शनिवार, 31 दिसंबर 2011
सभी मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें .......ललित शर्मा
लेबल:
2012,
abhanpur,
lalit sharma
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
आदित्य के चक्रव्यूह में सैंटा और खिलाड़ी --- ललित शर्मा
जीवन में रंग-बिरंगे पल आते-जाते हैं। सुख दु:ख के बादल उमड़ते घुमड़ते हैं। मन के कोने छिपी यादें चलचित्र की घूमती हैं। एकांत होते ही यादों के साए में ढिबरी के धूंए से बनती हुई आकृतियाँ अपने रुप बदलती हैं। तभी पीछे से आवाज आती है "कब से रखी है चाय, ठंडी भी हो गयी। पता नहीं कहाँ खो जाते हो?" उनकी घुड़की के साथ बाहर शोर गुल की आवाजें आने लगी। यादों के सिलसिले रुक गए, बिना मध्यातंर के ही मध्यांतर हो गया। चाय का कप लिए हुए बाहर निकला तो आदित्य, उदय, योग में फ़ायटिंग शुरु थी। मुझे देखते ही तीनों अपने अपने लोकपाल का मसौदा ले आते हैं, लगते है सुनाने।
उदय और योगु पारम्परिक "बिल्लस" (ठेकरी) खेलते हैं। आदि हार जाता है उनसे। इसका आदि ने नया तोड़ निकाला। पारम्परिक भारतीय बिल्लस के बजाए अंग्रेजी ढंग से लाईन खींच कर इन्हे खिलाना शुरु किया। अब इस खेल में आदि बार-बार जीत जाता था और सीढियों पर बैठ कर मुस्काता रहता। उदय और योगु हार जाते तो उन्हे खिजाता। इनका खेल वैसे सुबह से ही शुरु हो जाता है। अब योगु और आदि का झगड़ा हो गया। मैने समझा बुझा कर दुबारा खेल शुरु करवाया। आदि दिमाग से काम लेता है और ये दोनो दिल से। झंगड़ोपरांत खेल चलने लगा।आदि अपने जीतने की जुगत लगातार लगाता रहता है। चाहे हेराफ़ेरी क्यों न करनी पड़े पर। बस उसे जीत चाहिए खेल में
पहले आदि ने 1 से 8 तक घर बना रखे थे। अब उसने 10 घर तक और बढा दिया उसे। फ़िर खेल शुरु हुआ। इस खेल के नियम आदि ही बनाता है। जब चाहे जिसे भी कोई कानूनी हवाला देकर आऊट कर देता है और अपनी पारी फ़िर शुरु कर देता है। जब योगु या उदय बिल्लस फ़ेंकता है और बिल्लस लाईन के करीब रहती है तो झुक कर देखता है कि बिल्लस में लाईन का करेंट तो नही आ रहा है। जब उसे सही लगता है तो मान्य कर उपकृत करता है। अब खेल में उदय आगे बढ गया आदि से। आदि बार बार अपनी बिल्लस फ़ेंकता है। लेकिन वह नियत घर तक नहीं पहुंचती। जितनी बार बिल्लस खाने से बाहर जाती है उतनी बार वह खीजता है। योगु और उदय हँसते हैं तो उसे काटने दौड़ता है।
आदि अपनी अगली बारी आने पर फ़िर प्रयास करता है। लेकिन वही ढाक के तीन पात निकलते हैं। उदय और योगु उससे आगे बढ जाते हैं। वह सीढियों पर बैठकर कुछ बड़बड़ाता है जैसे कुछ मंत्र जप रहा हो। समीप जाने पर सुनाई दिया "उदय हार जाए, उदय हार जाए।" अब उदय जीत के करीब है। आदि अपनी बारी आने पर बिल्लस (ठेकरी) को माथे और छाती से लगा कर बड़बड़ाता है फ़िर कहता है - "अब इधर से सो कर बिल्लस फ़ेकूंगा" फ़िर वह लाईन से आगे हाथ निकाल कर लेट कर बिल्लस फ़ेंकता है। इस बार भी नाकाम हो जाता है। खीज कर फ़िर झगड़े पर उतर आता है और घर में घुस जाता है। "नहीं खेलना मुझे।"
खिड़की से देखता है कि खेल कितना हो चुका है, जैसे ही उसकी पारी आती है फ़िर बाहर आ जाता है। "मैं सेकंड हूँ, मेरी बारी है" अब वह फ़िर जुगत लगाता है। उदय से कहता है -"भाई थोड़ा नजदीक से बिल्लस फ़ेंकने दे।" उदय तैयार हो जाता है, अब आदि के समर्थन में दादी भी आ जाती है। वह एक बार फ़िर बिल्लस फ़ेंकता है। अब कामयाबी मिलती है। कूद कर घर पार लेता है। फ़िर चिल्लाता है -मैं जीत गया, मेरा घर बन गया। सबसे सामने वाले खाने में घर बनाता है और उस पर अपना नाम लिखता है। आदि को खेल में हारना पसंद नहीं। चाहे रोकर क्यों न जीतना पड़े। पर जीतना जरुरी है।
आदि |
अब उदय भी अपनी पारी जीत लेता है वह भी एक खाने पर कब्जा करके अपना घर बनाकर नाम लिख लेता है। अब योगु तीसरे नम्बर पर फ़ंस जाता है। आदि के नियम कानून का शिकार भी हो जाता है। दो घर इन्होने ब्लॉक कर दिए। वह कूदते फ़ांदते हुए तीसरे नम्बर पर आता है। उसकी बाजी भी पूरी हो जाती है, दादी भी खुश हो जाती है। आदि फ़िर नयी बिसात बिछाता है। सबको एक बार फ़िर हार जीत के जाल में फ़ंसाता है। कूद फ़ांद के साथ सांप सीढी का खेल शुरु होता है। आपस में एक बार फ़िर मेल शुरु होता है। इनका खेल अनवरत जारी है। बारी बारी सारे खिलाड़ियों की पारी है।आदि के चक्रव्यूह में सारे खिलाड़ी फ़ंसे हैं। सभी अनाड़ी हैं और आदि खिलाड़ी है।
लाला |
शाम होते ही टीवी पर सारी चंडाल चौकड़ी जम जाती है। आदि बताता है सबको कि आज सैंटा आएगा। योगु पूछता है- सैंटा कौन है? आदि बताता है कि बाबाजी जैसा होता है। मेरा फ़्रेंड बताता कि सैंटा बच्चों के लिए मुंहमांगी चीज लेकर आता है। रात को तकिए के नीचे सैंटा के नाम चिट्ठी में अपनी विश लिख कर रखनी पड़ती है। रात को जब सब सोए रहते हैं तब सैंटा आता है और सबको गिफ़्ट देकर जाता है। लेकिन किसी को बताना नहीं क्या लिखा है चिट्ठी में। अब कापियों से कागज फ़ाड़ कर लिखने का दौर शुरु होता है। आपस से छुप कर अपनी विश लिखते हैं। आदि सबसे विश पूछता है, उदय ने बता दिया उसने कार मांगी है और योगु ने रिमोट वाला हेलीकाफ़्टर और रिमोट वाली कार।
आदि दोनो के पूछने पर आदि अपनी विश नहीं बताता और कहता है कि तुम लोगों ने अपनी विश बता दी इसलिए पूरी नहीं होगी। सब अपने अपने तकिए के नीचे सैंटा के नाम चिट्ठी लिख कर सो जाते हैं। रात को एक दो बार उठकर तकिए के नीचे आदित्य को झांकते देखता हूँ। सुबह सब उठकर अपनी-अपनी थैली खोलते हैं तो सबको चाकलेट मिलती है। मुंहमागी चीज नहीं मिलती। सभी का चेहरा मुरझा जाता है। आदि अपनी बात संभाल कर कहता है कि सैंटा से उसने चाकलेट ही मांगी थी। तुम दोनो ने बता दिया इसलिए तुम्हे भी चाकलेट मिली। अब बताना नहीं कि सैंटा से तुमने क्या मांगा है? दिन निकलते ही आदि, उदय, योगु, लाला सब अपने खेल में फ़िर से मगन हो जाते हैं और मैं चाय का मग लिए अपने पीसी पर आ जाता हूँ।
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
शनिवार, 24 दिसंबर 2011
केरा तबहिं न चेतिया जब ढिंग लागी बेर -- ललित शर्मा
पूर्णानंद सोनी |
अधूरा कार्यक्रम छोड़कर अहमदाबाद से वापसी करनी पड़ी। गाड़ी 10 घंटे विलम्ब से रायपुर पहुंची। अशोक भाई से सूचना मिली थी कि पुराने मित्र पूर्णानंद सोनी ईलाज के दौरान हमें छोड़ चले। बहुत अफ़सोस हुआ, सब सदमे में थे। पुर्णानंद सोनी से मेरी मुलाकात का सिलसिला अशोक भाई के माध्यम से 1986-87 में प्रारंभ हुआ था। सरल हृदय एवं मृदुभाषी व्यक्तित्व सहज ही आकर्षित करता था। कभी कभी हम लोग गंभीर चर्चा के दौरान भी हास्य की ओर उन्मुख हो जाते थे। परम्परागत पेशे में रमे रहते थे। आज सुबह भी उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। जैसे हमसे अभी बोल उठेगें। नश्वर लोक में आना-जाना लगा रहता है। लेकिन समय से पहले जाना ईष्ट मित्रों एवं परिजनों के लिए दुखदाई होता है। कल सुबह अशोक भाई के साथ उनके अंतिम सफ़र में शामिल हुए। एक अच्छा मित्र हमें छोड़ गया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं परिजनों को दारुण दु:ख सहने की असीम शक्ति भी। लगभग 12 बजे उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ।
राजिम विश्राम गृह में पहुंचने पर पता चला कि दूर्गा प्रसाद गौतम की पुत्री दुर्घटना का शिकार होकर काल का ग्रास बन गयी। इस विषय में जानने के लिए उनके घर पहुंचे। तो दूर्गा प्रसाद जी महासमुंद गए थे, उनका वापसी का इंतजार किए। दूर्गा प्रसाद के आने पर पता चला कि उनकी पुत्री ज्योति छुरा में शिक्षाकर्मी थी। एक सप्ताह पूर्व रविवार को शाम 4 बजे अपनी ड्युटी पर जाने के लिए स्कूटी से छूरा के लिए निकली थी। रास्ते से वह 100% जली हुई अवस्था में मिली। एक सप्ताह मृत्यू से जुझती रही, लेकिन मृत्यू को जीत न सकी, हार गयी और परिजनों को रोता छोड़ कर चली गयी। जो बातें दूर्गा प्रसाद ने बताई उससे तय है कि वह "लव जेहाद" का शिकार हो गयी। यह समस्या देश में बढ चुकी है।लड़कियों को अपना शिकार बनाओ और उन्हे बरबाद करो। ऐसी घटनाएं माँ-बाप के लिए त्रासदी से कम नहीं होती।
दूर्गा प्रसाद का कहना था कि लड़की ने उसे बताया कि फ़रीद उसे रास्ते में मिला। जिसे वह जानती थी, लेकिन इनके परिजन उसके विषय में नहीं जानते थे और कभी देखे भी नहीं थे। लड़की की शादी ब्याह की बात चल रही थी और वे लड़का देख रहे थे शादी के लिए। लड़के के साथ वह छूरा न जाकर महासमुंद मार्ग पर चली गयी। शेर गाँव के पास सड़क के किनारे उसने मिट्टी तेल डाल कर आग लगा ली। आग लगाने का कारण लड़के द्वारा प्रताड़ित करना बताया। आग लगने के बाद वह तुरंत ही जल गयी। जलने से बचने के लिए सड़क के किनारे रेत पर उलटने पलटने लगी तब भी लड़के ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की। उसे छोड़ कर वह भागना चाहता था। लड़की के कहने पर उसने परिजनों को फ़ोन लगाकर बताया कि तुम्हारी लड़की जल गयी है। इसे अस्पताल ले जाओ। लड़की के अस्पताल ले जाने के लिए कहने पर लड़का तैयार हुआ। बड़ी मुश्किल से पूरी जली हुई निर्वस्त्र लड़की स्कूटी पर बैठ कर अस्पताल के जाने लगी तो लड़के ने अपने दोस्त को फ़ोन कर एक कम्बल मंगाया और उसे महासमुंद अस्पताल ले गया।
महासमुंद अस्पताल से उसे रायपुर मेकाहारा अस्पताल रिफ़र कर दिया गया। एम्बुलेंस में उसे मेकाहारा पहुंचाया गया। वहाँ दूर्गा प्रसाद अपने परिजनों के साथ पहुंच चुके थे। ज्योति गौतम दूर्गा प्रसाद की बहुत ही लाडली बेटी थी। लड़की हालत देख कर उसका हृदय विदीर्ण हो गया। इलाज शुरु हुआ, 100% जली हुई लड़की की बचने की कोई संभावना नहीं थी। एक सप्ताह मौत से जूझने के बाद वह हार गयी। उसने दूर्गा प्रसाद को दुर्घटना की कुछ जानकारी दी। ऐसी स्थिति में एक बेटी अपने बाप को ज्यादा कुछ नहीं बता सकती। दूर्गा प्रसाद गौतम का कहना है कि लड़के ने उसे किसी को कुछ नहीं बताने की धमकी दी थी। जिसके कारण वह बातें छिपा रही थी। शायद इस सदमे से दूर्गा प्रसाद गौतम का परिवार कभी उबर पाए।
लव जेहाद के शिकारों की संख्या बढती जा रही है। कल ही याज्ञवल्क्य वशिष्ठ फ़ेस बुक पर लिख रहे हैं --"अंबिकापुर में पिछले तीन महिनों में हिंदु लडकियों का जबर्दस्त प्रेम विवाह हुआ ..और अधिसंख्य लडकियां मुस्लिम युवाओं के बिस्तर की शोभा बन गई है ..तो इस पूरे मामले को कितने सौहार्द पूर्ण तरीके से देखा जाना चाहिए." स्थिति गंभीर है, मासूम लड़कियाँ फ़रेब का शिकार हो रही हैं। केरल के हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि ''ये लव नहीं ये लव जेहाद है''. भाग दौड़ भरी जिन्दगी में एक आदमी पेट की भूख मिटाने एवं परिवार पालने की जुगत लगाएगा या दिन रात बच्चों के पीछे दौड़ता रहेगा। उनकी चौकसी करते रहेगा। हिन्दू लड़कियों को फ़ंसा कर उनके जीवन से खिलवाड़ करने के घृणित कार्य को लव जेहाद का नाम मिल गया है। बहुत ही अफ़सोस जनक कृत्य है। दूर्गा प्रसाद गौतम के परिवार से साथ घटी दुर्घटना निंदनीय है। पुलिस ने भी अभी उस लड़के से कोई पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई है। अगर यही मामला किसी मालदार का होता तो लड़की के अस्पताल में दाखिल होते ही पुलिस अपनी कार्यवाही प्रारंभ कर देती। केरा तबहिं न चेतिया जब ढिंग लागी बेर ।
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पूर्णानंद सोनी,
ललित शर्मा,
लव जेहाद
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
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हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011
"मेरे दिल की बात" का विमोचन के बाद चले गुजरात की ओर -- ललित शर्मा
छत्तीसगढ के यशस्वी ब्लॉगर साहित्यकार स्वराज्य करुण का नाम परिचय का मोहताज नहीं है,लगभग-35-40 वर्षों से उनकी सतत साहित्य साधना जारी है। एक दिन फ़ोन पर बताया कि उनका द्वितीय काव्य संग्रह "मेरे दिल की बात" प्रकाशित हो चुका है। उन्होने काव्य संग्रह के विमोचन के लिए तारीख तय करने कहा। हमने 15 दिसम्बर तारीख तय की। स्वराज्य जी ने कहा कि अशोक बजाज जी बंगले "चौपाल" पर ही एक छोटा सा कार्यक्रम किया जाए और कुछ ब्लॉगर मित्रों की उपस्थिति में काव्यसंग्रह का विमोचन किया जाए। ब्लॉगर के काव्य संग्रह का विमोचन एक ब्लॉगर के हाथ और ब्लॉगर्स के साथ हो। इससे बड़ी क्या बात हो सकती है। बस कार्यक्रम तय हो गया।
मुझे 16 दिसम्बर को गुजरात भ्रमण पर जाना था। हावड़ा से अहमदाबाद जाने वाली सभी गाड़ीयाँ रिशेडयुल चल रही हैं। रायपुर सुबह आने वाली गाड़ियां शाम को पहुंच रही हैं। इससे हावड़ा अहमदाबाद मार्ग पर चलने वाले यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए मैने एक सप्ताह पहले पुरी अहमदाबाद से अपना जाने का आरक्षण करवाया, पर 15 तारीख तक आरक्षण कनफ़र्म नहीं हुआ। इसलिए आपातकालीन कोटे से आरक्षण करवाने के लिए मुझे रायपुर डी आर एम कार्यालय से सम्पर्क करना था अर्थात रायपुर जाना तय था। दोपहर में डी आर एम ऑफ़िस से आरक्षण का पत्र देकर राहुल भाई के पास पहुंच गए। यहाँ पहुंचने पर सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक ज्ञान में वृद्धि हो ही जाती है। बैठे-बिठाए कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
शाम को अरुणेश दवे जी का फ़ोन आने पर उन्हे राहुल भैया के आफ़िस में ही बुला लिया गया। थोड़ी देर बाद वरिष्ठ ब्लॉगर जी के अवधिया जी भी पहुंच गए। धीरे-धीरे ब्लॉगर साथी उपस्थित होने लगे। विमोचन का समय शाम 7 बजे का तय किया गया था। तब तक अशोक भाई भी चौपाल में पहुंच चुके थे। गिरीश पंकज, जी के अवधिया, राहुल सिंह, हबीब साहब, गुरबीर चावला, अरुणेश दवे, अल्पना देशपांडे एवं पिथौरा से उपस्थित श्रृंखला साहित्य मंच के प्रवीण प्रवाह, बंटी छत्तीसगढिया, शिवा मोहंती, शंकर गोयल की गरिमामय उपस्थिति में "मेरे दिल की बात" का विमोचन भाई अशोक बजाज के द्वारा किया गया। सभी ने करतल ध्वनि से स्वराज्य करुण जी का स्वागत करते हुए काव्य संग्रह के विमोचन पर उन्हे ढेर सारी बधाईयाँ दी। स्वल्पाहार के दौर के पश्चात गिरीश पंकज जी ने नयी कविता और छन्द बद्ध कविता पर अपने विचार प्रगट किए। उपस्थित सभी साथियों ने भी अपने विचार इस कार्यक्रम के दौरान रखे। इस दौरान राज भाटिया, अर्चना चावजी, बीएस पाबला जी ने फ़ोन पर अपनी शुभकामनाएं दी।विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न होने के पश्चात मैने चलते-चलते टिकिट का पी एन आर देखा तो टिकिट कन्फ़र्म हो चुकी थी। मतलब अब गुजरात का भ्रमण पक्का हो चुका था।
ठंड बढ चुकी है, इसका अहसास रात 9 बजे के बाद घर आने के दौरान रास्ते में हुआ। मैने रात विनोद गुप्ता जी को फ़ोन लगा कर गुजरात के मौसम के विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि एक स्वेटर की ठंड है उधर। साथ ही एकाध कोट लाने की हिदायत भी उन्होने दे दी। अब कल सुबह 7-25 को हम अहमदाबाद पहुंचेगे, फ़िर तय किया जाएगा कि किधर घूमना है? गुजरात जाने का कार्यक्रम अगस्त माह से बन रहा था, लेकिन कुछ न कुछ अवरोध अवश्य उपस्थित हो जाता था। यात्रा टल रही थी, इस बीच कई जगह जाना पड़ा। मित्रों अब गुजरात का सफ़र जारी हो चुका है। अहमदाबाद में कोई ब्लॉगर मित्र हैं तो अवश्य जानकारी दें, उनसे मिलने का प्रयास किया जाएगा। रात उमड़त-घुमड़त विचार ने बताया कि नागपुर में भी अच्छी ठंड हो गयी है। रजाई का इस्तेमाल किया जा रहा है पर हल्की रजाई में ठंड नहीं रुक रही। शरद कोकास भाई को भी नागपुर की शादी के दौरान ठंड लग गयी। फ़ोनिक चर्चा के दौरान उन्होने ठंड लगने की जानकारी दी। अब लेते हैं शार्ट ब्रेक और मिलते हैं अहमदाबाद में।
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अशोक बजाज,
अहमदाबाद,
काव्य संग्रह विमोचन,
गुजरात,
दिल की बात,
स्वराज्य
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
बंदरों की ब्लॉगरी मौज -- ललित शर्मा
पहले भी अयोध्या आया था, तब भी देखा था, अभी भी देखा है, बदला कुछ भी नहीं है, वही विक्रम की सवारी, पहले दो-दो रुपए लेते थे अब 5-5 और 10-10 लेने लगे हैं, लिट्टी चोखा का ठेला, बिड़ला धर्मशाला के समीप होमियोपैथी के डॉक्टर की दुकान, पुलिस चौकी, जलेबी और इमरती की दुकान, सड़क पर घूमते हुए आवारा पशु, गंदगी से बजबजाती हुई नालियाँ। सरयु के तट पर फ़ैली हुई गंदगी, छतरी लगाए पाटे पर बैठे पंडे। हवा के साथ उड़ती हुई पालीथिन की खाली थैलियाँ। चिलम फ़ूंकते साधु वेषधारी असाधु। चेले-चेली मुंडते संत महंत। नगो-पत्थरों की दुकानें, सुग्गा ज्योतिषियों का पसरा, सुरमा बेचते लोग, हरी काई रची पुरानी इमारतें। लोगों का सामान लूटते बंदर। कुछ नहीं बदला है। बदलने की बजाए कुछ जुड़ा है तो एक सायबर कैफ़े,बिड़ला धर्मशाला के समीप। सायबर कैफ़े का मिलना एक ब्लॉगर के लिए सुखद रहा।
यहाँ के बंदरों की तो बात ही मत पूछिए। आँखों से काजल चुराने जैसी बात है। अगर आपका ध्यान कहीं भटका और तनिक असावधान हुए तो आपकी आँखों पर लगा चश्मा भी गायब हो सकता है। आप मुंह फ़ाड़े देखते रह जाएगें।पिछली बार जब हम राम लला के दर्शन करने जा रहे थे, तब जाली वाले गेट के पास एक बंदर ने कमलेश का एक हाथ पकड़ लिया और अपना एक हाथ उसकी पैंट की जेब में डाल दिया। मैं आगे चल रहा था, पीछे से कमलेश आवाज दे रहा था, अंकल-अंकल! मैने पीछे मुड़ कर देखा तो नजारा देखने लायक था। कमलेश के चेहरे से हवाईयाँ उड़ रही थी। बंदर ने उसे काबू में कर रखा था। मैने बंदर को घुड़की थी, मतलब उसकी बोली में समझाया तो उसने कमलेश की जेब में रखी टिकिट की फ़ोटो स्टेट कापी निकाल ली और भाग गया। एक आदमी ने प्रसाद चढाने के लिए हाथ में रखा था, उसे लेकर भाग गए। वह आदमी हड़बड़ा गया। राम लला की सुरक्षा करने के लिए सुरक्षा बल तैनात हैं। एक-एक आदमी की खाना तलाशी लेते हैं। मैटल डिटेक्टर से लेकर मैनुअली भी चेक करते हैं, साथ ही बंदर भी सुरक्षा जांच में अपनी भूमिका निभाते हैं। बची-खुची जाँच ये पूरी कर लेते हैं।
एक व्यक्ति ने कहा कि सुरक्षा बलों की ड्यूटी सरकार ने फ़ालतू ही लगा रखी है। सारी जाँच तो बंदर ही पुरी कर लेते हैं। मजाल है कोई कुछ लेकर भीतर चला जाए। एक बार कोई सायकिल पर टिफ़िन लेकर जा रहा था, बंदर ने उसका टिफ़िन छीन लिया। बंदर द्वारा टिफ़िन छीनते ही वह व्यक्ति सायकिल छोड़कर भाग गया। टिफ़िन खोलने पर उसमें से विस्फ़ोटक पदार्थ निकला। जो सुरक्षा बल नहीं पकड़ पाए, उसे बंदरों ने पकड़ लिया। रामलला का एक अघोषित अदृश्य सुरक्षा घेरा बंदरों का भी है, लगता है जिसे तोड़ पाना किसे के बस की बात नहीं। मेरे सामने ही एक महिला का पर्स ले भागे, पेड़ पर चढ कर उसे फ़ाड़ दिया और उसका सामान एक-एक करके उड़ाते रहे वह महिला सामान बिनती रही। उसके पर्स में रुपए भी थे उसे भी फ़ाड़ कर फ़ेंकते रहे। एक व्यक्ति ने भजनों की सीडी खरीदी थी, वह थोड़ा असावधान हुआ और उसके हाथ की सीडी ले उड़े। चाहे सामान उनके काम का हो या न हो व्यक्ति के असावधान होते ही हाथ मार देते हैं।
हमारे साथ की महिलाएं इन बंदरों से बहुत परेशान थी, काकी के ने आधा किलो सेव लिए थे, उसकी थैली हाथ में धरे थी कि कहीं बैठ कर खाई जाएगी। मंदिर कार्यशाला से आते हुए हम मणिराम दास की छावनी की ओर जाने वाले गली में जैसे ही मुड़े वहां 100 से अधिक बंदरों ने रास्ता घेर रखा था। महिलाएं उस रास्ते पर जाने से डर रही थी, मैने बंदरो को घुड़की दी, हाथ में ले रखी छड़ी से डराया तो पेड़ की डाल पर चढ गए, कोई मुंडेर पर बैठ गया, हम चौकन्ने होकर गली पार करने लगे। काकी ने सेव की थैली पीछे हाथ करके साड़ी में छिपा ली। पता नहीं कहां से एक छोटी सी बंदरिया आई और थैली पर झपट्टा मार कर भाग गयी। काकी देखते ही रह गयी। उसका ध्यान बड़े बंदर पर था पर कमाल छुटकी बंदरिया कर गयी। इनका गिरोह अपने इलाके में रहकर ही वारदात करता है। दुसरे के इलाके में जाने पर इनमें युद्ध भी होता है। कई बंदर तो हाथ-पैर भी गंवा चुके है। पर खाने के लिए उद्यम तो करना ही पड़ता है।
पान ठेले वाले ने बताया कि बंदरों की टोलियाँ पूरे नगर में घूमते रहती हैं। जिसका घर खुला दिखा तो पूरी सेना ही भीतर घुस कर उसे तहस नहस कर देती है। कपड़े भी बाहर सुखाना मुश्किल है। पता नहीं दुबारा मिलेगें कि नहीं। हड़काने पर काट लेते हैं, नोच लेते हैं। बंदरों ने बड़ा आतंक मचा रखा है। यही हाल फ़ैजाबाद नगर का भी है। वहाँ भी बंदरों के आतंक से लोग त्रस्त हैं। बताते हैं कि बंदरों के विरुद्ध 10 हजार शिकायत पत्र फ़ैजाबाद के डीएम के दफ़्तर में जमा हैं, इन शिकायत पत्रों से डीएम का दफ़्तर अटा पड़ा है। जिला अस्पताल में एक महीने में बंदरों द्वारा काटे जाने के सौ-दो सौ मामले आ जाते हैं। लगभग इतने ही मामले प्राईवेट अस्पतालों में जाते हैं। मंदिर-मस्जिद मुद्दे से अधिक बड़ा अयोध्या वासियों के लिए बंदरों से मुक्ति का मुद्दा है। इसके लिए जन अभियान चलाने जैसी योजना भी सामने आ रही है। बताते हैं कि इस इलाके में 20 हजार से अधिक बंदर हैं। इन्हे शहर से अलग बसाने के लिए अभ्यारण्य तैयार करने की मांग उठने लगी है।
भारत में बंदरों के साथ धार्मिक आस्था भी जुड़ी हुई है, इसलिए बंदरों को मारा नहीं जाता, कोई भी इन्हे हानि नहीं पंहुचाता, तभी बजरंग बली की यह सेना बेखौफ़ होकर नगर में लूट-पाट करते फ़िरती है। शहर के बीच-बाजार में कहीं पर भी फ़ल फ़्रूट की दुकान के पास आपको देख कर दांत किटकिटाते मिल जाएगें। स्टेशन पर लगी हुई टीन की चद्दरों पर धमाचौकड़ी करते हुए इनका दल यात्रियों को डराते-सहमाते रहता है। चलती गाड़ी के डिब्बों पर चढ कर करतब दिखाते हैं। यहाँ के निवासियों को तो बंदरों के कारनामे झेलने की आदत पड़ गयी है, पर बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों से इनका मिलना त्रासदी पूर्ण ही है। कुछ लोगों की पेट रोजी ये बंदर ही चला रहे हैं। लोगो ने बंदरों का दाना बेचने की दुकाने खोल रखी हैं जहाँ से खरीद कर श्रद्धालु इन्हे भक्ति भाव से खिलाते हैं। पर बंदर आखिर बंदर ठहरे, अपनी आदतों से बाज नहीं आते। बंदरों को भी ब्लॉगरी मौज लेने की आदत पड़ गयी है। पहले तो चलते आदमी को छेड़ते हैं,फ़िर उसके खिसियाने पर पेड़ की डाल पर बैठ कर दांत निपोरते हुए मौज लेते हैं। यही सलाह है कि बंदरों बच के रहें तभी सही है अन्यथा बंदर तो ...........।
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अयोध्या,
बंदर,
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lalit sharma,
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परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
बुधवार, 14 दिसंबर 2011
अनवरत रामलीला और ददुवा राजा का महल -- ललित शर्मा
बिड़ला मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद खुली, मंदिर की घंटियों की आवाज से नींद का टूटना, अच्छा लग रहा था। कमरे की पिछली खिड़की से रोशनी आ रही थी। मच्छर न होने के कारण रात को चैन की नींद आयी। रात चैन की नींद आए तो आने वाली सुबह खुबसूरत हो जाती है, थकान उतरने के बाद की ताजगी चाय की भाप की खुश्बू के साथ बढ जाती है। पंकज तैयार हो रहा था, हमें आज घर की ओर चलना है, नौतनवा एक्सप्रेस सवा दो बजे मिलेगी, जो हमें सीधे ही अयोध्या से रायपुर तक पहुंचा देगी। पंकज की इच्छा अयोध्या में घुमने की थी, मेरे मन में रुम चेक आऊट कर सामान सहित सायबर कैफ़े में बैठने की। जीत पंकज के ईरादों की ही हुई, हम स्नान कर के पुन: अयोध्या की गलियों का खाक छानने निकल पड़े। कल हमने अयोध्या शोध संस्थान का बोर्ड एक जगह लगे देखा था। पंकज भी वहीं जाना चाहता था।
रास्ते में हमें एक महल दिखाई दिया, इस महल का सिंह द्वारा कलात्मक रुप से बनाया गया था। कैमरे के लैंस में सिंह द्वार का त्रिआयामी स्वरुप दिख रहा था। सिंह द्वार पर काई जम चुकी है, लगता है बरसों से साफ़ सफ़ाई और चूना पुताई नहीं हुई है, एक घड़ी भी सिंह द्वार पर लगी है। घड़ी अभी बंद है, लेकिन इसे देख कर लगता है कि इसकी रौनक किसी जमाने में रही होगी। जब अयोध्या नगरी को इससे ही समय की सूचना मिलती होगी। यह महल किसका है, इसका मुझे पता नहीं था और इसके विषय में सुना भी नहीं था, लेकिन इस महल का प्रांगण काफ़ी बड़ा है तथा भीतर रिहायश भी है। महल के सिंह द्वार के सामने खैनी घिसते हुए युपी पुलिस के नौजवान मिले। पूछने पर उन्होने बताया कि यह "ददुवा राजा" का महल है, हमें तो बस इतना ही पता है। हमें भी इसके विषय में अधिक जानकारी देने वाला कोई नहीं मिला। (अगर किसी ब्लॉगर मित्र को इसके विषय में जानकारी है तो टिप्पणी के माध्यम से अवगत कराएं)
ददुवा राजा के महल से हम अयोध्या शोध संस्थान की ओर चल पड़े, कल हमें पता चला था कि यह 11 बजे खुलता है। हम भी 11 बजे ही वहाँ पहुंचे, पोर्च में दो सज्जन धूप सेक रहे थे, हमने उनसे पूछा कि - शोध संस्थान के विषय में जानकारी लेनी है तो उन्होने भीतर जाने का संकेत दिया। भीतर पहुंचे तो संग्रहालय और पुस्तकालय दिखाई दिया। पुस्तकालय में कुछ लोग अखबार पढ रहे थे और कुछ लोग अपने मतलब की किताबें मनन कर रहे थे (बांचने की सुविधा नहीं है :) एक महिला झाड़ू लगा रही थी, पंकज ने एक मूर्ति की फ़ोटो खींचनी चाही तो उसने चिल्ला कर कहा -" फ़ोटु खींचना मना है, जानते नहीं का, आप काहे फ़ोटो ले रहे हैं?" शायद पंकज नहीं जानता था। वैसे सभी जगह के संग्रहालयों में चित्र लेना मना है, चित्र लेने के लिए संग्रहालय के निदेशक या इंचार्ज की अनुमति की आवश्यकता होती है। भीतर पहुंचने पर संग्रहालय के इंचार्ज मानस तिवारी जी से भेंट हुई। उनसे संग्रहालय और शोध संस्थान के विषय में विस्तार से चर्चा हुई।
चर्चा के दौरान उन्होने बताया कि इस भवन में तीन इकाई हैं, 1- राम कथा शोध संस्थान, 2- संग्रहालय, 3- पुस्तकालय। यहाँ पर उत्त्खनन में पाई जाने वाली मूर्तियों का पंजीकरण किया जाता है इसके साथ ही उनका संरक्षण एंव दस्तावेजीकरण भी किया जाता है। रामकथा से संबंधित शोध सामग्री, पाण्डुलिपियाँ, वैदिक संस्कृत साहित्य यहाँ के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं जिसका उपयोग शोध के लिए होता है। इस संस्थान की अयोध्या में शुरुवात 1988 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य राम के संदर्भ में मिलने वाली सभी सामग्रियों का संरक्षण, दस्तावेजीकरण, एवं प्रदर्शन करना है। समय समय पर यहां कार्यशालाओं का भी आयोजन किया जाता है। विश्व के 22 देशों में रामकथा का प्रचार प्रसार हैं। विदेशों से प्राप्त रामकथा संदर्भ सामग्री भी यहां उपलब्ध है, कम्बोडियाई रामायण के पात्रों का भी यहाँ प्रदर्शन किया गया है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि विगत साढे छ: वर्षों से यहाँ प्रतिदिन अनवरत राम लीला का आयोजन हो रहा है। राम लीला नित शाम 6 से 9 बजे तक होती है। इसकी जानकारी हमें नहीं थी अन्यथा रामलीला का आनंद लेते। मानस तिवारी ने बताया कि सम्पुर्ण भारत से साल भर के लिए रामली्ला मंडलियों को बुक कर लिया जाता है। एक मंडली 15 दिनों तक अपनी प्रस्तूति देती है। राम जन्म से लेकर राज्याभिषेक तक राम लीला का प्रदर्शन होता है। सतना की रामलीलाओं की उन्होने काफ़ी बड़ाई की। छत्तीसगढ से शायद ही किसी राम लीला मंडली ने अयोध्या में अपना प्रदर्शन किया होगा। रामलीला मंडलियों को प्रदर्शन करने का मेहनताना प्रतिदिन 5000 रुपए दिए जाता हैं। यह एक अच्छा प्रयास लगा। लेकिन इसकी जानकारी बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को होनी चाहिए। इसके प्रचार प्रसार के लिए स्टेशन एवं बस स्टैंड में फ़्लेक्स बेनर लगाए जाने चाहिएं।
संग्रहालय में शुंग एवं कुषाण काल के पुरावशेष प्रदर्शित हैं। राम जन्म भूमि के उत्खनन से प्राप्त तीनों चरणो के पुरावशेष भी हैं। यहां राम वन गमन मार्ग की चित्रावलियाँ प्रदर्शित की गयी है। इन चित्रों भगवान ने जहां भी गए हैं उसे दिखाया गया है। मानस तिवारी ने बताया कि दिल्ली के रामअवतार शर्मा जी ने इस पर बहुत काम किया है। भगवान राम की दो यात्राओं का जिक्र उन्होने अपनी प्रदर्शनी में किया है। 1- विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाकर धनुष यज्ञ से लौटने तक, 2- 14 वर्ष के वन गमन एवं लंका विजय करने तक। रामअवतार शर्मा जी ने सभी प्रदेशों से गुजरते हुए यहां की मिट्टी एकत्र कर उससे राम चरण चिन्ह बनाकर स्थापित किए हैं। मानस तिवारी ने हमें संग्रहालय के बाहर लगी मूर्तियों एवं चित्रों की फ़ोटो लेने की छूट दे दी। हमने कुछ चित्र लिए। उन्होने आगंतुक पुस्तिका में मुझे अपने विचार दर्ज करने कहा। मैने भी आधा पृष्ठ टीप दिया और हम वापस बिड़ला धर्मशाला की ओर चले। मैं सायबर कैफ़े से मेल चेक करने लगा और पंकज गायत्री मंदिर की ओर चला गया।
1 बजे पंकज वापस आया, हमने धर्मशाला का कमरा छोड़ा 150 - रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दक्षि्णा जमा कराई, मैनेजर कुछ काईयाँ किस्म का लगा, सबसे 100 रुपए ले रहा था और हमसे 150 सौ रुपए लिए एवं उसकी रसीद भी नहीं दी। जय बिड़ला से्ठ की, पता नहीं कितने ऐसे ही पल रहे हैं भगवत कृपा से। हम अपना सामान लेकर 11 नम्बर की सवारी से स्टेशन चल पड़े, हमारे अन्य साथी भी ऑटो से पहुंच रहे थे। चौरसिया जी स्टेशन के बाहर खड़े होकर किसी भुले बिसरे को ढूंढ रहे थे। नौतनवा एक्सप्रेस थोड़ी विलंब से आई, लेकिन सही आई, अयोध्या में मात्र 2 मिनट का ही ठहराव है, इतने कम समय में सवा सौ सवारियों का मय सामान चढना कमाल ही है। ट्रेन चलते ही किसी ने ट्रेन की हवा खोल दी, गाड़ी फ़िर रुक गयी, जो न चढे होगें वो भी चढ लिए। अयोध्या नगरी को प्रणाम कर एवं स्वागत सत्कार करने वालों को धन्यवाद देकर हम चल पड़े अपने गंतव्य की ओर।
भजन मंडली ने भजन गाने शुरु कर दिए। हम भी साथ में रम गए, बंछोर जी गाने लगे "हमने आंगन नहीं बुहारा, कैसे आएगें सांवरिया" आंगन बुहारने के बाद निमंत्रण देना था सांवरिया को, पहले ही दे आए अब भुगतो। बंछोर जी की बेटी ने भी एक दो भजन गाए। समय कटने लगा सिमरन के साथ। तभी एक छोटा सा बच्चा भी अपनी माँ से पीछा छुड़ाकर मेरे पास पहुंचा और गोदी में बैठने के लिए हाथ बढाए, कमाल हो गया भाई, यहाँ तो मुहल्ले के सारे बच्चे मेरी गाड़ी की आवाज सुनकर घर के भीतर घुस जाते हैं। इस बच्चे ने बड़ी हिम्मत की। वह भी भजन सुनने लगा और डफ़ली की ताल में मुड़ हिलाने लगा। काफ़ी देर तक मेरी गोद में बैठा रहा, अधिक देर होने पर बच्चे को उसकी माँ के पास छोड़कर आया। बच्चे भगवान का रुप होते हैं, निश्छल और निर्विकार। स्वामी जी टिकिट चेक कराते घूम रहे थे। नौतनवा एक्सप्रेस से मैं पहले भी अयोध्या आ चुका हूँ, छत्तीसगढ से यही एक मात्र गाड़ी है जो अयोध्या पहुंचाती है।
सुबह पेंड्रारोड़ के आस-पास नींद खुली। स्वामी जी मौन थे, बस हाथ और उंगली के ईशारे से काम चला रहे थे। दुनिया चाँद पर पहुंच कर मंगल पर जाने की तैयारी कर रही है और ये पुन: पाषाण युग में जा रहे हैं। इनकी कथा तो अकथ है अगर लिखने लगुं तो दो चार पुस्तकें लिखी जा सकती है। जब से मुड़ मुड़ाए हैं तब से ज्ञान का सागर ही उमड़ आया है। साबुन एवं शेविंग क्रीम का उपयोग नहीं करते। पैंट-पैजामा की जगह धोती पहनकर घुमते हैं। शेविंग क्रीम की जगह छाछ का उपयोग करते हैं। सप्ताह में दो दिन अस्वाद भोजन करते हैं। प्रतिदिन आठ बजे तक मौन रहते हैं। बीमार होने पर एलोपैथिक दवाई का उपयोग नहीं करते और जब कहीं माईक मिल जाता है तो बस मत पूछिए, सुनने वाला थककर सो जाएगा ये चुप नहीं होते, बिजली बंद करने पर भी बिना माईक के चालु रहते हैं। निराली ही आत्मा है। सुबह सुबह भाभी जी ने इन्हे खड़का दिया "हमें ये सब ढोंग धतुरा पसंद नहीं है, जैसे थे वैसे ही रहिए" अब कहां से वैसे रहेगें, आपने तो इन्हे कहीं का नहीं छोड़ा, जब ये सब सांसारिक बुराईयों को छोड़ चुके हैं तो कह रही हैं कि पहले जैसे नहीं रहे, बदल गए हैं, मैने भाभी जी से कहा।
बिलासपुर पहुचने पर स्टेशन पर नाश्ता किया, इडली का ठेला लगा था, साथ ही उसने ब्रेड आमलेट भी रखा था, स्वामी जी आमलेट उठाकर ठेले वाले पूछने लगे, ये क्या है? मुझे हँसी आ रही थी। ठेले वाले के बताने पर उन्होने तीन बार हाथ धोए और एक बार मुंह धोया। "राम राम ये सब भी रखते हैं, शाकाहारी के साथ।" अरविंद झा भी पहुंच गए स्टेशन पर, उनके साथ चाय पीकर गपशप होने लगी। बहुत दिनों में मुलाकात हुई उनसे। जब हम बिलासपुर आने की सोचते हैं तो ये दरभंगा पहुंच जाते हैं। स्वामी जी एक मंडली को प्रवचन दे रहे थे तम्बाखु, शराब, गुड़ाखु एवं अन्य नशा करने वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इससे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक हानि होती है। तेजराम, संतोष, इत्यादि प्रवचन सुन रहे थे, अरविंद ने भी हां में हां मिलाई।
फ़ोटो गुगल से साभार |
स्वामी जी के पीठ फ़ेरते ही, तेजराम ने कहा कि-"सुनो सबकी करो अपने मन की, ओखर कहे ले थोड़ी छूट जाही, हमर मन के बात सुन डरेन ओखरो।" मुझे तेजराम की कमीनीपतीं पर हंसी आ रही थी, स्वामी जी का पूरा एक घंटा खराब करवा दिया।ट्रेन चल पड़ी, अरविंद से विदा ली, शीघ्र ही फ़िर मिलने का वादा किया, रायपुर स्टेशन पहुंच चुके थे। सभी ने अपने-अपने घर जाने की व्यवस्था कर ली थी। मैं और गिलहरे गुरुजी सिटी बस में सवार होकर जोरा के लिए चल पड़े, भगवान को धन्यवाद दिया, सवा सौं लोगों के साथ 9 दिन की यात्रा करके सही सलामत घर पहुंच गए, कहीं बीमारी, हारी, चोरी, चकारी नहीं हुई, किसी की शारीरिक और मानसिक हानि नहीं हुई। सभी स्वस्थ और सानंद अपने परिजनों से मिल रहे थे। जोरा से हम अपनी गाड़ी लेकर घर पहुंचे।नेट शुरु करते ही सूचना मिली कि बाला साहब ठाकरे की पोती का विवाह हो गया है।
लेबल:
-ललित शर्मा,
अभनपुर,
अयोध्या शोध संस्थान,
अरविन्द झा,
ददुवा राजा,
बिलासपुर
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
मंगलवार, 13 दिसंबर 2011
13 दिसम्बर का दिन भुलाया नहीं जा सकता -- ललित शर्मा
मनुष्य के जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं, जिन्हें वह चाह कर भी नहीं भूल पाता. इन घटनाओं की छवि मस्तिष्क में स्थायी रूप से जगह बना लेती हैं और जीवन भर याद रहती हैं. ऐसी ही एक घटना मेरे साथ भी घटी थी. 13 दिसंबर का वह दिन आज भी मुझे याद है. इसके कुछ दिन पहले नरेश शर्मा ने मुझे कहा कि दिल्ली चलना है. उसके जीजाजी के ट्रांसफर का काम था. नीतिश जी जानते हैं, यदि आप कह देंगे तो जीजाजी की समस्या को देखते हुए उनका ट्रांसफर हो जाएगा. मैंने उनसे मिलने का समय लिया, तो पता चला कि वो १३ को दिल्ली में रहेंगे, अब उनसे निवेदन करना हमारा काम था, सही लगा तो ट्रांसफर हो ही जायेगा.
12 को नरेश और मैं गोंडवाना एक्सप्रेस से दिल्ली के लिए रायपुर से निकले, दुसरे दिन जब दिल्ली पहुचे तो बड़ी ठण्ड थी, कोहरा छाया हुआ था. तो सबसे पहले हम अपने होटल पहाड़गंज में पहुंचे. स्नान करने के पश्चात् नरेश ने कहा कि उसे संसद भवन देखना है. मैंने कहा चल दिखा देता हूँ, बाद में नीतिश जी से मिल लेंगे. अब हम ऑटो करके संसद भवन के पास पहुंचे. सामने पहुंचे ही थे तभी अचानक कुछ भगदड़ सी होने लगी खाकी वर्दी वाले सब हरकत में आ गये थे. मुझे लगा कि कुछ अनहोनी घट रही है. अब अचानक कुछ घट जाये नए शहर में तो सर छुपाना भी मुस्किल हो जाता है. हम लोग गोल चक्कर से जल्दी जल्दी यु.एन.आई. के आफिस तक पहुंचे. तभी गोलियां चलने की आवाज आने लग गयी थी.
हम लोग वी.पी. हॉउस के पास यु.एन.आई पहुँच गए. नए शहर में आदमी सबसे पहले अपनी सुरक्षा देखता है, उसके बाद खाना और समाचार. इसके हिसाब से यु.एन.आई का आफिस सुरक्षित था. क्योंकि वहां पर कैंटीन भी थी. जब हम पहुंचे तो पता नहीं था क्या हो रहा है. फिर किसी ने कहा की संसद भवन में कोई घुस गया है और बम फोड़ रहा है. गोली चला रहा है. नरेश बोला कि अब हम फँस गए. मैंने कहा कि जल्दी से पेट भर नाश्ता कर ले बाद में फिर मिले या ना मिले. कम से कम पेट तो भरा रहेगा, शाम तक के लिए. इस बीच हमने जल्दी-जल्दी नाश्ता किया. और उसके बाद मेरा मोबाईल बजने लग गया, उस समय दिल्ली में रोमिंग के २५ या २८ रूपये मिनट रोमिंग चार्ज लगता था. मित्रों के फोन आने शुरू हो गये, एक घंटे में ही मेरा 1000 बैलेंस ख़तम होगया.मैंने सुबह ही होटल से निकलते हुए रिचार्ज करवाया था.
घर से फोन था कहाँ पर हो ? घर वाले जानना चाहते थे. तो मैंने पूछा क्या हो गया? तो उन्होंने कहा कि जी टीवी पर संसद भवन में हमले का सीधा प्रसारण कर रहा था. तो हमने सोचा कि अब यहाँ से चला जाये. यु.एन. आई के बगल में वी.पी.हॉउस में समता पार्टी का दफ्तर था जिसमे तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कृष्णा राव जी रहते थे. मैंने कहा कि वहां चलने पर शरण मिल जाएगी, कृष्णा राव जी मुझसे अच्छी तरह परिचित थे. हम लोग वहां से निकल कर वी.पी हॉउस ले लिए चल पड़े, उस समय शायद 11.30 या 12 बज रहे होंगे. जब हम समता पार्टी के कार्यालय पहुचे तो सब टी.वी. पर झूमे हुए थे. बस हमने भी वहां बैठ कर संसद में होने वाली आतंकवादी कार्यवाही को देखा. नरेश की बोलती बंद थी. वो बोला कहाँ फँस गए? अब फँस गए तो फँस गए जो होगा सो देखा जायेगा.
शाम को 3 बजे के बाद हालत कुछ सामान्य लगे. तो हम लोग वहां से होटल के लिए निकले. उसी समय हमारे पास खलीलपुर वाले महाराज सतबीर नाथ जी का फोन आया की आश्रम में आ जाओ मैं गाड़ी भेज रहा हूँ, मेरे मना करने के बाद भी जिद करके उन्होंने अपनी गाड़ी दिल्ली भेज दी.लेकिन मुझे तो सुबह नीतिश जी से मिलना था इसलिए बाबा के यहाँ नहीं जा सकता था. तो बाबाजी की गाड़ी से एस्कार्ट हास्पिटल गया, वहां पर हमारे तत्कालीन राज्यपाल महामहिम दिनेश नंदन सहाय जी की बाइपास सर्जरी हुयी थी, उससे मिलने जाना था. हम एस्कार्ट में सहाय जी से मिले, आधा घंटा हमारी बात-चीत हुयी. उसके बाद हम होटल वापस आ गये.
सुबह जल्दी उठ कर हमने सोचा की जार्ज साहब से मिल लेते हैं कई दिन हो गये थे उनसे मिले, सुबह कोहरा छाया हुआ था. ठंड भी गजब ढा रही थी. हम 9 बजे जार्ज साहब के यहाँ पहुँच गए, कृष्ण मेनन रोड कोठी नंबर 3 पर, वहां हमें एक घंटा लगा. उसके बाद हम उनकी कोठी से निकल कर पैदल-पैदल सुनहली बाग़ स्टैंड तक पहुँचने के लिए निकल पड़े, जार्ज साहब की कोठी और उस इलाके में अब पुलिस ही पुलिस थी. कदम-कदम पर गन लेकर तैनात थे. तभी पुलिस वाले बोले सड़क पर मत चलो साईड में दीवाल की तरफ चलो, हम दीवाल की तरफ सरकते गए. तो फिर बोले दीवाल की तरफ चलो.हम तो पहले ही फुटपाथ के साथ की दीवाल से चिपक लिए थे. तो मैंने कहा कि अब दीवाल में घुस जाएँ क्या?
इतने एक स्कूल का बच्चा आ गया कंधे पर बैग लटकाए. अब पुलिस वालों ने हमें दो कोठियों के बीच की संकरी सी गली में घुसेड दिया और एक पुलिस वाला हमारे तरफ एके 47 तान कर खड़ा हो गया जैसे हम ही आतंकवादी हों. फिर बोला अपने बैग नीचे जमीन पर रख कर चुपचाप खड़े हो जाओ. हमने बेग नीचे रखा दिया, उस बच्चे ने भी अपना स्कुल बेग नीचे रख दिया, मैंने उससे पूछा कि ये क्या हो रहा है? तो वह बोला प्वाईंट आया है की अभी महामहिम राष्ट्रपति जी संसद भवन जाने वाले हैं. उनके यहाँ से निकलने के बाद आपको छोड़ दिया जायेगा. इतनी मुस्तैद थी उस दिन दिल्ली की पुलिस. अब इन्हें हर आदमी और यहाँ तक स्कुल का बच्चा भी आतंकवादी दिखाई दे रहा था. अरे! इतनी मुस्तैद पहले रहती तो संसद पर हमला ही क्यों होता?
इसके बाद महामहिम राष्ट्रपति जी का काफिला निकला,उसके बाद हमें वहां से जाने दिया गया. नरेश बोला कि हमें अब दिल्ली में नहीं रुकना है, चलो जल्दी से निकल चलो, नहीं तो क्या पता? इनकी गोलियों का शिकार हम ही हो, हमारे मारे जाने बाद ये श्रद्धांजलि दे कर बोल देंगे कि गलती से मारे गए. चलो और अभी चलो. दिल्ली में अफरा-तफरी का माहौल था, हमने भी वहां से टलने में ही अपनी भलाई समझी. इसके बाद हम जहानाबाद के संसद अरुण कुमार जी के यहाँ वापसी की टिकिट बनवाई तत्काल कोटे से और २.३० को निजामुद्दीन आकर गोंडवाना एक्सप्रेस में सवार हो गए. यह घटना आज भी आँखों के सामने चलचित्र सी घूमती है, अगर हमारा तन्त्र पहले से ही मजबूत होता तो देश के स्वाभिमान पर हमला नहीं होता. संसद की सुरक्षा अपनी जान पर खेल करने वाले सिपाहियों मेरा सैल्युट।
लेबल:
13 दिसम्बर,
आतंकवादी हमला,
संसद भवन
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
सोमवार, 12 दिसंबर 2011
पिशाच मोचन इमरती लिट्टी-चोखा और गुगल सर्च ईंजन--- ललित शर्मा
हमें जो ऑटो वाला मिला था वह बहुत अच्छा आदमी था, उसने हमें भरत कुंड पहुंचाया, मैने उसे सबके लिए चाय बनवाने कहा और हम मंदिर दर्शन के लिए चल पड़े। मंदिर में पहुचने पर एक जगह लिखा था "भरत गुफ़ा" । बताया गया कि यहाँ भरत जी ने गुफ़ा में रहते थे। कहते हैं कि राम-भरत मिलाप के पश्चात भरत खड़ाऊं लेकर फैजाबाद मुख्यालय से 15 कि. मी. दक्षिण स्थित भरतकुंड नामक स्थान पर चौदह साल तक रहे। भरत कुंड एक ग्राम है जिसे नंदीग्राम कहा जाता है। इस मंदिर से लगा हुआ एक मंदिर और भी वहां भी भरत गुफ़ा बनी हुई है। हमारे एक साथी ने दोनों गुफ़ाओं के विषय में पूछा तो पुजारी ने कहा कि कुछ नगद दिखाओगे तभी जानकारी बाहर निकलेगी। मुफ़त मे कुछु नही मिलेगा। पूछने वाला भी तेली था, न उसने नगद दिए और न पुजारी ने जानकारी उगली। तभी एक बोलेरो वाला मंदिर के गेट को ठोक कर सपाटे से भाग निकला। उसकी स्पीड इतनी थी कि वह कहीं भी दुर्घटना कर सकता था। उसके साथ बालाघाट के दर्शनार्थी थे, उनकी बोली से लग रहा था।
भरत कुंड |
यहां से लगा हुआ ही एक कुंड हैं जहाँ हर साल चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को मेला लगता है। मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कुंड कई एकड़ में फ़ैला हुआ है, जलकुंभी ने कुंड पर कब्जा कर रखा है, और बंदरों ने आतंक फ़ैला रखा है, किसी के भी हाथ में जो कुछ दिखा उसे झपट्टा मार कर ले ही जाना है। हमारा इरादा पाप नष्ट करने का नहीं था, अभी कल ही तो सरयू स्नान कर सारे पाप धो लिए थे। पाप नाशक स्नान को मैं कम्पयुटर के एन्टीवायरस प्रोग्राम से ही जोड़ कर देखता हूं, एक बार स्केन याने स्नान कर लो फ़िर सारे पापरुपी वायरस का सफ़ाया हो जाता है। "न सौ काशी न एक पिचाशी।" इन्हीं किंवदंतियों के बीच नंदीग्राम का एतिहासिक पिशाची मेला चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को बदस्तूर जारी है। कुंड से वापस आकर हमने होटल में चाय पी, चाय पीने वाले कम थे और चाय अधिक हो गयी थी, होटल वाले ने 3 चाय वापस लेने से मना कर दिया, प्रताप ने दो चाय ली और मैने भी, मामला फ़िट हो गया।चाय वापस नहीं करनी पड़ी।
भरत कुंड के यात्री |
नंदीग्राम भरतकुंड पिशाची के बारे में दो तरह की किंवदंतिया हैं पहली यह कि लंका में युद्ध के दौरान जब मेघनाद के बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने भेजा गया था। बूटी की पहचान न होने के कारण वह पहाड़ उठाकर ही लंका की ओर चल पड़े। जब वे अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे तो कुछ देर के लिए समूचे क्षेत्र में अंधकार छा गया। आसमान की ओर देखने पर किसी दानव शक्ति द्वारा अयोध्या पर आक्रमण किए जाने की आशंका में भरत जी ने बाण चला दिया। बाण लगने के कारण हनुमान जी पर्वत समेत गिर गए थे। पुजारी हनुमान दास कहते हैं कि जिस स्थान पर हनुमान जी गिरे थे वहां कुंड बन गया था। उसी को पिशाच मोचन कुंड के नाम से जाना जाता है। दूसरी किंवदंती है कि लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ब्रह्मा हत्या के पाप से मुक्त होने से लिए पिशाच मोचन कुंड में स्नान किया। इस कारण पिशाच मोचन कुंड की मान्यता है कि न सौ काशी न एक पिशाची।
मणि पर्वत का शिलालेख |
अब यहाँ से हम वापस चल पड़े अयोध्या की ओर, ऑटो चालक से पूछ कि बीच में और कुछ दर्शनीय स्थल हो तो वह भी दिखा दे। तो उसने बताया की रास्ते में मणिपर्वत मिलेगा। मैने कहा कि - मणिपर्वत चलो, वहीं तुम्हारा भाड़ा भी सकेल कर दे देगें। वह तैयार हो गया। हम मणिपर्वत पहुंचे। एक ऊंचा सा टीला है जिसपर मंदिर बना है, यहां के पुजारी ने बताया कि जब सीता जी जनकपुरी से वापस आई थी तब यहीं पर मणियों का पर्वत बना कर सीता जी झूले में झुलाया गया था। यहाँ प्रतिवर्ष सावन मेला लगता है, जिसमें अयोध्या के साते देवी देवता झूला झूलने आते हैं यह उत्सव 12 दिन चलता है। इस उत्सव के लिए प्रशासन सारी व्यवस्था करता है। मेले में लाखों श्रद्धालु सावन झूला पर्व मनाने आते हैं। यह स्थान भारतीय पुरातत्त्व के संरक्षण में है। इस मंदिर में कई शंख रखे हैं, जिनमें एक शंख को पांच्जन्य शंख भी बताया गया है।
दीवारों पर वाल्मीकि रामायण |
मणि पर्वत के दर्शन कर के हम मणिराम की छावनी पहचें। वाल्मीकी रामायण मंदिर भी खुल चुका था। वाल्मीकी रामायण भवन का निर्माण मंहत नृत्यगोपाल दास जी ने कराया था। 1956 में प्रारंभ होकर दस वर्षों में इसका निर्माण 1966 में पूर्ण हुआ, यहां दुनिया का अनोखा रामायण बैंक है, यहां अभी तक 164 अरब से अधिक राम नाम जमा हो चुके हैं।इस बैंक का नाम है 'अंतरराष्ट्रीय श्री राम नाम बैंक।' इस बैंक में राम नाम जमा कराने पर ब्याज भले ही न मिलता हो मगर सच्चा आनंद अवश्य मिलता है। अंतरराष्ट्रीय श्री राम नाम बैंक की स्थापना वर्ष 1963 में अयोध्या में नृत्य गोपालदास महाराज द्वारा की गई थी। गाजियाबाद में इसकी शाखा की स्थापना प्रख्यात संत व कथावाचक डोंगरे जी महाराज ने घंटाघर स्थित रामलीला मैदान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान की थी। आज इस बैंक की देश-विदेश में मिलाकर 125 से अधिक शाखाएँ हैं। गाजियाबाद के हनुमान मंदिर में इसकी 42वीं शाखा है।
पाञ्चजन्य शंख |
बैंक में खाता खोलने के लिए किसी कागजात की नहीं बल्कि राम नाम की जरूरत है। बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिला या पुरुष कोई भी, किसी भी भाषा में सवा लाख सीताराम या राम नाम लिखकर बैंक में अपना खाता खोल सकता है। इतना ही नहीं, जो भक्त नियमित रूप से राम नाम लिखता है, वह बैंक का स्थायी सदस्य बन जाता है और उसे बैंक की तरफ से पास बुक व सदस्यता प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। एक करोड़ राम नाम लिखने वाले भक्त को स्वर्ण पदक, पचास लाख राम नाम लिखने वाले को रजत पदक व 25 लाख राम नाम लिखने वाले को काँस्य पदक से सम्मानित किया जाता है। 25 वर्ष की आयु में ही 15 लाख नाम लिखने पर भी काँस्य पदक मिलता है। राम नाम लिखने के लिए वैसे तो बैंक से ही कॉपी मिलती है मगर निजी कापी या डायरी आदि में भी राम नाम लिखकर बैंक में जमा कराया जा सकता है। राम नाम लिखी कॉपियों को अयोध्या स्थित 'श्री वाल्मीकि रामायण भवन' में सुरक्षित रखा गया है।
गरमा गरम इमरती |
रामायण भवन से दर्शन करके हम पुन: उसी रास्ते पर निकल पड़े, रास्ते में एक दर्जी अंगरखा सील रहा था, एक साधु अंखरखे का ट्रायल ले रहा था, मेरे भी मन में एक अंगरखा डोरी वाला सिलाने की आई, लेकिन देर हो चुकी थी। अगर यह दर्जी सुबह दिख जाता तो शाम तक अंगरखा तैयार हो सकता था। अब समय नहीं था, अंगरखा सिलाने की अधुरी इच्छा को फ़िर कभी पर टाल कर आगे बढे, मुख्य मार्ग पर आने तब जोर की भूख लग चुकी थी। एक होटल में गर्मागरम इमरती बन रही थी। लालच आ ही गया, क्या करुं कंट्रोल ही नहीं होता। साथियों से पूछ कि नास्ता करना है क्या? सभी ने न में जवाब दिया, मैं होटल में पहुंचा, इमरती सौ रुपए किलो थी, होटल का नाम सौरभ होटल, एक पाव इमरती ली, एक पाव में 10-12 इमरतियाँ तो चढ गयी। तीना चार इमरतियाँ होटल में ही खड़े-खड़े उदरस्थ की, बाकियों को थैली में बंद करके आगे बढे, मुझे इमरतियाँ लेते देख कर दो चार साथियों ने भी खरीदी। मैने सभी से खाने के विषय में पूछा तो उन्होने सभी का खाना गायत्री मंदिर में बनना बताया। सबको लेकर जब गायत्री मंदिर पहुंचा तो देखा कि वहां कुछ लोगों का ही खाना बन रहा है। अब मेरी बात न मानने की सजा भुगतो। कह कर मैं बिरला धर्मशाला की ओर बढ लिया।
गुगल सर्च इंजन पर ललित शर्मा |
रास्ते में दो जगह लिट्टी चोखा मिल रहा था। एक जगह तली हुई बाटी थी, आलू के साग के साथ, दूसरी जगह भुनी हुई बाटी दिखाई दी। मैने दोनो ले ली। अब खाने की जरुरत नहीं थी इनसे ही काम चल जाएगा। रास्ते में सुबह वाला सायबर कैफ़े दिखाई दिया। फ़िर क्या था? घुस गए सायबर कैफ़े में। सायबर कैफ़े के संचालक ने आईडी मांगी। आई डी कार्ड सब मेरे बैग में पड़े थे, मैने कहा कि गुगल पर मेरा नाम सर्च के देखिए। जब उसने हिन्दी में "ललित शर्मा" सर्च किया तो 3 सेकंड में ढाई लाख से उपर लिंक दिखाई दिए और जैसे ही इमेज सर्च की तो सैकड़ो फ़ोटो मेरी सर्च इंजन ने निकाल कर धर दी। उसे देखकर संचालक ने कहा कि "अब आपकी आई डी की जरुरत नहीं है, आप तो गुगल में सर्वत्र व्यापक हैं। चलाईए इंटरनेट, ब्लॉगिंग का यह फ़ायदा हुआ। अब पहचान पत्र रखने की आवश्यकता नहीं है। हमारी पहचान गुगल पर स्थापित हो चुकी है। कैफ़े से मेल आदि चेक किए और ब्लॉग पर दो फ़ोटो लगा कर अपने रुम में पहुचा। पंकज का चेतन भगत से पीछा नहीं छूटा था, कह रहा था कि बड़ा बोरिंग उपन्यास है, उपन्यास का नाम मैं भूल रहा हूँ। दोनो ने लिटी चोखा खाया इमरती के साथ और मैं आम्रपाली के सपनों में खो गया।-- आगे पढें
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
रविवार, 11 दिसंबर 2011
अरे! मारिए दू चार गदा इनको -- ललित शर्मा
सुबह का नाश्ता |
प्रारंभ से पढें
रात खूब सोना बनाया, मन-तन की थकान दूर हो गयी थी। चिड़ियों की चहचहाट सुनाई दे रही थी, बाहर बरामदे में गौरैया फ़ुदक रही थी। बरामदे में ही कुर्सी डालकर बैठा, चाय वाला भी आ गया। मैने कहा कि डबल चाय चाहिए, रात की खुमारी उतराने के लिए। काफ़ी दिनों से स्नान के लिए गर्म पानी नहीं मिला, ठंडे पानी से ही हर हर गंगे कर रहे थे। आज भी कोई चांस नहीं था गर्म पानी मिलने का। हवा में थोड़ी ठंडक थी, पर नहाना ही था। कभी-कभी नहाना भी बड़ी मजबुरी बन जाता है। डबल चाय ने राहत दी, इंजन गर्म हो गया, अब ठंडे पानी का कोई खास असर नहीं होने वाला था। चलो नहा लिया जाए, गायत्री मंदिर में साथी प्रतीक्षा कर रहे थे। पंकज भी तैयार हो चुका था, हम गायत्री मंदिर की ओर चल पड़े। आज नाश्ते में सिर्फ़ दही और केला खाया। सुबह - सुबह दही केले की ही दरकार थी, आधे दर्जन केले दही के साथ पेट के हवाले किए और पंकज ने चने और मुंग लिए। आगे बढे तो एक स्थान पर सायबर कैफ़े दिख गया। वापस आकर यहीं डेरा डालने का इरादा बना। राम लला के दर्शन करने वालों की कतार लगी थी। हमें तो गायत्री मंदिर जाना था.
रात खूब सोना बनाया, मन-तन की थकान दूर हो गयी थी। चिड़ियों की चहचहाट सुनाई दे रही थी, बाहर बरामदे में गौरैया फ़ुदक रही थी। बरामदे में ही कुर्सी डालकर बैठा, चाय वाला भी आ गया। मैने कहा कि डबल चाय चाहिए, रात की खुमारी उतराने के लिए। काफ़ी दिनों से स्नान के लिए गर्म पानी नहीं मिला, ठंडे पानी से ही हर हर गंगे कर रहे थे। आज भी कोई चांस नहीं था गर्म पानी मिलने का। हवा में थोड़ी ठंडक थी, पर नहाना ही था। कभी-कभी नहाना भी बड़ी मजबुरी बन जाता है। डबल चाय ने राहत दी, इंजन गर्म हो गया, अब ठंडे पानी का कोई खास असर नहीं होने वाला था। चलो नहा लिया जाए, गायत्री मंदिर में साथी प्रतीक्षा कर रहे थे। पंकज भी तैयार हो चुका था, हम गायत्री मंदिर की ओर चल पड़े। आज नाश्ते में सिर्फ़ दही और केला खाया। सुबह - सुबह दही केले की ही दरकार थी, आधे दर्जन केले दही के साथ पेट के हवाले किए और पंकज ने चने और मुंग लिए। आगे बढे तो एक स्थान पर सायबर कैफ़े दिख गया। वापस आकर यहीं डेरा डालने का इरादा बना। राम लला के दर्शन करने वालों की कतार लगी थी। हमें तो गायत्री मंदिर जाना था.
कनक भवन में सामुहिक फ़ोटो |
गायत्री मंदिर पहुंचने पर देखा कि सभी साथी तैयार हो गए हैं और अग्निहोत्र भी सम्पन्न हो चुका है। कहने लगे चलिए अब किधर चलना है? जिधर रास्ता जाता है उधर ही चलना है, कम से कम अयोध्या की गलियों को तो घूम कर देखा जाए। यहां घूमने के लिए तो लोग किराया भाड़ा खर्च करके आते हैं। पैदल - पैदल हम लोगों का दल निकल पड़ा दर्शन को। सबसे पहले रास्ते में आया कनक भवन। बड़ा ही सुंदर बना है, कहते हैं कि ब्याह कर आने के बाद सीता जी को माता कैकयी ने उपहार स्वरुप यह महल दिया था। यह भवन सीता एवं श्री राम जी का निज भवन माना जाता है, यहाँ इन दोनो के अतिरिक्त किसी तीसरे की मूर्ति स्थापित नहीं है। स्वर्ण आभा भवन आलोकित हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि सोने का ही बना हो।
दशरथ महल |
किवदंती है कि कनक भवन 5 कोस में बना था। इसकी भव्यता देखते ही बनती थी। वर्तमान में बना हुआ कनक भवन 300 साल पुराना है, इसे ओरछ स्टेट मध्यप्रदेश की महारानी ब्रृजभानि कुंवरी ने ईश्वरीय प्रेरणा से बनवाया था और ऐसा ही एक मंदिर ओरछा में भी बनवाया। मंदिर के प्रांगण में हमने स्मृति स्वरुप एक सामुहिक चित्र भी लिया। ताकि सनद रहे वक्त जरुरत पर काम आवे। कनक भवन से आगे हनुमान गढी की तरफ़ आने पर राजा दशरथ का महल पड़ता है। इस महल के सामने दुकान एवं होटल वालों का कब्जा है, यत्र-तत्र गंदगी बिखरी हुई थी। हम दशरथ जी का महल देखने पहुंचे। आरती हो रही थी, आरती के बाद कुछ देर बैठकर साथियों ने वहां कीर्तन किया,"श्रीराम जय राम जय जय राम, सीता राम मनोहर जोड़ी, दशरथ नंदन जनक किशोरी"। कीर्तनोपरांत बाहर आए तो मंदिर परिसर में ही।
सुग्गे की भवि्ष्यवाणी |
सुग्गा भविष्य बता रहा था। मुझे सुग्गे की फ़ोटो की जरुरत थी, इसलिए पंकज को फ़ोटो लेने का ईशारा करके सुग्गे वाले से भविष्य दिखाने लगा। 5 रुपए में एक कार्ड निकलवा रहा था। मुझे देख कर और भी साथी भविष्य जानने लग गए। सुग्गे वाले पहले मेरा नाम पूछा और फ़िर सुग्गे ने मेष राशि का कार्ड निकाल दिया। सब हाथ की सफ़ाई का कमाल था। उसने 12 राशियों के कार्डों पर अलग अलग पहचान चित्र बना रखे थे, चिड़िया को पिंजरे से निकाल कर उसके सामने 4-5 कार्ड ले जाता था, वह उस लिफ़ाफ़े से कार्ड नहीं निकालती थी। जिस कार्ड के सामने काले रंग ला टेप लगा था उसे ही चिड़िया निकालती थी, मैने यही ध्यान से देखा। सबकी पेट रोजी लगी है, सभी का अपना अपना धंधा है।
कार्ड निकालता सुग्गा |
मैने कार्ड निकलवाए तो साथियों ने भी देखा देखी निकलवाने शुरु कर दिए,चौरसिया जी, नीरु, गणेशु, सुखचंद यादव एवं अन्य लोगों ने भी सुग्गे से कार्ड निकलवाए, सुखचंद जी के कार्ड में भविष्य में होने वाली कुछ समस्या निकल आई , चश्मा न होने के कारण उन्होने अपना कार्ड देवयानी चंद्राकर से पढ कर सुनाने कहा। भविष्यवाणी उनकी पत्नी ने भी सुन लिया। वह बोली - (तेखरे सेती त मैं मना करत रहेवं, अब भुगत तैंहा, आनी-बानी के गोठ बतावत हे) इसीलिए तो मैं मना कर रही थी, अब देखो सब गड़बड़ भविष्य बता रहा है। सुनते ही सुखचंद जी का पारा चढ गया - मैं तो कमावत हंव न, तोला काय परे हे, चुप राह" (मैं तो कमा रहा हूँ, तेरे क्या लेना देना! चुप रह) अगर वह चुप न होती तो वहीं दोनो में फ़ायटिंग हो जाती और तीन तलाक की नौबत आ जाती, सुग्गे की भविष्यवाणी सच हो जाती।
ठग्गु के लड्डू |
दशरथ महल से दर्शन करने के बाद हनुमान गढी की ओर बढे, पंकज फ़ोटो लेने में मशगूल था, हमने लड्डू लिए और पुन: लाल लंगोटे वाले के दरबार में पहुंच गए। "जय बजरंग बली की, साथियों ने जयकारा लगाया। मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए 76 पैड़ियों से जाना पड़ता है, कहते हैं कि हनुमान जी यहीं गुफ़ा में रहते थे, अब गुफ़ा तो कहीं नजर नहीं आती पर बालरुप में हनुमान जी, माता अंजनी सहित विराजमान हैं। देशी घी का छौंक और विलायती घी के लड्डू इन्हे बहुत रास आ रहे हैं। देशी के नाम पर विलायती घी के लड्डू बेच कर दुकानदार माला माल हुई जा रहे हैं। डालडा घी के लड्डूओं को देशी घी का बता कर दावे से बेचा जा रहा है। धड़ल्ले से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
हनुमान गढी का मुख्य द्वार |
हमने बजरंग बली से विनती की। आप नगर के कोतवाल हैं, भगवान ने आपको अयोध्या में रहने के लिए स्थान दिया है। कैसी भर्राशाही चल रही है? पूरा अयोध्या गंदगी से बजबजा रहा है, जहाँ देखो वहीं मल,शौच कचरा पड़ा हुआ है। घर का कचरा लोग सड़क पर ही डाल देते हैं, कहीं भी हगो-मूतो। जितना रुपया देश से अयोध्या के नाम पर लिया गया, अगर उसका एक प्रतिशत ही यहाँ लगा देते तो बाहर से आए दर्शनार्थियों को शर्मिन्दा नहीं होना पड़ता। जरा देखिए वीर हनुमान, इन्हे भी सुधारिए, लंका के रावण को तो सुधार दिया था, इन्हे कब सुधारेगें? आपकी नाक के नीचे ही ठगी-फ़ुसारी का खेल चालु है। अरे! मारिए दू-चार गदा इनको। तभी तो सुधरेगें, लूटम-लूट मचाए हुए हैं। चारों तरफ़ गंदगी फ़ैला रखी है। अयोध्या नगरी का बैंड बजा रखा है। लगता है कि आप अपना हिस्सा पाकर चुप बैठ जाते हैं, कलजुग की बीमारी आपको भी लग गयी। अब टंकी अनशन होगा तभी आपको कुछ सुनाई देगा। नहीं तो आपके खिलाफ़ भी आर टी आई लगाना पड़ेगा।:)
देवयानी चंद्राकर अपना भविष्य बंचवाते सुखचंद यादव |
हनुमान गढी से हमें कार्यशाला देखने जाना था जहां पर मंदिर के पत्थरों की घड़ाई हो रही थी। अब यहाँ से हमारा दल दो भागों में बंट गया। आधे इधर गए, आधे उधर गए, बाकी मेरे पीछे आए। हनुमानग़ढी से हम बिरला मंदिर आए, लेकिन मंदिर के पट बंद मिले। दोपहर भी हो रही थी, वहीं सिंधी के होटल में हमने भोजन किया, लगभग 50 लोग तो होंगे ही, महिलाओं की संख्या अधिक थी। होटल वाला भी एक बार में 50 ग्राहक पाकर गद-गद हो गया। दोपहर के भोजन में मैने मीठा दही और रोटियाँ ली। भूख कस के लगी हुई थी, बेरोकटोक रोटियाँ भीतर जाने लगी, बिना टोल टेक्स पटाए ही। तंदूर वाले ने स्पीड पकड़ ली। पर सभी छत्तीसगढिया चावल ही खाने के मुड में थे।
बड़ी भूक लगी है |
मदन साहू ने पूछा कि 35 रुपए की थाली में क्या-क्या देते हैं? बैरा ने बताया कि दो रोटी, हाफ़ चावल, दो सब्जी औए एक दाल, अचार, सलाद मिलेगा। मदन लाल जी का पेट एक थाली में भरने वाला नहीं था, उसने पूछ ही लिया कि "एक बार देगें कि मांगने पर दुबारा भी मिल जाएगा? दुबारा लेने पर एक्स्ट्रा चार्ज लगेगा, बैरे ने कहा। मन मसोस कर मदन साहू ने भी आर्डर दे दिया। सभी लोग भोजन करते में एक डेढ घंटा लग गया। अपने-अपने भोजन के रुपए सभी ने अलग-अलग दिए, यहाँ भी समस्या 500 के नोट के खुल्ले की थी। हरिद्वार से अयोध्या तक बड़ी मुस्किल से 500 के नोट के खुल्ले मिले। पता नहीं आज कल लोग 500 और 1000 के नोटों से इतना क्यों घबराने लगे हैं। सहज कोई लेने को ही तैयार नहीं होता।
मंदिर के लिए शिला तराशते शिल्पकार और हमारा दल |
फ़िर एक बार चल पड़े कार्यशाला की ओर। कार्यशाला रामघाट मार्ग पर बनी हुई है। रास्ते में दोनो तरफ़ गंदगी का आलम इधर भी दिखाई दिया, नालियाँ बजबजा रही थी, मुंह पर कपड़ा रख कर चलना पड़ा। रास्ते में जैन मंदिर और घर्मशाला भी देखी। अंत में कार्यशाला पहुचें,यहां 1992 में भारत के कोने कोने से आई रामशिलाएं भी रखी हुई हैं। मंदिर के पत्थरों की गढाई हमारे आने से 15 दिन पहले ही शुरु हुई थी। इस आशय का समाचार अखबारों में पढा था। कुछ राजस्थान के शिल्पकार लाल पत्थरों पर पत्थरों पर कढाई कर रहे थे। मंदिर के लिए सामग्री निर्माण का कार्य विगत 3-4 वर्षों से बंद था। यहाँ पर मंदिर का माडल भी रखा हुआ है। जिससे हमें मंदिर की विशालता का अंदाज लग जाता है। एक जगह रुक कर जिज्ञासु साथियों साथ प्रश्नोत्तरी भी हुई, उनके प्रश्नों के जवाब भी दिए। मुफ़्त का गाईड सभी को अयोध्या भ्रमण करा रहा था।
मणिराम की छावनी |
कार्यशाला से निकल कर संकरी गलियों से होते हुए हम मणिराम की छावनी पहुंचे। छावनी के सामने ही वाल्मिकी भवन है, जहां दीवालों पर संगमरमर पत्थर में उकेरी हुई सम्पूर्ण वाल्मीकी रामायाण प्रदर्शित है। दोपहर का समय होने के कारण इसके पट बंद मिले। हम मणिराम की छावनी में प्रवेश किए। पहले यहां महंत नृत्यगोपाल दास जी थे, तीन साल पहले उनका देहावसान हो गया, उनकी जगह दूसरे महंत हो गए हैं। महंत जी भी सोए हुए थे। इस मंदिर में एक स्तम्भ पर ताम्रपत्र पर सम्पूर्ण गीता उकेरी हुई है। यह ताम्रपत्र स्तम्भ पर लगे हुए हैं। हमने कुछ देर यहां आराम किया, कुछ साथी यहाँ से आराम करने गायत्री मंदिर जाना चाहते और कुछ घूमना चाहते थे। हम मणिराम की छावनी से चलकर मुख्य मार्ग पर आ गए। वहाँ महिलाओं ने कुछ खरीददारी की, जुगल साहू के चिरंजीव ने कहा कि अब भरत कुंड चला जाए। अयोध्या भरत कुंड लगभग 15 किलोमीटर है। दर्शन नगर होते हुए जाना पड़ता है। एक आटो वाले को पूछने पर उसने एक तरफ़ का किराया 800 रुपए बताया, हमने उसे जाने दिया, दुसरा आया, उसने प्रति सवारी 20 रुपए जाने का कहा, हमें यह किराया जंच गया। तो उसे वापसी के लिए भी तय कर लिया। 20 रुपए में जाना और 20 रुपए में आना। हम 14 लोग ऑटो में सवार होकर भरत कुंड की तरफ़ चल पड़े। जारी है........। आगे पढें
लेबल:
अभनपुर,
अयोध्या,
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ललित शर्मा,
श्री राम लला,
हनुमान गढी
परिचय क्या दूँ मैं तो अपना,
नेह भरी जल की बदरी हूँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने,
कुँए पर बंधी हुई गगरी हूँ।
मीत बनाने जग मे आया,
मानवता का सजग प्रहरी हूँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का,
सबका स्वागत करती नगरी हूँ।
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