पंजा जोड़ी- बैगा ने पत्थर से निकालना बताया, जीवाश्म हो सकता है |
छत्तीसगढ अंचल में सावन माह को तन्त्र-मंत्र और जादू टोने के साथ जोड़ा जाता है एवं सावन माह को ग्रामांचल में काफ़ी महत्व दिया जाता है। प्रत्येक ग्राम में एक बैगा होता है, जो गाँव के देवी-देवताओं की पूजा करके उन्हे परम्परागत ढंग से मनाता है। सावन में प्रत्येक ग्राम वासी से चंदा करके गाँव बांधने एवं देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इसे सावनाही बरोना कहते हैं, सावन के प्रथम सोमवार की रात को पूजा का सामान लेकर अपने चेलों के साथ बैगा गाँव की चौहद्दी सीमा (सरहद-सियारा-मुनारा) में अपने चेलों के साथ जाता है, तथा जिस स्थान पर देवी-देवता का स्थान नियत है, उस स्थान पर होम-धूप देकर पूजा करता है। ग्राम के बाहर खार (खेत) में भैंसासुर, सतबहनिया, शीतला, ग्राम देवता, आदि का निवास माना जाता है तथा ग्राम की भीतर सांहड़ा देव, महादेव, हनुमान जी, दुर्गा देवी एवं अन्य देवताओं का निवास मानते हैं।
सावनाही रेंगाना - ग्राम सीमा में टोटका |
बैगा खार (खेतों) के नियत स्थानों पर पर देवी-देवताओं की पूजा करके गाँव की सीमा में एक स्थान पर विशेष पूजा करता है, जिसे गांव बांधना कहते हैं। सावन सोमवार को गाँव बांधने की पूजा के कारण ही सभी स्कूलों की आधे दिन की छुट्टी रहती है, जब हम स्कूल में पढते थे तब भी होती थी और आज भी होती है। इस दिन गाँव के सभी लोग छुट्टी करते हैं काम से और किसी दुसरे गाँव भी नहीं जाते। गाँव बांधने की तांत्रिक पूजा में लाल, काले, सफ़ेद छोटे छोटे झंडे, नींबु, काली हंडी, बांस की टोकनी (चरिहा) खुमरी (बांस की बनी टोपी) नारियल होम-धूप, लकड़ी की बैलगाड़ी का प्रतीक, दारु, मुर्गी इत्यादि का प्रयोग होता है। इस पूजा में बैगा सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके उनसे गाँव की रक्षा का निवेदन करता है कि गाँव में धूकी (हैजा-कालरा) भूत-प्रेत, टोना-टोटका एवं अन्य दैविय प्रकोप न हो। इसके बाद एक मुर्गी को जिंदा छोड़ा जाता है और फ़िर उस पूजा स्थल को दुबारा पीछे मुड़ के नहीं देखा जाता। बीमारियों को दैविय प्रकोप से जोड़ कर देखा जाता है। गाँव बांधने बाद सभी लोग घर नहीं जाते, गाँव के बाहर स्थित स्कूल, मंदिर या ग्राम पंचायत भवन में रात गुजार देते हैं। मान्यता है कि इनके साथ कहीं भूत-प्रेत गांव में प्रवेश न कर जाए। फ़ोड़े गए नारियलों का प्रसाद ये ही लोग खाते है, घर लेकर नहीं जाते।
टोटका का सामान- श्वेत-लाल-काले ध्वज |
गाँव में किसी के बीमार होने पर लोग सबसे पहले बैगा के पास ही इलाज के लिए जाते हैं, बैगा झाड़-फ़ूंक एवं परम्परागत जड़ी-बूटियों से इलाज करता है। बैगा के इलाज से स्वस्थ न होने पर ही लोग कस्बों एवं शहरों की तरफ़ इलाज के लिए उन्मुख होते हैं। इन्हे अपनी परम्परागत चिकित्सा एवं टोने-टोटके में अत्यधिक विश्वास है। इनका पारम्परिक मान्यताओं पर विश्वास ही पढे लिखे लोगों को अंधविश्वास दिखाई देता है। जबकि पारम्परिक जड़ी-बूटियों से भी कारगर इलाज होता है। विद्याअध्यन काल में मीठा खाकर घर से बाहर निकलने पर मुझे बुखार जैसा लग कर हाथ पैरों में दर्द के साथ ठंड लगने लगती थी। तब चुल्हे के पास बैठ कर उसकी गर्मी से बदन को सेकता था। एक बैगा हमारे यहाँ काम करता था, उसके एक बार झाड़ने फ़ुंकने से ही मैं ठीक हो जाता था। अब तो बरसों से ऐसी स्थिति नहीं बनी है। लगता है कि बैगा की विद्या भी काम करती थी।
बैलगाड़ी के प्रतीक का उपयोग |
सावन की अमावस को हरेली का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन बैगा और उसके चेले मंत्र सिद्ध करते हैं। गुरु नए चेलों को मंत्र दीक्षा भी देते हैं। गाँव के एकांत में नियत स्थान पर एकत्र होकर सभी तांत्रिक क्रियाओं को अंजाम देकर बैगा चेलों को जड़ी-बूटियों की पहचान भी बताते हैं। मेरी भेंट सिलोंधा निवासी दल्लु बैगा से हुई, ये साँप भी पकड़ते हैं एवं बैगाई-गुनियाई भी करते है। इनके पास मैने एक से एक सांप देखे जिसमें लगभग 9 फ़िट का किंग कोबरा भी था। जब उसकी फ़ोटो लेने लगा तो वह सिर उठाकर फ़ोटोशेसन करवाने लगा। सिर घुमाकर चारों तरफ़ देखता था। मैने दल्लु बैगा से टोनही देखाने को कहा। तो बैगा ने कहा कि टोनही तीन प्रकार की होती है,श्वेत, लाल और काली। आपको टोनही देखना है तो दैइहान (चारागन-जहां पशु एकत्र होते हैं) में अमावस की रात 12-1 बजे को एक नारियल लेकर खड़े हो जाओ, सब दिख जाएगा। एक से एक टोनही मिलेगी झुपते हुए, लेकिन उसके लिए तंत्र-मंत्र का इंतजाम करना पड़ेगा।
दल्लु बैगा - सिलोंधा वाले |
मैने उसे अपने साथ चलकर टोनही दिखाने का आग्रह किया। उसने अनजान आदमी के लिए खतरा बताया। मैने कहा कि अपनी गारंटी मैं लेता हूँ और तुम्हे लिखित में देता हूँ कि अनहोनी होने पर मैं स्वयं जिम्मेदार हूँ। उसे मेरा प्रस्ताव पसंद नहीं आया। उसने कहा कि-"मैं आपको जड़ी दे सकता हूँ, उसके प्रभाव से आपको कुछ नहीं होगा, लेकिन मैं आपके साथ नहीं जाऊंगा, आपको अकेले ही जाना पड़ेगा।" इसका तात्पर्य यह था कि वह पल्ला झाड़ना चाहता था। परन्तु मैं भी जिद्दी आदमी हूँ, समय मिलने पर उसके गाँव तक जाऊंगा और सत्यान्वेषण करुंगा, छोड़ुंगा नहीं। उसने सांपों का जहर सेवन की भी बात बताई। उसका कहना था कि वे सांपों का जहर निकाल कर खाते भी हैं और बेचेते भी हैं। मैं जहर निकाल कर खाते हुए फ़िल्माना भी चाहता हूँ। देखते हैं यह अवसर कब आता है?
हत्था जोड़ी |
आज हरेली त्यौहार है, कुछ और बैगाओं को पकड़ते है, जिससे हमें भी ज्ञान मिले। अज्ञात से ज्ञात होना तो सभी चाहते हैं, लेकिन जो जानकार होने का दावा करते हैं वे सामने आने पर बहाना बनाकर भाग जाते हैं।हरेली त्यौहार मूलत: किसानों का त्यौहार है जिसमें बोआई के पश्चात किसान अपने कृषि यंत्रों को धो मांज कर उनकी पूजा करते हैं। घर में पकवान बनाकर भगवान को होम जग देते हैं। सावन में जल-जनित बीमारियाँ की रोकथाम के लिए गाँव के देवताओं से निवेदन करते हैं। गेंडी चलाकर उत्सव मनाते हैं। पता नहीं कैसे हरेली त्यौहार को लोगों ने टोना-टोटका एवं तंत्र-मंत्र से जोड़ दिया। मुझे भूत-प्रेत एवं जादू टोने पर विश्वास नहीं है। ऐसे अवसर ढूंढते रहता हूँ कि भूत-प्रेत से भेंट हो, पर नहीं होती तो क्या करें। आज जंगल के गावों में जाकर जादु-टोना देखने का विचार है, रात को बैगाओं के तंत्र-मंत्र के प्रयोग भी देखना है। सभी को हरेली त्यौहार की शुभकामनाएं।