हमारा सजना भी क्या सजना, आएगें सजना तब होगा सजना। रजनीगंधा की खुश्बू के साथ अलसाई सी सुबह हुई, खुमारी लिए हुए। चाय के प्याले की भाप में स्वर्णिम किरणें इंद्रधनुष बना रही हैं। हल्की-हल्की गुलाबी ठंड में चाय की एक चुस्की ने गर्माहट दी।
खुमारी उतरने का इंतजार कर रहा हूँ। अखबार के पन्ने पलटता हूँ, वही बरसों पुराने समाचार हैं, नए अखबार में। अखबार नया है पर समाचार वही हैं, सिर्फ़ किरदार बदले हैं।
घूस लेने का समाचार। चाणक्य के काल में भी घूस इसी तरह ली जाती थी, फ़र्क इतना है, इसे उत्कोच कहते थे। लेकिन थी घूस ही। लेने और देने वाला बदला है। बाकी समाचार वही है। सिर्फ़ नाम बदल कर कट पेस्ट करना है।
इसी तरह बाकी अन्य समाचार भी अपनी पुरानी गाथा ही कहते नजर आते हैं। नया कुछ भी नहीं है इस अखबार में।
खुमारी उतरने का इंतजार कर रहा हूँ। अखबार के पन्ने पलटता हूँ, वही बरसों पुराने समाचार हैं, नए अखबार में। अखबार नया है पर समाचार वही हैं, सिर्फ़ किरदार बदले हैं।
घूस लेने का समाचार। चाणक्य के काल में भी घूस इसी तरह ली जाती थी, फ़र्क इतना है, इसे उत्कोच कहते थे। लेकिन थी घूस ही। लेने और देने वाला बदला है। बाकी समाचार वही है। सिर्फ़ नाम बदल कर कट पेस्ट करना है।
इसी तरह बाकी अन्य समाचार भी अपनी पुरानी गाथा ही कहते नजर आते हैं। नया कुछ भी नहीं है इस अखबार में।
पढते-पढते जम्हाई आने लगती है। जम्हाई भी आना तय है जब बोरियत होने लगे। सुबह-सुबह बोर होना ठीक नहीं है। अखबार पुराना है तो क्या हुआ? सूरज तो नया है, हवा तो नई है, सामने खिले हुए रजनीगंधा के फ़ूल तो नए हैं। चाय का प्याला पुराना है लेकिन चाय तो नई है, उसमें निकलती भाप भी नई है। फ़िर क्यों पुराना-पुराना की रट लगाए बैठे हो?
नए का स्वागत करो, स्वागत करने के लिए सजना संवरना भी पड़ेगा। सजना के स्वागत के लिए सजना भी जरुरी है। जब आएगें सजना तो होगा सजना। सजना नहीं आए तो क्या हुआ, पर पुरवाई जरुर चली। चाय के प्याले की भाप उड़ कर मुंह तक आने लगी, ठंड से थोड़ी राहत मिली, गर्माहट तो आई, प्रतीक्षा है खुमारी उतरने की।
नए का स्वागत करो, स्वागत करने के लिए सजना संवरना भी पड़ेगा। सजना के स्वागत के लिए सजना भी जरुरी है। जब आएगें सजना तो होगा सजना। सजना नहीं आए तो क्या हुआ, पर पुरवाई जरुर चली। चाय के प्याले की भाप उड़ कर मुंह तक आने लगी, ठंड से थोड़ी राहत मिली, गर्माहट तो आई, प्रतीक्षा है खुमारी उतरने की।
रजनीगंधा की खुश्बू वजूद पर छा गयी है, वातावरण में भीनी-भीनी महक घुल कर सुबह का स्वागत कर रही है। सुबह तो हुई, रात कैसी बीती? चाय की चुस्की के साथ जरा पीछे भी पलट कर देख लो। कुछ छोड़ तो नहीं आए खुमारी में? नहीं तो, ऐसा नहीं हो सकता? आपे में था, आपे में रहना भी इतना आसान नहीं है।
कह रहे थे कि फ़िर न आऊंगा यहाँ। ओह, कुछ याद नहीं। स्लेट साफ़ हो गयी है। कुछ लिखा हुआ नहीं दिखाई देता। जब तुम कहते हो तो लगता है कि लिखा बहुत कुछ था। मिटा किसने दिया? स्वत: ही मिट गया। बुराईयाँ स्वत: नहीं मिटती। उसे तो जग जाहिर होना पड़ता है।
अच्छाई पर तो कालिख लगाई जा सकती है, पर कालिख पर कालिख कैसे लगे। चाय गले के नीचे ही नहीं उतर रही।
कह रहे थे कि फ़िर न आऊंगा यहाँ। ओह, कुछ याद नहीं। स्लेट साफ़ हो गयी है। कुछ लिखा हुआ नहीं दिखाई देता। जब तुम कहते हो तो लगता है कि लिखा बहुत कुछ था। मिटा किसने दिया? स्वत: ही मिट गया। बुराईयाँ स्वत: नहीं मिटती। उसे तो जग जाहिर होना पड़ता है।
अच्छाई पर तो कालिख लगाई जा सकती है, पर कालिख पर कालिख कैसे लगे। चाय गले के नीचे ही नहीं उतर रही।
ओह! क्यूँ होता है यह सब? लाख मना करने पर भी न माना। हमने कैसा पैमाना बना लिया है? अच्छाई और बुराई को तोलने का। सभी के पैमाने अलहदा हैं।
वैसे भी पैमाने एक जैसे नहीं होते। देश-काल के अनुसार पैमाने तय होते हैं। हमने गढने भी सीख लिए हैं। किसी की मजबूरी किसी के तरक्की का बायस बन जाती है।
सौ बुराइयों में एक अच्छाई को मान्यता मिल जाती है। सौ अच्छाईयों में एक बुराई वैसा ही काम करती है जैसे दरिया में विष की एक बूंद।
चाय ठंडी हो गयी। भाप ही पहुंची थी मुझ तक। गर्माहट का सुखद अहसास है, रजनीगंधा की खुश्बू एवं तुम्हारी याद के मध्य।
वैसे भी पैमाने एक जैसे नहीं होते। देश-काल के अनुसार पैमाने तय होते हैं। हमने गढने भी सीख लिए हैं। किसी की मजबूरी किसी के तरक्की का बायस बन जाती है।
सौ बुराइयों में एक अच्छाई को मान्यता मिल जाती है। सौ अच्छाईयों में एक बुराई वैसा ही काम करती है जैसे दरिया में विष की एक बूंद।
चाय ठंडी हो गयी। भाप ही पहुंची थी मुझ तक। गर्माहट का सुखद अहसास है, रजनीगंधा की खुश्बू एवं तुम्हारी याद के मध्य।