प जगत की गीता है और उस पर ही हम चलें। यहां तरह-तरह के सर्प हैं जिनका दस्तावेजीकरण नहीं हुआ हैं। अभी बहुत काम बाकी है सर्पों पर।

    आभार आपके दिशा निर्देशन के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  16. बाप रे बाप
    कैसे की होगी शूटिंग

    जवाब देंहटाएं
  17. फ़ोटो हैंचे फ़ि.. डांस दिखावाए... फ़िर बात करवाए...
    गज़ब किये आप औ औधिया जी.

    जवाब देंहटाएं
  18. बचपन में,शायद सन १९७४ की घटना है. सावन की झड़ी लगभग दो-तीन दिनों से लगी थी.मैं घर के कुंवे के पास मंजन करने जा रही थी.बारिश भी हो रही थी.अचानक आँगन में एक गोला गिरा.जमीन में गिरते ही गोला साँपों में बदल कर आँगन में फ़ैल गया.लगभग एक फिट के बहुत से सांप,जिन्हें हम स्थानीय भाषा में पिरपिट्टी कहते हैं.सांप के गुच्छे को आसमान से गिरते हुए मैंने भी देखा है.

    जवाब देंहटाएं
  19. सांप एक साथ भय और आकर्षण का माद्दा रखते हैं, मजा आया महाराज:)

    जवाब देंहटाएं
  20. एक ज्ञानवर्धक पोस्ट ..आपके हौसले और जज्बे को सलाम ...!

    जवाब देंहटाएं
  21. कुछ कुछ डराता किन्तु बहुत दिलचस्प लेख...

    जवाब देंहटाएं
  22. सांप का निकलने के लिए खिड़की का रास्ता ढूंढ लेना बताता है की दिमाग तो इनमे भी बहुत होता है ...
    रोचक पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं
  23. रोचक पोस्ट.......
    सापों के बारे में बहुत जानकारी मिली...गुच्छे में आकाश से पिटपिटी सांप गिरते हैं ..... मुझे नहीं मालूम था

    जवाब देंहटाएं
  24. आपने रोचक जानकारी के साथ चित्र भी बहुत अच्छे लगाये हैं ...

    साँप गुछे के रूप में गिरते हुए मैंने देखे हैं ..यह बात पहले भी बताई थी किसी पोस्ट पर :)

    जवाब देंहटाएं
  25. अवधिया साहब ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद ही कर दिया

    जवाब देंहटाएं