कल की चर्चा में जो हत्या "टोनही" होने के का आरोप लगा कर की गई थी उसकी आँखों देखी और कानो सुनी आप तक पहुचाने का प्रयास किया. पढ़े लिखे लोग भी इस अंधविश्वास के अंधकूप में गिरे हुए हैं.आज भी संगीता पूरी जी ने अपनी पहली टिप्पणी की लेकिन उनको ब्लॉग के फॉण्ट में कुछ समस्या थी, जिसे मैंने तुंरत ही सुधारने की कोशिश की.उसके पश्चात शायद उनका आगमन नही हुआ और जो बात वो कहना चाहती थी शायद कह नही सकी.उसके पश्चात्-
बालकृष्ण अय्य्रर ने कहा… हौलनाक घट्ना है, ललित जी क्यों ना कारणॉं की खोज की जाये. शायद कोई बच जाये... इसके पश्चात्-
पी.सी.गोदियाल ने कहा… क्रूरता की हदे , तभी तो प्रकृति भी खिन्न हो गई इस आदिम जाति से ! इसके पश्चात-
लवली कुमारी / Lovely kumari ने इससे जुड़े अपनी मनोविज्ञान से जुड़े लेख पर आने के लिए लिंक दिया उसमे इसे एक मनोवैज्ञानिक ब्मिमारी बताते हुए इसके लक्षण दिये.
परमजीत बाली ने कहा… संभंव है इस के पीछे कुछ दूसरे कारण भी रहे होगें..... उन्होंने इस हत्या के पीछे के कारणों पर जाने की बात कही.
अर्शिया ने कहा… ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक के समान हैं, जिसे बहुत सारे स्वार्थी लोग बढावा देते रहते हैं।
neelima sukhija arora ने कहा…ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक हैं, सभी ने निज दृष्टिकोण प्रकट किया.
बालकृष्ण अय्य्रर ने कहा… हौलनाक घट्ना है, ललित जी क्यों ना कारणॉं की खोज की जाये. शायद कोई बच जाये... इसके पश्चात्-
पी.सी.गोदियाल ने कहा… क्रूरता की हदे , तभी तो प्रकृति भी खिन्न हो गई इस आदिम जाति से ! इसके पश्चात-
लवली कुमारी / Lovely kumari ने इससे जुड़े अपनी मनोविज्ञान से जुड़े लेख पर आने के लिए लिंक दिया उसमे इसे एक मनोवैज्ञानिक ब्मिमारी बताते हुए इसके लक्षण दिये.
परमजीत बाली ने कहा… संभंव है इस के पीछे कुछ दूसरे कारण भी रहे होगें..... उन्होंने इस हत्या के पीछे के कारणों पर जाने की बात कही.
अर्शिया ने कहा… ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक के समान हैं, जिसे बहुत सारे स्वार्थी लोग बढावा देते रहते हैं।
neelima sukhija arora ने कहा…ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक हैं, सभी ने निज दृष्टिकोण प्रकट किया.
हमारे छत्तीसगढ़ में "हरेली" का त्यौहार आषाढ़ माह की अमावश्या जो मनाया जाता है. इस दिन से छत्तीसगढ़ में त्योहारों का प्रारंभ माना जाता है.यह सिलसिला यहाँ से चलकर होलीपर समाप्त होता है.
इस "हरेली" त्यौहार को प्रत्येक ग्रामवासी नियम से मानते हैं. इस दिन गांव को तंत्र मंत्र से बैगा (ग्राम के तांत्रिक) द्वारा बांधा (तंत्र-मंत्र से कवचित) किया जाता है.किसी भी दैवीय या प्राकृतिक महामारी या आपदा से बचाने के लिए ग्राम देवता की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके लिए प्रत्येक ग्रामवासी से तंत्र-मंत्र एवं पूजा करने के लिए एक निश्चित सहयोग राशि ली जाती है और महिलाएं गोबर से घरों के चारों तरफ विभिन् आदिम आकृतियाँ बनाकर उसे एक लाइन से जोड़ती है, उसके बाद बैगा सभी के घरों में जाकर नीम की एक छोटी डाली को जाकर दरवाजे में टांगता है,
मान्यता है कि इससे अनिष्टकारी शक्तियाँ घरों में प्रवेश नहीं करती. इसके बाद किसी भी व्यक्ति को गांव से बाहर निकलकर किसी दूसरी जगह जाने आज्ञा नहीं होती. इस दिन सब अपना काम बंद कर गांव में रहते हैं, और शाम होते ही लोग घरों से बाहर नहीं निकलते.
ऐसी मान्यता है कि अँधेरे में तंत्र मंत्र की सिद्धि करने वाले बैगा और टोनही अपनी शक्तियों को जागृत करते हैं एवं उसका परीक्षण करते हैं. जिससे जो कोई व्यक्ति बाहर निकलेगा उसका अनिष्ट हो सकता है.
इस "हरेली" त्यौहार को प्रत्येक ग्रामवासी नियम से मानते हैं. इस दिन गांव को तंत्र मंत्र से बैगा (ग्राम के तांत्रिक) द्वारा बांधा (तंत्र-मंत्र से कवचित) किया जाता है.किसी भी दैवीय या प्राकृतिक महामारी या आपदा से बचाने के लिए ग्राम देवता की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके लिए प्रत्येक ग्रामवासी से तंत्र-मंत्र एवं पूजा करने के लिए एक निश्चित सहयोग राशि ली जाती है और महिलाएं गोबर से घरों के चारों तरफ विभिन् आदिम आकृतियाँ बनाकर उसे एक लाइन से जोड़ती है, उसके बाद बैगा सभी के घरों में जाकर नीम की एक छोटी डाली को जाकर दरवाजे में टांगता है,
मान्यता है कि इससे अनिष्टकारी शक्तियाँ घरों में प्रवेश नहीं करती. इसके बाद किसी भी व्यक्ति को गांव से बाहर निकलकर किसी दूसरी जगह जाने आज्ञा नहीं होती. इस दिन सब अपना काम बंद कर गांव में रहते हैं, और शाम होते ही लोग घरों से बाहर नहीं निकलते.
ऐसी मान्यता है कि अँधेरे में तंत्र मंत्र की सिद्धि करने वाले बैगा और टोनही अपनी शक्तियों को जागृत करते हैं एवं उसका परीक्षण करते हैं. जिससे जो कोई व्यक्ति बाहर निकलेगा उसका अनिष्ट हो सकता है.
बैगा (ग्राम तांत्रिक) को गांव में रक्षा करने वाला और टोनही को अनिष्ट करने वाला माना जाता है.
मुझे भी बचपन में मेरी दादी के द्वारा घर से बाहर नही निकलने दिया जाता था. "बाहर मत निकल,आज हरेली कोई टोनही की नजर पड़ गयी तो कुछकर देगी. इस मानसिकता से ग्रसित थे लोग-टोनही नाम का एक अज्ञात भय उनमे समाया हुआ था.
बाल-बच्चे -नर-नारी कोई भी रात को बाहर नहीं निकलता था.सिर्फ बैगा और उसके सहयोगी ही रात को बाहर घूम सकते थे. हम बड़े हुए हमने इसकी सत्यता जांचने की उत्कट आकांक्षा थी. जब हम कालेज में पढने लगे तो हमें ये चीजे व्यर्थ की ही लगी. लेकिन हम सत्यता जानना चाहते थे.
मुझे भी बचपन में मेरी दादी के द्वारा घर से बाहर नही निकलने दिया जाता था. "बाहर मत निकल,आज हरेली कोई टोनही की नजर पड़ गयी तो कुछकर देगी. इस मानसिकता से ग्रसित थे लोग-टोनही नाम का एक अज्ञात भय उनमे समाया हुआ था.
बाल-बच्चे -नर-नारी कोई भी रात को बाहर नहीं निकलता था.सिर्फ बैगा और उसके सहयोगी ही रात को बाहर घूम सकते थे. हम बड़े हुए हमने इसकी सत्यता जांचने की उत्कट आकांक्षा थी. जब हम कालेज में पढने लगे तो हमें ये चीजे व्यर्थ की ही लगी. लेकिन हम सत्यता जानना चाहते थे.
ये बात २३ साल पुरानी है. जब हम कालेज में पढने शहर गए. हमें गांव से कालेज रोज ३० कि.मी.रायपुर आना जाना पड़ता था इसलिए हमने अपने रहने व्यवस्था रायपुर से लगे हुए एक गांव में कर रखी थी जहाँ हम तीन चार सहपाठी मिलकर रहते थे.
हरली त्यौहार को हमें टोनही देखना था.इसके लिए हमें गांव में रात को घुमने की तो आज्ञा घर वाले देंगे नही. इसलिए हम रायपुर के पास वाले गांव में ही रुक गए.रात को वो गांव भी सुनसान हो गया हम छाता और टॉर्च लेकर निकले टोनही ढूंढने के लिए।
मैं, चन्द्रशेखर, गजानंद, और एक हमारा खाना बनाने वाला बरातू. लोग बताते थे कि रात को १२ बजे के बाद टोनही अपने घर से निकलती है और उड़ते हुए खेतों में या श्मशान में सुनसान जगह पर जाकर अपनी तंत्र शक्तियों को जागृत करती है. हम भी अपना सब खा पीकर तैयार थे कि आज टोनही पकड़ना है.
हम रात जो ११ बजे चुपचाप घरों से निकले मैंने साथियों को कह दिया था कि अपना कालेज का परिचय पत्र रख लेना. कहीं पुलिस का गस्ती दल मिल जाये तो फिर रात थाने में ही कटेगी. हम गांव का चक्कर काटे हुए खेतों में गए
उसके बाद तालाब की पार (मेड) पर पीपल पेड़ के पास बैठ गए.वहां से श्मशान १०० मीटर की दुरी पर था लेकिन अमावश्या होने के कारण कुछ दिख नहीं रहा था. गजानंद बार -बार बोलता था, चल ना महाराज मरवा देगा. मेरे को डर लग रहा है. मैं उसको कहता था बैठ ना बे कुछ नही होने वाला-साले तेरी तो ऐसे ही फट रही है.
जैसे ही किसी कुते के भोंकने की आवाज आती थी वो मेरे से चिपक जाता था. जैसे ही कोई उल्लू (घुघवा) बोलता था तो गजानंद डर जाता था. हम इसी तरह आधे डर और आधे बल (ताकत) में ३ बजे तक बैठे रहे कोई नहीं आया. ना टोनही ना कोई बैगा. भोर होने वाला था.
हम वापस घर की ओर चल पड़े. जैसे श्मशान से सड़क पर पहुचे ही थे कि पुलिस कि गस्ती गाड़ी मिल ही गई एक थानेदार ने हमें रोका और पूछा कहाँ से आ रहे हो. हमने कहा कि हमारे मित्र को रात को लैट्रिन लग गई थी इस लिए तालाब तरफ आये थे. हमें अपना परिचय पत्र दिखाया तो उसने हमें छोड़ दिया, पढ़ने वाले लड़के हैं कह कर.
इस तरह दोस्तों हमने टोनही के चक्कर में डरते -डरते अपनी एक रात काली की लेकिन हमें कुछ हासिल नहीं हुआ.इसका सार यह निकलता है कि इसका अस्तित्व नही होते हुए भी लोग इसे अपने जीवन में ढाल कर जीवन का एक हिस्सा मान बैठे हैं.
हरली त्यौहार को हमें टोनही देखना था.इसके लिए हमें गांव में रात को घुमने की तो आज्ञा घर वाले देंगे नही. इसलिए हम रायपुर के पास वाले गांव में ही रुक गए.रात को वो गांव भी सुनसान हो गया हम छाता और टॉर्च लेकर निकले टोनही ढूंढने के लिए।
मैं, चन्द्रशेखर, गजानंद, और एक हमारा खाना बनाने वाला बरातू. लोग बताते थे कि रात को १२ बजे के बाद टोनही अपने घर से निकलती है और उड़ते हुए खेतों में या श्मशान में सुनसान जगह पर जाकर अपनी तंत्र शक्तियों को जागृत करती है. हम भी अपना सब खा पीकर तैयार थे कि आज टोनही पकड़ना है.
हम रात जो ११ बजे चुपचाप घरों से निकले मैंने साथियों को कह दिया था कि अपना कालेज का परिचय पत्र रख लेना. कहीं पुलिस का गस्ती दल मिल जाये तो फिर रात थाने में ही कटेगी. हम गांव का चक्कर काटे हुए खेतों में गए
उसके बाद तालाब की पार (मेड) पर पीपल पेड़ के पास बैठ गए.वहां से श्मशान १०० मीटर की दुरी पर था लेकिन अमावश्या होने के कारण कुछ दिख नहीं रहा था. गजानंद बार -बार बोलता था, चल ना महाराज मरवा देगा. मेरे को डर लग रहा है. मैं उसको कहता था बैठ ना बे कुछ नही होने वाला-साले तेरी तो ऐसे ही फट रही है.
जैसे ही किसी कुते के भोंकने की आवाज आती थी वो मेरे से चिपक जाता था. जैसे ही कोई उल्लू (घुघवा) बोलता था तो गजानंद डर जाता था. हम इसी तरह आधे डर और आधे बल (ताकत) में ३ बजे तक बैठे रहे कोई नहीं आया. ना टोनही ना कोई बैगा. भोर होने वाला था.
हम वापस घर की ओर चल पड़े. जैसे श्मशान से सड़क पर पहुचे ही थे कि पुलिस कि गस्ती गाड़ी मिल ही गई एक थानेदार ने हमें रोका और पूछा कहाँ से आ रहे हो. हमने कहा कि हमारे मित्र को रात को लैट्रिन लग गई थी इस लिए तालाब तरफ आये थे. हमें अपना परिचय पत्र दिखाया तो उसने हमें छोड़ दिया, पढ़ने वाले लड़के हैं कह कर.
इस तरह दोस्तों हमने टोनही के चक्कर में डरते -डरते अपनी एक रात काली की लेकिन हमें कुछ हासिल नहीं हुआ.इसका सार यह निकलता है कि इसका अस्तित्व नही होते हुए भी लोग इसे अपने जीवन में ढाल कर जीवन का एक हिस्सा मान बैठे हैं.
ज्यादातर लोग तो ऐसी बातों के वहम में डरे रहते है आवश्यकता है इन पर से पर्दा हटाने की |
जवाब देंहटाएंसच्चाई कितनी होती है आज तक कभी मेरे समझ में कुछ नही आई हाँ एक बात मैं ज़रूर कहना चाहूँगा की इसमें भय का योगदान बहुत होता है लोग भय में आकर कुछ ऐसे कार्य कर बैठते है जिनसे उन्हे ऐसे एहसास होता है की यह सब आत्माओं के वजह से हुआ...डर भी कही ना कही इसमें शामिल है. रोचक चर्चा शर्मा जी..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकल मैने दुबारा आपका आलेख पढ लिया था .. बहुत मार्मिक घटना थी .. मैं बाद में टिप्पणी नहीं कर पायी थी .. दरअसल तांत्रिकों की ये चाल है .. अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अशिक्षित लोगों के मध्य इस तरह की बातों का प्रचार प्रसार करते हैं .. मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं होता .. इस पोस्ट में आपने लिख ही दिया है कि .. आपने ढूंढने की कोशिश की .. तो आपको कुछ मिला भी नहीं !!
जवाब देंहटाएंडरपोक लोगों पर कु्छ ज्यादा ही इसका असर होता है, और जहाँ रात अंधेरी काली हो यह डर और बढ जाता है-आप भी तारीफ़ के काबिल ही हैं जो उस उम्र मे टोनही ढुंढने निकल पड़े- एक ज्ञान वर्धक चर्चा है-
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हमको तो अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिये बनी सरकारी या पुलिस की समिति मे सदस्य बना दिया गया है और अब पता नही कब क्या कर पायेंगे,वैसे टोनही के नाम पर प्रापर्टी हडपने का प्रपंच आये दिन देखने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंमेरा मानाना भी यही है कि ऎसा कुछ नही होता, बस लोग युही डरते है
जवाब देंहटाएं