मैं एक किताब पढ रहा था,उसमें कुछ विचित्र बरसातों के विषय में बताया गया था। कहीं मछलियों की बरसात हुयी आंधी तूफ़ान के साथ, तो कहीं मेढक इत्यादि की। कहीं सांप भी बरसते सुने गए। इन सब घटनाओं को पढकर मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आ रही है। मैने भी एक ऐसी ही सांपों की वर्षा देखी थी।
शाम का समय था, थोड़ी धूप निकली हुई थी। अचानक अंधेरा छाने लगा, बादल गरजने लगे, बस ऐसा लगता था कि अब मुसलाधार वर्षा होगी। कुछ देर बार गरज के साथ पानी बरसने लगा। पानी बरसते हुए देखकर मुझे उसमें भीगने का मन हुआ।
दादी ने बाहर आंगन में नहीं जाने दिया। तभी आसमान से ओले गिरने लगे। हम सब कवेलु वाले मकान में बैठे थे। साथ में छोटा भाई भी था। कवेलु पर ओलों की आवाज आने लगी। दादी ने आवाज लगाई कि जल्दी से लोहे की कढाई या तवा आंगन में फ़ेंका जाए।
इसका मतलब आज समझ में आता है कि उनका यह सोचना था बिजली लोहे पर गिरे,घर पर न गिरे। हम दरवाजे पर खड़े होकर ओले बिनने का इंतजार कर रहे थे कि कब बारिश बंद हो और हम ओलों याने मुफ़्त की आईसक्रीम का स्वाद लें।
दादी ने बाहर आंगन में नहीं जाने दिया। तभी आसमान से ओले गिरने लगे। हम सब कवेलु वाले मकान में बैठे थे। साथ में छोटा भाई भी था। कवेलु पर ओलों की आवाज आने लगी। दादी ने आवाज लगाई कि जल्दी से लोहे की कढाई या तवा आंगन में फ़ेंका जाए।
इसका मतलब आज समझ में आता है कि उनका यह सोचना था बिजली लोहे पर गिरे,घर पर न गिरे। हम दरवाजे पर खड़े होकर ओले बिनने का इंतजार कर रहे थे कि कब बारिश बंद हो और हम ओलों याने मुफ़्त की आईसक्रीम का स्वाद लें।
तभी मैने देखा कि आंगन में तीन-चार उन के गोलों के आकार की काली-काली गेंदे गिरी। थोड़ी देर तो वे वैसे ही पड़े रही, फ़िर खुलने लगी, देखते ही देखते पूरा आंगन मध्यम आकार के सांपों से भर गया।
मैने दादी को आवाज लगाई, उन्होने भी देखा। सांप गोले के आकार से अलग होकर इधर उधर सरक रहे थे। जिस सांप को जिधर जगह दिख रही थी उधर जा रहा था। हम इन सांपों की प्रजाति को पहचानते थे, इसलिए डरे नहीं, क्योंकि आंगन में हर तरफ़ सांप ही सांप हो गए थे।
हमारे 36 गढ में इन सापों को पिटपिटी या सिरपिटी सांप कहते हैं। (आप चित्र में पहचान सकते हैं कि ये कौन से सांप हैं) मैं इसका ये सांप बरसात में ही निकलते हैं। स्कूल में इसको पकड़ कर हम लोग खेलते थे। इसका मतलब शायद यह था कि ये सांप जहरीले नहीं होते।
हमारे बाड़े में सांप निकलते ही रहते हैं इसलिए यहां के प्रमुख जहरी्ले एवं बिना जहर के सांपों को बच्चे भी पहचान जाते हैं। गोलों से अलग होने के बाद सभी सांप बिखर गए। वह घटना आज भी आंखों के सामने कौंध जा्ती है जब पूरा आंगन सांपों से भरा हुआ था। हर तरफ़ सांप ही सांप।
मैने दादी को आवाज लगाई, उन्होने भी देखा। सांप गोले के आकार से अलग होकर इधर उधर सरक रहे थे। जिस सांप को जिधर जगह दिख रही थी उधर जा रहा था। हम इन सांपों की प्रजाति को पहचानते थे, इसलिए डरे नहीं, क्योंकि आंगन में हर तरफ़ सांप ही सांप हो गए थे।
हमारे 36 गढ में इन सापों को पिटपिटी या सिरपिटी सांप कहते हैं। (आप चित्र में पहचान सकते हैं कि ये कौन से सांप हैं) मैं इसका ये सांप बरसात में ही निकलते हैं। स्कूल में इसको पकड़ कर हम लोग खेलते थे। इसका मतलब शायद यह था कि ये सांप जहरीले नहीं होते।
हमारे बाड़े में सांप निकलते ही रहते हैं इसलिए यहां के प्रमुख जहरी्ले एवं बिना जहर के सांपों को बच्चे भी पहचान जाते हैं। गोलों से अलग होने के बाद सभी सांप बिखर गए। वह घटना आज भी आंखों के सामने कौंध जा्ती है जब पूरा आंगन सांपों से भरा हुआ था। हर तरफ़ सांप ही सांप।
एक सांप तो हमारे पानी पीने की मटकियों (परीन्डे) के पास ही रहता था। कई साल तक उसने वहीं डेरा जमाए रखा। हमने उसे छेड़ा ही नहीं। जब बच्चे बड़े हुए तो एक दिन इनके कहने से मुझे उसे मार कर ही हटाना पड़ा।
एक सांप जिसे हमारे यहां मुंढेरी सांप (पीवणा) कहते हैं(यह कुंडली मार कर चलता है) मेरी मोटर सायकिल खड़ी करने की जगह पर रोज मिलता था। मैं जैसे ही उसे देखता तो गुस्सा आ जाता कि यह फ़िर यहीं आ गया।उसे पैर की ठोकर से रोज गेट के बाहर फ़ेंक कर आ जाता। लेकिन वह भी कम नहीं था रोज रात मुझे वहीं पर मिलता था। अब मैने वहां बाईक खड़ी ही करनी बंद कर दी।
एक सांप ने मेरी कार में ही डे्रा डाल लिया था। एक बार मैने 15-20दिनों तक कार नहीं चलाई, दक्षिण के भ्रमण पर था। आकर देखो कि नीचे केंचुली लटक रही है। समझ गया कि बड़े महाराज (नाग)आ गए हैं, क्योंकि वहीं पास में हमारे मंदिर में बड़ा सारा दीमक का घर है। जहां इनका निवास है। पूरी कार को खोल कर देखा गया। साफ़ किया गया नी्चे उपर सब जगह से। कई दिनों तक चलाने में भी डर लगा कि कहीं सीट के नीचे न निकल आए।
एक सांप जिसे हमारे यहां मुंढेरी सांप (पीवणा) कहते हैं(यह कुंडली मार कर चलता है) मेरी मोटर सायकिल खड़ी करने की जगह पर रोज मिलता था। मैं जैसे ही उसे देखता तो गुस्सा आ जाता कि यह फ़िर यहीं आ गया।उसे पैर की ठोकर से रोज गेट के बाहर फ़ेंक कर आ जाता। लेकिन वह भी कम नहीं था रोज रात मुझे वहीं पर मिलता था। अब मैने वहां बाईक खड़ी ही करनी बंद कर दी।
एक सांप ने मेरी कार में ही डे्रा डाल लिया था। एक बार मैने 15-20दिनों तक कार नहीं चलाई, दक्षिण के भ्रमण पर था। आकर देखो कि नीचे केंचुली लटक रही है। समझ गया कि बड़े महाराज (नाग)आ गए हैं, क्योंकि वहीं पास में हमारे मंदिर में बड़ा सारा दीमक का घर है। जहां इनका निवास है। पूरी कार को खोल कर देखा गया। साफ़ किया गया नी्चे उपर सब जगह से। कई दिनों तक चलाने में भी डर लगा कि कहीं सीट के नीचे न निकल आए।
लेकिन आसमान से बरसात में गोलों के रुप में गिरे हुए सांप आज तक याद हैं, यह घटना 1975 के आस-पास की रही होगी। ऐसा क्यों हुआ? सांप गुच्छों में गोले बनकर आसमान से कैसे गिरे? आज यह जिज्ञासा मेरे मन में है। क्योंकि सांप अन्डे देते है और उसमें से बच्चे निकलते हैं यह भी मैने देखा है।
उस समय इनकी लम्बाई 5-6 इंच होती है। लेकिन गुच्छों की शक्ल में गिरे सांप लगभग एक फ़ुट के थे। उससे एक दो इंच कम हो सकते हैं लेकिन स्केल के बराबर तो दिख रहे थे। इस घटना के बाद आज तक ऐसी कोई घटना नहीं घटी है कि आसमान से सर्प वृष्टि हुई हो।
उस समय इनकी लम्बाई 5-6 इंच होती है। लेकिन गुच्छों की शक्ल में गिरे सांप लगभग एक फ़ुट के थे। उससे एक दो इंच कम हो सकते हैं लेकिन स्केल के बराबर तो दिख रहे थे। इस घटना के बाद आज तक ऐसी कोई घटना नहीं घटी है कि आसमान से सर्प वृष्टि हुई हो।
इस तरह की घटना पहली बार सुनी..रोमांचित करती हैं ऐसी घटनायें. आभार हमारे साथ साझा करने का.
जवाब देंहटाएंबहुत रोमांचक घटना बताई आपने | अब तो हमारी भी जिज्ञासा बढ़ गई कि ये सब कैसे संभव हुआ !
जवाब देंहटाएंउफ! ऐसा भी होता है
जवाब देंहटाएंरोमांचित कर गया संस्मरण
यह जांच का विषय है और शोध का विषय है। सांपों पर मेरे पास भी एक रोचक स्टोरी है जो मैंने एक चैनल के लिए कवर की थी।
जवाब देंहटाएं...अदभुत ... ऎसी घटनाओं को साक्षात देखना ... जीवन को सार्थक करता है!!!
जवाब देंहटाएंबहुत डरावना रहा होगा सापों कि बारिश देखना ...
जवाब देंहटाएंबाप रे गज़ब ये कैसे हुआ होगा जी ?
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात। हम देखे नही थे आसमान से गिरते हुए, लेकिन ये पिटपिट्टी सांप बहुत देखे हैं। बढ़िया पोस्ट।
जवाब देंहटाएंललित भाई, बचपन में हमने भी सुना था कि पिटपिटी आसमान से गुच्छे के आकार में बिरते हैं. कई कई बार जोरदार गरज के साथ बरसात में जमीन पर इन गुच्छों से सामना भी हुआ है तभी से विश्वास हो चला है कि इनकी बरसात होती है यद्धपि प्रत्यक्ष: आंखों से नहीं देखा है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य से इसे आसमान से गिरना स्वीकार भी किया है.
जवाब देंहटाएंगांव में सांपों से जाने अनजाने में हमारे रिश्ते बन ही जाते हैं मेरे भी कई उल्लेखनीय अनुभव हैं जिसे मित्रों से बांटा जा सकता है आपने पोस्ट विषय दिया इसके लिए धन्यवाद भाई.
ग़ज़ब की बात सुनाई है ललित जी । इसकी तो वैज्ञानिक जाँच होनी चाहिए थी । हम भी हैरान हैं ।
जवाब देंहटाएंपढ़ कर ही शरीर में सिहरन दौड़ रही है. अजीब सी बातें हैं, बहुत जिगर चाहिए फिर तो वहां रहने के लिए. ;-)
जवाब देंहटाएंमेरे गांव में भी एक बार सांपों की ऐसी बारिश हुई थी .. बहुत लोगों ने देखा था .. और वे बताते हैं कि सिर्फ हरहरा सांपों की ही वर्षा आसमान से होती है .. राज क्या है किसी को नहीं पता !!
जवाब देंहटाएंअद्भुत, रोमांचक
जवाब देंहटाएंप्रणाम
kamaal hai ji....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
आपकी दी गयी जानकारी से मुझे भी एक वाकया याद आया..जब हम झारखण्ड में थे...जगह का नाम है घाटशिला ..२००२--२००३ की बात है...वहाँ पर हरे रंग के सांप बारिश के साथ आसमान से गिरते मैंने भी देखे थे....और वहाँ के रहने वाले लोगों ने यही बताया था कि यह जहरीले नहीं होते....वैसे भी उस इलाके में बहुत सांप पाए जाते हैं...बरसात में तो हर कदम पर मिल जाते थे....वहीँ मैंने पहली बार सांप को बहुत तेज भागते भी देखा है...करीब दो गज लंबा सांप रहा होगा....
जवाब देंहटाएंइस अनुभव को यहाँ बांटने के लिए आभार
@संगीता स्वरुप ( गीत )
जवाब देंहटाएंमैने घाटशिला देखा है। वहां हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड में मेरे मामाजी इलेक्ट्रीकल मैनेजर हुआ करते थे। वे अभी भी वहीं रहते हैं। घाटशिला भी जंगली इलाके में है। अब तो कस्बे का रुप धारण कर चुका है। वहां भी अवश्य ही सांप होंगे।
शायद स्रष्टि की रचना भी ऐसे ही हुई होगी!
जवाब देंहटाएं--
यह संस्मारण पढ़कर मुझो ऐसा ही लगा!
जिस तरह ओले बनते हैं, उसी तरह सांप बनते होंगे।
जवाब देंहटाएंओलों का तो पता ही है कि तेज हवाएं चलती हैं। इसकी वजह से पानी की बूंदें धरती पर नहीं गिर पातीं, और लगातार ठण्डी होती जाती हैं। ठण्डी होकर बरफ बनेगी, बरफ के दस टुकडे इकट्ठे होकर एक बडा टुकडा बनेगा और ओलों की शक्ल में गिर पडेगा।
जिस इलाके में सांप बहुत ज्यादा होते हैं, तेज हवाओं में वे उड जाते हैं। उडते-उडते दो सांप टकरा गये तो इकट्ठे हो गये। दस टकरा गये तो इकट्ठे हो गये। आखिरकार कहीं ना कहीं तो गिरेंगे ही।
अजी सब ने मिल कर हमरी ही राय दे दी अब हम क्या कहे , हम तो हक्के बक्के है जी, आप की पोस्ट पढ कर
जवाब देंहटाएंहे भगवान ऐसा भी होता है पहली बार सुना अगर इस जगह मै खुद होती तो कब की बेहोश हो जाती……………मुझे तो बहुत डर लगता है।
जवाब देंहटाएंबहुत रोमांचक घटना ..........
जवाब देंहटाएंसच में रोमांचित कर दिया आपने.. साँपों के साथ एक मेरा भी किस्सा है कभी सुनाऊंगा.. :)
जवाब देंहटाएंपिटपिटी साँपों के आसमान से गिरने के तो हमने भी बहुत से किस्से सुने हैं ललित जी, पर कभी स्वयं देख पाने का सौभाग्य नहीं मिला है।
जवाब देंहटाएंसुना - पढ़ा, मगर पहली बार चश्मदीद गवाह की ज़ुबानी - जो माशा-अल्लाह ख़ूब ब्लॉगर भी हैं।
जवाब देंहटाएंआभार, अब बरसात में तो उधर जाना नहीं…
हं..... हैरानी तो हो रही है। एक रोचक और अनोखी खबर के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंाद्भुत????? पहली बार सुना है। जानकारी के लिये धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंमेढक, मछलियों और तेज़ाबी बारिश की बातें तो बहुत बार किताबों मे पढ़ी हैं ... पर ऐसा वाकया देखा नहीं कहीं ... हाँ हमारे यहाँ करीब चौदह किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला तालाब है जिसमे मैंने एक साथ हज़ारों पनिहल साँपों को देखा है(जैसा कि आपके चित्र मे दिख रहे हैं) लेकिन बरसात का ऐसा अनुभव नहीं हई ...
जवाब देंहटाएंदुनिया अजब गजब है ... जाने क्या खेल है
मै तो दंग रह गया जी
जवाब देंहटाएंऔर नीरज जाट जी की थ्योरी तो मैंने अब देखी ... भाई वाह ऐसा गूढ़ और विश्लेषणात्मक थ्योरी से तो मै और भी दंग रह गया ... भाई वाह...
वाह... अदभुत. सांप-बारिश..? रोमांचक खबर के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंअरे.......ऐसा भी होता है ?
जवाब देंहटाएंबढिया , मजेदार , लेकिन सोच से परे
जवाब देंहटाएंjnaab mchliyon ki brsaat to hmne bhi dekhi he lekin saaanpon ki vrshaa vaaqy romaanchit kr dene vaali he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंऐसी बातें पढ़ी तो पहले भी हैं, लेकिन किसी अपने से पहली बात ऐसा वर्णन सुनकर रोमांच हो आया।
जवाब देंहटाएंमुझे तो डर लग रहा है... कोई सपेरा बुला कर लाओ....
जवाब देंहटाएंललित जी,
जवाब देंहटाएंघाटशिला में हिंदुस्तान कॉपर में ही मेरे पति कार्यरत रहे हैं...२००१ से २००५ तक वहाँ के G.M . थे...आपके मामाजी को ज़रूर जानते होंगे.
pahali baar aapke blog par aana hua ... bahut sukhad anubhaw raha......itminaan se samay denge ..
जवाब देंहटाएंहो सकता है साँप पेड़ से या छप्पर से गिरे हों या तेज़ हवा के कारण उड कर गिरे हों ..
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे भी मेरा एक दोस्त साँप याद आ गया जो मेरे बैचलर जीवन मे मेरे बाथरूम् मे रहता था और मुझे नहाते हुए देखता था अब था या थी पता नहीं ?
Adbhut.. na dekha na suna
जवाब देंहटाएं