धरती शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जहाँ सांप न रहते हों। जल और थल दोनो स्थानों पर सांप पाए जाते हैं। मनुष्य के निवास करने से पहले धरती के उस भू-भाग पर सांपों का ही निवास रहता है। मनुष्य उनके नैसर्गिक निवास स्थान पर अतिक्रमण कर अपना आश्रय बनाते आया है और सांप एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता रहा। गाँवों में वर्षा काल में विभिन्न तरह के सांप दिखाई देते हैं। खेतों से लेकर घरों तक इनकी पहुंच रहती है। जब ये घर में घुस जाते हैं तब घर मालिक भयभीत होकर इसे भगाना या मारना चाहता है।
फ़ोटो-डॉ पंकज अवधिया से साभार |
मेरा सांपों से पाला बचपन से पड़ता रहा है। आज तक सैकड़ों को निपटाया होगा। बाड़े में तरह-तरह सांप देखने मिलते हैं। जिसमें कोबरा (नाग, इसे स्थानीय भाषा में डोमी(गंहुआ डोमी और काला डोमी) भी कहते हैं), ढोड़िया (नाग जैसा ही फ़ुंफ़कारने वाला पनियर सांप, कहते हैं इसमें जहर नहीं होता) मुंढेरी (पशुओं के थन से दूध पीने वाला और रेत पर चलने वाले सांप जैसी चाल) पिटपिटी या सिरपिटी (गाढे हरे रंग का सफ़ेद धारियों वाला छोटा सांप, कहते हैं इसमें भी जहर नहीं होता) अहिराज (इसे देवता सांप कहते हैं,काले रंग पर पीली धारियाँ होती हैं) करैत (जहरीला सांप) घोड़ा करैत (स्थानीय भाषा में खड़दंगिया कहते हैं),अंधा सांप (यह काले रंग का केंचुए जैसा होता है और इसमें भी जहर की मात्रा आदमी को मारने के इतनी होती है) और जिस सांप ने मुझे चक्कर में डाल रखा है और पोस्ट लिखने को मजबूर किया वह है असोढिया या असड़िया।
अस्पष्ट छवि मेरे द्वारा |
दो दिन पहले मुझे यह सांप बाड़े में फ़िर दिखाई दिया। इसकी लम्बाई 6 से 8 फ़ीट तक हो सकती है और रंग गेंहुआ और काला। आसाढ का महीना शुरु होते ही एकम के दिन यह सांप दिखाई दे गया। बच्चों ने आकर बताया कि एक बड़ा सारा सांप बाड़े के किनारे वाले घर में घुसा हुआ है। मैने जाकर देखा तो यह असोढिया सांप था, बच्चों को कहा कि डरने की जरुरत नहीं है, कहते हैं इसमें जहर नहीं होता। लगभग 8 फ़ीट लम्बा होगा और एक किनारे पर रखे ड्राम के पीछे छिपने का प्रयास कर रहा था, मैने मोबाईल से फ़ोटो लेनी चाही तो प्रकाश विपरीत दिशा से आने के कारण फ़ोटो स्पष्ट नहीं आई।
फ़ोटो-डॉ पंकज अवधिया के वीडियो से साभार |
गाँव में इस सांप से गाहे-बगाहे सबका पाला पड़ जाता है। मैने उसे वहीं छोड़ दिया और वापस अपने काम पर लग गया। कई बार तो यह कवेलु वाले मकान में घुस जाता था यह भी रहता और मैं भी रहता। इसने मुझे नुकसान नहीं पहुंचाया और मैने इसे। वैसे भी मैं सैकड़ों जहरीले सांप अपने हाथों से मार चुका हूँ। वह भी तब, जब ये घर से बाहर नहीं निकले। क्योंकि जहरीले सांप के साथ घर पर रहना मुर्खता ही है। बच्चे असोढिया सांप की लम्बाई और रंग रुप से बहुत डरते हैं। यह इंसानो को देख कर गजब की फ़ुर्ती से भागता है। पलक झपकते ही रफ़ुचक्कर हो जाता है। एक बार तो मैने छत में चल रहे चूहे को इसे जम्प करके पकड़ते देखा। थोड़ी देर में उसे जिंदा ही अंदर कर गया।
श्रीराम सिन्हा जी ग्राम केन्द्री |
मैने सुना है कि असोढिया सांप जहां रहता है उसके साथ-साथ डोमी सांप (कोबरा-नाग) जरुर रहता है और असाढ से लेकर हरेली त्यौहार तक दिखाई देता है। इस समय इसका मेटिंग का समय होता है। असोढिया के साथ कोबरा की मेटिंग सुनकर मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा। एक जहरीला और दूसरा बिना जहर के। फ़िर इस विषय पर किसी से चर्चा हुई तो उसने बताया कि इसमें जहर होता है। सोचा कि गाँव के बुजुर्गों से ही चर्चा करके देखा जाए। मैने केन्द्री गाँव के 85 वर्षीय बुजुर्ग श्रीराम सिन्हा से चर्चा की। उसने बताया कि असोढिया सांप असाढ से लेकर हरेली अमावस तक ही दिखाई देता है। अगर किसी को काट लेता है तो गांजे की एक चिलम के इतना नशा होता है, आदमी मरता नहीं है बच जाता है। यह सांप आदमी पर अपनी पूंछ से प्रहार करता है। इसकी पूंछ में कांटे रहते हैं, जिसके कारण प्रहार से चोट खाए हुए आदमी के उस स्थान से मवाद निकलना शुरु हो जाता है। हमेशा पानी जैसा पदार्थ रिसता है। इस सांप को कुछ (कमार आदिवासी) लोग खाते भी हैं।
फ़ोटो-डॉ पंकज अवधिया के वीडियो से साभार |
हृदय लाल जी की उम्र 60 वर्ष है, उनसे पूछ्ने पर बताया कि-यह सांप खेत की मेंड को बिल बनाकर फ़ोड़ देता है। जिससे एक खेत का पानी दुसरे खेत में घुस जाता है। बिल बनाने वाली बात पर मुझे विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि सांप हमेशा चूहे के बिल में ही रहते हैं। होता यह होगा कि चूहा मेंड में बिल बनाता होगा और बदनाम यह सांप होता होगा। हृदय लाल जी का कहना था कि इस सांप के बिल में घुसने के बाद पूंछ पकड़ कर निकालना बहुत कठिन है। इन्होने भी इस सांप के पूंछ के द्वारा मारने की बात कही। देवार जाति के सांप पकड़ने वाले लोग इसे मछली जैसे पका कर भी खाते हैं। किसी को अगर गठिया-वात या लकवे की शिकायत है तो इस सांप को उसे भी खिलाया जाता है। यह बात मैने पहले भी सुनी थी। कई लोग इस सांप को मारने के बाद नींबु के पेड़ की जड़ में गाड़ते हैं, जिससे नींबु की फ़सल अच्छी होती है और नींबु भी बड़े-बड़े फ़लते हैं। नींबु के पेड़ में तो मेरे यहां भी इस सांप को डालते मैने देखा है।
फ़ोटो-गुगल से साभार |
असाढ के महीने में खेतो में ये सांप आपस में अठखेलियां करते लोगों को दिखाई दे जाते हैं। मैने भी देखा है, लेकिन असोढिया सांप और कोबरा सांप की मेंटिग की बात अभी तक पचा नहीं पा रहा हूँ, इस सांप के जैविक नाम का भी मुझे पता नहीं है। डॉ पंकज अवधिया से सम्पर्क करने पर उन्हे भी इस सांप के नाम का पता नहीं। छत्तीसगढ में पाए जाने वाले सांपों का दस्तावेजीकरण भी नहीं हुआ है। अगर होता तो मुझे असोढिया के विषय में जानकारी मिल जाती। एक सांप घोड़ा करैत (खड़दंगिया) है। यहां सांप 2 से 4 फ़ीट तक का होता है। इसमें फ़ुर्ती असोढिया सांप जैसे होती है और जहर कोबरा के जैसा। बड़ा होने पर यह भी गेंहुए से काले रंग का हो जाते है और इसके शरीर पर सफ़ेद पट्टियां पाई जाती हैं। यह मुरम वाली जमीन में अधिक मिलते हैं। जहर इतना कि इसका काटा पानी भी नहीं मांगता। शाम के समय अक्सर दिखाई दे जाते हैं। कहते हैं इस सांप का जन्म नर करैत और नागिन की मेटिंग से होता है। यह शंकर प्रजाति का होता है इसलिए इसे स्थानीय भाषा में खड़दंगिया याने आधा कोबरा और आधा करैत कहते हैं। गाँव में विजातिय संबंध से जन्मे बच्चे को अक्सर लोग खड़दगिंया कह देते हैं। असोढिया सांप की मेटिंग की तश्वीर अभी दो चार दिन पहले ही मैने अखबार में देखी थी। लेकिन सेव नहीं कर पाया।
फ़ोटो-डॉ पंकज अवधिया से साभार |
असोढिया सांप मेरे लिए रहस्य होता जा रहा है, बचपन से देखने और सुनने के बाद भी। जितने मुंह उतनी बातें। कोई जहरीला बताता है तो कोई बिना जहर का। हमारे खेतों में एवं घर के बाड़े में बनी बांबियों में भी कई तरह सांप है, जो अक्सर मुझे दिखाई देते रहते हैं। घास-फ़ूस में कब निकल आए पता नहीं। पर आज तक किसी सांप या बिच्छु ने नुकसान नहीं पहुंचाया है। एक दिन सुबह मैने दूर पेड़ के नीचे कुछ चमकता हुआ देखा। जब नजदीक गया तो एक नाग सांप ने मुंढेरी सांप को दबोच रखा था और मुंढेरी सांप ने नाग सांप के मुंह पर कुंडली लपेट रखी थी। दोनो टस से मस नहीं हो रहे थे। दोनो की जान अटकी पड़ी थी। दो-तीन घंटे तक पड़े रहे। जब दोनो पस्त हो गए तो एक दूसरे को छोड़ दिया और खिसकते-खिसकते अपने रास्ते चले गए। असोढिया सांप अब रोज दिखाई दे रहा है। नुकसान तो नहीं करता लेकिन कोई नया आदमी देख ले तो उसके हौसले पस्त करने लायक इसका रंग रुप और लंबाई जरुर है। इस सांप के विषय में अधिक जानने का प्रयास जारी है। अब हरेली अमावस तक इस पर ही निगाह रखना है और जानकारी एकत्रित करना है।
पोस्ट अपडेट दिनांक-23/6/2011
छत्तीसगढ में स्नेकपार्क बनाया जा रहा है, इसकी सूचना यहाँ पर है। अब इससे लोगों को सर्प की पहचान करने का अवसर मिलेगा।
पोस्ट अपडेट दिनांक-23/6/2011
छत्तीसगढ में स्नेकपार्क बनाया जा रहा है, इसकी सूचना यहाँ पर है। अब इससे लोगों को सर्प की पहचान करने का अवसर मिलेगा।
साँपों के बारे में बढ़िया जानकारी मिली
जवाब देंहटाएंपंकज जी के बाद का प्रयास मुश्किल होगा. अपने पुराने सांप विशेषज्ञ मित्रों से मिल सका तो चर्चा करूंगा, शायद कोई बात और मिले.
जवाब देंहटाएंगांव में जीवन बिताने के कारण सापों से हमारा पाला भी बहुत पड़ा है और कई ऐसे वाकये हैं जो भुलाये नहीं बनते। छत्तीसगढ़ में असढि़या पर जितने मिथक प्रचलित हैं उन सभी का उल्लेख आपने किया है, यह पोस्ट असढि़या (मेरे अंचल- रांका राज में इसे यही कहते हैं)के संबंध में संपूर्ण जानकारी से भरा है, इसमें भविष्य में अपडेट व एडिट करते रहियेगा। हमें भी उत्सुकता बनी रहेगी।
जवाब देंहटाएंइन पर एक मिथक और कि जब इनका मेटिंग हो रहा हो और उसके उपर कोई कपड़ा डाल दिया जावे, बाद में उस कपड़े को अनाज की कोठी में रखा जावे तो घर में अन्न का भरपूर भंडार रहता है, 'घन पलपलात ले भरे रहिथे'
धरती शायद ही कोई ऐसा स्थान हो जहाँ सांप न रहते हों।
जवाब देंहटाएंगलत -
अन्टार्कटिका और कई द्वीपों पर सांप नहीं मिलते ..
आप द्वारा दिया गया विवरण चूहा सांप (रैट स्नेक ) से मिलता है पर चित्र से पहचान
मुश्किल लग रही है !
इसका स्पेसेमेन या तो जूलोजिकल सर्वे आफ इंडिया या फिर बाम्बे नेचुरल सोसायटी को भेजें या चित्र ही भेजें
वे पहचान कर देगें
इनका पता अंतर्जाल पर मिल जाएगा !
अरविंद मिश्रा जी,
जवाब देंहटाएंमैने अभी तक सांपो के विषय में जो देखा-सुना और अनुभव किया, वही पोस्ट में लिखा। वैसे असढिया सांप के विषय में बहुत सारे मिथक हैं और किंवदंतियां प्रचलित हैं।
मेरा उद्देश्य है कि इस पोस्ट के माध्यम से उसके विषय में और भी जानकारी प्राप्त हो सकती है।
आपका आभार
या रोमुलस व्हिटेकर की सामान्य भारतीय सांप मंगा लें
जवाब देंहटाएंयह भी नॅशनल बुक ट्रस्ट इंडिया से छपी है ५२रुप्ये की है
pataa -
निदेशक ,नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया
-५ ग्रीन पार्क
नयी दिली -110016
होता यह होगा कि चूहा मेंड में बिल बनाता होगा और बदनाम यह सांप होता होगा।'
जवाब देंहटाएंतो यह मानवीय गुण साँपों में भी होता है.
सुन्दर आलेख .. अच्छी जानकारी साँपों के बारे में
आपके अंचल में मिट्टी के बने DESIGNER मकानों के कुछ चित्र पोस्ट करें.मै मिट्टी का मकान बनाना चाहता हूँ.आपके वहां के मकानों की विशेषताओं के बारे में भी लिखें.आपकी पोस्ट पढना आनंददाई अनुभव रहता है.धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंअंसोढ़िया तेज धावक है ,वह काटने के बजाय पूंछ से वार करता है .
जवाब देंहटाएंसाँपों के बारे में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी . अच्छा आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंदिल्ली के जहरीले नागनाथो पर नजर गड़ाओ कहं गांव के मासूम सापो के पीछे पड़ गये आप
जवाब देंहटाएंवत्स अरुणेश,
जवाब देंहटाएंदिल्ली के सांपों को तो बाहर नि्कालने के लिए बड़े-बड़े सिद्ध संपेरे बीन बजाते फ़िर रहे हैं। उनके सामने हमारी क्या बिसात है। गाँव में ही ठीक हैं।
दवे जी की प्रतिक्रिया शानदार है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी मिली ... पर सब से बड़ी दिक्कत सांपो के बारे में जानकारी की ही है ... जिस का नाम सुनते ही डर मन में समा जाता हो ... उसका सामना ना ही हो तो अच्छा ... हमारे घर में भी अक्सर ही सांप निकलते रहते है ... पहली कोशिश उनको पकडवाने की होती है ... नहीं तो मारना पड़ता है ... कारण वही सही जानकारी का ना होना ... सांप जहरीला है या नहीं इसको पता लगाने का क्या उपाए है ... कटवा के देखने के आलावा ... ;-) ???
जवाब देंहटाएंसरल शैली में सर्प ज्ञान हेतु आभार
जवाब देंहटाएंनयी और दिलचस्प जानकारी ....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंसाँपों के बारे में अच्छी जानकारी मिली .. भले ही कोई साँप ज़हरीला न हो पर डर तो लगता ही है
जवाब देंहटाएंbhai pdh liya kment baad me dungi.short kt maarne ka aadt nhi na isliye aur abhi...????nhana,khana sb baaki hai.jiyo aur jiine do.kisko kyon btaaoon? fufaji se mt puchhna kuchh bhii ha ha ha yun apoon bhii bchpn se saanp premi...oh premika.jyada shaanpatti lgaai aur sir kuchl dene ka.ha ha
जवाब देंहटाएंमैं जब अस्सी के दशक में गुवाहाटी असम में था तो एक साँपों के विष बेचने वाले एक हिमालयी साधुओं द्वारा प्रशिक्षित तांत्रिक से मुलाकात हो गयी और उसके माध्यम से मुझे कई सांप, जिन्हें वो हमारे घर के सामने वाली पहाड़ी से बरसात में पकड़ कर लाता था, देखने को मिले... जैसे, कोबरा, करैत, आदि जिनके नाम उसने भी नहीं बताये... उनमें से एक सांप जो मुझे विचित्र लगा था, वो था एक पीला, पतला सा किन्तु लम्बे दांतों वाला, सांप जिस का शरीर गीला रहता था, क्यूंकि उस से तेज़ाब निकलता था... उसे उसने एक कपडे से मुंह ढकी मटकी में बंद किया था... उस के गले में सूत का फंदा डला था और दूसरा सिरा एक लकड़ी के साथ, जिसे खींच कर वो उसे बाहर निकाल कर मुझे दिखाया... उसने कहा की यदि आप उस के शरीर को छू लें तो आपके हाथ में फफोले पड़ जायेंगे!
जवाब देंहटाएंजहाँ तक साँपों के काटने और ज़हरीले होने का प्रश्न है, उसने बताया कि कोबरा और करैत आदि कुछ साँपों को छोड़ अधिकतर सांप कम ज़हरीले होते हैं... और उनके काटे का इलाज यही है कि काटे हुए स्थान से लगभग १०-१२ इंच दूर अंग को किसी कपडे आदि से जोर से बंद दें और फिर किसी सांप वाले को बुलालें...
केवल एक बात का मुझे अफ़सोस रह गया कि मैं देख नहीं पाया उसने कैसे एक १०-१२ वर्षीय बालक को बचाया जिसे ४ दिन पहले किसी सांप ने काटा तह और वो अब नीला पड़ गया था... मेरे स्टाफ जिन्होंने देखा था मुझे बताया कि मृतप्राय बालक को फर्श पर लिटा उसने एक चूजा उसके बगल में रख कुछ मन्त्र आदि पढ़ जब चूजे के ऊपर छड़ी फेरी तो बालक खड़ा हो गया और चूजा ढेर!
चूँकि हम बडे शहरो के इर्द गिर्द रहने वाले है ..इस लिए हम लोगो का सांपो से वास्ता कभी नहीं पड़ा
जवाब देंहटाएंसाँपों के बारे में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी .... आभार
असढि़या, धामन ही है और कोबरा के साथ इसकी मेटिंग मान्यता मात्र है, सचाई नहीं. विद्वत सभा ने निष्कर्ष दे दिया है.
जवाब देंहटाएंदुर्लभ जानकारी.आजकल वैसे इन साँपों से ज्यादा आस्तीन के साँपों से डर लगता है :)
जवाब देंहटाएं@Rahul Singh
जवाब देंहटाएंअब पहचान हो गयी, धमना, धामन याने रेट स्नेक है। आपसे चर्चा के पश्चात थोड़ा भ्रमित हो गया था। लेकिन अब आपके द्वारा ही मेरे भ्रम दूर हुआ। असोढिया की पहचान न होने से यह मेरे लिए रहस्यमय हो गया था।
आपका आभार
अरे वाह , आप तो साँपों के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं । हमने तो कभी एक चीटीं भी नहीं मारी पंडित जी । :)
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बार एक सांप के काटे हुए को ज़रूर बचाया था जो अपनी अंतिम सांसें ले रहा था । बन्दे की किस्मत अच्छी थी कि वक्त रहते अस्पताल पहुँच गया और इलाज हो गया । उसे दो दिन बाद आराम से बैठे देखकर हैरानी और ख़ुशी भी हुई ।
saanp hamesha se jigyasa jagane vale jeev rahe hai...badiya jankari...
जवाब देंहटाएंसाँपों के बारे में अच्छी जानकारी....
जवाब देंहटाएंअपना दांव संजीव भाई के दांव 'घन पलपलात ले भरे रहिथे' पर :)
जवाब देंहटाएं( वैसे भी इन्हें कृषकों का मित्र कहते हैं )
साँपों के बारे में नयी जानकारी मिली ...
जवाब देंहटाएंअब तक तो हम सिर्फ इनसे डरना ही जानते थे , ये इतने उपयोगी भी हैं , नहीं पता था !
बहुत अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएं