अमिताभबच्चन द्वारा अभिनीत एक फिल्म आ रही है "पा" जिसमे उन्होंने प्रोजोरिया से ग्रसित एक बालक ओरो की भूमिका अदा की है.
चलिए आपकी असली "पा' से मुलाकात करवाते हैं, छत्तीसगढ़ के पामगढ़ क्षेत्र के भिलौनी ग्राम में रहता है "कुलजीत बनर्जी" जिसकी उम्र 11 वर्ष है. और इस बीमारी से ग्रसित है.
यह असमय बुढ़ापे का शिकार हो रहा है. 11 वर्ष की उम्र में ढाई फुट ही बढ़ पाया है और इसकी शारीरिक बनावट वृद्धों जैसी है.
इस कम उम्र में ही इसे वृद्धावस्था की बीमारियाँ होने लगी हैं.इसके दिमाग की नसों में खून जमा हो गया था, जिसे काफी उपचार के बाद ठीक किया गया.
इसे शरीर के बांई ओर लकवा मार गया है और हार्ट प्राब्लम भी हो गया है. शरीर की चमड़ी सिकुड़ गई है.
डाक्टर कहते हैं कि ऐसी बीमारी 80 लाख लोगों में किसी एक को होती है. इनकी अधिकतम आयु 14-15 साल ही होती है. यह लाइलाज बीमारी है.
एक सप्ताह के अवकाश के बाद पुनः ब्लाग पर आज पहुंचा हूँ. आज 26 /11 है, भारत की अस्मिता पर हमले की साल गिरह. सभी निज-निज तरह से इस दिन को याद कर रहे हैं. कितनो के माथे से उसका सिंदूर उजड़ा था? कितनो के सर से माँ -बाप का साया उठ गया. आतंकी हमले को झेलने वाले लोग आज भी सिहर उठते हैं. एक धुकधुकी सी लग जाती है. सब कुछ असुरक्षित सा हो जाता है. बस एक ही चिंता सताती है कि किस जगह पर सर छुपाए, जहाँ जान बच जाये. मैं सोचता हूँ कि आतंक वादियों द्वारा इतने बड़े-बड़े हमले किये जाते हैं फुल प्रूफ प्लानिग के साथ जिसकी भनक तक हमारी एजेंसियों को नही लग पाती. बाद में जोर-शोर से लकीर पीटी जाती है. जिसने भी एक नेक शहरी होने का परिचय देकर गवाही दी उसकी शामत आ जाती है. उसका क़ानूनी प्रक्रियों के चलते जीना हराम हो जाता है. हमारी जासूसी एजेंसियां और स्थानीय मुखबिर तंत्र क्यों फेल हो जाता है? ये एक गंभीर चिंतनीय विषय है. हमारी पुलिस को उसके क्षेत्र में हो रही सभी गतिविधियों की जानकारी रहती है. फिर भी सूचना तंत्र ढह जाता है. आवश्यकता है इसे दुरुस्त करने की और सजग रहने की. जिससे भविष्य में आतंकवादी घटनाओं की रोक थाम हो सके. संगठित अपराध पर लगाम लग सके. आतंकवादी हमले में शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.
आज मौसम बड़ा ख़राब है, रात से ही लगातार बारिश हो रही है. ठंड बढ़ गई और विद्युत् व्यवस्था भी चरमराई हुई है. दिन कम से कम बीस बार तो लाइट बंद हो जाती है, आज सुबह से ही भांग की चर्चा चल गयी तो एक अनुभव आपके साथ बांटता हूँ.
हम सब मित्र साल में एक बार भारत में कहीं भी कार्यक्रम बना कर घूमने जाते हैं सावन के महीने में तथा इस यात्रा का समापन वैद्यनाथ धाम में होता है. एक बार हम बनारस पहुंचे, यहाँ सावन के पहले सोमवार को बाबा को जल चढ़ा कर आगे की यात्रा करेंगे. हम सब डॉ. श्रीधर, उमाशंकर, सत्तू महाराज, निनी भैया, देवीशंकर, बब्लू, रवि, कमलेश इत्यादि 14 लोग थे. रात की आरती में हम बाबा के दर्शन करने पहुंचे. वहां पर आरती की, उसके बाद वहीं मदिर के अन्दर बैठ गए. सत्तू महाराज बोले मैं असली प्रसाद लेके आता हूँ. थोड़ी देर बाद एक भंग का गोला लेकर आ गये. पुजारी उनकी पहचान का था इसलिए थोडा बड़ा ही दे दिया था.सत्तू भैया ने सबको भंग प्रसाद बांटा, सबने ग्रहण किया, उसके बाद हम गंगा किनारे के एक होटल में खाना खाने लगे. जैसे ही मैंने दूसरी रोटी खानी चालू की ही थी कि मुझे लगा कि अब नशा होने लग गया है. भंग चढ़ने लगी थी. खाना खाने के बाद एक पान ठेले पर पान खाने के लिए रुके. तो डाक्टर ने पूछा"क्या महाराज पान लोगे" मैंने कहा जरुर लेंगे. अब डाक्टर और मेरे बीच बात होने लगी वो कहता कुछ था और मैं समझता कुछ था जवाब मुंह से कुछ निकलता था. देखता हूँ कि जितने लोग थे सब भंग के नशे में झम्म हो चुके थे. हम पुराने बनारस में घाट के पास कचौड़ी लाल धर्म शाला में रुके थे. उस धर्मशाला में जाने के लिए इतनी पतली गली है कि एक मोटर सायकिल भी नहीं जा सकती. हम पैदल-पैदल धर्मशाला चल पड़े, कमलेश बार-बार एक ही बात बोलता था, जब उसको कोई अंग्रेज दिखाता था तो "अंकल इस अंग्रेज से बात करो, उसका मीटर यहीं पर अटका हुआ था. मेरे बोलती बंद हो गई थी. किसी से कोई भी बात करने का मन नहीं करता था. अगर कोई बोलता था तो लगता था कि ये क्यों बात कर रहा है. ऐसे झुंझलाहट चढ़ी हुयी थी.रात क १२ बज रहे थे. पूरी गली सुनसान, ऐसा लगाता था जैसे कोई हारर फिल्म का सीन है. रात को मुझे ये गलियां बड़ी भयानक लग रही थी.हम धर्मशाला तक पहुंचे तो उसका दरवाजा बंद था. कोई खोलने को तैयार नहीं. हम लोगों ने बहुत आवाज दी, लेकिन मैनेजर शायद हम लोगों की परीक्षा ले रहा था. उमाशंकर थोडा कम बोलता था. लेकिन उसकी आवाज पूरी खुल गई थी, वही दादा भैया करके मैनेजर को जगाने में लगा हुआ था. लेकिन वो उठ ही नही रही रहा. इस तरह हम एक घंटा चिल्लाते रहे उसके बाद उसने दरवाजा खोला. सब उस पर बरस पड़े, तो वो बोला हमारी धर्मशाला का बंद होने का समय ११ बजे है. इसके बाद हम नहीं खोलते, मुझे लग रहा था कि जहाँ पर भी जगह मिले वहीं पर सो जाऊँ, सुबह हमें सारनाथ जाना था. हम अपने कमरे में जाकर लेटे, लेटते ही मेरा बिस्तर घुमने लग गया. आँख बंद करता था तो सर घूमता था. बोलती बंद हो गयी थी, रवि बगल में सोकर मेरे से मजाक करता था कि मैं कुछ बोलूँगा, लेकिन बोलने को मुंह ही नहीं खुल रहा था. उस दिन मुझे "उन्माद" शब्द से सही परिचय हुआ, इस शब्द को हमने लिखा पढ़ा, लेकिन उन्माद क्या होता है, इससे साक्षात्कार पहली बार हुआ. मैं सोचता रहा कि ये भंग नहीं उतरेगी तो क्या होगा? पता नहीं कब कैसे कितने बजे नीद आई. सुबह हमारी ऑंखें खुली तो नौ बज रहे थे. सारनाथ जाने वाली गाड़ी छुट चुकी थी. हम सोते रह गये. अब सर का चक्कर उतार चूका था. हमने सोचा कि अब क्या करेंगे चलो एक बार बाबा विश्वनाथ के फिर दर्शन हो जाएँ. जब हम चार घंटे की लाइन में लग कर मंदिर में पहुंचे तो मैंने पुजारी से पूछा- महाराज यहाँ भंग में धतुरा भी मिलाते हो क्या? तो महाराज ने कहा -हाँ! बिना धतुरा के यहाँ तो भंग घोटी ही नहीं जाती. तब मेरी समझ में आया किये उन्माद भांग का नहीं धतूरे का था.उसके बाद से आज पहली बार मैंने इस खतरनाक चीज का नाम लिया है.
जो न करा दे वह राजनीति है, इसी राजनीति ने एक निर्दलीय विधायक मधुकोड़ा को झारखंड का मुख्य मंत्री बना दिया। इसके सामने सारी राष्ट्रीय पार्टियां बेबस खड़ी नजर आ रही हैं। वाह से सत्ता का खेल और सांप सीढी का कमाल। वाह रे कोड़ा तुमने कितना कोड़ा (खोदा) अब वह निकल रहा है, तो बिलबिला रहे हो, श्रीमान जी ये कोड़ने से पहले सोचना था. लेकिन कोड़ते समय ये ध्यान थोडी रहता है कि कितना कोड़ डाले. वो तो बाद में पता चलता है. जब कोड़ाई (खोदाई) के बड़े-बड़े गढ्ढे खुले आम लोगों को दिखाई देने लगते हैं कि ये तो लगता है कि बहुत कोड़ डाला. कम से कम कोड़ने के बाद उन गड्ढों को पाट देना था जिससे दिखाई ना दे, लेकिन चोरी कब तक छिपेंगी, एक ना एक दिन सामने आना ही था. आज मुझे तुम्हारी हरकतों के कारण लिखना पड़ ही गया, वरना भ्रष्ट शिरोमणी मैं तुम्हारे मुंह पर थूकता भी नहीं। जब तुम खुद को स्वयं ही निर्दोष घोषित कर अदालत में मानहानि का दवा करना चाहते हो. आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने तुम्हारे ६५ से अधिक ठिकानो पर छापा मारकर प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर ही दो हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की सम्पत्ति का निवेश करने का आरोप लगाया है. आज तुम कह रहे हो सारे आरोप मनगढ़ंत है. तो आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय में बैठे अधिकारी बहुत बड़े फ़िल्मी पटकथा लेखक हैं जिन्होंने एक पूरी फिल्म की पटकथा ही रच दी, तुम्हारी अनुशंसा पर इन्हें तो यहाँ से हटा कर सरकारी डाक्युमेंट्री बनाने का काम ही दे देना चाहिए. ये तो सब जानते हैं कि चोरी पकडे जाने पर एक चोर का मिथ्या प्रलाप है. इससे से तो यही साबित होता है "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" तुम्हे तो और मौका मिलता तो कोड़ते ही रहते पता नहीं कहाँ-कहाँ कितने गढ्ढे करते? तुमने आम आदमी के धन को दोनो हाथों से लूटा है। देश की जनता तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगी।
हे भगवान ! बेशर्मी की हद हो गई, कितनी मोटी मोटी खाल है इस भेडिये की. कितनी बेशर्मी से कह रहा है कि "अगर जुर्म साबित हो गया तो राजनीती छोड़ दूंगा." श्रीमान आपको निमंत्रण ही किसने दिया था ?आओ और हमारा कल्याण करो. तुम तो अपना मुंह निकाल कर स्वयं ही आगे आये थे कि मुझे जीताओ, गली-गली घुमे थे, पता नहीं कितने माँ बाप बनाये थे, कितने नए रिश्तों का निर्माण किया था अपनी चाल में फंसाने के लिए हम गरीबों को. जनता भी बेवकूफ है. जब हम चावल पकाते हैं तो उसका एक दाना ही देखते हैं कि पक गया कि नही, पूरी हांडी में हाथ नहीं डालते. जब इन मतदाताओं को पता था कि तुम शातिर धान चोर हो तो वहीं पर इनको तुम्हारा निपटारा कर देना था. लेकिन ये भी तो चेतते नहीं हैं ना. जब पकडे गये तो बीमार हो गये और अस्पताल में भरती हो गये. अरे कम से कम जेल जाते वहां तुम्हारे लोग इंतजार कर रहे हैं फुल माला लेकर, कब भैया आयेंगे? यहाँ भी हमारा कल्याण होगा, बहुत पैसा गटके हैं गरीबों का. अब मुम्बई का यूनियन बैंक बता रहा है कि तुम्हारे 640 करोड़ रूपये तो इनके बैंक में जमा है. एक गरीब आदमी खेत बेच के बैंक में रुपया जमा कराने जाता है तो ये ही बैंक वाले उससे ऐसे सवाल करते हैं कि जैसे वो कहीं से डाका डाल कर लाया है. और तुम्हारा रुपया तो तुम्हारे के दादा की वसीयत से मिला है तुम्हारे नाम से जमा करवा कर गये थे बैंक में, अब उसे निकालो और उडाओ और यही सरकारी आदमी बता रहे हैं कि तुम्हारे दादा ने तुम्हारे लिए एक नहीं दो नहीं पुरे चार हजार करोड़ और भी कई जगहों पर रखे हैं. धन्य हैं आप महान है आपकी लीला अपरम्पार है, आपका कोई सानी नहीं है.गुरु गुड हो गया चेला गुलगुला हो गया. उसने तो सिर्फ चारा खाया था. तुमने तो पूरे राज्य बजट ही हजम कर डाला, वाह क्या हाजमा है तुम्हारा? किसी को इस हाजमे से इर्ष्या हो सकती है. ये तुम्हारा पेट है की म्युनिसिपालिटी का गटर जो भी आया सब अन्दर. तुम भ्रष्टाचारियों एक आदर्श बन गए हो. तुमने इस राजनीती की सीमेंट की गीली सड़क पर जो अपने क़दमों के निशान छोडे हैं वो इतनी जल्दी मिटने वाले नहीं हैं. तुम्हारा अनुशरण आने वाली पीढियां करेंगी, तुमने इतना महान काम किया है कि तुम्हे ".....चक्र" जैसी किसी उपाधि से अलंकृत किया जाना चाहिए और चौराहों पर तुम्हारी मूर्ति लगाई जानी चाहिए. हम तो मंदिर की जंजीर से बंधा हुआ वो घंटा हैं कि लोग प्रसाद तो भगवान को चढाते हैं मन्नत के लिए, और बजा हमें जाते हैं. कब तक मेरे देश की जनता मंदिर का घंटा बने रहेगी?
आज 14 नवम्बर है, बरसों से पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिन पर हम "बाल दिवस" मना रहे हैं. सरकारी खर्चे पर आज फिर बालकों के भविष्य के लिए कुछ घंटों की चर्चा होगी, बालविकास की जो योजनाए चल रही है उन पर बहस होगी. कुछ नई योजनाओं के प्रस्ताव आयेंगे. उनका अनुमोदन होगा. कुछ एन.जी.ओ. अपना ज्ञान बघारेंगे. कुछ बड़े अफसरों की बीबियाँ अनाथ आश्रमों में जा कर पुराने कपडे, फल और दूध बांटेंगी. चाकलेट खिलाते हुए किसी कुपोषण के शिकार बच्चे को गोद में उठाकर दुलारेंगी, जिससे कल के अख़बारों और मिडिया में उनकी अनाथ बच्चों के प्रति वात्सल्य प्रवाहित करने की खबरें प्रकाशित हो सके. कोई शहीद होने का अभिनय कर अपने सेंटेड रुमाल से किसी बच्चे का बहता हुआ नाक पोंछ कर बाल दिवस के प्रति जागरण की मुहीम का प्रचार करेंगी. जागरण के इस यज्ञ में अपनी आहुतियाँ देंगी.कुछ तथा कथित संस्थाएं बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर मुख्य अथिति के रूप में किसी बड़े नेता मंत्री को बुला कर, उससे नजदीकी गाँठेंगी जिससे बाद में अपना उल्लू सीधा किया जा सके. बाल विकास विभाग तय करेगा कि आने वाले सत्र में किस-किस अधिकारी के बच्चे का विकास कितने कमीशन से होगा? वो भी आखिर बाल ही हैं. और बाल विकास का प्रारंम्भ अपने ही घर से किया जाये तो उसकी गुणवत्ता का पता भी चल जायेगा, इनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं और उन्हें ज्यादा खर्चे की आवश्यकता है. इसलिए ज्यादा से ज्यादा कमीशन बन सके ऐसी योजनाओं की फाइल उनकी मेज पर सबसे पहले दिखनी चाहिए. उसे बिना रोके ही एप्रूवल देना है. सभी अपने-अपने तरीके से जुगाड़ लगा कर बाल दिवस मनाएंगे. लेकिन से देखने कोई नही जाने वाला कि इस देश के नौनिहाल किन परिस्थियों में अपना बचपन बिता रहे हैं?
अभी कल की ही बात है मेरी बेटी का स्कुल का जूता टूट गया था. शाम को मैं जूता लेने बाजार गया. जूते की दुकान में मैंने दुकानदार से स्कुल शू दिखने कहा तो उसने आवाज दी " अरे डिस्पोजल" तो मैंने सोचा पानी पिलाने के लिए डिस्पोजल गिलास मंगवा रहा है. लेकिन मैं देखता हूँ कि एक 7 /8 साल का लड़का आया. मैं बोला ये तो डिस्पोजल नहीं लाया. दुकानदार बोला महाराज इसी का नाम "डिस्पोजल" है. दुकान में थोडा बहुत काम करने के लिए रखा हूँ. इसका बाप चाट का ठेला लगता था, बीमारी में मर गया इसलिए इसे काम पर इसकी माँ के कहने से रख लिया, इनके घर का थोडा बहुत खर्चा चल जाता है. मै सोचते रह गया, कि इसका भी नाम किसी ने बहुत सोच समझ कर रखा है. आज भारत का बचपन "डिस्पोजल" ही हो गया है. सारी सरकारी योजनाओं से अधिकारियों और मधु कोडा जैसे नेताओं की जेबें भरी जा रही हैं. इन बच्चों के मुंह का निवाला और इनके तन से कपडे छीन कर अपने बच्चों का भविष्य बना रहे है. लेकिन गरीब की हाय बहुत बुरी होती है और यह सब कुछ जला कर राख कर देती है. कभी तो बचपन को "डिस्पोजल " बनाने वालों को इनके आंसुओं की कीमत चुकानी पड़ेगी, अपनी संतानों से जूते खाकर.
कभी ऐसा भी होता है जीवन में, कभी कभी हमसे ऐसी नादानी हो जाती है,जिसे बाद में सोच कर हम अपने आप पर ही हँसने को मजबूर हो जाते हैं. एक घटना ऐसी ही मेरे साथ घटी वह आपके साथ बाँट रहा हूँ,शायद आप के साथ भी घटी हो?
हमारा गाँव कोई दस हजार वोटरों की ग्राम पंचायत है. जो कि अब नगर पंचायत में तब्दील हो गया है. हम सब एक दुसरे को जानते हैं और सबके सुख-दुःख में शामिल होते हैं. हमारे घर से कोई आधे कि.मी. की दूरी पर श्मशान है और यहाँ जाने का रास्ता हमारे घर के सामने से ही है. जब किसी की मृत्यु होती है तो मैं शवयात्रा में अपने घर से ही शामिल हो जाता हूँ. सभी पंथों एवं धर्मों की मान्यता है की शवयात्रा में शामिल होना पुण्य का काम है. दोस्त हो या दुश्मन, परिचित हो या अपरिचित सभी की अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए, ये बात मैंने भी गांठ बांध रखी थी. किसी की भी शव यात्रा घर के सामने से निकले मैं अपना पंछा (अंगोछा) उठा कर उसमे शामिल हो जाता हूँ, एक दिन ऐसी ही एक शव यात्रा घर के सामने से निकली, उसमे सभी परिचित लोग दिखे, तो मैंने सोचा कि गांव में किसी की मृत्यु हो गयी और नाई मुझ तक नहीं पहुँच पाया मुझे जाना चाहिए, मैंने अपना अंगोछा उठाया और चल दिया, श्मशान जाने के बाद मैंने किसी से नही पूछा कि कौन मरा है? अपने हिसाब से कयास लगाया. हमारे मोहल्ले में एक फौजी रहता था और वो काफी वृद्ध हो गया था, वो लगातार बीमार भी रहता था, उसके नाती लोग उसके साथ रहते थे. श्मशान में फौजी के नाती लोग सभी क्रिया कर्मो को अंजाम दे रहे थे. अब मैंने सोच लिया कि फौजी की ही शव यात्रा है. अंतिम संस्कार के बाद घर आया तो मेरी दादी ने पूछा कि कौन मर गया? मैंने कहा फौजी. उन्हें बता कर मैं नहा कर पूजा पाठ करके किसी काम से बस स्टैंड चला गया. जब वापस घर आया तो देखा घर के सब लोग एक साथ बैठे थे. मै देखते ही चक्कर में पड़ गया कि क्या बात हो गई इतनी जल्दी? मैं तो अभी ही घर से गया हूं बाहर. दादी ने पूछा " तू किसकी काठी में गया था? मैंने कहा "फौजी की. तो वो बोली "फौजी तो अभी आया था. रिक्शा में बैठ के और मेरे से 100 रूपये मांग कर ले गया है. वो बीमार है और इलाज कराने के लिए पैसे ले गया है. अब मैं भी सर पकड़ कर बैठ गया "आखिर मरा वो कौन था? जिसकी मैं शव यात्रा में गया था. मैंने कहा ये हो ही नहीं सकता मैं अपने हाथों से लकडी डाल के आया हूँ. वो किधर गया है? उन्होंने कहा कि बस स्टैंड में डाक्टर के पास गया होगा. मैंने फिर अपनी बुलेट उठाई और बस स्टैंड में उसको ढूंढने लगा. एक जगह पान ठेले के सामने वो मुझे रिक्शे में बैठे मिल गया. मैंने उतर के देखा और उससे बात की. अब मैं तो सही में पागल हो चूका था कि "मैं आखिर किसी शव यात्रा में गया था" मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था, क्या किया जाये? फिर मेरे दिमाग में आया कि फौजी के नाती लोगों से पूछा जाये. अब पूछने में शरम भी आ रही थी कि वे क्या सोचेंगे? महाराज का दिमाग खसक गया है. काठी में जा के आने के बाद पूछ रहा है कौन मरा था? किसकी काठी थी? मैं इसी उधेड़ बुन में कुछ देर खडा रह फिर सोचा कि चाहे कुछ भी हो, पूछना तो पड़ेगा. ये तो बहुत बड़ी मिस्ट्री हो गयी थी. मौत तो उनके घर में हुई थी. लेकिन किसकी हुयी थी यही पता करना था. आखिर मैं उनके घर गया. दूर में मोटर सायकिल खड़ी करके उसके छोटे नाती को वहीँ पर बुलाया और उससे पूछा.तो उसने बताया कि उसके पापा (फौजी के दामाद)की मौत हुयी है वो भी काफी दिन से बीमार चल रहे थे.
मित्रों कल की चर्चा में मैंने एक अपनी सहपाठी की चर्चा की थी, लेकिन पता नहीं मेरे से क्या गलती हो गई, पोस्ट के विषय में तो कोई टिप्पणी नहीं आई, उसकी चर्चा गौण हो गई और सबके निशाने पर मेरी मूंछे ही आ गई.
सबने मेरी मूछें ही खींची. मैं भी खुश हुआ चलो किसी काम तो आई, नही तो इतने साल से इनको फालतू ही घी पिला रहा था, आज मैं विषयांतर करके मुछों पर ही कहना चाहता हूँ.
चलो जब लोग मनोरंजन के मूड में हैं तो यही सही. कल की टिप्पणियों की बानगी का मजा लीजिये .
पी.सी.गोदियाल ने कहा… झूट बोल रहे है आप, अगर लड़कियों के साथ पढ़े होते तो इतनी डरावनी मूछे नहीं रखी होती आपने :)))
खुशदीप सहगल ने कहा… ललित जी,खामख्वाह इतना टंटा किया...आप मूछों पर ताव देकर एक बार खुद ही लड़की के चाचा के सामने जाकर खड़े हो जाते...न अपने भूतों के साथ सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा होता तो मेरा नाम नहीं...वैसे आपकी पोस्ट पर एक बात और कहना चाहूंगा...इश्क और मुश्क लाख छुपाओ, नही छिपते....कहीं ये भी तो वही...खैर जाने दो...जय हिंद...
जी.के. अवधिया ने कहा… बहुत ही अच्छी श्रृंखला चला रहे हैं आप! बीच की कुछ कड़ियाँ नहीं पढ़ पाया हूँ। आज की कड़ी को पढ़ा है और प्रतीक्षा है अगली कड़ी की। टिप्पणियों में मूँछ की बातें पढ़ कर अखर रहा है कि पूरी तरह से सफेद हो जाने के कारण हमें 'क्लीनशेव्ड' बनना पड़ा, वरना हम भी आदमी थे मूँछो वाले।
आज मुछों की ही चर्चा करते है, बाकी विषय पर कल चर्चा करेंगे. भाई मुछों का लाभ भी है तो नुकसान भी है, बिना परिचय पत्र दिखाए ही लोग जान जाते हैं फौजी है. इसका एक लाभ मुझे ये मिला की सफ़र में कहीं भी तकलीफ नही होती. मेरी मुछों के लिए एक सीट हमेशा रिजर्व रहती है, ट्रेन हो या बस.अगले बैठा ही लेते हैं. लेकिन सवारियों से बात नहीं होती. एक बार मैं दिल्ली तक चला गया मेरे साथ की सवारियों ने बात नहीं की. जब तक मैंने उनसे बात शुरू नहीं की, उन्होंने सोचा कि पता नहीं किस मूड का आदमी है. दिखता भी बड़ा खतरनाक है. दूर ही रहो तो भलाई है. एक बार हमारे मित्र विश्वनाथन जी और मैं त्रिवेंद्रम जा रहे थे. तो रायपुर से लेकर चेन्नई तक कई जगह फिक्स है जहाँ हिजडे लोग सवारियों को परेशान करते हैं. पहला चरण गोंदिया से नागपुर तक है. यहाँ हिजडे आये और सबको परेशान करने लगे. विश्वनाथन जी बोले" यार ये आ गये परेशान करेंगे". मैंने कहा "कोई परेशानी नहीं है ये आपके पास फटकेंगे ही नही." उसके बाद वे आये और देखा, बिना कुछ बोले ही निकल गए. विश्वनाथन जी देखते रहे.उसके बाद चंद्रपुर बल्लारशाह के पास फिर आ गए और बिना कुछ बोले हमारे पास से निकल गये, उसके बाद चेन्नई से पहले आये और फिर बिना कुछ बोले निकल गये, विश्वनाथन जी को आश्चर्य हुआ कि चार प्रदेशों के गुजरने के बाद भी हिजडे पास में नहीं आये.बोले यार गजब हो गया नहीं तो ये साले परेशान कर डालते हैं. क्या बात है? जो आपको देख कर ही भाग जाते हैं. मैंने कहा कि"मुछों की कदर करते हैं.शायद इसीलिए" और आगे मुझे मालूम नहीं-- हो सकता है, ऐसा क्यों होता है "खुशदीप सहगल" ही कोई प्रकाश डाल पायें.
अवधिया जी ने अपना दर्द बताया कि पहले भी हम मूंछ वाले थे, लेकिन पकने के कारण अब क्लीन सेव हो गये हैं मूंछे मुंड ली है, आपने नया टेम्पलेट चढाने के लोभ में पुराने टेम्पलेट के विजेट उड़ा दिये.लेकिन इस विजेट की जरुरत पड़ते रहती है और जल्दी से आप उसका html ढूंढे और लगायें.क्या बताऊँ? मूंछो का पकना ये दर्शाता है कि आपके पास इस दुनिया कितना अनुभव है और आपने जीवन भर की कमाई को एक झटके में साफ कर दिया. मैं सोच रहा हूँ की मूछें सफ़ेद नहीं हो रही है. क्योंकि पकी मुछों का भी तो लाभ लेना है. मैं चाहूँगा कि इस विषय पर अवधिया जी ही अपने अनुभव लिखे एक पोस्ट में तो हमें भी लाभ मिलेगा-"मूछों से पहले और मूंछों के बाद"
एक दिन मैं और मेरा एक सिन्धी दोस्त रायपुर रेलवे स्टेशन के सामने क्राकरी की होल सेल दुकान में गए. मुझे घर से फोन आया था कि कप लेकर आना. हम दुकान में गए. तो एक लगभग २५ साल का लड़का बैठा था, मैंने कहा-जरा कप दिखाना, वो बोला-सर अभी तो पापा नहीं है. मुझे रेट नही मालूम एकाध घंटे में आ जायेंगे फिर ले जाना. हमें रेल का रिजर्वेशन भी करवाना था तो सोचा पहले वो ही काम कर लेते हैं. हम एक घंटे बाद वापस आये तो उस लड़के का बाप बैठा था. मैंने कहा क्राकरी देखाओ. तो वो बोला "सर मेरा लड़का तो अभी नहीं है क्राकरी का रेट तो उसी को मालूम है. आप एक घंटा के बाद आना और ले जाना. हम लेट हो चुके थे/ हमको क्राकरी नहीं मिली. बिना क्राकरी के ही वापस आना पडा. रस्ते में दोस्त ने बताया कि" भैया वो आपको थानेदार समझ के व्यवहार कर रहे थे सोचते होंगे कि फ्री में ले जायेगा और पैसा भी नहीं देगा. कभी कभी ये नुकसान भी उठाना पड़ता है मुछों के कारण.
टोनही विषय पर आगे बढ़ते हैं. सुधि पाठकों की टिप्पणियाँ इसे आगे बढ़ाने की खुराक दे रही हैं और उनसे प्राप्त उर्जा से ही मै इस विषय पर आगे बढ़ रहा हूँ, अब हम टिप्पणियों की ओर चलते हैं.पी.सी.गोदियाल ने कहा… ललित जी, घटना मजेदार थी मगर यह कहूंगा की सामान्य तौर पर शायद आप कभी अगर उत्तराँचल हिमालय में मौजूद पवित्र बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने गए हो तो वहा मौजूद पड़ित जब आप से पूजा अर्चना करवाते है और अगर आप अपना अता पता सही-सही बताते है तो वे आपकी सात पुसतो का लेखा-जोखा निकाल कर आपको बता देते है ! यह उनकी परम्परा रही है की जो भी दर्शनार्थी वहा जाता है उसकी पूरी खानदानी परिचय वे रखते है और चूँकि शर्दियो में धाम के कपाट बर्फ की वजह से बंद हो जाते है अतः वे पंडित लोग इस दरमियान उन जजमानों के पते पर उन्हें मिलने ( मोटी दक्षिणा की उम्मीद लेकर) जाते है!
संगीता पुरी ने कहा… बहुत अच्छी जानकारी दे रहे हैं ललित भाई आप मुझे .. मैं तो स्वयं लोगों के द्वारा इन ठगों के करामातों को सुनकर आश्चर्यित रह जाती हूं .. विज्ञान का इतना गलत उपयोग .. पर आपके ब्लाग पर गहरे रंग संयोजन से लोगों को पढने में दिक्कत तो नहीं होती ना .. मैं चाहती हूं कि जागरूकता भरे इन आलेखों को अधिक से अधिक लोग पढें .. और इन ठगों के चमत्कारों का रहस्य समझने की कोशिश करें .. समाज में इसका प्रचार प्रसार बहुत आवश्यक है .. आप हर आलेख में पिछले सभी आलेखों का लिंक दे दें .. या फिर पिछले सभी आलेखों का एक टैग में डालकर उसके अंतर्गत लिखकर साइड बार में लगा दें .. ताकि इन आलेखों का पढकर लोग हर रहस्य का कारण समझ सकें !! वैसे एक बार ऐसा संयोग हमारे पारिवारिक मित्र के घर पर भी हुआ था .. हजारीबाग में उनके रिश्तेदारों को ठगने के बाद बाबा लोग बोकारो में इनके दरवाजे पर पहुंच गए थे .. और बिल्कुल उसी स्टाइल में बातचीत की शुरूआत की .. जैसा वे लोग कई दिन पूर्व अपने पीडित रिश्तेदारों से फोन पर बातचीत के दौरान सुन चुके थे .. बस इन्होने पुलिस बुलाने की धमकी दे डाली और वे तुरंत कहां गायब हुए पता भी नहीं चला !!
Mithilesh dubey ने कहा… बहुत अच्छी जानकरि दी है आपने। आखें खोल के रख दी। आभार
कुलवंत हैप्पी ने कहा… जानकारी भरपूर लेख बहुत अच्छा लगा।
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा… समाज में प्रचलित अंधविश्वास को ऐसे ही प्रयासों से दूर किया जा सकता है।आपके इस प्रयास को प्रणाम करता हूं ।लवली कुमारी / Lovely kumari ने कहा… अच्छा लिख रहे हैं ललित जी ..रंग संयोजन बदल दीजिए ..आँखों को चुभता है सफ़ेद बैक ग्राउंड में काले अक्षर ही ठीक रहेंगे.
Dipak 'Mashal' ने कहा… Ye log isi layak hote hain bhai sahab... bahut sahi kiya aapne..Jai Hind...अब आगे बढ़ते है..
मेरे साथ बचपन में एक लडकी पढ़ती थी और मैट्रिक तक साथ में पढ़ी फिर गांव की परम्परा के अनुसार उसकी शादी हो गयी. शादी के कुछ साल के बाद क्या हुआ भगवान जाने उसके पति ने उसे त्याग दिया. वो अपने मायके वापस आ गई. बाप तो पहले ही नही था, माँ भी चल बसी. उसके परिवार में अब उसके आलावा कोई नहीं बचा, ये अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी. हाँ इसके चचा का भरपूर परिवार था. अब इसके पास गांव के बीच में मकान था और ४ साढ़े चार एकड़ जमीन थी. जिससे वो अपना गुजारा कर सकती थी. इसके मायके वापस आने के कारण चाचा का परिवार सबसे अधिक रुष्ट था क्योंकि यदि ये नही आती तो जमीन जायदाद पर उनका अधिकार बनता था. लेकिन अब इसके आने से उनकी योजना धरी की धरी रह गई उसका परिवार इस लड़की को भगाने की युक्तियाँ करने लगा, पहले तो उसे कहा गया कि उसकी दूसरी शादी कर देते हैं. जब वो नही मानी तो उसके घर का रास्ता बंद कर दिया जो उसके चाचा के घर के तरफ आता था. इसके बाद एक दिन नया ड्रामा चालू हुआ, इसके चाचा के पोते की तबियत ख़राब हो गयी शायद उसे टायफाइड हो गया था, उन लोगों ने गांव में कहना शुरू कर दिया कि ये तो जादू मंतर करती है और इसने ही मेरे लड़के को टोना किया है इसलिए वो बीमार है. इसके तो आल -औलाद है नहीं और मेरे बेटे को भी खाना चाहती है. और ये भी अपने घर में तांत्रिक बुलाकर कुछ तन्त्र मंत्र करवाने लगे, जिससे ये लड़की भयभीत रहने लगी, वो चाहते थे कि किसी तरह ये भाग जाये, लेकिन ये भी भागने को तैयार नहीं थी. अब इसके घर में कभी सिंदूर लागे निम्बू तो कभी काले कपडे का पुतला तो कभी नारियल इत्यादि चीजे मिलने लगी. लड़की परेशान रहने लगी .इसे इतना बदनाम कर दिया कि गांव में लोग अब इससे बचने लगे, कोई भी इसके घर में आने से कतराता था. जब नल पर पानी भरती थी, तो सभी औरतें वहां से हट जाती थी. एक तरह से प्रताड़ना अपने अंतिम चरण पर थी. एक दिन मुझे मिल गयी -मैंने हाल चल पूछा, तो रोने लगी. और उसने सारी कहानी बताई. उसकी बातों से मुझे लगा कि यदि ये ज्यादा दिन रह गई तो शायद इसे जान से मार डालेंगे और पता भी नहीं चलेगा. मैंने उसे ले जा कर थाने में रिपोर्ट लिखवाई, उसे आई. जी. से मिलवाया और उसके चाचा के परिवार के खिलाफ अपराध दर्ज करवाया. उनको जेल भी जुई,. लेकिन अब उसके लिए गांव का माहौल रहने के लायक नहीं लगा कई लोगों से दुश्मनी हो गई थी. मैं भी जब कई दिनों के बाद उसके गांव पंहुचा तो पता चला कि वो सब जमीन जायदाद बेच कर शहर में रहने के लिए चली गई है. लेकिन उसके उपर एक "टोनही" होने का जो दाग लग गया है उसे धोना बहुत ही कठिन ही नहीं नामुमकिन है.
कुछ दिनों से मेरे द्वारा लिखी जा रही जादू टोने एवं टोनही प्रथा के आलेख पर लगातार प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं टिप्पणियों के माध्यम से. पाठकों प्रतिक्रियाओं के आधार पर हम आगे बढ़ते हैं.
sunilkaushal ने कहा… बहुत बढिया जानकारी दी, बचने के लिए सावधान होना जरुरी है- ना जाने किस भेष मे ऐसे ही लोगों ने कषाय वस्त्रों की मर्यादा को भंग किया है। चावल पकाने वाली जानकारी के लिए आभार-आगे भी देते रहें, इन तांत्रिकों का पेशा ही भया दोहन पर टिका है.
M VERMA ने कहा… बहुत अच्छी जानकारी. हम असावधान होते है इसलिये ठगे जाते है.
Dipak 'Mashal' ने कहा… Aisi jaankari jan samanya me failane ki aaj nitaant aavashyakta hai lalit sir...Jai हिंद-
Dr. Smt. ajit gupta ने कहा… मनुष्य का लालच और बिना कर्म किए सब कुछ पाने की चाहत से ही ऐसे लोग हमें ठगते हैं। भारत के लोग कर्मकाण्डी लोग हैं और प्रतिदिन ही भगवान के समक्ष भीख माँगते हैं तो ऐसे संयासी लाखों में पैदा हो जाते हैं। अच्छी जानकारी। ऐसी घटनाएं प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे अनेक बार होती हैं बस जागरूक रहने की आवश्कता है।
संगीता पुरी ने कहा… इन ढोंगी बाबाजी के खिलाफ लिखकर आप समाज में जागरूकता लाने के लिए बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं .. इन्होने ज्योतिष(जिसे मैं एक विज्ञान के तौर पर परख चुकी हूं), तंत्र मंत्र(जिसे परखा नहीं,पर उसके महत्व को इंकार नहीं कर सकती)या अन्य प्राचीन विद्याओं को तहस नहस करने का काम किया है .. समाज को इनपर अविश्वास करने को मजबूर किया है .. जिनपर समाज को विश्वास दिलाने के लिए हमें अधिक श्रम करना पड रहा है !!
राज भाटिय़ा ने कहा… आप ने बहुत सुंदर लिखा,ऎसे बाबा लोग ही आम लोगो का विशवास खराब करते है, आप के ब्लाअंग का फ़ीड नही है, मेने काफ़ी कोशिश की इसे लिस्ट मे डालने के लिये-
शरद कोकास ने कहा… ललित भाई लिख तो बढ़िया रहे हो मेरी रुचि का विषय भी है लेकिन अभी काम्संट्रेट होकर पढ नही पा रहा हूँ । एक दिन पढ़कर इस पर एक पोस्ट ही लिखता हू " ना जादू ना टोना " मे । लिखते रहो यह ज़रूरी काम है ।
अब आगे चलते हैं ठगी के एक नये तरीके की ओर. ये घटना बहुत ही दिलचस्प है. और शायद ही किसी के साथ इस तरह का संयोग बना हो, लेकिन जिसके साथ बना उनकी किस्मत अवश्य ही ख़राब थी. एक दिन की बात है. मैं दिल्ली से घर आया तो मेरी गोंडवाना एक्सप्रेस ४-५ घंटे लेट हो चुकी थी. अत: मैं भी घर देर से पहुंचा. मेरे नहा धो के तैयार होने के बाद मम्मी ने कहा कि हमारे गढ़मुक्तेश्वर वाले पंडे आये थे. १०० रूपये दी हूँ. और आटा का सीधा भी मांग कर ले गए हैं. मैंने पूछा कब आये थे? मम्मी ने कहा अभी तेरे आने से एक घंटा पहले. मैंने पूछा कि आपको विश्वास कैसे हुआ कि ये हमारे पंडे हैं. मम्मी ने कहा कि "उन्होंने अपने बही खाते से तेरे पापा-दादा-चाचा-तेरा और भाइयों का नाम बताया. इससे मुझे विश्वास हुया कि ये अपने पंडे हैं. मैंने पूछा कि" उन्होंने मेरे बेटे का नाम बताया? जो २ साल का था.
मम्मी ने कहा नहीं. तब मुझे शक हो गया. वे पंडे नकली थे.
क्योंकि हमारे पडे महेश चन्द्र मैथ्स के प्रोफेसर हैं और वे १०० रूपये के लिए २००० किलो मीटर नहीं आ सकते. अब क्या कर सकता था. मम्मी को बेवकूफ बना कर वे जा चुके थे. मैं उन्हें कहाँ पर ढूंढ़ता,
लेकिन जिसके उपर राहू-केतु सवार हो जाये उसका सत्यानाश करवा कर ही छोड़ते हैं. अब आगे देखिये उन पंडों कि कैसी किस्मत ख़राब थी. और मुझे आज भी आर्श्चय होता है.
एक दो दिन बाद मेरे पास सारंगढ़ के सांसद पी.आर.खूंटे का फोन आया, उनकी लडकी की शादी थी पलारी में और मुझे विशेष आग्रह किया था शामिल होने के लिए, मेने सोचा कि ससुराल भी पास में ही है. उनसे भी मिल लेंगे और शाम को शादी में भी शरीक हो जायेंगे. मैं ससुराल पहुँच गया. ससुर जी हाल पूछ ही रहे थे कि दो लोग बढ़िया कुरता धोती बास्कट लगाये अन्दर आये श्याम जी हैं तो ससुर जी ने कहा बोलिए. इतना कहते ही वे बिना कहे ही सोफे पे बैठ चुके थे. बोले "हम आपके पंडे हैं, हरिद्वार से आये है, आप कुम्भ मेंले में नहीं आये हम आपका इंतजार करते रहे. सोचा कि जजमान किसी कारण नहीं आये तो, हम ही मिल आयें और आपका बही खाता भी अधुरा पड़ा है. उसको भी सुधार लेते हैं. अब तो आपके पोतों का भी नाम जोड़ना है.
मैंने ससुर जी इशारा करके एक अलग कमरे में बुलाया और उसने ये पूछने कहा कि वे कहाँ कहाँ गए थे. फिर अभनपुर का पूछना और जब वो हाँ बोले तो आप उठ कर चले जाना बाकी दक्षिणा मैं दे दूंगा.
ससुर जी ने उनसे पूछा" तो महाराज कहाँ-कहाँ हो आये".
उन्होंने अभनपुर सहित कई जगहों का नाम बताया.
ससुर जी ने कहा कि "ललित जी के यहाँ भी गये थे क्या?
उन्होंने कहाँ "हांजी! गये थे पर ललित जी नही थे, उनकी माताजी मिली थी." उन्होंने अपने हाथ में जजमानों की खानदान की डायरी बना कर अंपने हाथ में ले रखी थी, पहले तो मैंने डायरी उसके हाथ ले कर उसे पलट कर देखा उसमे हमारे ससुराल वालों के सभी घरों का नाम था.
एक नाम ऐसा था जिसे पढ़ कर मुझे ये पता चल गया कि ये नाम उन्होंने कहाँ से लिए हैं और यही इनके फर्जी होने का प्रमाण पत्र था.
मैं उठा और एक के कान के नीचे जोर से बजाया, वो तो हतप्रभ हो गया और बोला "मारते क्यों हो"? मैंने कहा मैं ही ललित हूँ जिसकी माताजी को तुम ठग कर आये हो और अब तुम सिर्फ चक्की पीसोगे और अभी तो सेवा कम ही हुई है. अभी और होगी. तुमने जिस जगह से ये सारे नाम लेकर ठगने का धंधा चालू किया है. उसका मुझे पता चल गया है. अभी पुलिस बुलाता हूँ और तुम्हारे को उनके हवाले करता हूँ.
इतना सुनते ही उसके साथ जो दूसरा आया था वो अपने साथी से बोला" महाराज आपको ये गलत काम नहीं करना था, अब तुम तो खुद फंसोंगे और मेरे को भी मरवावोगे." उसने तुंरत ही पाला बदल दिया,
मैंने एक उसके भी कान के नीचे बजाया, "साले इसके साथ ही ठगी में शामिल है. और अब होशियारी मार रहा है, हमको बेवकूफ समझता है. ये तो संयोग है कि उपर वाले तुम्हारे किये की सजा देने के लिए मुझसे यहाँ तुम्हे १२५ किलो मीटर दूर मिलवाया. तुम्हारा दुर्भाग्य यहाँ खींच लाया. अब तो तुम्हे जेल जाना ही पड़ेगा.
अब उनका नाटक चालू हो गया था. उन्होंने पैर पकड़ लिए और रोने लगे. माफ़ी मांगने लगे. "हमें माफ़ कर दो अब हम किसी के घर नहीं जायेंगे" एक बार माफ़ कर दो" ससुर जी बोले छोड़ दो,
मैंने कहा "जहाँ से भी आये हो सीधा वहीँ का टिकिट कटाकर ट्रेन पकड़ लो, नही तो फिर तुम्हे मालूम है, तुम्हारे साथ क्या होगा".
इतना सुनते ही वो सर पैर रख कर भागे. ऐसी घटनाएँ एक संयोग से ही घटती है. अगर मैं उस दिन नही जाता तो वो मुझे नही मिलते. मैं आज तक आश्चर्य चकित हूँ कि "ये कैसा संयोग था"
हम अंधविश्वास से ग्रसित समाज में व्याप्त कुरीतिओं की चर्चा कर रहे हैं. जो घटनाएं वास्तविक जीवन में घटी हुयी हैं और जिनका सम्बन्ध हमारे जीवन से है. ये सभी घटनाएँ हमारे जीवन में घटित होती रहती हैं. हम इनसे जूझते रहते हैं और जब हम लुटपिट जाते हैं तो भी नही चेतते. हमें इनसे सबक लेकर इसं अंधविश्वासों एवं कुरीतियों से पीछा छुडाना चाहिए. पिछले आलेख पर प्रतिक्रियाएँ आई हैं वो आपके समक्ष प्रस्तुत हैं - संगीता पुरी ने कहा… बिना आग के चावल पकाने की मुझे जानकारी नहीं मिली .. अब अगली कडी में इसका इंतजार रहेगा .. ये लोग वास्तव में ठग होते हैं .. ये सिर्फ साधु बनकर ही नहीं .. कई अन्य तरीकों से भी घूमा करते हैं .. कभी सोने चांदी साफ करने के बहाने ये लोग सोने चांदी को साफ कर देते हैं .. तो कभी इन्हे साफ करने का पाडडर बेचते ये लोग नजरों के सामने से सोने चांदी को गायब कर देते हैं .. कभी खुदाई में गडा हुआ कीमती सामान बताते हुए नकली सामानों को चुपके चुपके महंगे दामों में बेच जाते हैं .. उनके अचानक गायब होने के बाद ही लोगों को मालूम हो पाता है कि वे ठगे गए हैं .. वहां शायद हिप्नोटाइज करने का सहारा लेते हैं .. उनके पोल को भी खोले जाने की आवश्यकता है .. वैसे साधु बनकर ठगी करना सबसे आसान है .. इसलिए इसका अधिक सहारा लेते हैं !!
गिरिजेश राव ने कहा… इसीलिए कहा जाता है - मुच्छड़ से पंगा, ना बाबा ना।
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ने कहा… हिन्दूस्तान में ऎसे काले/पीले/नीले/हरे पंडितों और रहमान अली/सुलेमान अली/मियाँ मलिक/बाबा बंगाली जैसे बाबाओं की कोई कमी नहीं...एक ढूंढों,हजार मिलेंगें...वैसे ढूंढने की भी कोई जरूरत नहीं,ये लोग खुद आपको ढूंढ लेंगें :)किस्सा बढिया सुनाया आपने...लेकिन बिना आग के चावल पकने की जानकारी छुपा गए... शायद अन्त में देंगें जैसे कि मजमे वाले करते हैं...देखने वाला बेचारा इसी इन्तजार में खडा रहता है कि बाबा जी बस अभी बताने ही वाले हैं :)
अब हम आगे चलते हैं कि लोग ठगी के नए नए तरीके इजाद करके कैसे लुटने का काम करते है. अब हम चलते हैं. एक बार कुछ साल पहले हमारे ३६ गढ़ में अकाल पड़ गया. पहले तो वर्षा नहीं हुई, फिर जब फसल काटने का टाइम आया तो जब फसल कटी हुई खेत में पडी थी तो कई दिन लगातार वर्षा हो गई जिससे कटी कटाई फसल बर्बाद हो गई, मेरे हाथ ही स्वयं १२ एकड़ में ३२ बोरा धान ही हाथ आया. कहने का मतलब ये है कि इस अकाल एवं अवर्षा से सभी परेशान थे. हमारे गांव में एक राइसमिल वाला मारवाडी सेठ है. उसके यहाँ एक भगवा कपडे वाले संत का अवतरण हुआ. सेठ ने उसकी बड़ी खातिरदारी की. कई दिनों तक उसने सेठ की गद्दी पर डेरा डाल रखा था और सुबह शाम गांव में घूम कर सबसे घरों घर जाकर मिलता था और फर्राटे दार अंग्रेजी में बात करता था. लोग भी उसके चक्कर में आ रहे थे. कि बाबा जी बहुत पढा लिखा है. अंग्रेजी में ही बात करता है. एक दिन शाम के समय वो मेरे घर पर पधारे.हमारे एक मित्र और बैठे थे वो गायत्री परिवार से सम्बंधित हैं. हमने उठ कर उनका अभिवादन किया. उचित स्थान प्रदान किया. अब बाबाजी ने अपनी मंशा मेरे सामने जाहिर करना शुरू किया, महाराज इस इलाके में वर्षा नहीं हुयी है और मेरा इरादा है कि नगर में वृष्टि यज्ञ किया जाये जिससे यहाँ वर्षा हो जाये और अकाल ग्रस्त क्षेत्र को इसका लाभ मिले , आपको ही इस कार्य के लिए उपयुक्त पात्र समझ कर सेठ जी ने आपके पास भेजा है. इस लिए आप मेरे निवेदन पर विचार कीजिये कि इस यज्ञ को हम किस तरह सम्पन्न करेंगे और व्यवस्था में कितना खर्च आएगा? उनकी बातें सुन कर पहले तो मैंने अपने मित्र की ओर देखा कि उनका चहरे के क्या हाव भाव हैं. थोडा उसे पढने की कोशिस की. मैं समझ गया था सेठ जी ने अपना पीछा छुडाने के लिए इसे मेरे पास भेज दिया. मैंने कहा कि " बाबाजी आपका काम तो हो जायेगा-और वर्षा होने की भी १००% गारंटी है. तो बाबा जी बोले मुझे तो पहले ही मालूम था कि सेठ सही ठिकाने पर भेज रहे हैं. खर्चा कितना आएगा ये बताईए जल्दी से जल्दी क्योंकि हमारे पास समय भी काम है और गांव में पैसा भी इक्कट्ठा करना है यज्ञ के लिए. अब मैं पूर्ण रूप से उसकी नियत समझ गया था. मैंने कहा कम से कम २० लाख रूपये और अधिक से अधिक तो चाहे आप पूरी सरकार का खजाना खुलवा कर लगा दो जैसी आपकी मर्जी. वो बोले ये तो बहुत जयादा है कम में काम चलाओ. मैंने कहा कम में काम नही चलेगा. तो उसने कहा कि आप मुझे अथर्ववेद दे दो, मुझे सेठ जी ने बताया है कि आपके पास सब मिल जायेगा, और किसी दुसरे यज्ञ कर्ताओं का इंतजाम करता हूँ मुझे संस्कृत नहीं आती इस लिए समस्या हो रही है. नहीं तो मै स्वयं ही यज्ञ का आयोजन कर लेता. हाँ लेकिन मुझे मंत्र शक्ति से अग्नि प्रज्ज्वलित करना आता है. मैंने मन ही मन सोचा कि अब ये फंसा अपनी आरती उतरवा कर ही जायेगा" मैंने कहा" ये तो बहुत चमत्कार की बात है महाराज, इतने गुणी महापुरुष के दर्शन पाकर तो हम कृतार्थ हो गये. ये तो हम बडभागी हैं जो आप हमारे ड्योढी पर आये और अपने चरणरज से हमारा घर पवित्र किया. मेरे द्वारा प्रशंसा सुन कर बाबाजी गद-गद हो गये. फिर मैं पूछा महाराज "अग्नि, मंत्र में है या समिधाओं में?" तो उसने कहा " मंत्र में" मैंने कहा कि अथर्ववेद के कौन से मंडल के कौन से सूक्त के कौन से मंत्र में यह शक्ति निहित है. मुझे भी बताएं. तो उसने कहा कि मैंने अपनी डायरी में लिख रखा है सब, लेकिन मुझे मंत्र तो जबानी याद है. मैंने कहा" महाराज अग्नि का एकमात्र काम है जलाना और ये दोस्त और दुश्मन नही पहचानती जो इसकी लपटों के लपेटे में आ जाता है उसे जला कर राख कर देते है. बाबा जी बोले आप सही बोल रहे है. तो मैंने कहा महाराज जिस मंत्र में अग्नि है उसका उच्चारण तो आपको मुह से ही करना पड़ेगा, उसके बाद ही तो यज्ञ की अग्नि प्रज्ज्वलित होगी. उन्होंने कहा सही कह रहे हो. मैंने कहा -"तो महाराज जब मंत्र आपके मुंह से निकलेगा तो सबसे पहले आपके मुंह को जलाएगा, क्योंकि उसमे तो अग्नि का वास है." अब बाबाजी समझ चुके थे कि वो मेरे शब्द जाल के चक्कर में फँस चुके है. मैंने कहा "महाराज आपके तो मंत्रों में शक्ति है अग्नि प्रज्ज्वलित करने की, मैं तो बिना मुंह खोले-बिना किसी मंत्र का उच्चारण किए ही सिर्फ एक आहुति से ही अग्नि प्रज्ज्वलित कर सकता हूँ. अब वो चुप हो गये -चलने कि तैयारी करने लगे. मैंने कहा महाराज सेठ जी ने जान बुझ कर आपको मेरे पास भेजा है. तो मेरे मित्र बोले - महाराज अब आप जाइये और इस यज्ञ की कही पर चर्चा भी मत कीजिये. नही तो आपके लिए अनर्थ हो जायेगा. अब बाबाजी चल पडे. तब मेरे मित्र ने बताया कि ये हमारे गायत्री मंदिर में भी गये थे और इनकी योजना थी कि लाख दो लाख रुपया नगर के सम्मानित नागरिकों का नाम लेकर इक्कट्ठा करते और छोटा मोटा यज्ञ करवा कर बाकी पैसा ले कर चम्पत हो जाते-आपने शुरुवात में ही इनकी योजना फेल कर दी. नए-नए भेष बना कर, नई -नई युक्तियों का अविष्कार करके लोगों का धन लुट कर अपना धन्धा चलाने के लिए ढोंगी लोग आते हैं -अपनी सतर्कता से ही इनसे बचा जा सकता है.
अभी हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे हैं. हम इस ढोंगी तांत्रिको एवं गरीब बेसहारा औरतों को ही "टोनही" घोषित करने के कारणों का विश्लेषण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं,.पिछली पोस्ट पर कुछ प्रतिक्रियाए आई हैं, हम उनका यहाँ उल्लेख कर रहे हैं
.महफूज़ अली ने कहा… आज तुम जितना भी पैसा दोगे तुम्हे दुगनाकर दूंगा. लोंगों ने विश्वास करके उसे पैसे लाकर दिये. और बाबा रात को ढाई लाख रुपया लेकर चंपत हो गया. जब दुसरे दिन लोगों को नही मिला तो पुलिस थाने में रिपोर्ट की गई, मिडिया में समाचार बना, और वो चमत्कारी तांत्रिक बाबा अंतरध्यान हो गया, आज तक नही मिला है.उसकी तलाश जारी है......................... jee....aise bahut se case hamare lucknow mein bhi ho chuke hain.........achcha laga ......
.ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा… बाबा जी का काम हुआ, फिर भला वे वहां क्यूं रूकते?
संगीता पुरी ने कहा… ग्रामीणों की अज्ञानता और भोलेपन का हमेशा ही नाजायज फायदा उठाया जाता है .. उन्हें जागरूक करने की आवश्यकता है .. पर वह बिना आग के चावल बनाता कैसे था ?
एक दिन की बात है मै रायपुर शहर में किसी काम से घूम रह था, लेकिन जिससे काम था वो कहीं चला गया था, अब शाम को मिलता। अब क्या करूँ? टाइम पास करना था तो मै टाटीबंध टांसपोर्ट नगर में चला गया, वहां पर एक मित्र का मोटर बाडी बनाने का कारखाना है, सोचा उससे मुलाकात हुए बहुत दिन हो गए है. आज टाइम है मिल के कुछ गप-शप हो जायेगी और मुलाकात भी जायेगी. मै वहां पहुच गया. कारखाने में काम चल रहा था. हमारे मित्र के साथ कुछ लोग और भी बैठे थे. उसमे काला सा पीले कपडे पहने एक आदमी अलग ही दिख रह था. उसने मेरे बैठते ही मेरा नाम पूछा. मैंने उसे बताया. फिर उसने मुझे कहा कि यहाँ ट्रासपोर्ट नगर में लोग मुझे "काला पंडित" के नाम से जानते हैं और मै तांत्रिक हूँ, किसी कोई भी समस्या हो उसका हल मेरे पास है. यहाँ के सारे सरदार (ट्रक वाले) मुझे जानते हैं और मेरा यही धंधा है. मैंने कहा "बहुत अच्छा हुआ महाराज,आपके दर्शन हुए। मैं धन्य हो गया, आपके दर्शन ही मुझे मिलने थे इसलिए मैं यहाँ तक पहुच पाया, नहीं तो मुझे और कहीं ही जाना था. वह बड़ा खुश हुआ और अपनी विद्या की चर्चा करने लगा कि वो तंत्र-मंत्र से क्या-क्या कर सकता है और किसका-किसका उसने काम सुधारा है, मुझे सब बताने लगा. मैंने कहा "महाराज ये सब मुझे बताने की क्या जरुरत है. मैं तो यह सब नहीं मानता. वो गुस्से में आ गया और मुझसे बोला" तुम क्या समझते हो? मैं तुम्हे तुम्हारे ठिकाने से उड़ा दुंगा, तुमको मेरे से उलझना बहुत ही महंगा पड़ेगा." हमारी ये बातें वहा और लोग भी सुन रहे थे. जब वो गरम होने लगा तो मित्र बोले "छोडो ना महाराज आप क्यों फालतू ललित जी से उलझ रहे हो. वो बोला " इसने मेरी तंत्र विद्या पर संदेह किया है मैं इसको तो अब उड़ा कर छोडूंगा. अब मुझे उससे मजाक करके उसके क्रोध और बढ़ाने की इच्छा हो गई, देखता हूँ ये क्या करता है? ये सोच के मैं बोला " महाराज! मुझे उडाने के लिए पंख तो लगाना पड़ेगा? बिना पंख के मैं कैसे उड़ सकता हूँ? मेरे को जल्दी से ये विद्या सिखा दो, आज कल पैट्रोल भी बहुत महंगा हो गया है.मैं घर से उड़ कर सीधा रायपुर आ जाये करूँगा मेरा किराया भाडा भी बच जायेगा." ऐसा सुनते ही वह उबल पड़ा-"मजाक करता है मेरे साथ, अभी तेरे को दिखाता हूँ. मैंने वहां पर काम कर रहे सभी कारीगरों और अन्य आदमियों को बुलाया और बोला " यारों ये महाराज अब मेरे को उडाने वाला है तुम लोग भी देख लो, नहीं तो ये चमत्कार फिर देखने नहीं मिलेगा." और उस महाराज से बोला" दिखा महाराज मैं भी आज तेरी तंत्र शक्ति का चमत्कार देखना चाहता हूँ. तू तो मुझे उडाने की बात कर रह है. मैं तो ६ फुट का हूँ इतनी तकलीफ मत कर कहीं तेरा ज्यादा तेल जल जाये मुझे उडाने में तू एक काम कर अपने मंत्र शक्ति से मेरे हाथ का ही एक बाल हिला के दिखा दे सबके सामने तो मैं तुझे मान लूँगा." वो मुझ पर और भी गरजने लगा, लाल आँखें करके. मित्र ने देखा कि कहीं मामला बिगड़ ना जाए सोच के उस महाराज को बोले " क्यों तुम फालतू काम कर रहे हो, मेहमान मुझसे मिलने आया है और तुम उसके ही पीछे पड़ गए, आज के बाद मेरे गैरेज में मत आना, महाराज, मित्र पर ही चढ़ बैठा. बोला "तुम भी मेरा अपमान कर रहे हो. तुम्हे भी ठिकाने लगा दूंगा". मुझे भी अब क्रोध आने लगा था. मैंने एक लड़के को बुलाया.और दो सौ रूपये देकर बोला "जा दो किलो तेल और आधा किलो चावल लेकर आना, आज इस महाराज का बैंड बाजा कर ही जाऊंगा. तुम भी तमाशा देखना और आज टाटीबंध में ये रहेगा या मैं. आज हो जाने जंतर-मंतर। अब कौन जीतता है तुम ही देखना". तमाशबीनों की भीड़ लगने लगी थी. मैंने कहा- महाराज मैंने तेल मंगवा लिया है. तुमको उबलते हुए तेल से अपने हाथ पैर धोने हैं और फिर उबलते तेल की कडाही अपने सर पर डाल कर नहाना है. लेकिन कहीं पर जलना नही चाहिए। अपना तंत्र मंत्र चला कर बच जाना, अगर नही बच सका तो मैं तुम्हे गरमा-गरम तेल से अभी सबके सामने नहा कर बताऊंगा। उसके बाद तुम इस टाटीबंध में मुझे कभी नजर नहीं आना. अगर ये नहीं करना चाहता तो दूसरा रास्ता भी है मैंने अभी जो चावल मँगवाया है. उसे बिना आग जलाये पका कर दिखाना मंत्र से, अगर नहीं पका पाया तो मैं सबके सामने पका कर दिखाऊंगा। जो मंजूर है वो बोल दे। उसके बाद तू क्या मुझे उडाएगा मैं तुझे यही से उड़ा कर सबके सामने दिखाता हूँ बोल-मैंने कहा।. अब उसकी सिट्टी पिट्टी गोल हो गई. मित्र बोले "महाराज मैं आपको पहले से ही बोल रहा हूँ कि तुम इनके साथ मत उलझो, ये भी बहुत बड़े तांत्रिक हैं तुम अब अपने रोजी रोटी का भी सत्यानाश कर लोगे" इतनी देर में वो कारीगर तेल लेकर आ गया था. मैंने उसे गरम करने कहा. और जोर से बोला" तेल को एकदम गरम करले उसमे से धुंवा निकालना चाहिए उसके बाद इस महाराज को पकड़ कर इसके सर पर डालना है" इतना सुन कर वो इधर-उधर तांक- झांक करने लगा. मैंने कहा इसे आज छोड़ना नही है और ये नहीं जला तो इसको मैं अपना गुरु बना लूँगा. चरण पकड़ लूँगा. बात बढ़ते देख कर वो अब भागने की तैयारी करने लगा. मैं बोला इसका पकड़ कर रखो भागने मत देना, आज इसका भूत उतरना ही पड़ेगा, अब उस तांत्रिक ने सोचा कि आज तो फँस गए तो दुकानदारी भी चौपट हो जायेगी और गरम तेल से तो जलना ही पड़ेगा। उसने एक नया नाटक चालू किया, वह जोर जोर से रोने लगा, मेरे पैर पकड़ने लगा "नहीं-नहीं ऐसा मत करो मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे उपर तेल मत डालो, मेरे पैर छोड़ ही नही रहा था। मैंने कहा "पहले ही मै तुम्हारे को कह रह था कि मेरे से मत उलझ अपनी दुकानदारी कर, लेकिन तू तो मेरे को मंत्र से उडाने(मारने) की धमकी दे रहा था। अब चला तेरा मंत्र" वो पैर छोड़ नहीं रहा था। मुझे माफ़ कर दो, मुझे माफ़ कर दो। वहां उपस्थित बाकी लोग उसका तमाशा देख रहे थे. तभी मित्र बोले - छोड़ दो ना, इसको सबक मिल चूका है। मैंने कहा नहीं, अभी तो इसका भूत उतारना है। फिर सब बोलने लगे छोड़ दो ना। तो मैंने एक शर्त पर उसे छोडा कि आज के बाद यहाँ इस इलाके में नज़र मत आना। उसने कहा नहीं आउंगा मैं ये इलाका ही छोड़ दूंगा। ऐसा बोल के वो अपनी सायकिल उठा कर ऐसे भगा जैसे उसके पीछे भूत लग गए हों. कहीं मेरे को फिर से ना पकड़ ले.
टोनही पर एक समाचार से प्रारम्भ हुयी चर्चा पाठकों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर आगे बढ़ रही है और हम इससे सम्बंधित सभी पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं.जिससे यह चर्चा आगे बढ़ते हुए पूर्णता को प्राप्त होगी. आगे हम पाठकों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं को शामिल कर रहे हैं.
खुशदीप सहगल ने कहा… भूतन की महिमा भूतन जाने...हमें तो नेता रूपी ज़िंदा भूतों से बचाओ..जो लोगों को जीते-जी भूत बनाने में लगे हैं...जय हिंद...
संगीता पुरी ने कहा… बुद्धिमान लोगों की अतिरिक्त बुद्धि और बेवकूफों की अतिरिक्त बेवकूफी ही टोने टोटके , नजर लगने और झाडकर उतारनेवाले बाबाओं के महत्व में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है !!
वाणी गीत ने कहा… हाँ ...पारिवारिक जिम्मेदारियों से बचने के लिए भी कई बार भूत भूतनियों का अवतरण हो जाता है ...देखा है ..!!
M VERMA ने कहा… बहुत सुन्दर पर इन बाबाओ का भी भूत भी तो उतरना चाहिये, हमें उपरोक्त प्रतिक्रियायें प्राप्त हुयी. अब हम ढोंगी तांत्रिक किस तरह लोगों को बेवकूफ बनाकर ठगते हैं इस पर चलते हैं. चर्चा में शामिल घटनाएँ सत्य हैं. जो मैंने अपने जीवन में देखी हैं और जो मेरे साथ घटित हुयी हैं, हाँ कही पर पात्रों के नाम अवश्य बदल दिये गये हैं.
हमारे छत्तीसगढ़ के पलारी ब्लॉक के एक गांव की ओर आपको ले चलता हूँ यहाँ एक दोंगी बाबा तांत्रिक ने गांव के तालाब के पास मंदिर में आकर डेरा डाला. हमारे यहाँ दैनिक निस्तारी तालाबों से ही होती है. महिला हो पुरुष तालाब में ही नहाते है और कपडा धोना मवेशियों को धोना,उन्हें पानी पिलाना आदि समस्त काम तालाब पर ही होते हैं. इस तरह ग्रामवासियों का दिन रात तालाब पर आना जाना लगा रहता है. नहाने के बाद लोग तालाब की पार बने मंदिर में जल चढा कर पूजा भी करते हैं,एक अच्छे दिन के लिए ईश्वर से प्रार्थना भी करते हैं. उन लोगों देखा की मंदिर में एक बाबा जी ने डेरा डाल रखा है. तो बाबा जी से उनकी वार्तालाप होने लगी.बाबाजी के पास भोजन सामग्री भी वे गांव के नौजवान पंहुचा देते थे. बाबाजी रोज मंदिर में पूजा करते और भगवान के भोग लगाते. इसके लिए वो एक छोटे बर्तन में एक मुट्ठी चावल डालते और किसी लड़के से तालाब का पानी एक गिलास उसमे डलवाकर उस बर्तन को पेड़ की डाल पर लटका देते थे. १५ मिनट में चावल बिना किसी आग के पेड़ पर लटकाने से ही पक जाता था. उसके बाद उस चावल का भोग वो भगवान को लगा कर बाकी चावल पानी में बहा देते थे. बिना आग के चावल पकाने का चमत्कार लोगो में आग की तरह फ़ैल गया, बाबा बहुत बड़ा तांत्रिक है और चमत्कार करता है, हमने अपनी आँख से देखा है. ये चर्चा जंगल की आग की तरह फैली. आस पास के गांवों की भीड़ वहां लगने लगी. अन्धविश्वासी लोग चढावा चढाने लगे अपनी समस्या बताने लगे-चमत्कारी बाबा से चमत्कार की आशा करने लगे. इस तरह बाबा ने कुछ लोगों को अपने विश्वास में ले लिया, एक दिन कहा कि मैं तुम्हारी सेवा से खुश हूँ और तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ. आज तुम जितना भी पैसा दोगे तुम्हे दुगनाकर दूंगा. लोंगों ने विश्वास करके उसे पैसे लाकर दिये. और बाबा रात को ढाई लाख रुपया लेकर चंपत हो गया. जब दुसरे दिन लोगों को नही मिला तो पुलिस थाने में रिपोर्ट की गई, मिडिया में समाचार बना, और वो चमत्कारी तांत्रिक बाबा अंतरध्यान हो गया, आज तक नही मिला है.उसकी तलाश जारी है.........................
अभी हमारी चर्चा तांत्रिकों के हथकंडों पर चल रही है. की किस तरह वो लोंगो पर अपने हथकंडों का प्रयोग करके अपनी रोजी रोटी चलाते हैं. और लोगों को कैसे लुटते हैं. कई लोग अपनी दुश्मनी निकलने या किसी को बदनाम करके उसे परेशान करने के लिए भी तांत्रिक से मिली भगत करके अपना ऊल्लू साधते है. हमारे पास कल की प्रतिक्रियाएं उत्साह वर्धक हैं.
Ratan Singh Shekhawat ने कहा… सही लिखा आपने लोग ऐसे ही फंसते है और जगहंसाई से बचने के लिए बात को छुपा जाते है और इन बाबाओं की दुकानदारी चलती रहती है | ऐसे बाबाओं को तो मेरे स्वर्गीय नाना जी सबक सिखाते थे वे ऐसे किसी भी गांव में घूमते हुए साधू को पकड़ लेते और कहते आ एक टांग पर खड़े होकर दोनों तपस्या करते है देखते है हम दोनों में से कौन साधू बना रहता और और कौन बाधू | ये सुनने के बाद कभी कोई साधू उनके पास रुकता ही नहीं था |
संगीता पुरी ने कहा… जादू के दो खेल सीखकर इतनी तेजी से ये बाबा लोगों को भयभीत करने वाली दो बातें बोलकर उनपर अपना जादू डाल देते हैं कि .. सचमुच आपको सोंचने का भी मौका नहीं मिलता .. और आप सभी लुट जाते हैं .. जो लुटता है वो बेवकूफ बनने के भय से इस बात की चर्चा भी नहीं करता .. इस कारण समाज में अन्य लोग भी लुटते चले जाते हैं .. टेलीवीजन, रेडियो या पत्र पत्रिकाएं भी कारगर तरीके से समाज के लुटेरे इन व्यक्तियों को सामने नहीं लाते .. बल्कि इन्हें और अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया जाता है .. इसलिए समस्याएं सुलझने के बजाय उलझती जा रही है !!
अब हम चर्चा को आगे बढ़ते हैं कि लोगों में जादू-टोना या तंत्र-मंत्र का अन्धविश्वास इतने गहरे पैठ चूका है कि वो इससे अलग होकर सोचने की स्थिति में ही नहीं हैं. हमारे मोहल्ले में दो पड़ोसियों राधे और किशोरी के बीच नल पर पानी भरने को लेकर आपस में तू-तू में-में हुई और नौबत हाथा-पाई-मार-पीट तक पहुँच गई. इसके कुछ दिन बाद राधे की बीवी कुछ असामान्य हरकतें करने लगी, बाल खोल कर नाचती और मुंह टेढा करके अजीब तरह की आवाजें निकलती.आदमी की मोटी आवाज में बोलती , उसकी आवाज बदल जाती थी, देखने से ही बडा डर लगता था. बैगा बुलाया जाता वाह तंत्र-मंत्र करता और वाह एक-दो घंटे में नार्मल हो जाती. इसके बाद ये कार्यक्रम लगभग रोज ही चलने लगा. एक दिन वह सडक पर फिर रौद्र रूप में आ गयी और चिल्लाने लगी की किशोरी की घरवाली टोनही है और उसने ही मेरे ऊपर-मारण मंत्र का प्रयोग करवाया है. उसे लेकर एक बाबाजी के पास गये वह तांत्रिक था. उसने भी अभी गाँव में नयी दुकान खोली थी. में भी उनके साथ गया. बाबाजी के पास पहुचे तो उसने पूजा कमरे में बिठाया और झाड़ फूंक करने लगा. पूजा कमरे का माहौल बडा खौफनाक था. सामने काली माई की मूर्ति और भी बहुत सारे देवी देवताओं की मूर्तिया लगी थी, कमरे में अँधेरा था सिर्फ दीपक की ही रौशनी थी. वहां पहुँचते ही वह महिला फिर ऐंठने लगी, मुंह तिरछा बनाकर आदमी की मोटी आवाज में बोलने लगी. बाबा ने एक फ़ूल लिया और फर्श पर गोला बनाया. फिर उसमे जैसे ही जोड़ का चिन्ह बनाया, वह चीखने लगी "मुझे मत जलाओ" मुझे मत जलाओ " बाबा बोला"बोल "तू कहाँ से आया है-कौन है ? तुझे किसने भेजा है" तो उसने उसके पडोसी किशोरी का नाम लिया और बोला "उसने फलां तांत्रिक के माध्यम से मुझे इसके घर में भेजा है" बाबा बोला "चले जा" वह बोला"मेरी मियाद है-मैं इसे लेकर ही जाऊंगा" बाबा बोला चला जा नहीं तो मैं तेरा बहुत बुरा हल कर दूंगा. वह महिला फिर मुह टेढा करके चिल्लाने लगी और बोली "नहीं जाऊंगा-मैं इसे लेकर ही जाऊंगा" बाबा बोला " जाओ रे लोहे का सरिया एक दम लाल होते तक गरम करके लाओ-उसे इसके मुह में डालूँगा" तो वह बोला नहीं-नहीं ऐसा मत करो, ये सब तमाशा मैं वहां पर बैठ कर देख रहा था. फिर बाबा ने कुछ मंत्र बुदबुदाया और उस पर पानी का छींटा मारा वह औरत जोर से चिल्ला कर शांत हो गयी. इस तरह उसका पडोसी जादू-मंतर करने वाला घोषित हो गया. उसकी दुकान में ग्राहकों ने जाना बंद कर दिया. और उसके पडोसी राधे की घरवाली रोज इसी तरह की हरकतें करके किशोरी का ही नाम लेती थी कि उसने ही जादू टोना करवाया है. आखिर हार कर किशोरी ने अपना घर और दुकान बेच दिया और वह शहर में रहने चला गया, तब से उसके पडोसी राधे की घरवाली ठीक हो गयी और आज तक उस पर कोई भुत प्रेत नहीं आया है बाबा की दुकानदारी बडे जोर से चल रही है, अब तो काफी लोग दूर -दूर से आते हैं अपना भुत उतरवाने।
हम "टोनही" चर्चा पर आगे चलते हैं.अभी हमारी चर्चा पहले कारण वहम और भय पर चल रही थी जिस पर पत्रिकियाए आई. और उनसे हमारा भी उत्साह बढा और यह चर्चा अब अपना मुकम्मल रूप लेती जा रही है.मैंने तो इसका प्रारंभ मात्र एक पोस्ट से ही किया था लेकिन पाठकों को जिज्ञासा और प्रतिक्रियाओं को देखते हुए इसके सभी पहलुओं पर विचार करना आवश्यक हो गया है.
पी.सी.गोदियाल ने कहा… हा-हा-हा... दोनों रोचक किस्से ! सच में इस डर का कोई इलाज नहीं !!
संगीता पुरी ने कहा… हमारी मन:स्थिति हमारे शरीर के एक एक सेल को प्रभावित करती है .. आपका सारा काम मनोनुकूल होता रहे .. तो आपका स्वास्थ्य बिल्कुल सामान्य रहेगा .. जबकि आपके काम में अडचनें आनी शुरू हो जाएं .. तो आपका स्वास्थ्य बिगडने लगेगा .. भय या तनाव हमारे शरीर में किसी भी स्थिति को जन्म दे सकते हैं .. और अचानक शरीर में उत्पन्न परिस्थिति के लिए हम किसी भूत या आत्मा को जिम्मेदार समझ लेते हैं !!
Murari Pareek ने कहा… हा..हा..हा.. मरा सांप भी डस गया !!! और खुद ही भुत बन कर खुद को ही दारा लिया दरअसल ऐसे भुत ही होते है !!! ललितजी शानदार !!!
अब हम इसके दूसरे कारण की ओर चलते हैं जो पाठकों ने ही अपनी टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट किया है. वह है तांत्रिको की रोजी रोटी। .तांत्रिक, बैगा, सयाना, शेवडा, इत्यादि नामो से जाने जाना वाला व्यक्ति आपको पुरे भारत में मिल जायेगा, इनका रोजगार भयदोहन ही है. अज्ञात के प्रति भय बनाये रखो और झाड़ फूंक के नाम पर अपनी दुकान चमकाए रखो. मैं एक सत्य घटना की ओर ले चलता हूँ. जो मेरे साथ घटी. आप आंकलन करना उस समय मेरी मानसिक स्थिति क्या रही होगी? बात उन दिनों की है. मैं जब कोलेज में अध्यनरत था. मेरी दोस्ती हमेशा अपने से १०-१५ वर्ष बड़े लोगो से ही रही है. एक मेरे मित्र फिजिक्स-केमेस्ट्री के लेक्चरार हैं. हम लोग रोज मिलते थे और हमारी बैठक में शतरंज खेलते थे, काम के दिनों में शाम को और छुट्टियों में दोपहर में भी बैठ जाते थे. मेरे पिताजी की मृत्यु हुए ४-५ महीने ही हुए थे. और हम हमेशा दिन रात अचानक घटी इस दुर्घटना के विषय में ही सोचा करते थे. पूरा परिवार सदमे में था. एक दिन दोपहर में मैं और गुरूजी दोनों बैठक में शतरंज में मशगुल थे, दोनों के मोहरों में घमासान युद्ध मचा हुआ था. अचानक आवाज आई- "अलख निरंजन" हमने सर उठा के देखा तो एक नंग -धड़ंग अघोरी था, उसकी वेश बड़ा डरावना था गले में खोपडी की हड्डी लटकी हुई थी. पूरे शरीर पर भस्म मली हुई थी. आँखें एकदम लाल जलती हुई. और एक कमंडल चिमटा उसके पास था. मैंने कहा "क्या सेवा है बाबाजी?' ऐसा सुनते ही वो मेरे उपर जोर से बरस पड़ा "तू क्या सेवा करेगा मेरी" मैं बोला "कुछ चाय पानी नाश्ता" वो बोला "जो मै खाता हूँ वो तू नहीं खिला सकता-मैं गू खाता हूँ, सडा हुआ मांस खाता हूँ. दारू पीता हूँ.खून पीता हूँ बोल' मैं चुप हो गया। एक बार तो डर लगा, फिर गुरूजी की तरफ देख कर आश्वस्त हुआ कि मैं अकेला नहीं हूँ, गुरूजी भी साथ में है। मैंने सुन रखा था अघोरी बड़े बदमाश होते हैं, इनके मुँह नही लगना चाहिए. फिर वो सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चाय पिलाने के लिए कहा. मैने चाय मंगवाई। उसने कहा कि मैं चाय पीने के बाद तुम्हारे से एक प्रश्न करूँगा उसका जवाब देना. मैंने कहा ठीक है।. चाय पीते ही वह बोला -'बोल क्या मांगता है?" मैं सोच में पड़ गया कि आज तक तो मुझे मांगने वाले ही मिले आज देने वाला आया है. मैं अभिभूत हो गया कि क्या मांगू. मेरा दिमाग इस पर तुरंत चलने लगा कई चित्र उभरने लगे, मेरे पास क्या नहीं है? जो इससे मांगू, जो नहीं है क्या यह दे सकता है? मैंने काफी सोच समझ के जवाब दिया - "जो आप दे सको" उसने कहा ' आ, ले." मुझे अपने पास बुलाया. और हथेली आगे करने कहा, मैंने जैसे ही हथेली आगे की, उसने चिमटे को नीचे किया उसकी नोक से दूध जैसी कोई धार जो मेरी हथेली पे गिरी, उसने कहा पी जा और मैंने पी लिया उसके बाद उसने बीडी का एक टुकडा मुह से तोडा' बोला इसका ताबीज बना ले और मंगलवार को पूजा करके पहन लेना, तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे. इसके बाद गुरूजी को बुलाया उसके बाल पकड़ कर खींचे और उससे भभूत निकली। उसने भभूत गिराते हुए कहा- तुने बहुत पाप किये हैं, ये देख तेरे पाप उतार रहा हूँ। उसके बाद वैसे ही चिमटे से दूध निकालकर गुरूजी को भी दिया. वह बोला "एक चीज मैं मांगू वो दोगे?" तब तक हम उसके प्रभाव में आ चुके थे. मैंने कहा बोलो? उसने कहा तुम्हारे से मुझे "पॉँच किलो काली मिर्च" चाहिए. मैंने कहा ठीक है अभी ला देता हूँ और गुरूजी से लंगोटी के लिए एक छोटा सा काला कपडा माँगा. अब देखिये क्या हो रहा है? मैंने कभी किराने का सामान नही खरीदा था। मुझे किसी चीज का भाव पता नहीं था. मैंने अपने इनफिल्ड उठाई और काली मिर्च लेने चला गया, दादी ने मुझे १७०० रूपये दे रखे थे किसी काम के लिए. गुरूजी लंगोटी लेने चला गया. हम दोनों उसे बैठक में अकेला छोड़ कर दुकानों की तरफ उसका सामान लेने चले गए, मैं दुकान में पंहुचा और दुकानदार को बोला कि मुझे पॉँच किलो काली मिर्च दे जल्दी से। . तो वो बोला "क्या करोगे महाराज" मैंने उसे कुछ नहीं बताया. तो वो बोला पुरे गांव में ५ किलो काली मिर्च नही मिलेगी. मैंने कहा जितनी है उतनी ही दे-दे। इसके पास सवा किलो ही निकली. भाव पूछा तो १८० रूपये किलो. मेरी तो बत्ती हरी हो गयी कि "इतनी महँगी है काली मिर्च" मैंने कभी सामान ख़रीदा ही नहीं था, सब नौकर लाते थे, इसलिए मुझे किसी सामान का भाव पता नही था। सोचा कि ज्यादा से ज्यादा ४०-५० रूपये किलो होगी. फिर दूसरी दुकान में गया वहां २५० रूपये किलो, तीसरी दुकान में २२० रूपये किलो ऐसे करके मुझे कुल साढ़े तीन किलो काली मिर्च ही मिली. मैं लेकर वापस आया तो वह बाबा वहीँ बैठा था, गुरूजी लंगोटी का काला कपडा लाकर उसके पास बैठा था. मैंने उसको बताया कि इतनी काली मिर्च मिली है पूरी दुकानों में. उसने कहा कि बाकी का रूपये नगद दे-दे मैं कहीं से और खरीद लुंगा, मैंने उसे साढ़े तीन सौ रूपये और दिए. वो लेकर "अलख निरंजन" कहते हुए चल दिया. उसके जाने के बाद हमें होश आया कि हमने क्या किया है? आज तो दिन दहाड़े ही लुट गए. मैंने गुरूजी को कहा कि आप तो बड़े थे-और होशियार भी,.आपको ही संभालना था. गुरूजी बोले यार सोचने का मौका ही नहीं मिला, उधर मेरे पैसे चले गये थे, हम दिन दहाड़े लुट चुके थे. होशियार कहने वाले लोग मुर्ख बन चुके थे। ये घटना हम किसी को बता भी नहीं सकते थे, अगर बताते तो, जग हंसाई होती, लोग बेवकूफ अलग समझे, इ़धर दादी के डंडे की मार का डर अलग बना हुआ था।.
अज्ञात से भयभीत होकर व्यक्ति अनेक मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो जाता है और उसे जादू या टोना करना कह देते हैं, चर्चा को आगे बढाते है. हमारे पास जो प्रतिक्रियाएं आई है उनको लेते हैं जिससे हम अपने मुद्दे पर आगे बढ़ सकें.
पी.सी.गोदियाल ने कहा… सही कहा आपने . दर और बहम की कोई दवा नहीं, अगर इंसान डरपोक किस्म का है और रात को अँधेरे में कहीं जा रहा है तो उसे रस्ते में बीसियों भूत नजर आ जायेंगे मगर यदि वह इस तरह डरने वाला इंसान नहीं है तो जो जंगल के असली भूत शेर, भालू, तेंदुए है वे भी रास्ता छोड़ देते है उसके लिए !
संगीता पुरी ने कहा… रात्रि के समय अंधकार भय उत्पन्न करने के लिए काफी है .. और यही उन अंधविश्वासों का कारण बना होगा .. पर स्टेशन पर या उन सडकों में जहां रात भर गाडियों की आवाजाही चलती है .. या उस फैक्टरी या आफिस के आसपास जहां रातभर नाइट ड्यूटी के कारण चहल पहल रहती है .. यदि भूत प्रेत या नजर लगने के किस्से देखे जाते .. तब ही उनपर विश्वास किया जा सकता था !!
संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari ने कहा… जानकारी से लबरेज सुन्दर कडी के लिए आभार. छत्तीसगढ में टोनही नाम से भय बढाने के पीछे कुछ यौन कुत्सित मानसिकता भी देखने को मिलती है. कुछ गावों में ऐसी महिला जो प्रभावी अईयासी प्रवृत्ति के पुरूषों के दबावपूर्ण यौन इच्छाओं का प्रतिकार करतीं उसे बदनाम करने के हथकंडे अपनाए जाते हैं और उसे 'टोनही' करार दिया जाता है। कहीं कहीं बांझ (छत्तीसगढी में बंग्गडी, ठगडी) महिलाओं को टोनही करार दिया जाता है।
आज एक बात निकल कर सामने आती है कि है कि वहम ही हमें डराता है. संजीव तिवारी जी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से कहा कि इसमें यौन पूर्ति की कुत्सित मानसिकता और बाँझ पन भी एक कारण के रूप में है. अभी हम अज्ञात के प्रति भय की बात कर रहे हैं-आगे बढ़ते है.
एक व्यक्ति बरसात का मौसम आने से पहले अपने घर की पुवाल, हमारे यहाँ (खदर) छाजन पुरानी होने के कारण बदल रहा था ,अचानक वह जोर से चीखा और वहीँ पर लुढ़क गया. उसके चीख सुनकर कुछ लोग छत पर चढे तो देखा कि उसकी सांसे थम चुकी थी, आंखे फटी हुयी थी मुह खुला हुआ था. उसे उतारा गया, उसके बाद कारण तलाशे गये कि ऐसा क्या था जिससे इसकी मृत्यु हो गई? तभी उन लोगों ने पाया कि छाजन कि रस्सियों (ये भी घास से बनती हैं) के साथ एक जहरीला सांप भी बांधा हुआ था, रस्सी के साथ सांप को भी गांठ लगी हुई थी. सांप मारकर सूख चूका था. पता चला कि उस व्यक्ति ने कई साल पहले इस छप्पर को स्वयं बांधा था अँधेरे में पुवाल में सांप उसे दिखा नहीं और उसने रस्सी के साथ उसे भी गांठ लगा दी थी. जब वह छप्पर खोलने लगा तो उसने गांठ लगा हुआ सूखा सांप देखा तो सोचा होगा कि इतने जहरीले सांप को मैंने रस्सी के साथ पकड़कर गांठ लगा दी. कहीं ये डस लेता तो मृत्यु हो जाती. इससे भयभीत होकर उसकी सांसे रुक गयी और उसकी मृत्यु हो गयी.
कुछ लड़कों का एक दल था वे सारे आपस में मित्र थे. उनके बीच भूत आदि के अस्तित्व को लेकर बहस हो गई. एक लड़का उनमे थोडा बलशाली था. उन्होंने रात को तालाब की पार पर मंजन घिसते हुए, शर्त लगा ली और उस लड़के से कहा अगर तू भूत आदि से नहीं डरता तो रात को १२ बजे के बाद श्मशान में एक खूंटा गाड़ कर आ जा हम तुझे मान लेंगे. वह लड़का तैयार हो गया. वह तय समय पर श्मशान में खूंटा गाड़ने गया, उसने वहां जाकर जल्दी-जल्दी खूंटा गाड़ दिया और जैसे ही वापस होने लगा वैसे उसे लगा कि किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया है. वह जोर से चिल्लाया"बचाओ" ये सुनकर उसके बाकी साथी जो दूर पर थे भाग गए गांव से लोगो को बुला कर लाये. जब लोगों ने पहुच कर देखा कि लड़का बेहोश होकर पड़ा हुआ है. उसे उठाने लागे तो उन्हें दिखा कि उसने जल्दबाजी में अपने "तहमद"-(लुंगी) में ही खूंटा गाड़ लिया है. जैसे ही वह खूंटा गाड़कर वापस पलटा लेकिन खूंटे में लुंगी के फंसने के कारण भाग नहीं सका और उसने समझ लिया कि उसे भूत ने पकड़ लिया. उस लडके को सब अस्पताल ले गये वह बच तो गया लेकिन उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया. बहुत इलाज कराने के बाद भी ठीक नहीं हुआ. लोग कहने लागे कि इसे श्मशान में अदृश्य शक्तियों ने कुछ कर दिया. इस तरह के हादसे भय होने के कारण हो जाते हैं.
कल हमने "हरेली अमावश" को हमारे "टोनही"(डायन) ढूंढने के प्रयासों के विषय में चर्चा की थी. लेकिन हमे लोगों के कहे अनुसार यह कहीं नहीं मिली और पूरी रात श्मशान में निकाल दी. उस समय कुछ डर तो मेरे मन में भी था. लेकिन हम किसी तरह इस काम को कर पाए. हमें टिप्पणियों के द्वारा सुधि पाठकों कि राय भी मिली उसके आधार पर यह चर्चा आगे बढेगी. टिप्पणियों का दौर रात १० बजे तक चला और उसके बाद मैंने पोस्ट लिखनी प्रारंभ की है.प्रतिक्रियाएं हैं-
Ratan Singh Shekhawat ने कहा… ज्यादातर लोग तो ऐसी बातों के वहम में डरे रहते है आवश्यकता है इन पर से पर्दा हटाने की |
विनोद कुमार पांडेय ने कहा… सच्चाई कितनी होती है आज तक कभी मेरे समझ में कुछ नही आई हाँ एक बात मैं ज़रूर कहना चाहूँगा की इसमें भय का योगदान बहुत होता है लोग भय में आकर कुछ ऐसे कार्य कर बैठते है जिनसे उन्हे ऐसे एहसास होता है की यह सब आत्माओं के वजह से हुआ...डर भी कही ना कही इसमें शामिल है. रोचक चर्चा शर्मा जी..धन्यवाद-
संगीता पुरी ने कहा… कल मैने दुबारा आपका आलेख पढ लिया था .. बहुत मार्मिक घटना थी .. मैं बाद में टिप्पणी नहीं कर पायी थी .. दरअसल तांत्रिकों की ये चाल है .. अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अशिक्षित लोगों के मध्य इस तरह की बातों का प्रचार प्रसार करते हैं .. मेरे विचार से ऐसा कुछ नहीं होता .. इस पोस्ट में आपने लिख ही दिया है कि .. आपने ढूंढने की कोशिश की .. तो आपको कुछ मिला भी नहीं !! s
unilkaushal ने कहा… डरपोक लोगों पर कु्छ ज्यादा ही इसका असर होता है, और जहाँ रात अंधेरी काली हो यह डर और बढ जाता है-आप भी तारीफ़ के काबिल ही हैं जो उस उम्र मे टोनही ढुंढने निकल पड़े- एक ज्ञान वर्धक चर्चा है-
Anil Pusadkar ने कहा… हमको तो अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिये बनी सरकारी या पुलिस की समिति मे सदस्य बना दिया गया है और अब पता नही कब क्या कर पायेंगे,वैसे टोनही के नाम पर प्रापर्टी हडपने का प्रपंच आये दिन देखने को मिलता है।
अब हम आगे चलते हैं.इन प्रतिक्रियाओं से सामने निकल कर आ रहा है कि १. डर और वहम. २. तांत्रिको की रोजी रोटी ३. संपत्ति पर नज़र
सबसे पहले तो बात आती है कि हमारे समाज में हम अपने बच्चों को ही बचपन से डराते रहते हैं.जिसके कारण उनके मन में एक अज्ञात के प्रति भय बना रहता है. हम छोटे बच्चे को कहते हैं अरे रात को बाहर मत निकलना भूत खा जायेगा, या पकड़ लेगा, बाहर मत जाना बाऊ है. इस तरह कि अज्ञात चीजों के बारे में हम उनसे कहते हैं जिसे हमने भी स्वयं नहीं देखा है. बच्चा सोचता है अवश्य ही ऐसी कोई चीज होगी जो मेरे बाहर निकलने पर मेरा कोई नुकसान कर देगी. तो एक अज्ञात के प्रति भय उसके मन में बैठ जाता है जो जीवन पर्यंत बना रहता है और पीढी दर पीढी प्रसारित होता रहता है.
मैं अपने घर कि ही बात करता हूँ, मेरी पत्नी को छिपकिली से बड़ा डर लगता है, अगर घर में एक भी छिपकिली देखती है चिल्ला पड़ती है और उस छिपकिली को मुझे घर से बाहर हर हालत में निकलना पड़ता है तभी वह सोती है. अब मेरे बच्चे भी छिपकिली से डरने लग गए. क्योंकि माँ डर रही है. इससे उनके मष्तिष्क पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. मैं उनको समझाता हूँ उन्हें छिपकिलियों के विषय में जानकारी देता हूँ और उनसे छिपकिलियाँ मरवाता हूँ कि उनके मष्तिष्क से ये भय निकल जाये.
इसी भय के विषय में एक बताना और चाहूँगा. एक लड़की जंगल में घास काटने गयी थी-आदिवासी वैसे भी जंगल में ही रहते हैं . वह शाम को घास लेकर वापस आ रही थी, कुछ धुंधलका हो चूका था. रौशनी कम हो गयी थी अचानक झाडियों के बीच से कुछ निकल कर उस लड़की के उपर कूदा, लड़की घास के गट्ठर समेत गिर गयी, लड़की को लगा कि उसके उपर कुछ गिरा है. उसने तुंरत अपने हाथ में लिए हुए घास काटने के "हँसिया" से उस चीज के ऊपर कई वार किये, लड़की के वार करते ही वह चीज उस पर से हट गई, लड़की घास का गट्ठर छोड़ कर अपने घर दौडी चली आई, उसने हँसिया एक किनारे रखा और अपने माँ बाप को ये कहानी बताई. उसके माँ बाप ने कहा कि सुबह चल कर देखेंगे. जब सुबह हुई तो उन लोगों ने हंसिये में खून लगा हुआ देखा तो समझ में आया कि शाम को लड़की के साथ किसी हिंसक जीव की मुडभेड हुई है. सभी गांव वाले जंगल में उस लड़की के साथ उस स्थान पर गये तो देखा की एक तेंदुआ मरा हुआ पड़ा था उसके उपर हंसिये के गहरे घाव थे. लड़की ने तेंदुए को देखा और बोली "इसे मैंने हंसिये से मारा है, मैंने मारा है" ऐसे कह कर वह अचेत हो गयी उसके बाप ने पानी डाला तब तक उसकी साँस बंद हो गई थी. ऐसा भय के कारण हुआ. मारे हुए तेंदुए को देखकर उस लड़की ने सोचा कि मैं इसे मार दिया-अगर ये मुझे मार देता तो....... इतना बड़ा बहादुरी का कार्य उस लड़की ने अनजाने में ही किया। अगर उसे पता होता कि ये तेंदुआ है तो वह उस समय ही उसका शिकार हो गयी थी. लेकिन मारे हुए तेंदुए के भयभीत होकर उसके प्राण पखेरू उड़ गए. ऐसा भय होता है.
कल की चर्चा में जो हत्या "टोनही" होने के का आरोप लगा कर की गई थी उसकी आँखों देखी और कानो सुनी आप तक पहुचाने का प्रयास किया. पढ़े लिखे लोग भी इस अंधविश्वास के अंधकूप में गिरे हुए हैं.आज भी संगीता पूरी जी ने अपनी पहली टिप्पणी की लेकिन उनको ब्लॉग के फॉण्ट में कुछ समस्या थी, जिसे मैंने तुंरत ही सुधारने की कोशिश की.उसके पश्चात शायद उनका आगमन नही हुआ और जो बात वो कहना चाहती थी शायद कह नही सकी.उसके पश्चात्-
बालकृष्ण अय्य्रर ने कहा… हौलनाक घट्ना है, ललित जी क्यों ना कारणॉं की खोज की जाये. शायद कोई बच जाये... इसके पश्चात्-
पी.सी.गोदियाल ने कहा… क्रूरता की हदे , तभी तो प्रकृति भी खिन्न हो गई इस आदिम जाति से ! इसके पश्चात-
लवली कुमारी / Lovely kumari ने इससे जुड़े अपनी मनोविज्ञान से जुड़े लेख पर आने के लिए लिंक दिया उसमे इसे एक मनोवैज्ञानिक ब्मिमारी बताते हुए इसके लक्षण दिये.
परमजीत बाली ने कहा… संभंव है इस के पीछे कुछ दूसरे कारण भी रहे होगें..... उन्होंने इस हत्या के पीछे के कारणों पर जाने की बात कही.
अर्शिया ने कहा… ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक के समान हैं, जिसे बहुत सारे स्वार्थी लोग बढावा देते रहते हैं।
neelima sukhija arora ने कहा…ऐसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक हैं, सभी ने निज दृष्टिकोण प्रकट किया.
हमारे छत्तीसगढ़ में "हरेली" का त्यौहार आषाढ़ माह की अमावश्या जो मनाया जाता है. इस दिन से छत्तीसगढ़ में त्योहारों का प्रारंभ माना जाता है.यह सिलसिला यहाँ से चलकर होलीपर समाप्त होता है. इस "हरेली" त्यौहार को प्रत्येक ग्रामवासी नियम से मानते हैं. इस दिन गांव को तंत्र मंत्र से बैगा (ग्राम के तांत्रिक) द्वारा बांधा (तंत्र-मंत्र से कवचित) किया जाता है.किसी भी दैवीय या प्राकृतिक महामारी या आपदा से बचाने के लिए ग्राम देवता की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके लिए प्रत्येक ग्रामवासी से तंत्र-मंत्र एवं पूजा करने के लिए एक निश्चित सहयोग राशि ली जाती है और महिलाएं गोबर से घरों के चारों तरफ विभिन् आदिम आकृतियाँ बनाकर उसे एक लाइन से जोड़ती है, उसके बाद बैगा सभी के घरों में जाकर नीम की एक छोटी डाली को जाकर दरवाजे में टांगता है, मान्यता है कि इससे अनिष्टकारी शक्तियाँ घरों में प्रवेश नहीं करती. इसके बाद किसी भी व्यक्ति को गांव से बाहर निकलकर किसी दूसरी जगह जाने आज्ञा नहीं होती. इस दिन सब अपना काम बंद कर गांव में रहते हैं, और शाम होते ही लोग घरों से बाहर नहीं निकलते. ऐसी मान्यता है कि अँधेरे में तंत्र मंत्र की सिद्धि करने वाले बैगा और टोनही अपनी शक्तियों को जागृत करते हैं एवं उसका परीक्षण करते हैं. जिससे जो कोई व्यक्ति बाहर निकलेगा उसका अनिष्ट हो सकता है.
बैगा (ग्राम तांत्रिक) को गांव में रक्षा करने वाला और टोनही को अनिष्ट करने वाला माना जाता है. मुझे भी बचपन में मेरी दादी के द्वारा घर से बाहर नही निकलने दिया जाता था. "बाहर मत निकल,आज हरेली कोई टोनही की नजर पड़ गयी तो कुछकर देगी. इस मानसिकता से ग्रसित थे लोग-टोनही नाम का एक अज्ञात भय उनमे समाया हुआ था. बाल-बच्चे -नर-नारी कोई भी रात को बाहर नहीं निकलता था.सिर्फ बैगा और उसके सहयोगी ही रात को बाहर घूम सकते थे. हम बड़े हुए हमने इसकी सत्यता जांचने की उत्कट आकांक्षा थी. जब हम कालेज में पढने लगे तो हमें ये चीजे व्यर्थ की ही लगी. लेकिन हम सत्यता जानना चाहते थे.
ये बात २३ साल पुरानी है. जब हम कालेज में पढने शहर गए. हमें गांव से कालेज रोज ३० कि.मी.रायपुर आना जाना पड़ता था इसलिए हमने अपने रहने व्यवस्था रायपुर से लगे हुए एक गांव में कर रखी थी जहाँ हम तीन चार सहपाठी मिलकर रहते थे. हरली त्यौहार को हमें टोनही देखना था.इसके लिए हमें गांव में रात को घुमने की तो आज्ञा घर वाले देंगे नही. इसलिए हम रायपुर के पास वाले गांव में ही रुक गए.रात को वो गांव भी सुनसान हो गया हम छाता और टॉर्च लेकर निकले टोनही ढूंढने के लिए। मैं, चन्द्रशेखर, गजानंद, और एक हमारा खाना बनाने वाला बरातू. लोग बताते थे कि रात को १२ बजे के बाद टोनही अपने घर से निकलती है और उड़ते हुए खेतों में या श्मशान में सुनसान जगह पर जाकर अपनी तंत्र शक्तियों को जागृत करती है. हम भी अपना सब खा पीकर तैयार थे कि आज टोनही पकड़ना है. हम रात जो ११ बजे चुपचाप घरों से निकले मैंने साथियों को कह दिया था कि अपना कालेज का परिचय पत्र रख लेना. कहीं पुलिस का गस्ती दल मिल जाये तो फिर रात थाने में ही कटेगी. हम गांव का चक्कर काटे हुए खेतों में गए उसके बाद तालाब की पार (मेड) पर पीपल पेड़ के पास बैठ गए.वहां से श्मशान १०० मीटर की दुरी पर था लेकिन अमावश्या होने के कारण कुछ दिख नहीं रहा था. गजानंद बार -बार बोलता था, चल ना महाराज मरवा देगा. मेरे को डर लग रहा है. मैं उसको कहता था बैठ ना बे कुछ नही होने वाला-साले तेरी तो ऐसे ही फट रही है. जैसे ही किसी कुते के भोंकने की आवाज आती थी वो मेरे से चिपक जाता था. जैसे ही कोई उल्लू (घुघवा) बोलता था तो गजानंद डर जाता था. हम इसी तरह आधे डर और आधे बल (ताकत) में ३ बजे तक बैठे रहे कोई नहीं आया. ना टोनही ना कोई बैगा. भोर होने वाला था.
हम वापस घर की ओर चल पड़े. जैसे श्मशान से सड़क पर पहुचे ही थे कि पुलिस कि गस्ती गाड़ी मिल ही गई एक थानेदार ने हमें रोका और पूछा कहाँ से आ रहे हो. हमने कहा कि हमारे मित्र को रात को लैट्रिन लग गई थी इस लिए तालाब तरफ आये थे. हमें अपना परिचय पत्र दिखाया तो उसने हमें छोड़ दिया, पढ़ने वाले लड़के हैं कह कर.
इस तरह दोस्तों हमने टोनही के चक्कर में डरते -डरते अपनी एक रात काली की लेकिन हमें कुछ हासिल नहीं हुआ.इसका सार यह निकलता है कि इसका अस्तित्व नही होते हुए भी लोग इसे अपने जीवन में ढाल कर जीवन का एक हिस्सा मान बैठे हैं.